RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे..
रात कामिनी फिर से इंदर के पीछे-2 बंगल के अंदर थी.देविका फिर से इंदर की
बाहो मे थी लेकिन आज वो रो नही रही थी.आज फिर वही बात हो रही थी दोनो के
बीच मे.कामिनी को समझ नही आ रहा था की आख़िर इंदर क्यू चाहता था की रोमा
के नाम जयदाद कर दी जाए.कही रोमा भी तो नही मिली हुई इस साज़िश
मे?..लेकिन शिवा क्या 1 ही ग़लती 2 बार कर सकता है?उसने इंदर को पहचानने
मे थोड़ी देर की पर क्या रोमा भी....
इंदर देविका के होंठ चूम रहा था & कामिनी ने देखा की देविका भी बड़ी
बेचैनी से अपने हाथ इंदर की पीठ पे घुमा रही थी.दोनो करवट से लेटे हुए थे
कि इंदर ने करवट बदल देविका को अपने नीचे किया & उसके उपर चढ़ गया.देविका
इंदर की कमीज़ को उसकी पॅंट से निकाल अपने हाथ उसके अंदर घुसा उसकी पीठ
पे चला रही थी.कामिनी समझ गयी की अब आज रात उसे इन दोनो की आहो & मस्त
आवाज़ो के सिवा और कुच्छ सुनने को नही मिलने वाला.वो वाहा से जाने लगी की
तभी रोमा के कमरे के पास उसके कदम ठिठक गये.
रोमा के कमरे से बातो की आवाज़े आ रही थी..इतनी रात गये उसके कमरे मे था
कौन?कामिनी पलटी तो देखा की संजय अपने कमरे मे नही है.दोनो भाई-बेहन इतनी
रात गये क्या बात कर रहे थे.लकड़ी के भारी-भरकम दरवाज़े के बंद होने के
कारण उसे कुच्छ सुनाई नही दे रहा था.कामिनी का दिमाग़ तेज़ी से दौड़ने
लगा तो उसे याद आया की पीछे के लॉन की तरफ उपरी मंज़िल के 2 कमरो की
बाल्कनी दिखती थी,1 पहले कमरे की & 1 आख़िरी कमरे की.पहला कमरा रोमा का
था & आख़िरी देविका का.
कामिनी फ़ौरन बंगल के बाहर गयी & लॉन मे खड़ी हो रोमा के कमरे को देखने
लगी.बाल्कनी का दरवाज़ा खुला था....किसी तरह वो बाल्कनी पे पहुँच
जाए..बस!वो इधर-उधर देखने लगी तो उसे 1 छ्होटा सा स्टोर रूम दिखा जिसमे
बाग़बानी का समान रखा था.वाहा उसे 1 सीढ़ि मिल गयी.कामिनी ने सीधी को
बाल्कनी से लगाया & कुच्छ ही देर मे वो बाल्कनी पे थी.हवा से हिलते पर्दे
की ओट से उसने अंदर का नज़ारा देखा तो उसकी आँखे फटी रह गयी.
रोमा बिस्तर पे नंगी पड़ी थी & संजय उसकी फैली टाँगो के बीच सर घुसाए
उसकी चूत चाट रहा था,"आन्न्न्नह.....संजू....वॉवववव..!!",रोमा उसके बाल
खींच रही थी.रोमा कमर उचका रही थी & आहे भरे जा रही थी.कामिनी समझ गयी थी
की रोमा झाड़ रही थी.उसके झाड़ते ही संजय उपर हुआ & अपना लंड उसकी चूत मे
घुसा दिया,"हाअन्न्न्न....संजू...आहह..कितने दीनो
बाद..तुम्हारा...ऊओवव्वव...लंड मेरे अंदर है जान.....!"
कामिनी की समझ मे कुच्छ नही आ रहा था.भाई-बेहन के बीच ऐसा रिश्ता.कितने
घिनोने लोग थे ये!
"ओवववव......संजू...धीरे चोदो ना!..बच्चे का तो ख़याल करो..आनह..!",रोमा
ने उसे अपने उपर से उठाया तो संजय अपने हाथो पे अपना वज़न संभाल उसके
सीने & पेट से अपने बदन को उठा धक्के लगाने लगा.
"वो पागल रोज़ चोद्ता था तुम्हे?"
"हां.",संजय के धक्के और तेज़ हो गये.
"हाईईइ..आराम से करो ना!",रोमा ने उसके निपल्स को नोच लिया.
"आह..",संजय करहा,"..तुम्हे मज़ा आता था?"
"बहुत मेरी जान.जब तक ना काहु तब तक नही झाड़ता था वो
पागल...आईइईयईए..!",संजय गुस्से से पागल हो
गया,"..संजू...प्लीज़....जानते हो ना..ये बच्चा कितना ज़रूरी है हमारे
लिए..आनह...हां..ऐसे ही करो...मैं तो छेड़ रही थी तुम्हे जानू.",रोमा ने
प्यार से उसके बालो मे हाथ फिराए & उसे अपने खींच के चूमने लगी,"..जानती
हू तुम कितना तडपे होगे पर ये ज़रूरी था ना संजू हमारे इन्तेक़ाम के
लिए."
इन्तेक़ाम..कामिनी के माथे पे बल पड़ गये पर तभी उसके सर पे पीछे से बहुत
ज़ोर से किसी ने मारा & वो बेहोश हो गयी.
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कामिनी को जैसे बहुत दूर से कोई आवाज़े आती सुनाई दे रही थी,"..सब बिगड़
दिया इसने..तो अब क्या होगा....कुच्छ नही..इसे ठिकाने लगा
देंगे....",कामिनी को जैसे-2 होश आया तो उसने पाया की वो किसी बिस्तर पे
पेट के बल पड़ी थी & उसके हाथ पीछे करके बँधे हुए थे साथ ही उसके पैर
भी.1 आवाज़ तो रोमा की थी & दूसरी संजय की मगर ये तीसरी आवाज़ किसकी
थी..ये इंदर नही था..कौन था ये?वो दिमाग़ पे ज़ोर डालने लगी तो उसे लगा
की दर्द से उसका सर फॅट जाएगा लेकिन आवाज़ थी जानी-पहचानी,उसने सुनी थी
ये आवाज़ कही.
"तो क्या करेंगे?..इसे भी देविका के साथ.."
"नही..",उस जानी-पहचानी आवाज़ ने कहा,"..इसे किसी और तरकीब से ठिकाने
लगाएँगे पर पहले इंदर को बुलाओ."
"भाय्या तो इस वक़्त देविका के साथ होगा.",रोमा ने कहा.
"तो देखो उसके कमरे मे."
थोड़ी ही देर बाद इंदर भी उनके साथ था,"ये यहा कैसे आ गयी?"
"पहले ये बताओ की देविका को तो शक़ नही हुआ अभी?"
"नही,वो तो गहरी नींद मे सो रही है."
"बहुत बढ़िया.तुमने दस्तख़त ले लिए उसके?"
"जी.ये रही उसकी वसीयत.",ये कब किया इंदर ने..कामिनी सोच रही थी.
"वेरी गुड.अब तुम लोग यही बैठो मैं अभी आता हू.",दरवाज़े के खुलने बंद
होने की आवाज़ से कामिनी समझ गयी को वो शख्स कमरे से बाहर निकल गया है.
"ओह्ह..भाय्या!आख़िर हमारा बदला पूरा हो ही जाएगा अब!",रोमा की आवाज़ से
खुशी झलक रही थी.
"हां,रोमा & इसके लिए तुझे बहुत बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ी है & तुम्हे भी
संजय.",तो रोमा इंदर की बेहन थी..कामिनी सब आँखे बंद किए सुन रही थी.
"भाय्या,हमारे मा-बाप को झेलना पड़ा उसके सामने तो ये कुच्छ भी नही."
"तुम्हे तो इसमे पड़ने की कोई ज़रूरत भी नही थी संजय फिर भी तुमने हमारी मदद की."
"आपने तो मुझे पल मे पराया कर दिया इंदर भाय्या.क्या रोमा का पति होने के
नाते मैं आपके परिवार का हिस्सा नही?",अब तो कामिनी की हैरत का ठिकाना ही
नही था..तो संजय रोमा का भाई नही पति था!..कितना बड़ा खेल खेला था इन
लोगो ने!
"ये बदबू कैसी?"
"हूँ.कुच्छ जल रहा है शायद.मैं देखता हू.",इंदर दरवाज़े की तरफ बढ़ा,"अरे
दरवाज़ा तो बंद है!ऐसा कैसे हुआ!"
"भाय्या,धुआँ कमरे के अंदर आ रहा है."
"ये दरवाज़ा बंद कैसे हुआ?मौसा जी को फोन लगाओ रोमा,जल्दी!",वो तीनो नही
समझे मगर कामिनी समझ गयी थी."मौसा जी" ने वसीयत ले ली थी & अब बंगले मे
आग लगा दी थी.थोड़ी ही देर मे सहाय परिवार का अंत हो जाएगा & उसके साथ ही
इस साज़िश मे शामिल सभी लोगो का भी मगर वो ये मौत नही मरना चाहती थी.
कमरे के अंदर बहुत धुआँ भर गया था....ये सब बाल्कनी के रास्ते क्यू नही
भाग रहे?कामिनी को तीनो के खांसने की आवाज़ से ख़याल आया.उसका भी बुरा
हाल था.उसने गर्दन घुमाई & ज़ोर लगाके करवट ली तो देखा कि वो रोमा के
कमरे मे नही थी बल्कि शायद संजय के कमरे मे थी जिसमे कोई बाल्कनी थी ही
नही.कामिनी चिल्ला के उन्हे अपनी रस्सी खोलने को कहने लगी मगर तीनो धुए
से बेदम थे.
उस वक़्त कामिनी को 1 फिल्म का सीन याद आया & वो घुटने मोड़ अपनी टाँगे
अपने बँधे हाथो से निकालने लगी.रोज़ की जॉगिंग & वर्ज़िश के कारण अभी भी
उसके बदन मे लोच था & थोड़ी ही देर मे टाँगे निकल गयी & उसके बँधे हाथ अब
आगे की ओर थे.कामिनी ने बँधे हाथो से ही पैरो के बंधन खोले & कमरे के
दरवाज़े को बँधे हाथो से ही खींचने लगी लेकिन कोई फ़ायदा नही.
उसने इंदर को हिलाया,"इंदर..उठो..यहा से निकलना है हमे तुम्हारे मौसा को
पकड़ना है हमे.",मगर धुआ अब इंदर के फेफड़ो मे भर चुका था.कामिनी उसकी
जेबे टटोलने लगी & उसके हाथो मे इंदर का लाइटर आ गया.कामिनी ने फ़ौरन उसे
जलाया & उसकी लौ अपने हाथो के बंधन की गाँठ पे लगाई.उसके हाथ जल रहे थे
मगर उसकी उसे परवाह नही थी.
क्रमशः......
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