Chodan Kahani इंतकाम की आग
09-02-2018, 12:11 PM,
#15
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--8

गतान्क से आगे………………………

शाम का समय था. अपनी शॉपिंग से लदी हुई बॅग संभालती हुई मीनू फुटपाथ से जा रही थी. वैसे अब खरीदने को कुछ ख़ास नही बच्चा था. सिर्फ़ एक-दो चीज़े खरीदने की बची थी.

वह चीज़े खरीद ली के फिर घर ही वापस जाना है...

वह बची हुई एक-दो चीज़े लेकर जब वापस जाने के लिए निकली तब लगभग अंधेरा होने को आया था और रास्ते पर भी बहुत कम लोग बचे थे. चलते चलते मीनू के अचानक ख़याल मे आया कि बहुत देर से कोई उसका पीछा कर रहा है. उसकी पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नही बन रही थी. वह वैसे ही चलती रही फिर भी उसका पीछा जारी है इसका उसे एहसास हुआ. अब वह घबरा गयी. पीछे मुड़कर ना देखते हुए वह वैसे ही ज़ोर से आगे चलने लगी.

इतने मे उसे पीछे से आवाज़ आई, "मीनू..."

वह एक पल रुकी और फिर चलने लगी.

पीछे से फिर से आवाज़ आया, "मीनू..."

आवाज़ के लहजेसे नही लग रहा था कि पीछा करने वाले का कोई ग़लत इरादा हो. मीनू नेचलते चलते ही पीछे मुड़कर देखा. पीछे शरद को देखते ही वह रुक गयी. उसके चेहरे पर परेशानी के भाव दिखने लगे.

यह इधर भी....

अब तो सर पटाकने की नौबत आई है...

वह एक बड़ा फूलों का गुलदस्ता लेकर उसके पास आ रहा था. वह देख कर तो उसे एक क्षण लगा भी कि सचमुच अपना सर पटक ले. वह शरद उसके नज़दीक आने तक रुक गयी.

"क्यों तुम मेरा लगातार पीछा कर रहे हो...?" मीनू नाराज़गी जताते हुए गुस्से से बोली.

"मुझ पर एक एहसान कर दो और भगवान के लिए मेरा पीछा करना छोड़ दो..." वह गुस्से से हाथ जोड़ते हुए, उसका पीछा छुड़ा लेने के अविर्भाव मे बोली.

गुस्से से वह पलट गयी और फिर से आगे पैर पटकती हुई चलने लगी. शरद भी बीच मे थोड़ा फासला रखते हुए उसके पीछे पीछे चलने लगा.

शरद फिर से पीछा कर रहा है यह पता चलते ही वह गुस्से से रुक गयी.

शरद ने अपनी हिम्मत बटोर कर वह फूलों का गुलदस्ता उसके सामने पकड़ा और कहा, "आइ एम सौरी...."

मीनू गुस्से से तिलमिलाई. उसे क्या बोले कुछ सूझ नही रहा था. शरद को भी आगे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था.

"आइ स्वेर, आइ मीन इट.." वह अपने गलेको हाथ लगाकर बोला.

मीनू गुस्से मे तो थी ही, उसने झट से अपने चेहरे पर आ रही बालों की लतें एक तरफ हटाई. शरद को लगा कि वह फिर से जोरदार तमच्चा अपने गालपर जड़ने वाली है. डर के मारे अपनी आँखें बंद कर उसने झट से अपना चेहरा पीछे हटाया.

उसके भी यह ख़याल मे आया और वह अपनी हँसी रोक नही सकी. उसका वह डरा हुआ सहमा हुआ बच्चों के जैसा मासूम चेहरा देख कर वह खिल खिलाकर हंस पड़ी. उसका गुस्सा कब का रफ्फु चक्कर हो गया था. शरद ने आँखें खोल कर देखा. तब तक वह फिर से रास्ते पर आगे चल पड़ी थी. थोड़ी देर चलने के बाद एक मोड़ पर मुड़ने से पहले मीनू रुक गयी, उसने पीछे मुड़कर शरद की तरफ देखा. एक नटखट मुस्कुराहट से उसका चेहरा खिल गया था.

घद्बडाये हुए हाल मे, सम्भ्रह्म मे खड़ा शरद भी उसकी तरफ देख कर मंद मंद मुस्कुराया. वह फिर से आगे चलते हुए उस मोड़ पर मुड़कर उसके नज़रों से ओझल हो गयी. भले ही वह उसके नज़रों से ओझल हुई थी, फिर भी शरद खड़ा होकर उधर मन्त्रमुग्ध होकर देख रहा था. उसे रह रहकर उसकी वह नटखट मुस्कुराहट याद आ रही थी.

वह सचमुच मुस्कुरई थी या मुझे वैसा आभास हुआ...

नही नही आभास कैसे होगा....

यह सच है कि वह मुस्कुराइ थी...

वह मुस्कुराइ इसका मतलब उसने मुझे माफ़ किया ऐसा समझना चाहिए क्या..?

हाँ वैसा समझ ने मे कोई दिक्कत नही...

लेकिन उसका वह मुस्कुराना कोई मामूली मुस्कुराना नही था....

उसके उस मुस्कुराहट मे और भी कुछ ग़ूढ अर्थ छिपा हुआ था...

क्या था वह अर्थ...?

शरद वह अर्थ समझ ने की कोशिश करने लगा और जैसे जैसे वह अर्थ उसके समझ मे आ रहा था उसके भी चेहरे पर वही, वैसी ही मुस्कुराहट फैलने लगी.

धीरे धीरे शरद और मीनू एक दूसरे के नज़दीक खींचते चले गये. उनके दिल मे कब प्रेम का बीज पनपना शुरू हो गया उन्हे पता ही नही चला. झगड़े से भी प्रेम की भावना पनप सकती है यह वे खुद अनुभव कर रहे थे. कॉलेज मे कोई पीरियड खाली होने पर वे मिलते. कॉलेज ख़त्म होनेपर मिलते. लाइब्ररी मे पढ़ाई के बहाने से मिलते थे. मिलने का एक भी मौका वे छोड़ना नही चाहते थे. लेकिन सब छिप छिपकर चल रहा था. उन्होने उनका प्रेम अभी तक किसी के ख़याल मे आने नही दिया था. लेकिन जो किसी के ख़याल मे नही आए उसे प्रेम कैसे कहे...? या फिर एक वक्त ऐसा आता है की प्रेमी इतने बिंदास हो जाते है कि उनका प्रेम किसी के ख़याल मे आएगा या किसी को पता चलेगा इस बात की फिक्र करना वे छोड़ देते है. लोगों को अपना प्रेम पता चले ऐसी भावना भी शायद उनके मन मे आती हो.

काफ़ी रात हो चुकी थी. अपनी बेटी अभी तक कैसे घर वापस नही आई यह चिंता मीनू के पिता को खाए जा रही थी. वे बैचेन होकर हॉल मे चहलकदमी कर रहे थे. वैसे उन्होने मीनू को पूरी छूट दे रखी थी. लेकिन ऐसी गैर ज़िम्मेदाराना वह कभी नही लगी थी. कभी देर होती तो वह घर फोन कर बताती थी. लेकिन आज उसने फोन करने की भी जहमत नही उठाई थी. इतने साल का उसके पिता का अनुभव कह रहा था कि मामला कुछ गंभीर है...

मीनू किसी ग़लत संगत मे तो नही फँस गयी...?

या फिर ड्रग्स वैगेरह की लत तो नही लगी उसे...?

अलग अलग प्रकार के अलग अलग विचार उनके दिमाग़ मे घूम रहे थे. इतने मे उन्हे बाहर कोई आहट हुई.
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