RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--5
गतान्क से आगे………………………
लेकिन अंदर कोई हलचल या आहट नही थी. आख़िर चिढ़कर राज ने आदेश दिया, “दरवाजा तोडो…”
पवन और और एक दो साथी मिल कर दरवाजा ज़ोर ज़ोर से ठोंक रहे थे.
“अरे इधर धक्का मारो…”
“नही अंदर की कुण्डी यहाँ होनी चाहिए… यहाँ ज़ोर से धक्का मारो…”
“और ज़ोर से….”
“सब लोग सिर्फ़ दरवाजा तोड़ने मे मत लगे रहो… कुछ लोग हमे गार्ड भी करो..”
सब गड़बड़ मे आख़िर दरवाजा धक्के मार मार कर उन्होने दरवाजा तोड़ दिया.
दरवाजा तोड़ कर दल के सब लोग घर मे घुस गये. इंस्पेक्टर राज हाथ मे बंदूक लेकर सावधानी से अंदर जाने लगा. उसके पीछे पीछे हाथ मे बंदूक लेकर बाकी लोग एक दूसरे को गार्ड करते हुए अंदर घुसने लगे. अपनी अपनी बंदूक तान कर वे सब लोग तुरंत घर मे फैल ने लगे. लेकिन हॉल मे ही एक विदारक द्रिश्य उनका इंतेज़ार कर रहा था. जैसे ही उन्होने वह द्रिश्य देखा, उनके चेहरे का रंग उड़ गया था.
उनके सामने सोफे पर सुनील गिरा हुआ था, गर्दन कटी हुई, सब चीज़े इधर उधर फैली हुई, उसकी आँखें बाहर आई हुई थी और सर एक तरफ धूलका हुआ था. बहुत की दर्दनाक मंज़र था. वहाँ पर खड़े सभी लोगो के रोंगटे खड़े हो गये थे ये द्रिश्य देख कर. राज ने तो अपने पूरे पोलीस और इंस्पेक्टर कॅरियर मे भी ऐसा खून नही देखा था. ऐसा दिल दहला देनेवाला मंज़र था. उसका भी खून उसी तरह से हुआ था जिस तरह से चंदन का. सारी चीज़े इधर उधर फैली हुई थी इससे ये प्रतीत हो रहा था कि यह भी मरने के पहले बहुत तडपा होगा.
“घर मे बाकी जगह ढुंढ़ो…” राज ने आदेश दिया.
टीम के तीन चार मेंबर्ज़ मकान मे कातिल को ढूँढ ने के लिए इधर फैल गये.
“बेडरूम मे भी ढुंढ़ो…” राज ने जाने वालों को हिदायद दी.
इंस्पेक्टर राज ने कमरे मे चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. राज को टीवी के स्क्रीन पर बहकर नीचे की और गयी खून की लकीर और उपर रखा हुआ माँस का टुकड़ा दिख गया. राज ने इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर को इशारा किया. वह तुरंत टीवी के पास जाकर वह सबूत इकट्ठा करने मे जुट गया. बाद मे राज ने हॉल की खिड़कियों की तरफ देखा. इसबार भी सारी खिड़कियाँ अंदर से बंद थी. अचानक सोफे पर गिरी किसी चीज़ ने राज का ध्यान खींच लिया. वह वहाँ चला गया.
जो था वह उठाकर देखा. वह एक बालों का गुच्छा था, सोफे पर बॉडी के बगल मे पड़ा हुआ. वे सब लोग आस्चर्य से कभी उस बालों के गुच्छे की तरफ देखते तो कभी एक दूसरे की तरफ देखते. इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर ने वह बालों का गुच्छा लेकर प्लास्टिक के बॅग मे आगे की तफ़तीश के लिए सील बंद किया.
पवन गड़बड़ाया हुआ कभी उस बालों के गुच्छे को देखता तो कभी टीवी पर रखे उस माँस के टुकड़े की तरफ. उसके दिमाग़ मे… उसके ही क्यों बाकी लोगों के दिमाग़ मे भी एक ही समय काफ़ी सारे सवाल मंडरा रहे थे. लेकिन पूछे तो किस को पूछे?
इंस्पेक्टर राज और पवन केफे मे बैठे थे. उनमे कुछ तो गहन चर्चा चल रही थी. उनके हावभाव से लग रहा था कि शायद वे हाल ही मे हुए दो खून के बारे मे चर्चा कर रहे होंगे. बीच बीच मे दोनो भी कॉफी के छोटे छोटे घूँट ले रहे थे. अचानक केफे मे रखे टीवी पर चल रही खबरों ने उनका ध्यान आकर्षित किया.
इंस्पेक्टर राज ने जी तोड़ कोशिश की थी कि प्रेस हाल ही मे चल रहे खून को ज़्यादा ना उछाले. लेकिन उनके लाख कोशिश के बाद भी मीडीया ने जानकारी हासिल की थी. आख़िर इंस्पेक्टर राज की भी कुछ मर्यादाए थी. वे एक हद तक ही बाते मीडीया से छुपा सकते है और कभी कभी जिस बात को हम छुपाना चाहते है उसी को ही ज़्यादा उछाला जाता है.
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