शिवा होटेल मे बैठा खाना खा रहा था.शाम को टीवी पे उसने वो मनहूस खबर सुनी थी & उसका दिल देविका के लिए तड़प उठा था.उसे पता था की देविका अगर सबसे ज़्यादा किसी को चाहती थी तो वो था प्रसून.शिवा का दिल कर रहा था की फ़ौरन एस्टेट पहुँचे & अपनी जान के गम को दूर कर दे.उसे पता था की ये सब इंदर का किया हुआ है.उसने तय कर लिया था की अब इंदर को वो खुद सज़ा देगा.प्रसून के खून की खबर सुनके शिवा की भूख-प्यास मर गयी थी लेकिन 1 फ़ौजी होने के नाते वो जानता था की भूखे पेट कोई भी लड़ाई नही जीती जा सकती इसलिए वो अपने होटेल से निकल यहा खाना खाने आया था. उस बेचारे को ये कहा पता था की कामिनी उसे ही क़ातिल समझ रही थी & ढाबे के बाहर खड़ा मोहसिन उसे देख रहा था.
"मोहसिन,पकड़ साले को."
"नही,अभी नही.उसके पास हथ्यार भी हो सकता है."
शिवा खाकर बाहर आया & काउंटर पे बैठे कमाल को पैसे देने लगा,"अरे मोहसिन भाई,कब आए?",कमाल मोहसिन को देख के चौंका.
"बस अभी-2.",शिवा बाकी पैसे वापस लेने के इंतेज़ार मे खड़ा था.
"आओ ना,बैठो.आप तो पहली बार आए हो मेरे होटेल मे.आपको अपना स्पेशल पान खिलाता हू.",कमाल ने गल्ले से बाकी पैसे निकल शिवा को दिए.
"आज नही,कमाल.आज कुच्छ काम है."
"कैसा काम,मोहसिन भाई?"
"इन भाई साहब को जैल की सलाखो के पीछे पहुचाना है.",उसने शिवा का गिरेबान थाम लिया मगर शिवा चौकन्ना था उसने अपनी बाई कोहनी मोहसिन की ठुड्डी के नीचे मारी & गिरेबान छुड़ा भागा.लड़को की भीड़ उसके पीछे पड़ गयी.शिवा तेज़ी से भागता मैं रोड पे पहुँचा..बस 1 बार वो यहा से निकल जाए तो फिर इंदर को & उसके इन कुत्तो को भी देख लेगा मगर तभी उसका पाँव किसी चीज़ से टकराया & वो औंधे मुँह गिरा.
उसने उठने की कोशिश की मगर तब तक उसकी पीठ पे सुखी सवार हो चुका था & उसके हाथो मे हथकड़ी डाल रहा था,"साले!क़ातिल.फौज के नाम पे धब्बा है तू!",तब तक वाहा बाकी लोग भी आ पहुँचे.मोहसिन पोलीस का आदमी तो नही था मगर तब भी वो हथकड़ी ज़रूर रखता था & अपने आदमियो को भी रखने को कहता था.उसका मानना था की किसी भी ख़तरनाक आदमी को काबू मे करने के लिए हथकड़ी से बेहतर कुच्छ भी नही था.लड़के शिवा की पिटाई करना चाहते थे मगर मोहसिन ने उन्हे रोका & शिवा के पैरो को रस्सी से बाँधा & कार की पिच्छली सीट पे डाल दिया & फिर सुखी के साथ निकल गया.
गतान्क से आगे.. कामिनी ने तय कर लिया था की वो पोलीस को शिवा के बारे मे बता देगी ताकि वो जल्द से जल्द पकड़ मे आए.चौबे इस वक़्त कही एस्टेट मे ही छान-बीन मे मशगूल था & उसने बोला था की वापस जाने से पहले वो ज़रूर उस से मिल के जाएगा.तभी उसका मोबाइल बज उठा,"हां,मोहसिन बोलो?"
"मेडम,वो मिल गया है मगर आप यहा फ़ौरन आ जाइए."
"क्यू,मोहसिन?"
"मेडम,शिवा आपसे कुच्छ कहना चाहता है."
"मगर क्या?"
"वो कहता है की आपके आने पे ही बोलेगा लेकिन आपको फ़ौरन आना होगा."
"ओके,मैं अभी आती हू.",कामिनी ने वीरेन से इजाज़त ली & अपनी कार मे बैठ ड्राइवर को पंचमहल वापस चलने को कहा.
चौबे के हुक्म से एस्टेट की सारी लाइट्स जला दी गयी थी & उसने फ़िल्मो मे इस्तेमाल होने वाली लाइट्स मँगवा के पूरे एस्टए को रोशनी से भर दिया था.छ्होटी को कुच्छ भनक लगी थी & वो कॉटेज के आस-पास की झाड़ियो मे घूम रही थी.थोड़ी देर बाद वो झाड़ियो से निकल आगे बढ़ने लगी.चौबे की भी छटी इंद्री उसे ये कह रही थी की अभी कोई और सुराग भी ज़रूर मिलेगा.
छ्होटी ने कॉटेज को आने वाले रास्ते को पार किया & थोड़ी दूर पे बने पेड़ो के झुर्मुट के बीच घुस गयी.सारे पोलिसेवालो ने रोशनी का रुख़ उधर ही कर दिया.पेड़ो के बीचोबीच छ्होटी अपने अगले पंजो से ज़मीन खोदे जा रही थी.सभी दम साधे उसे देख रहे थे.कुच्छ पॅलो बाद छ्होटी ने छ्होटा आस गड्ढा कर दिया था & उस गड्ढे मे कुच्छ चमक रहा था जिसे देख वो भोंक रही थी.
क्षोटन चौबे आगे बढ़ा & वो चमकती चीज़ उठाई-वो 1 छुरि थी मगर रसोई की छुरि नही.उसकी साइज़ वैसी ही थी मगर आकार नही.अपने रुमाल से चौबे ने उसकी बँटे पे लगी मिट्टी सॉफ की & उसे उसपे लगे खून के जम चुके धब्बे सॉफ दिखाई पड़े.
"सर,यही होगा मर्डर वेपन.",हसन उसके साथ गड्ढे के किनारे अपने पंजो पे बैठा था.
"ह्म्म....",चौबे तेज़ी से पान चबा रहा था....मर्डर वेपन तो यही है मगर क़ातिल ने इसे यहा क्यू दबाया?कही और क्यू नही?....ये तो लगता है मानो वो चाहता है की हम उसे पकड़ लें या फिर....चौबे समझ रहा था की आख़िर क़ातिल का मक़सद क्या था.उसने चाकू को फोरेन्सिक टीम के हवाले किया & बंगल की ओर बढ़ गया.