RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
कपड़े वाईगेरह बदल कर उसने कुछ बचा नही इसकी तसल्ली की. आख़िरी बची हुई एक चीज़ डालकर उसने बॅग की चैन लगाई. चैन का एक बस हिक्फ ऐसा आवाज़ हुआ. उसने वह बॅग उठाकर सामने टेबल पर रख दिया और टेबल के सामने रखे कुरसीपर थोड़ा सुसताने के लिए बैठ गया. वह एक-दो पल ही बैठा होगा कि इतने मे उसका मोबाइल विब्रेट हो गया. उसने जेब से मोबाइल निकाल कर उसका डिसप्ले देख. डिसप्ले पर उसे 'मीनू' ऐसे डिजिटल शब्द दिखाई दिए. वह तुरंत कुर्सी से उठ खड़ा हुआ. मोबाइल बंद किया, बॅग उठाई और धिरेसे कमरे से बाहर निकल गया.
इधर उधर देखते हुए सावधानी से शरद मुख्य दरवाजे से बाहर आ गया और उसने दरवाजा बाहर से खींचकर बंद कर लिया. फिर जॉगिंग किए जैसे वह कंधे पर बॅग लेकर कॉंपाउंड के गेट के पास गया. बाहर रास्ते पर उसे एक टॅक्सी रुकी हुई दिखाई दी. कॉंपाउंड के गेट से बाहर निकल कर उसने गेट भी खींचकर बंद कर लिया. टॅक्सी के पास पहुँचते ही उसे टॅक्सी मे पिछली सीट पर बैठकर उसकी राह देख रही मीनू दिखाई दी. दोनो की नज़रे मिली. दोनो एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराए. झट से जाकर वह बॅग के साथ मीनू के बगल मे टॅक्सी मे घुस गया. टॅक्सी के दरवाजे की ज़्यादा आवाज़ ना हो इसका ख़याल रखते हुए उसने सावधानी से दरवाजा धीरे से खींच लिया. दोनो एक दूसरे की बाहों मे घुस गये. उनके चेहरे पर एक विजय हास्य फैल गया था.
अब उनकी टॅक्सी घर से बहुत दूर तेज़ी दौड़ रही थी. वे दोनो तेज़ी से दौड़ती टॅक्सी के खिड़की से आ रहे तेज हवा के झोंके का आनंद ले रहे थे. लेकिन उन्हे क्या पता था कि एक काला साया पीछे एक दूसरी टॅक्सी मे बैठकर उनका पीछा कर रहा था...
... इंस्पेक्टर धरम हक़ीक़त बयान करते हुए रुक गया. इंस्पेक्टर राज ने वह क्यों रुका यह जान ने के लिए उसके तरफ देखा. इंस्पेक्टर धरम ने सामने रखा ग्लास उतार कर पानी का एक घूँट लिया. तब तक ऑफीस बॉय चाइ पानी लाया था. इंस्पेक्टर धरम ने वह उसके सामने बैठे इंस्पेक्टर राज और उसके साथ आए पवन को परोसने के लिए ऑफीस बॉय को इशारा किया.
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ऑफीस बॉय चाइ पानी लेकर आने से धरम जो हक़ीक़त बता रहा था उसमे व्यवधान पड़ गया. राज को और उसके साथी पवन को आगे की कहानी सुन ने की बड़ी उत्सुकता हो रही थी. सब लोगों का चाइ पानी होने के बाद इंस्पेक्टर धरम फिर से आगे की कहानी बता ने लगा....
.... शरद की और मीनू की टॅक्सी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गयी. दोनो टॅक्सी से उतर गये. टॅक्सी वाले का किराया चुका कर वे अपना सामान लेकर टिकेट की खिड़की के पास चले गये. कहाँ जाना है यह उन्होने अब तक तय नही किया था. बस यहाँ से निकल जाना है इतना ही उन्होने तय किया था. एक ट्रेन प्लॅटफार्म पर खड़ी ही थी. शरद ने जल्दी से उसी ट्रेन का टिकेट निकाला.
प्लॅटफार्म पर वे अपना टिकेट लेकर अपना रेलवे डिब्बा ढूँढने लगे. डिब्बा ढूँढने के लिए उन्हे ज़्यादा मशक्कत नही करनी पड़ी. मुख्य दरवाजे से उनका डिब्बा नज़दीक ही था. ट्रेन निकल ने का समय हो गया था इसलिए वे तुरंत डब्बे मे चढ़ गये. डिब्बे मे चढ़ने के बाद उन्होने अपनी सीट्स ढूँढ ली. अपने सीट के पास आपना सारा सामान रख दिया. उतने मे गाड़ी हिलने लगी. गाड़ी निकलने का वक्त हो चुका था. जैसे ही गाड़ी निकलने लगी वैसे मीनू शरद को लेकर डिब्बे के दरवाजे के पास गयी. उसे वहाँ से जाने से पहले अपने शहर को एक बार जी भर के देख लेना था...
ट्रेन मे मीनू और शरद एक दम पास पास बैठे थे. उन्हे दोनो को एक दूसरे का सहारा चाहिए था. आख़िर उन्होने जो फ़ैसला किया था उसके बाद उन्हे बस एक दूसरे का ही तो सहारा था. अपने घर से सारे रिश्ते, सारे बंधन तोड़कर वे बहुत दूर जा रहे थे. मीनू ने आपना सर शरद के कंधे पर रख दिया.
"फिर.... अब कैसा लग रहा है..." शरद ने माहौल थोड़ा हल्का करने के उद्देश्य से पूछा.
"ग्रेट..." मीनू भी झूठ मूठ हंसते हुए बोली.
शरद समझ सकता था कि भले ही वह उपर से दिखा रही हो लेकिन घर छोड़ने का दुख उसको होना लाजमी था. उसे साहारा देने के उद्देश्य से उसने उसे कस कर पकड़ लिया...
"तुम्हे कुछ याद आ रहा है...?" शरद ने उसे और भी कस कर पकड़ते हुए पूछा.
मीनू ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे उसकी तरफ देखा.
"नही मतलब कोई घटना कोई प्रसंग... जब मैने तुम्हे ऐसे ही कस कर पकड़ा था.."
"में कैसे भूल सकती हूँ उस घटना को..."मीनू उसने जब ब्लंकेट से लपेट कर उसे कस कर पकड़ा था वह प्रसंग याद कर बोली.
"और तुम भी..."मीनू उसके गाल पर हाथ मलते हुए उसे मारे हुए थप्पड़ की याद देते हुए बोली.
दोनो खिलखिला कर हंस पड़े.
जब दोनो का हँसना थम गया मीनू इतराते हुए उसे बोली, "आइ लव यू..."
"आइ लव यू टू..." उसने उसे और नज़दीक खींचते हुए कहा.
दोनो भी कस कर एक दूसरे के आलिंगन मे बँध हो गये.
मीनू ने ट्रेन की खिड़की से झाँक कर देखा. बाहर सब अंधेरा छाया हुआ था. शरद ने मीनू की तरफ देखा.
"तुम्हे पता है... तुम्हे माफी माँगते वक्त वह फूलों का गुलदस्ता मैं क्यों लाया था...?" शरद फिर से उसे वह माफी माँग ने का प्रसंग याद दिलाते हुए बोला. वह प्रसंग वह कैसे भूल सकता था...? उसी पल मे तो प्रेम के बीज बोए गये थे.
"जाहिर है माफी ज़्यादा एफेक्टिव होना चाहिए इसलिए..." मीनू ने कहा...
"नही... अगर में सच कहूँ तो तुम्हे विश्वास नही होगा..." शरद ने कहा.
"फिर ... क्यों लाया था...?"
"मेरे हाथ फिर से कोई अजीब इशारे कर गड़बड़ ना कर दे इसलिए... नही तो फिर से शायद और एक थप्पड़ मिला होता..." शरद ने कहा.
मीनू और शरद फिर से खिल खिलाकर हंस पड़े.
धीरे धीरे उनकी हँसी थम गयी. फिर थोड़ी देर सब सन्नाटा छाया रहा. सिर्फ़ रेलवे का आवाज़ आता रहा. उस सन्नाटे मे ना जाने क्यूँ मीनू को लगा कि कोई इस ट्रेन मे बैठकर अपना पीछा तो नही कर रहा है...
नही...कैसे मुमकिन है...
हम भाग जानेवाले है यह सिर्फ़ शरद और उसके सिवा और किसी को भी तो पता नही था...
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