RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
एक बाइक आकर घर के कॉंपाउंड के गेट के सामने रुकी. बाइक के पीछे की सीट से मीनू उतर गयी. उसने सामने बैठे शरद के गाल का चुंबन लिया और वह गेट की तरफ निकल दी.
घर के अंदरसे, खिड़की से मीनू के पिता वह सब नज़ारा देख रहे थे. उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि वे गुस्से से आगबबूला हो रहे थे. अपनी बेटी का कोई बॉय फ्रेंड है यह उनको गुस्सा आने का कारण नही था. कारण कुछ अलग ही था.
हॉल मे सोफेपर मीनू के पिता बैठे हुए थे और उनके सामने गर्दन झुका कर मीनू खड़ी थी.
"इस लड़की के अलावा तुम्हे दूसरा कोई नही मिला क्या...?" उनका गुस्से से भरा गंभीर स्वर गूंजा.
मीनू के मुँह से शब्द नही निकल पा रहा था. वह अपने पिता से बात करने के लिए हिम्मत जुटाने का प्रयास कर रही थी. उतने मे मीनू का भाई अंकित, उम्र लगभग तीस के आस पास, गंभीर व्यक्ति, हमेशा किसी सोच मे खोया हुआ, ढीला ढालसा रहन सहन, घर मे से वहाँ आ गया. वह मीनू के बगल मे जाकर खड़ा हो गया. मीनू के गर्दन अभी भी झुकी हुई थी. उसका भाई बगल मे आकर खड़ा होने से उसमे थोड़ा धाँढस बँध गया. वह गर्दन नीचे ही रख कर अपनी हिम्मत जुटाकर एक एक शब्द तोल्मोल कर बोली, "वह एक अच्छा लड़का है... आप उसे एक बार मिल तो लो..."
"चुप बैठो... मूर्ख... मुझे उससे मिलने की बिल्कुल इच्छा नही... अगर तुम्हे इस घर मे रहना है तो तुम मुझे दुबारा उसके साथ दिखनी नही चाहिए... समझी..." उसके पिता ने अपना अंतिम फ़ैसला सुना दिया.
मीनू के आँखों मे आँसू आगये और वहाँ से अपने छिपते हुए वह घर के अंदर दौड़ पड़ी. अंकित सहानुभूति से उसे अंदर जाते हुए देखता रहा.
घर मे किसी की भी पिताजी से बहस करने की हिम्मत नही थी.
अंकित हिम्मत जुटाकर उसके पिताजी से बोला, "पॅपा.... आपको ऐसा नही लगता कि आप थोड़े ज़्यादा ही कठोर हो रहे हो... आपने कम से कम मीनू क्या बोलना चाहती है यह सुनना चाहिए... और एक बार वक्त निकाल कर उस लड़के से मिलने मे क्या हर्ज़ है..?"
"में उसका बाप हूँ... उसका भला बुरा मेरे सिवा और कौन जान सकता है...? और तुम्हारी नसीहत तुम्हारे पास ही रखो... मुझे उसके तुम्हारे जैसे हुए हाल देखने की बिल्कुल इच्छा नही है... तुमने भी एक दूसरी कास्ट वाली लड़की से शादी की थी.. आख़िर क्या हुआ...? तुम्हारी सब प्रॉपर्टी हड़प कर उसने तुम्हे भगवान भरोसे छोड़ दिया..." उसके पिताजी तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए गुस्से से कमरे से बाहर जाने लगे.
"पॅपा आदमी का स्वाभाव आदमी-आदमी मे फ़र्क लाता है... ना कि उसका रंग, या उसकी कास्ट..." अंकित उसके पिताजी को बाहर जाते हुए उनकी पीठ की तरफ देख कर बोला.
उसके पिताजी जाते जाते अचानक दरवाजे मे रुक गये और उधर ही मुँह रखते हुए कठोर लहजे मे बोले, "और तुम्हे उसकी पैरवी करने की बिल्कुल ज़रूरत नही... और ना ही उसे सपोर्ट करने की..."
अंकित कुछ बोले इसके पहले ही उसके पिताजी वहाँ से जा चुके थे.
इधर मीनू के घर के बाहर अंधेरे मे खिड़की के पास छिप कर एक काला साया अंदर चल रहा यह सारा नज़ारा देख और सुन रहा था.
क्लास मे एक लेडी टीचर पढ़ा रही थी. क्लास मे कॉलेज के छात्र ध्यान देकर उन्हे सुन रहे थे. उन्ही छात्रों मे शरद और मीनू बैठे हुए थे.
"सो दा मौरल ऑफ दा स्टौरी ईज़... कुछ भी फ़ैसला ना लेते हुए बिचमे ही लटकने से अच्छा है कुछ तो एक फ़ैसला लेना..." टीचर ने अबतक पढ़ाए पाठ का निष्कर्ष संक्षेप मे बताया.
मीनू ने छुप कर एक कटाक्ष शरद की तरफ डाला. दोनो की आँखें मिल गयी. दोनो भी एक दूसरे की तरफ देख मुस्कुराए. मीनू ने एक नोटबुक का पन्ना शरद को दिखाया. उस नोटबुक के पन्ने पर बड़े अक्षरों मे लिखा था 'लाइब्ररी'. शरद ने हाँ मे अपना सर हिलाया. उतने मे पीरियड बेल बजी. पहले टीचर और बाद मे छात्र धीरे धीरे क्लास से बाहर जाने लगे.
शरद हमेशा की तरह जब लाइब्ररी मे गया तब ब्रेक टाइम होने से वहाँ कोई भी छात्र नही थे. उसने मीनू को ढूँढने के लिए इधर उधर नज़र दौड़ाई. मीनू एक कोने मे बैठकर किताब पढ़ रही थी. या कम से कम वैसा दिखावा करने की चेष्टा कर रही थी. मीनू ने आहट होतेही किताब से सर उपर उठाकर उधर देखा.
दोनो की नज़रे मिलते ही वह वहाँ से उठ कर किताबों के रॅक के पीछे जाने लगी. शरद भी उसके पीछे पीछे जाने लगा. एक दूसरे से कुछ भी ना बोलते हुए या कुछ भी इशारा ना करते हुए सबकुछ हो रहा था. उनका यह शायद रोज का दिन क्रम होगा. मीनू कुछ ना बोलते हुए भले ही रॅक के पीछे जा रही थी लेकिन उसके दिमाग़ मे विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.
जो भी हो आज कुछ तो आखरी फ़ैसला लेना ही है...
ऐसे कितने दिन तक ना इधर ना उधर इस हाल मे रहेंगे...
टीचर ने जो पढ़ाए पाठ का संक्षेप मे निष्कर्ष बताया था... वही सही था...
हमे कुछ तो ठोस निर्णय लेना ही होगा...
आर या पार....
बस अब बहुत हो गया...
उसके पीछे पीछे शरद रॅक के पीछे कुछ ना बोलते हुए जा रहा था. लेकिन उसके दिमाग़ मे भी विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा था.
हमेशा मीनू पीरियड होने के बाद लाइब्ररी मे मिलने के लिए इशारा करती थी…
लेकिन आज उसने पीरियड शुरू थी तब ही इशारा किया…
उसके घर मे कुछ अघटित तो नही घटा…
उसके चेहरे से वह किसी दुविधामे लग रही थी…
अपने घर के दबाव मे आकर वह मुझे छोड़ तो नही देगी…
अलग अलग प्रकार के विचार उसके दिमाग़ मे घूम रहे थे.
क्रमशः…………………..
|