RE: Holi Mai Chudai Kahani
मैं समझ गई कि अब ज्यादा चढ़ गई है दोनों को, और फिर उन लोगों की बातें सुनकर मेरा भी मन मचल रहा था. मैं अंदर गई और बोली, “चलिए खाने के लिये देर हो रही है..!!”
ननदोई उसके गाल पे हाथ फेर के बोले, “अरे इतना मस्त भोजन तो हमारे पास ही है..”
वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ ननदों ने जम के मेरे भाई का मज़ाक उड़ाया और गालियां भी दी, खास कर के छोटी ननद ने. मैंने भी ननदोई-सा को नहीं बख्शा और खाना परोसने के साथ में जान-बुझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती.
Low Cut चोली में से मेरे जोबन को देख कर ननदोई की हालत खराब थी. जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे, मुझे पता थी उनकी हालत. जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली, “सदा सुहागन रहो, बुरा न मानो होली है.”
उन्होंने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आँचल के ऊपर से मेरे गदराए जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच में. मैं समझ गई कि उनका ‘खुटा’ भी उनके साले से कम नहीं है. मैं किसी तरह छूटते हुए बोली, “समझ गई मैं, जाइये ननद जी इंतज़ार कर रही होंगी. चलिए कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी, चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं हटूंगी.”
जब मैं रसोईघर में गई तो वहाँ मेरी ननद कड़ाही की कालख निकल रही थी.
मैंने पूछा तो बोली, “आपके भाई के श्रृंगार के लिये, लेकिन भाभी उसे बताइयेगा नहीं..!?! ये मेरे-उसके बीच की बात है.”
इस पर हँस के मैं बोली, “एक दम नहीं, लेकिन अगर कही पलट के उसने डाल दिया तो….. ननद रानी बुरा मत मानना.!”
वो हँस के बोली, “अरे भाभी, साले की बात का क्या बुरा मानना..??? एक दम नहीं.. और फिर होली तो है ही डालने-डलवाने का त्यौहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गाँव की होली है, यहाँ कोई भी ‘चीज़’ छोड़ी नहीं जाती होली में.”
उसने ‘चीज़’ पर कुछ ज्यादा ही ज़ोर लगाया था.
उसकी बात पे मैं सोचती, मुस्कुराती कमरे में गई तो ‘ये’ तैयार बैठे थे…….
बची-कुची बोतल भी ‘इन्होने’ खाली कर दी थी. साड़ी उतारते-उतारते उन्होंने पलंग पर खींच लिया और चालू हो गए.
सारी रात चोदा ‘इन्होने’ लेकिन मुझे झड़ने नही दिया. जब से मैं आई थी ये पहली रात थी जब मैं झड नहीं पाई, वरना हर रात कम से कम 5-6 बार. इतनी चुदासी कर दिया मुझे कि वो कस-कस के मेरी पनियाई चूत चुसते और जैसे ही मैं झड़ने के करीब होती, कच-कचा के मेरी चुचियाँ काट लेते. दर्द से मैं बिलबिला पड़ती, मेरी चीख निकल उठती. मेरे मन में आया भी कि बगल के कमरे में मेरा भाई लेटा है और वो मेरी हर चीख सुन रहा होगा. पर तब तक उन्होंने चूचकों को भी कस के काट लिया, नाख़ून से नोच लिया. उनकी ये नोच-खसोट और काटना मुझे और मस्त कर देता था. सब कुछ भूल के मैं फिर चीख पड़ी. मेरी चीखें उनको भी जोश से पागल बना देती थी. एक बार में ही उन्होंने बलिष्ठ, लम्बा, लोहे की रोड जैसा सख्त लंड मेरी चूत में जड़ तक पेल दिया.
जैसे ही वो मेरी बच्चेदानी से टकराया, मैं मस्ती से सीत्कार उठी, “हाँ राजा, हा चोद….चोद मुझे….ऐसे ही….कस-कस के पेल दे अपना मुसल मेरी चूत में.”
और ‘ये’ भी मेरी चुचियाँ मसलते हुए बोलने लगे, “ले ले रानी ले. बहुत प्यासी है तेरी चूत ना… घोंट मेरा लौड़ा..!!!”
मेरी सिसकियाँ भी बगल वाले कमरे में सुनाई पड़ रही होंगी, इसका मुझे पूरा अंदाजा था. लेकिन उस समय तो बस यही मन कर रहा था कि ‘वो’ चोद-चोद कर के बस झाड़ दे मेरी चूत. जैसे ही मैं झड़ने के कगार पर पहुँची, पता नही उन्हें कैसे पता चल गया और उन्होंने लंड निकाल लिया.
|