RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
सुनील जब उसके घर के पास पहुचा और उसने दरवाजा खटखटाया.... ललिता ने दरवाजा खोलने में एक सेकेंड की भी देर ना लगाई. बिना कुच्छ सोचे समझे, बिना किसी हिचक और बिना दरवाज़ा बंद किया वो उसकी छाती से लिपट गयी.
" अरे, रूको तो सही, सुनील ने उसके गालों को चूम कर उसको अपने से अलग किया और दरवाजा बंद करते हुए बोला, मैने पहले नही बोला था"
ललिता जल बिन मछली की तरह तड़प रही तही. वो फिर सुनील की बाहों में आने के लिए बढ़ी तो सुनील ने उसको अपनी बाहों में उठा लिया. और प्यार से बोला, मेडम जी, खुद तो तैयार होके बैठी हो, ज़रा मैं भी तो फ्रेश हो लूँ".
ललिता ने प्यार से उसकी छाती पर घूँसा जमाया और उसके गालों पर किस किया. सुनील ने उसको बेड पर लिटाया और अपने बॅग से टवल निकाल कर बाथरूम में चला आया.
नाहकार जब वा बाहर आया तो उसने कमर पर टवल के अलावा कुच्छ नही पहन रखा था. पानी उसके शानदार शरीर और बालो से चू रहा था.
ललिता उसके मर्दाने शरीर को देखती ही रह गयी और बोली," तुम्हारी बॉडी तो एक दम मस्त है"... तो सुनील बोला “ह्म्म्म ये सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही तो है.."
“अच्छा तो चलो प्यार करते है ना…” ललिता इतना बोली ही थी कि तब सुनील का फोन बज उठा… तो ललिता ने गुस्से से उसके हाथ से फोन उठाया और बंद कर दिया और बहुत प्यार से बोली " प्लीज़ अब प्यार कर लो जल्दी"
"अरे कर तो रहा हूँ प्यार" सुनील ने उसके होंठो को चूमते हुए कहा.
" कहाँ कर रहे हो. इसमें घुसाओ ना जल्दी…" ललिता बहुत मादक आवाज़ मे बोली.
सुनील हँसने लगा" अरे क्या इसमें घुसाने को ही प्यार बोलते हैं"
"तो" ललिता ने उल्टा स्वाल किया!
देखती जाओ मैं दिखाता हूँ प्यार क्या होता है. कहते हुए सुनील ने ललिता को अपनी गोद में बैठा लिया. सुनील ने उसके होंठो को चूमना शुरू कर दिया और बड़ी शिद्दत से चूमते हुए उसे उसके बेड पर लिटा दिया. उसका नाइट सूट नीचे से हटाया और एक एक करके उसके बटन खोलने लगा.
अब ललिता के बदन पर एक पैंटी के अलावा कुच्छ नही था. सुनील ने अपना टवल उतार दिया और झुक कर उसकी नाभि को चूमने लगा. ललिता के बदन में चीटियाँ सी दौड़ रही थी. उसका मंन हो रहा था कि बिना देर किए सुनील उसकी चूत का मुँह अपने लंड से भरकर बंद कर दे. वो तड़पति रही पर कुच्छ ना बोली; उसको प्यार सीखना जो था.
धीरे धीरे सुनील अपने हाथो को उसकी चूचियों पर लाया और अंगुलियों से उसके निप्पल्स को छेड़ने लगा. सुनील का लंड उसकी चूत पर पैंटी के उपर से दस्तक दे रहा था. ललिता को लग रहा था जैसे उसकी चूत को किसी ने जलते तेल के कढाहे में डाल दिया हो. वो फूल कर पकौड़े की तरह होती जा रही थी.
अचानक सुनील पीछे लेट गया और ललिता को बिठा लिया. और अपने लंड की और इशारा करते हुए बोला," इसे मुँह में लो." ललिता तन्नाई हुई थी,बोली," ज़रूरी है क्या.... पर ये मेरे मुँह में आएगा कैसे?
सुनील: बचपन में कुलफी खाई है ना, बस ऐसे ही ललिता ने सुनील के लंड के सुपादे पर जीभ लगाई तो उसको करेंट सा लगा. धीरे धीरे उसने सूपदे को मुँह में भर लिया और चूसने सी लगी.
उसको बहुत मज़ा आ रहा था. सुनील ज़्यादा के लिए कहना चाहता था पर उसको पता था ले नही पाएगी. " मज़ा आ रहा है ना!"
"ह्म्म्म्म" ललिता ने सूपड़ा मुँह से निकालते हुए कहा"पर इसमें खुजली हो रही है" अपनी चूत को मसल्ते हुए उसने कहा." कुच्छ करो ना....
ये सुनकर सुनील ने उसको अपनी पीठ पर टाँगों की तरफ मुँह करके बैठने को कहा. उसने ऐसा ही किया. सुनील ने उसको आगे अपने लंड की ओर झुका दिया जिससे ललिता की चूत और गांद सुनील के मुँह के पास आ गयी.
एकदम तननाया हुआ सुनील का लंड ललिता की आँखों के सामने सलामी दे रहा था. सुनील ने जब अपने होंठ ललिता की चूत की फांको पर टिकाए तो वह सीत्कार कर उठी. इतना अधिक आनंद उससे सहन नही हो रहा था.
उसने अपने होंठ लंड के सूपदे पर जमा दिए. सुनील उसकी चूत को नीचे से उपर तक चाट रहा था. उसकी एक उंगली ललिता की गांद के छेद को हल्के से कुरेद रही तही. इससे ललिता का मज़ा दोगुना हो रहा था.
अब वह ज़ोर ज़ोर से लंड पर अपने होंठों और जीभ का जादू दिखाने लगी. लेकिन ज़्यादा देर तक वह इतना आनंद सहन ना कर पाई और उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया जो सुनील की मांसल छाती पर टपकने लगा. ललिता ने सुनील की टाँगो को जाकड़ लिया और हाँफने लगी.
सुनील का शेर हमले को तैयार था. उसने ज़्यादा देर ना करते हुए कंबल की सीट बना कर बेड पर रखा और ललिता को उस पर उल्टा लिटा दिया. ललिता की गांद अब उपर की और उठी हुई थी. और चुचियाँ बेड से टकरा रही थी.
सुनील ने अपना लंड उसकी चूत के द्वार पर रखा और पेल दिया. चूत रस की वजह से चूत गीली होने से 8.5 इंची लंड 'प्यूच' की आवाज़ के साथ पूरा उसमें उतर गया. ललिता की तो जान ही निकल गयी. इतना मीठा दर्द! उसको लगा लंड उसकी आंतडियों से जा टकराया है.
सुनील ने ललिता की गंद को एक हाथ से पकड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिए. एक एक धक्के के साथ जैसे ललिता जन्नत तक जाकर आ रही थी. जब उसको बहुत मज़े आने लगे तो उसने अपनी गांद को थोड़ा और चौड़ा करके पीछे की ओर कर लिया.
सुनील के टेस्टेस उसकी चूत के पास जैसे थप्पड़ से मार रहे थे. सुनील की नज़र ललिता की गंद के छेद पर पड़ी. कितना सुंदर छेद था. उसने उस छेद पर थूक गिराया और उंगली से उसको कुरेदने लगा. ललिता आनंद से करती जा रही थी.
सुनील धीरे धीरे अपनी उंगली को ललिता की गांद में घुसाने लगा."उहह, सीसी...क्या....क्कार... रहे हो.. ज..ज्ज़ान!" ललिता कसमसा उठी. देखती रहो! और सुनील ने पूरी उंगली धक्के लगाते लगाते उसकी गंद में उतार दी. ललिता पागल सी हो गयी थी. वह नीचे की ओर मुँह करके अपनी चूत में जाते लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. पर कंबल की वजह से ऐसा नही हो पाया.
क्रमशः…………………..
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