Kamukta Story कामुक कलियों की प्यास
08-23-2018, 11:37 AM,
#2
RE: Kamukta Story कामुक कलियों की प्यास
रचना- कुछ नहीं भाई.. आप कहो क्या बात करनी है..!
अमर- यार मैं बोर हो रहा हूँ चलो कोई गेम खेलते हैं..!
रचना- कौन सा गेम भाई…!
अमर- अब सारे सवाल यहीं पूछोगी क्या ? चलो मेरे रूम में ललिता आ जाओ…!
ललिता- आप जाओ मैं बाद में आती हूँ मुझे बाथरूम जाना है।
अमर के रूम में आकर रचना बेड पर बैठ जाती है। अमर उसके पास खड़ा हो जाता है। तब उसकी नज़र रचना के मम्मों पर जाती है। ब्रा ना होने की वजह से टी-शर्ट के गले से दूध जैसे सफ़ेद मम्मे साफ नज़र आ रहे थे।

ब्रा ना पहने हुए होने की वजह से टी-शर्ट के गले में से दूध जैसे सफेद मम्मे साफ नज़र आ रहे थे। अमर रचना के मस्त मम्मों को निहार रहा था, उसका लंड हरकत करने लगा था।
दोस्तों अमर जानता है कि रचना उसकी सग़ी बहन है, पर लौड़ा किसी रिश्ते को नहीं मानता है, उसे तो बस चूत से मतलब होता है। जब भी कोई मस्त माल दिखे, वो अपनी औकात में आ जाता है।
रचना को जब यह अहसास हुआ तो वो झट से खड़ी हो गई।
अमर- क्या हुआ? बैठो ना..!
रचना- भाई आपने बताया नहीं कि कौन सा खेल खेलेंगे?
तभी ललिता भी कमरे में आ गई।
ललिता- हाँ भाई मैं भी आ गई हूँ, अब बताओ क्या खेलें?
अमर- हम कुश्ती करेंगे.. मज़ा आएगा..!
रचना- क्या यह भी भला कोई खेल हुआ?
अमर- अरे बहुत मज़ा आएगा.. तुम दोनों एक तरफ़ और मैं अकेला.. हम बड़ा वाला गद्दा ज़मीन पर डाल लेंगे.. अगर तुम दोनों ने मुझे पकड़ लिया और मेरी नाक ज़मीन पर लगा दी, तो तुम जीत जाओगी और अगर मैंने तुम्हारी लगा दी.. तो मैं जीत जाऊँगा.. ओके?
ललिता- ओके.. भाई.. लेकिन हम जीत गए, तो हमारा क्या फायदा.. पहले वो तो बताओ..!
अमर- हारने वाला.. जीतने वाले को, जो वो माँगे, देना पड़ेगा..!
रचना- वाउ..! तब तो हम ही जीतेंगे और आप हमें शॉपिंग करवाओगे.. ओके..!
अमर- ओके.. लेकिन मैं जीता तो?
ललिता- भाई आप हारने वाले हो, बस अगर ग़लती से जीत भी गए तो तब बता देना कि आपको क्या चाहिए.. ओके..!
अमर- ओके.. पर कोई चीटिंग नहीं करना. सिर्फ नाक ही टिकानी है बाकी बदन से कोई मतलब नहीं होगा..!
रचना- ओके भाई..!
जैसे ही अमर ने 1-2-3 बोल कर ‘स्टार्ट’ बोला, दोनों बहनें उसके पैरों को पकड़ कर खींचने लली, अमर गद्दे पर गिर गया।
तब रचना अमर को धक्का देकर पेट के बल करने की कोशिश करती है ताकि उसकी नाक ज़मीन पर लगा सके।
मगर अमर भी कहाँ कम था, उसने रचना को बांहों में भर लिया, उसके मम्मे अमर के सीने में धँस गए और अमर ने उसे कस कर दबोच लिया।
अमर का लौड़ा तन कर सीधा रचना की चूत पर सैट हो गया।
रचना ने पैन्टी नहीं पहनी थी और निक्कर भी पतली थी तो उसको लंड का अहसास सीधा अपनी चूत पर हो रहा था।
उधर ललिता रचना को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। रचना तो लंड के अहसास से गनगना गई थी, उसने अपने आपको ढीला छोड़ दिया था और अमर भी लंड को चूत पर रगड़ रहा था।
ललिता- दीदी आप कोशिश करो ना छूटने की.. नहीं तो भाई जीत जाएँगे..!
रचना ने अपनी ताक़त लगाई और ललिता ने अमर के हाथ खोल दिए, रचना आज़ाद हो गई और उसने जल्दी से उठ कर अमर के पैर पकड़ लिए।
तब उसकी नज़र अमर के लौड़े पर पड़ी जो एकदम अकड़ा हुआ था।
अमर ने सूती पायजामा पहना हुआ था और शायद अन्दर कुछ नहीं पहना था, क्योंकि पायजामे पर अमर के लंड से पानी की बूँद निकली थीं, जो बाहर साफ दिख रही थीं।
रचना ने पैर पकड़ने के बहाने से लंड को छू लिया, जिससे उसको बड़ा मज़ा आया।
इधर अमर भी मज़े ले रहा था।
करीब 15 मिनट तक इनका ये खेल चलता रहा, अमर कभी रचना के मम्मों को दबाता, कभी अपने होंठ मम्मों पे रख देता, तो कभी रचना की गाण्ड को हाथ से दबा देता, कभी-कभी ललिता के मम्मों को भी दबाता, कभी उसको नीचे पटक कर अपना लौड़ा उसकी चूत पर रगड़ता।
आख़िरकार अमर का लौड़ा बेहद गर्म हो गया, वो समझ गया कि अगर ये खेल यूं ही चलता रहा तो उसका पानी छूट जाएगा और उसने जानबूझ कर उनको मौका दिया और अपनी नाक जमीन पर टिका दी।
दोनों बहनें खड़ी होकर कूदने लगी- हम जीत गए…हम जीत गए…
अमर- अच्छा बाबा… मैं हारा.. पर रूको मैं दो मिनट में बाथरूम जाकर आया.. ज़ोर की ‘सूसू’ आई है..!
अमर भाग कर बाथरूम में चला गया और अपने लण्ड, जो उसकी सगी बहनों के बदन से रगड़ कर खड़ा हुआ था, को निकाल कर मुठ्ठ मारने लगा, एक मिनट में ही उसके लौड़े ने पानी छोड़ दिया।
इधर रचना और ललिता खुश थीं कि वो जीत गई हैं और शॉपिंग की बात कर रही थीं कि क्या-क्या लेना है।
अमर बाहर आया तो दोनों की बातें चालू थीं।
अमर- क्या बातें हो रही हैं दोनों में.. मैं ज़्यादा कुछ नहीं दिलाऊँगा.. बस एक-एक ड्रेस दोनों ले लेना.. ओके..!
ललिता- नहीं भाई आपने कहा था, जो हम चाहें आप दिलाओगे.. अब आप चीटिंग कर रहे हो..!
रचना- हाँ ब्रो.. यह गलत बात है.. हाँ.. जो हम चाहेंगे, आपको दिलवाना होगा..!
अमर- ओके.. मेरी बहनों अब तैयार हो जाओ, दोपहर का खाना भी हम बाहर ही खाएँगे और शॉपिंग भी हो जाएगी।
रचना- वाउ.. भाई यू आर बेस्ट ब्रो इन दि वर्ल्ड..!
ललिता- नो.. भाई.. शाम को जाएँगे ना.. प्लीज़ दोपहर को मुझे अपनी सहेली के यहाँ जाना है, आज वहाँ लंच के लिए मुझे बुलाया है, बाकी सब सहेलियाँ भी आ रही हैं।
अमर- नो.. अभी मतलब अभी.. तुमको नहीं जाना, तो रचना को बता दो तुम्हें क्या चाहिए हम ले आयेंगे.. ओके..!
ललिता- ओके.. आप जाओ और दीदी जो आपको अच्छा लगे आप ले आना।
रचना- हाँ ललिता, मैं ले आऊँगी।
ललिता- तो चलो.. हम तैयार हो जाते हैं। आप भाई के साथ चली जाना, मैं अपनी सहेली के यहाँ निकल जाऊँगी..!
रचना- मैं सुनीता को बता कर आती हूँ कि लंच ना बनाए हम बाहर जा रहे हैं..!
अमर- ओके.. अब जाओ, मैं भी रेडी हो जाता हूँ।
दोनों वहाँ से निकल जाती हैं और अमर भी बाथरूम में फ्रेश होने चला जाता है।
सुबह 11 बजे ललिता अपनी सहेली के पास चली गई और अमर भी रचना को लेकर शॉपिंग के लिए बाइक से निकल गया।
अमर ने नीली जींस और सफ़ेद टी-शर्ट पहनी थी और रचना ने काली टी-शर्ट और नीली जैकेट और काली जींस पहनी थी।
बाइक पर वो अमर से चिपक कर बैठी हुई थी।
आज पहली बार उसको अमर भाई से ज़्यादा कुछ महसूस हो रहा था। एक तो उसने ललिता के साथ लैस्बो किया और फिर कुश्ती के दौरान जो हरकतें अमर ने की वो उसको बार बार बेचेन कर रही थीं। उसने भी तो अमर के लंड को कई बार छुआ था।
अमर- हाँ.. तो रचना बताओ..! कहाँ चलें.. शॉपिंग के लिए..!
रचना- भाई सिटी सेंटर से अच्छी जगह क्या होगी.. लंच भी वहीं कर लेंगे।
अमर- हाँ.. यही ठीक रहेगा।
रचना एकदम कस कर अमर को पकड़े हुई थी। उसके मम्मे अमर की पीठ में धंसे हुए थे और उसके दोनों हाथ अमर की नाभि पर थे। जैसे ही स्पीड ब्रेकर आते.. वो जानबूझ कर अपना हाथ लौड़े पर ले जाती।
उसकी इस हरकत से अमर के लौड़े में भी तनाव आ गया था, पर जींस के कारण इतना पता नहीं चल रहा था।
जैसे ही बाइक सिटी सेंटर के पास रुकी, एक कार भी ठीक उनके बराबर में आकर रुकी।
रचना भी नीचे उतर गई, अमर ने बाइक को साइड में लगाया, तभी कार से एक 22 साल का लड़का उतरा जो काफ़ी हैण्डसम था।
उसे देख कर अमर चौंक जाता है और जब उसकी नज़र अमर पर पड़ी, तो वो भी आँखें फाड़े अमर को देखने लगा।
अमर- हे.. आई डोंट विलीव शरद.. तू कब आया यार..!
शरद- अबे साले मैं तो कब से यहीं हूँ तेरा कोई अता-पता ही नहीं है। पूरे 5 साल बाद मिला है तू..!
अमर- रचना, यह मेरा बेस्ट-फ्रेंड है शरद.. और दोस्त, यह मेरी छोटी बहन रचना है..!
शरद- हाय रचना.. यू आर लुकिंग वेरी नाइस यार..!
रचना- थैंक्स ..!
शरद ऊपर से नीचे रचना को निहार रहा था और रचना भी उसकी नज़र को देख रही थी।
तभी अमर ने कहा- यार हम लोग शॉपिंग के लिए आए हैं। तुम इतने समय बाद मिले हो तो साथ में लंच करेंगे.. ओके .!
और वे एक-दूसरे को अपने फोन नम्बर दे देते हैं।
शरद- सॉरी यार.. अभी तो एक बहुत जरूरी काम के सिलसिले में आया हूँ। अब तो तेरे घर आकर ही कभी खाऊँगा..!
अमर- ओके दोस्त.. जरूर आना.. मैं तुम्हारा वेट करूँगा..!
शरद वहाँ से चला गया और वो दोनों भी अन्दर चले गए।
अमर- हाँ तो मेरी बहना क्या चाहिए.. बताओ?
रचना- अभी तो देख रही हूँ भाई।
अमर- ये देखो, यह ब्लू टी-शर्ट कितनी अच्छी है ना.. यह ले लो..!
रचना- नहीं भाई ये तो बकवास है.. मुझे नहीं लेनी..!
अमर- ओके तुम्हें जो अच्छी लगे, वो ले लो और ललिता के लिए भी ले लेना, मैं थोड़ा उस तरफ अपने लिए कुछ देखता हूँ। तुम्हें जो लेना है ले लो ओके..!
रचना अपने और ललिता के लिए दो ड्रेस ले लेती है और दूसरी साइड जाकर ब्रा और पैन्टी भी ले लेती है।
अमर भी कुछ शर्ट और जींस ले आता है।
अमर- क्यों रचना हो गया सब.. या कुछ बाकी है..!
रचना- हाँ हो गया भाई.. आप मुझे पैसे दे दो, मैं काउंटर पर बिल दे देती हूँ।
अमर- साथ चल रहे हैं ना.. मैंने भी तो कपड़े लिए ही लिए हैं.. सब कपड़े एक जगह कर दो, मैं बिल दे देता हूँ।
रचना ने ब्रा-पैन्टी ली थी, इसलिए वो नहीं चाहती थी कि अमर को पता चले, पर अमर के ज़िद करने पर उसने सारे कपड़े एक जगह कर दिए।
काउंटर पर जब एक-एक करके सारे कपड़ों के कोड मारे जा रहे थे, तब अमर की नज़र रेड ब्रा-पैन्टी के सेट्स पर गई।
उसके बाद और भी ब्रा-पैन्टी सामने आईं, पिंक और ब्लैक एक ब्राउन भी थी।
रचना अमर से अपनी नज़रें चुरा रही थी और अमर भी उसकी तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहा था। वहाँ से निकलकर दोनों रेस्तरा में बैठ जाते हैं।
अमर- क्या खाओगी रचना..!
रचना- जो आपको अच्छा लगे..।
अमर- नहीं तुम बताओ, जब कपड़े अपनी पसन्द के लिए हैं, तो खाना भी तुम ही बताओ..!
रचना- इश्श.. भाई.. सॉरी.. प्लीज़ मत सताओ ना आप..!
अमर- ओके एक शर्त पर..! अगर तुम अपने सारे कपड़े जो लिए हैं, एक-एक करके मुझे पहन कर दिखाओगी तो..!
रचना- ओके.. भाई घर जाकर पक्का दिखाऊँगी..!
अमर- देखो बाद में नाटक मत करना.. वरना मैं तुमसे बात भी नहीं करूँगा।
रचना- हाँ भाई.. कहा ना, दिखा दूँगी..!
अमर- आज जो जो लिया है.. सब.. ओके..!
रचना को अमर की बात समझ नहीं आ रही थी कि आख़िर वो चाहता क्या है।
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