RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--11
गतान्क से आगे………………………
लगभग आधी रात को अशोक और शिकेन्दर हॉल मे विस्की पी रहे थे. एक के बाद एक उनके दो साथियों का कत्ल हुआ था. पहली बार जब चंदन का खून हुआ तभी उन्हे शक हुआ था कि हो ना हो यह मामला मीनू के खून से संबंधित है. लेकिन बाद मे सुनील कत्ल के बाद उनका शक यकीन मे बदल गया था कि यह मीनू के खून की वजह से ही हो रहा है.. कुछ भी हो जाय हम घबराएँगे नही ऐसा ठान लेने के बाद भी उनको रह रहकर अगला नंबर उन दोनो मे से ही किसी एक का स्पष्ट रूपसे दिख रहा था. इसलिए उनके चेहरे से चिंता और डर हटने के लिए तैय्यार नही था. वे विस्की के एक के बाद एक ना जाने कितने ग्लास खाली कर रहे थे और अपना डर मिटाने की कोशिश कर रहे थे.
"मेने नही कहा था तुम्हे...?" शिकेन्दर ने आवेश मे आकर कहा.
अशोक ने प्रश्नर्थक मुद्रा मे उसकी तरफ देखा.
"उस साले हरामी को जिंदा मत छोड़ कर के... उसको हमने तभी ठिकाने लगाना चाहिए था.. उस लड़की के साथ..." शिकेन्दर विस्की का कड़वा घूँट लेते हुए बूरासा मुँह बनाते हुए बोला.
उन्हे शक नही.. पक्का यकीन था कि शरद का ही इन दो वारदातों मे हाथ होगा..
"हमे लगा नही कि साला इतना डेंजरस निकलेगा..." अशोक ने कहा.
"इंतकाम... इंतकाम आदमी को डेंजरस बना देता है.." शिकेन्दर ने कहा.
"लेकिन एक बात मेरे ख़याल मे नही आ रही है कि वह सारे कत्ल कैसे कर रहा है.. पोलीस जब वहाँ पहुचती है तब घर अंदर से बंद किया हुआ रहता है और बॉडी अंदर पड़ी हुई... और यही नही तो सुनील के गलेका तोड़ा हुआ माँस का टुकड़ा मेरे किचन मे कैसे आया...? और खास बात तब मैने मेरा घर खिड़कियाँ, दरवाजे सब कुछ अच्छी तरह से बंद किया था..." अशोक आस्चर्य जताते हुए बोला...
अशोक कही शुन्य मे देख कर सोचते हुए बोला,
"यह सब देखते हुए एक बात मुमकिन लगती है.."
"कौन सी...?" शिकेन्दर ने विस्की का खाली हुआ ग्लास भरते हुए पूछा.
"तुम्हारा भूतों पर विश्वास है...?" अशोक ने बोले या ना बोले इस मन की द्विधा स्थिति मे पूछा. क्योंकि उसने तो वो नज़ारा खुद देखा था लेकिन कैसे ना कैसे करके अशोक बच निकला था..
"मूर्ख की तरह कुछ भी मत बको.. उसके पास कुछ तो ट्रिक है जिसको इस्तेमाल करके वह इस तरह से कत्ल कर रहा है..." शिकेन्दर ने कहा.
"मुझे भी वही लगता है... लेकिन कभी कभी अलग अलग तरह के शक मन मे आते है..." अशोक ने कहा.
"चिंता मत करो... वह हमारे तक पहुँचने के पहले ही हम उसके पास पहुँचते है और उसको ठिकाने लगाते है..." शिकेन्दर उसे सांत्वना देने के कोशिश करते हुए बोला...
"हमे पोलीस प्रोटेक्षन लेना चाहिए..." अशोक ने सोच कर कहा.
"पोलीस प्रोटेक्षन...? पागल हो गये हो क्या...? हम उन्हे क्या बोलने वाले है.. कि सरकार हमने उसे लड़की को मारा है.. हमारे से ग़लती हो गयी... सॉरी.. ऐसी ग़लती हमारे से फिर नही होगी.. कृपया हमारा रक्षण कीजिए...सरकार" शिकेन्दर दारू के नशे मे माफी माँगने के हावभाव करते हुए बोला.
"वह बाद की बात हो गयी... पहले अपना प्रोटेक्षन सबसे अहम है.. वह क्या है कि... सर सलामत तो पगड़ी पच्चास..." अशोक ने कहा.
"लेकिन पोलीस के पास जाकर उनसे प्रोटेक्षन माँगना.... कुछ..."
पोलीस प्रोटेक्षन का ख़याल आते ही अशोक अपने डर से काफ़ी उभर गया था.
"उसकी चिंता तुम मत करो.. वह सब मुझपर छोड़ दो..." अशोक ने उसका वाक्य बीच मे ही तोड़ते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहा...
राज अपने कॅबिन मे सर नीचे झुकाकर सोच मे डूबा हुआ बैठा था. इतने मे, पवन उसका असिस्टेंट वहाँ आगया.
"सर... वह कातिल कत्ल की जगह कैसे पहुँचता होगा और फिर कैसे बाहर जाता होगा... इसके बारे मे मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया आया है.." पवन ने उत्साह भरे स्वर मे कहा.
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