RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--7
गतान्क से आगे………………………
एक पल का भी समय ना गँवाते हुए वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ, क्या किया जाय उसे कुछ सूझ नही रहा था. गड़बड़ाये और घबराए हुए हाल मे वह सीधा बेडरूम मे भाग गया और उसने अंदर से कुण्डी बंद कर ली थी.
इंस्पेक्टर राज बॅडमिंटन खेल रहा था. रोजमर्रा के तनाव से मुक्ति के लिए यह एक अच्छा उपाय उसने ढूँढा था. इतने मे अचानक राज का मोबाइल बजा. राज ने डिसप्ले देखा, लेकिन फोन नंबर पहचान का नही लग रहा था. उसने एक बटन दबाकर फोन अटेंड किया, “एस…”
“इंस्पेक्टर धरम हियर….” उधर से आवाज़ आया.
“हाँ बोलो धरम….” राज दूसरे सर्विस की तैय्यारि करते हुए बोला.
“मेरे जानकारी के हिसाब से आप हाल ही मे चल रहे सीरियल किल्लर केस के इंचार्ज हो…. बराबर…?” उधर से धरम ने पूछा….
“जी हाँ…” राज ने सीरियल किल्लर का ज़िकरा होते ही अगला गेम खेलने का विचार त्याग दिया और वह आगे क्या बोलता है यह ध्यान से सुन ने लगा.
“अगर आपको कोई ऐतराज ना हो… मतलब अगर आज आप फ्री हो तो…. क्या आप इधर मेरे पोलीस स्टेशन मे आ सकते हो…? मेरे पास इस केस के बारे मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है… शायद आपके काम आएगी…”
“ठीक है… कोई बात नही…” राज ने कहा.
राज ने धरम से फोन पर मिलने का वक्त वाईगेरह सब तय किया.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
पोलीस स्टेशन मे इंस्पेक्टर राज इंस्पेक्टर धरम के सामने बैठा हुआ था. इंस्पेक्टर धरम इस पोलीस स्टेशन का इंचार्ज था. इंस्पेक्टर धरम का फोन आने के पासचात बॅडमिंटन का अगला गेम खेलने की राज की इच्छा ही ख़तम हो चुकी थी. अपना सामान इकठ्ठा कर वह ताबड़तोड़ तैय्यारि कर अपने पोलीस स्टेशन मे जाने के बजाय इधर निकल आया था.
उनका ‘हाई हेलो’ – सब फरमॅलिटीस होने के बाद अब इंस्पेक्टर धरम के पास उसके केस के बारे मे क्या जानकारी है यह सुन ने के लिए वह उसके सामने बैठ गया. इंस्पेक्टर धरम ने सब जानकारी बताने के लिए पहले एक बड़ा पोज़ लिया. इंस्पेक्टर राज भले ही अपने चेहरे पर नही आने दे रहा था फिर भी सब जानकारी सुन ने के लिए वह बेताब हो चुका था और उसकी उत्सुकता भी सातवे आसमान पर पहुच चुकी थी.
इंस्पेक्टर धरम जानकारी देने लगा –
“कुछ दिन पहले मेरे पास एक केस आया था…..
… एक सुंदर शांत टाउन… टाउन मे हरी भरी घास और हारे भरे पेड चारों तरफ फैले हुए थे और उस हरियाली मे रात मे तारे जैसे आकाश मे समूह – समूह से चमकते है वैसे छोटे छोटे समूह मे इधर उधर फैले हुए थे. उसी हरियाली मे गाँव के बीचो बीच एक पुरानी कॉलेज की बिल्डिंग थी.
कॉलेज के गलियारे मे स्टूडेंट्स की भीड़ जमी हुई थी. शायद ब्रेक टाइम होगा. कुछ स्टूडेंट्स समूह मे गप्पे मार रहे थे तो कुछ इधर उधर घूम रहे थे. शरद लग भग 21-22 साल का, स्मार्ट हॅंडसम कॉलेज का स्टूडेंट और उसका दोस्त सुधीर दोनो साथ साथ बाकी स्टूडेंट्स के भीड़ से रास्ता निकलते हुए चल रहे थे.
“सुधीर चलो शमशेर के क्लास मे जाकर बैठते है… बहुत दिन हुए है हमने उसका क्लास अटेंड नही किया है…” शरद ने कहा.
“किस के …? शमशेर के क्लास मे..? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना…?” सुधीर ने आस्चर्य से पूछा.
“अरे नही… मतलब अब तक वह जमा हुआ है या छोड़ कर गया यह देख कर आते है…” शरद ने कहा.
दोनो एक दूसरे को ताली देते हुए, शायद पहले का कोई किस्सा याद कर ज़ोर से हंस ने लगे.
चलते हुए अचानक शरद ने सुधीर को अपनी कोहनी मारते हुए बगल से जा रहे एक लड़के की तरफ उसका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया. सुधीर प्रश्नर्थक मुद्रा मे शरद की तरफ देखा.
शरद धीमे आवाज़ मे उसके कान के पास बड़बड़ाया, “यही वह लड़का… जो आज कल अपने हॉस्टिल मे चोरियाँ कर रहा है…”
तब तक वह लड़का उनको क्रॉस होकर आगे निकल गया था. सुधीर ने पीछे मुड़कर देखा. हॉस्टिल मे सुधीर की भी कुछ चीज़े भी गायब हो चुकी थी.
“तुम्हे कैसे पता…” सुधीर ने पूछा.
“उसके तरफ देख तो ज़रा… कैसा कैसा कसे हुए चोरों की ख़ानदान से लगता है साला…” शरद ने कहा.
“अरे सिर्फ़ लगने से क्या होगा… हमे कुछ सबूत भी तो चाहिए…” सुधीर ने कहा.
“मुझे संतोष भी कह रहा था… देर रात तक वह भूतों की तरह हॉस्टिल मे सिर्फ़ घूमता रहता है…”
“अच्छा ऐसी बात है… तो फिर चल… साले को सीधा करते है…”
“ऐसा सीधा करेंगे कि साला ज़िंदगी भर याद रखेगा…”
“सिर्फ़ याद ही नही… साले को बर्बाद भी करेंगे…”
|