RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
अगर एक पल भी उन्होने चूसना और जारी रखा होता तो मैं झाड़ ही जाती. लेकिन रुक के उन्होने मेरी टांगे खूब फैला के दुहरा ही कर दिया. लेकिन अभी भी उन्होने अपने लंड बजाय अंदर डालने के , उसके मोटे लाल गुस्साए सुपाडे को मेरी क्लिट पे रगड़ना शुरू कर दिया.
"ओह्ह डालो डाल लंड मेरी बुर मे प्लीज़ ओह्ह्ह्ह" मैं चीख रही थी.
उंगलियो से उन्होने मेरी चूत की पुट्तियो को फैलाया और फिर कस के पूरी ताक़त से उसे अंदर धकेल दिया. 5*6 करारे धक्को के बाद वो पूरी तरह अंदर था.
जैसे ही सुपाडे ने बच्चेदानि पे सीधे धक्का मारा और लंड की जड़ मेरे क्लिट से टकराई, दर्द से मेरी जान निकल गयी.
जैसे ही सुपाडे ने बच्चेदानि पे सीधे धक्का मारा और लंड की जड़ मेरे क्लिट से टकराई, मज़े से मेरी जान निकल गयी.
मैं दर्द से चीख रही थी, मज़े से सिसक रही थी, झाड़ रही थी झड़ती जा रही थी.
सुहागरत से अब तक मैं न जाने कितनी बार झाड़ चुकी थी पर आज तो बस एक के बाद एक.
वो रुके हुए थे पूरी तरह अपने मोटा लंबा लंड मेरी चूत मे डाल के. जैसे ही मैं रुकी उनके हाथो ने मेरी चुचिया पकड़ के कस के मसलना शुरू कर दिया. उनके होंठ भी मुझे चूम रहे थे, मेरे खड़े निपल्स चूस रहे थे चाट रहे थे .थोड़ी ही देर मे मेरी आँखे खुल गयी, मुस्कराते मेरे चूतड़ भी अपने आप हिलने लगे.
बस क्या था, उन्होने लंड को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर कस के अंदर धकेल दिया.
एक बार फिर मेरी उत्तेजित क्लिट रगड़ गयी. अब मैं खुद उन्हे अपनी बाहों मे भींच रही थी, चूतड़ उचका रही थी कमर पटक रही थी. फिर क्या था,उन्होने सुपाडे तक हल्के हल्के लंड को बाहर निकाला और मेरी दोनो चुचियो को कस के पकड़ के एक बार मे ही पूरा अंदर तक थेल दिया और वो सीधे मेरी बच्चेदानि पे5*6 बार इसी तरह वो सुपाडे तक निकाल के पूरी ताक़त से डाल देते दर्द के मारे मेरी हालत खराब थी. मैं चीख रही थी चिल्ला रही थी. और वो मेरी चिल्लाहट भी रोकने की कोई कोशिश नही कर रहे थे. कुछ देर तक कस कस के इस तरह चोदने के बाद उनका लंड धीरे धीरेमेरी चूत मे रगड़ता ..घिसटता अंदर सरक सरक के घुसता और फिरमस्ती से मेरी हालत खराब हो जाती, ज़ोर ज़ोर से सिसकती, कस कस के चूतड़ पटकती. धक्कमपेल चुदाई शुरू हो चुकी थी. उनके होंठ मेरे निपल्स कस कस के चूस रहे थे, एक हाथ कस कस के मेरी चुचि दबाता मेरे निपल्स फ्लिक करता, दूसरा मेरे क्लिट को छेड़ता. इस तिहरे हमले से मेरी जान निकल रही थी और साथ साथ उनका मोटा लंड.
"ओह्ह ओह ओह्ह उंह उहह." मैं सिसक रही थी.
"क्यो रानी मज़ा आ रहा है चुद्वाने मे ," पूरी ताक़त से लंड घुसेड के वो बोलते.
"हाँ अहह.हा राजा हाँ." मैं सिसकी भरते बोलती.
"तो बोल ना "रुक के मेरी क्लिट पिंच करते बोले.
"हा चो..चो ..चोदो मेरी चूत कस कस के..ओह बहुत अच्छा लग रहा..और और चोदो."
मैं बोली.
फिर तो सतसट गपडप.सतसट गपगपहच हच चुदाई चालू थी. वो बोलते जा रहे थे बड़ी रसीली चूत है तेरी और मैं भी चूतड़ उठा उठा के कहती हाँ हाँ चोदोचोदो.
मैं पता नही कितनी बार झड़ी लेकिन जब तक वो झाडे मैं लगभग बेहोश सी हो गयी थी. मुझे बस इतना याद था कि उन्होने मेरे चूतड़ दोनो हाथो से पकड़ के उठा रखे थे और हम दोनो झाड़ रहे थे. झड़ने के बहुत देर बाद भी उन्होने इसी तरह से सारा का सारा वीर्य मेरी चूत रानी गटक कर गयी. बाकी जो बचा वो मेरी गोरी चिकनी जाँघो पे बह रहा था, गढ़ा सफेद , थक्केदार.
जब मेरी आँख खुली तो मैं उनके बाँहो मे बँधी थी. अचानक मेने देखा लाइट पूरी तरह जल रही थी, सिर्फ़ नाइट लैंप या बेड लाइट ही नही, सारी की सारी. मुझे ध्यान आया,
कमरे मे मैं जैसे घुसी थी, उसी समय उन्होने मुझे पकड़ लिया था और उस समय मुझे याद भी नही रहा बत्ती बंद करने के लिए बोलने को. मेने नीचे निगाह डाली तो मेरे किशोर उरोजो पे, पिछली दो रातो के थोड़े हल्के हो रहे निशानो के साथ, आज के भी ताजे निशान मैं शरमाई नही लेकिन उनके चौड़े सीने मे सिकुड गयी.
उन्होने कस के मुझे चूम लिया. मेने भी हल्के से उन्हे किस कर लिया. फिर तो कस के चुम्मा चाटी चालू हो गयी. जब उनकी जीभ मेरे मूह मे घुसती तो मैं भी उसे हल्के से चूस लेती, काट लेती. वो कस कस के मेरे बाला जोबन दबाते तो मैं भी उनकी पीठ कस के पकड़ लेती. कुछ देर मे मैं उनकी गोद मे थी. उनकी उंगलिया मेरी चूत को सहला रही थी, दबा रही थी. मेरी जंघे अच्छी तरह फैली हुई थी, और उनका खुन्टा भी फिर सेमेरे मेहंदी लगे गोरे गोरे हाथ पकड़ के उन्होने लंड पकड़ते हुए कहा,
"रानी ज़रा प्यार से पकड़ ना, झिझकती क्यो है. तेरे लिए तो है." झिझकते हुए पकड़ के मैं बोली,
"तो मैं कब कह रही हू कि आपकी बहनो के लिए है,"
"लेकिन अगर मेने, तेरी बहन को पकड़ाया तो तब तो एतराज नही होगा." क्लिट टच करते वो बोले.
"ना पकड़ाया तो ऐतराज होगा, साली है आपकी लेकिन सिर्फ़ मेरी बहन या"
"सभी तुम्हारी भाभी बल्कि सारी ससुराल वालियाँ" बो मेरे निपल्स चूस रहे थे, उसे छोड़ के बोले. मेने कस के उनका लंड दबाया और चूतड़ उचका के उन्हे छेड़ा,
"याद रखिएगा आप ने सारी ससुराल वालिया बोला है, सिर्फ़ साली और सलहज नही. वैसे मेरी ससुराल वालीयो खास तौर से मेरी ननदो को आप चाहे पकड़ाए, घोंटए मेरी ओर से पूरी छूट है."
"बताता हू तुझे अभी" उनके होंठो को जो अभी नया नया स्वाद लगा था, चूंची से सीधे वो चिकनी चूत चाटने मे लग गये. उनकी उंगलियो ने मेरी चूत की पुट्तियो को कस के दबा रखा था जिससे उनके वीर्य की एक भी बूँद, बाहर ना छलके. अब की बार फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि उनका सर मेरे पैरो की ओर था. 'सिक्स्टी नाइन 69' की पोज़ मे, और लंड सीधे मेरे मूह के पास.
पहली बार मैं 'उसे' इतनी नेजदीक से देख रही थी, और वो भी पूरी रोशनी मे बहुत प्यारा सेक्सी लग रहा था. मन तो कर रहा था बस गप्प कर लू, खूब लंबा, मोटा, गोरा.
मेने उसे मुट्ठी मे पकड़ लिया. मेरे हाथो के छूते ही जैसे वो फूल के कुप्पा हो गया, और मोटा, सख़्त और मेरी मुट्ठी से निकलने के लिए बेचैन. लेकिन आज मैं उसे इतनी आसानी से छोड़ने वाली नही थी. सहलाते हुए अंगूठे और तर्जनी के बीच दबा के,
मैं उसे आगे पीछे कर कर रही थी. मुझे शरारत सूझी. मेने लंड का चमड़ा धीरे धीरे पीछे कर के उसे खोल दिया. खूब मोटा, लाल ग़ुस्सेल, रस भरा, सूपड़ा, एक आँख सा छेद हल्का सा खुला, मोटे लॉलीपोप सा मैं सोच रही थी कि अगर मैं अपना पूरा मूह खोलू तो भी शायद ही उसे लील सकु. मेने थोड़ा सा लंड को उपर उठाया तो नीचे उनके कसे कसे बॉल्स, लटक रहे थैले से,दिख रहे थे. ( जिसे बसंती पेल्हड़ कहती थी).
मेने एक हाथ से उसे भी हल्के से छू दिया .उनका लंड एकदम गिन गिना गया. अब वह एक दम तन गया था, उसकी एक एक नस साफ साफ दिख रही थी, खूब कड़ा, लोहे के रोड सा, जिससे मुझे उनकी हालत का अंदाज हो गया था. लेकिन मैं 'उसे' छोड़ने वाली नही थी.
क्रमशः……………………………………
शादी सुहागरात और हनीमून--32
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