RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
साड़ी उठा के अंदर का भी दर्शन कर लेना, ये मेरी भौजाई है."मेने जैसे ही उनके पैर छुए, आशीष के साथ वो बोली "अर्रे बहू इनका दोष नही है. इस घर की सारी ननदे ही छिनार है, अपने मरद को बचा के रखना, ये साली अपने भाइयो को भी नही छोड़ती."बड़ी मुश्किल से मैं अपनी मुस्कराहट रोक पाई.
जब मेने अपनी जेठानी जी की ओर देखा तो वो अंजलि और मेरी बाकी ननदो की ओर देख के खुल के मुस्करा रही थी.
और जब हम लोग वापस कमरे मे पहुँचे तो खुल के हंस रहे थे. और कमरे मे मचमच मची थी. लड़किया औरते, कोई नहाने जा रहा था, कोई तैयार हो रहा था.. कई रिश्तेदार आज ही जा रहे थे, कयि पॅक कर रहे थे, उनकी ट्रेन रात को थी और वो रिसेप्षन से सीधे जाने वाले थे. रिसेप्षन की तैयारियो को ले के. और उस कमरे मे सिर्फ़ औरते और लड़कियाँ ही थी तो और खुलापन था. किसी का मॅचिंग दुपट्टा नही मिल रहा था तो किसी को पिन करना. सब लोग अपने मे व्यस्त. बहुत देर के बाद मैं अपने आप मे खोई मुझे अभी भी 'वहाँ' हल्की सी टीस सुबह तो हालत बहुत ही खराब थी. भला हो वो डॉक्टर भाभी की क्रीम का मुझे मम्मी की बात याद आई कि सबसे ज़्यादा दर्द दो बार होता है,
एक लड़की की जिंदगी मे और वही उसके सबसे बड़े सुख के पल होते है. एक जब उसका पति उसे मिलता है और दूसरा जब उसे बच्चा होता है. मेरे सामने 'उनका' चेहरा आ गया. कितने खुश वो लग रहे थे, कितने प्रसन्न और उनकी इस खुशी के लिए मैं तभी मेरा ध्यान किसी की आवाज़ पे गया, किसी महिला की. रिश्ते से मेरी सास लगती थी. उनकी लड़की 'चेंज करने' मे शरमा रही थी. वो बोल रही थी, अर्रे ये तो तेरी भाभी लगती है, ननद भाभी मे क्या शरम. उस ने कुर्ता चेंज कर लिया और उस की मम्मी साड़ी बदल रही थी. वो 13-14 साल की रही होगी. वो अब खुद मेरे पास आई कि भाभी मेरा दुपट्टा पिन कर दीजिए. उसके 'उभार' थोड़े थोड़े आ गये थे. मेरा मन तो किया कि उसके उभारो को हल्के से छेड़ दू लेकिन मेने कंट्रोल किया. हां दुपट्टा सेट करते समय ज़रूर, जो मेरी भाभी करती थी मेरे साथ, 'थोड़ा दिखाओ, थोड़ा छिपाओ' बस उसी तरह.
तैयार होके सब लोग निकल गये तो उसी समय अंजलि और उस की सहेलिया फिर आई.
लेकिन इस बार वो तंग नही कर रही थी. अंजलि ने एक एक को खूब डीटेल मे इंट्रोड्यूस किया और हम लोग बाते करने लगे. वो सारी टेन्थ मे पढ़ती थी. थी तक एक लड़का आया, खूब गोरा, दुबला पतला, कमसिन सा शर्मिला (मुझे याद है भाभी ने उसे देख के कहा था कि बड़ा नेमकिन लौंडा है और उसे टारगेट कर के सब लड़कियो ने कहा मंडप मे गया था, दूल्हे का भाई.. हाई गंडुआ है) उसने आ के अपने को इंट्रोड्यूस किया, "भाभी मैं आपका छोटा देवर हू."
वो रवि था, अंजलि का बड़ा भाई, उससे एक साल बड़ा, 11 मे पढ़ता था. वो खुद कुछ बोलने मे शरमा रहा था. मेने उसे बैठने के लिए बोला. थोड़ी ही देर मे तीन चार और लड़के, सब इनके छोटे कज़िन, मेरे देवर लगते थे. हम लोग कुछ कुछ बाते करने लगे. थी तभी मेरी सास आई और उन सब से बोली हे, यहाँ कहाँ औरतो के कमरें मे...तुम सब तो दुलारी बोली, अर्रे माता जी इतना अच्छा गुड लाई है तो चीटे तो लगेगे ही और फिर ये तो सब देवर है, इनेका तो भाभी पे पूरा हक है."मुझे लग रहा था कि 'ये' बाहर ही चक्कर काट रहे है. मेरा शक एक दम सही निकाला. ये देख के कि अंदर उनकी भाभीया नही है वो अंदर आए और साथ मे एक तगड़े से...., 'उनके' कंधे को सूँघते हुए बोले,"अर्रे साले, तुम्हारी देह से अभी भी मेहदी और महावर की खुशबू आ रही है."
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