RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
फिर से दोनो ने कुछ फ़ैसला किए जैसे एक दूसरे की ज़ोर से ताली बजाई और फिर से ज़ोर से हंस ने लगे.
रात को हॉस्टिल के गलियारे मे घना अंधेरा था, गलियारे के लाइट्स या तो किसी ने चोरी किए होंगे या लड़को ने तोड़ दिए होंगे. एक काला साया धीरे धीरे उस गलियारे मे चल रहा था, और वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर शरद, सुधीर और उसके दो दोस्त संतोष और एक साथी एक खंबे के पीछे छुप कर बैठे थे. उन्होने पक्का फ़ैसला किया था कि आज किसी भी हाल मे इस चोर को पकड़ कर हॉस्टिल की लगभग रोज होने वाली चोरियाँ रोकनी है. काफ़ी समय से वे वहाँ छिप कर चोर की राह देख रहे थे. आख़िर वह साया उन्हे दिखते ही उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी.
चलो इतने देर से रुके.... आख़िर मेहनत रंग लाई...
खुशी के मारे उनमे खुसुर फुसुर होने लगी.
"आए चुप रहो... यही अच्छा मौका है... साले को रंगे हाथ पकड़ने का" शरद ने सबको चुप रहने की हिदायत दी.
वे वहाँ से छिपते हुए सामने जाकर एक दूसरे खंबे के पीछे छुप गये.
उन्होने चोर को पकड़ ने की पूरी प्लॅनिंग और तैय्यारि कर रखी थी. चारों ने आपस मे काम बाँट लिया था. उन चारों मे एक लड़का अपने कंधे पर एक काला ब्लंकेट संभाल रहा था.
"देखो.... वह रुक गया.... साले की रपट ही करेंगे..."शरद धीरे से बोला.
वह साया गलियारे मे चलते हुए एक रूम के सामने रुक गया.
"अरे ये किस की रूम है वह...?" संतोष ने पूछा.
"अंकिता की...." सुधीर ने धीमे स्वर मे जवाब दिया.
वह काला साया अंकिता के दरवाजे के सामने रुका और अंकिता के दरवाजे के की होल मे अपने पास की चाबी डालकर घूमने लगा.
"देखो उसके पास चाबी भी है..." शरद फुसफुसाया.
"मास्टर के होगी..." सुधीर ने कहा.
"या ड्यूप्लिकेट बनाकर ली होगी साले ने..." संतोष ने कहा.
"अब तो वह बिल्कुल मुकर नही पाएगा... हम उसे अब राइड हॅंड पकड़ सकते है..." शरद ने कहा.
शरद और सुधीर ने पीछे मुड़कर उनके दो साथियों को इशारा किया.
"चलो... यह एकदम सही वक्त है..." सुधीर ने कहा.
वह साया अब ताला खोलने की कोशिश करने लगा.
सब लोगों ने एकदम उस काले साए पर हल्ला बोल दिया. सुधीर ने उस साए के शरीर पर उसके दोस्त के कंधे पर जो था वह ब्लंकेट लपेट दिया और शरद ने उस साए को ब्लंकेट के साथ कस कर पकड़ लिया.
"पहले साले को मारो..." संतोष चिल्लाया.
सब लोग मिल कर अब उस चोर की धुलाई करने लगे.
"कैसा हाथ आया रे साले..." सुधीर ने कहा.
"आए साले... दिखा अब कहाँ छुपा कर रखा है तूने हॉस्टिल का सारा चोरी किया हुआ माल..." संतोष ने कहा.
ब्लंकेट के अंदर से 'आह उउउः' ऐसा दबा हुआ स्वर आने लगा.
अचानक सामने का दरवाजा खुला और अंकिता गड़बड़ाई हुई दरवाजे से बाहर आगयि. शायद उसे उसके रूम के सामने चल रहे धाँधली की आहट हुई होगी. कमरे मे जल रही लाइट की रोशनी अब उस ब्लंकेट मे लिपटे चोर के शरीर पर पड़ गयी.
"क्या चल रहा है यहाँ..." अंकिता घबराए हुए हाल मे हिम्मत बटोरती हुई बोली.
"हमने चोर को पकड़ा है..." सुधीर ने कहा.
"ये तुम्हारा कमरा ड्यूप्लिकेट चाबी से खोल रहा था..." शरद ने कहा.
उस चोर को ब्लंकेट के साथ पकड़े हुए हाल मे शरद को उस चोर के शरीर पर कुछ अजीब सा लगा. धाँधली मे उसने क्या है यह टटोलने के लिए ब्लंकेट के अंदर से अपने हाथ डाले. शरद ने हाथ अंदर डालने से उसकी उस साए पर की पकड़ ढीली हो गयी और वह साया ब्लंकेट से बाहर आगेया.
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