Chodan Kahani इंतकाम की आग
09-02-2018, 12:14 PM,
#26
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
“अच्छा वह सब ठीक है.. और अगर इतना करने बाद अगर क़ातिल आपके हाथों मे आता है तो आप उसके साथ क्या करने वाले हो…?” शिकेन्दर ने पूछा.


“जाहिर है हम उसे कोर्ट के सामने पेश करेंगे… और क़ानून के हिसाब से जो भी सज़ा उसे ठीक लगे वह कोर्ट तय करेगा…” राज ने कहा.

“और गर वह छूट कर भाग गया तो…?” शिकेन्दर ने आगे पूछा.

“जैसे मीनू के क़ातिल उसका खून कर भाग गये वैसे…” पवन ने व्यंग्तापूर्वक कहा.

शिकेन्दर और अशोक ने उसकी तरफ गुस्से से देखा.

“तुम्हे क्या हम खूनी लगते है…” अशोक ने उसे गुस्से से प्रतिप्रश्न किया…

“याद रखो अबतक हमें कोर्ट गुनहगार साबित नही कर पाया है..” शिकेन्दर गुस्से से चिढ़कर बोला.

“मिस्टर. अशोक & मिस्टर. शिकेन्दर… ईज़ी…ईज़ी… मुझे लगता है हम असली मुद्दे से भटकते जा रहे है… फिलहाल असली मुद्दा है कि आप लोगों को प्रोटेक्षन कैसे दिया जाय… आप लोग मीनू के खून के लिए ज़िम्मेदार हो या नही यह बाद का मुद्दा हुआ..” राज ने उन्हे शांत करने के उद्देश्य से कहा.

“आप लोग भी पहले हमारे प्रोटेक्षन के बारे मे सोचो… बाकी बाते बाद मे देखी जाएगी…” शिकेन्दर अधिकार वाणी से खांस कर पवन के तरफ देख कर बोला, जिसने उसे छेड़ा था. पवन को इन दो लोगों के प्रोटेक्षन के लिए तैनात टीम मे शामिल किया था, यह बात कुछ खल नही रही थी. राज ने भी पवन को शांत रहने का इशारा किया. पवन गुस्से से उठकर वहाँ से चला गया. उसके जाने से मौहाल थोड़ा ठंडा हो गया और राज फिर से अपनी योजना के बारे मे सब लोगों को विस्तृत जानकारी देने लगा.

शिकेन्दर और अशोक पोलीस उनका प्रोटेक्षन कर पाएँगे कि नही इसके बारे मे अभी भी संजीदा थे. लेकिन उन्हे उनके प्रोटेक्षन की ज़िम्मेदारी उनपर सौपने के आलवा दूसरा कुछ चारा भी तो नही था.

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पोलीस स्टेशन मे राज के खाली कुर्सी के सामने एक आदमी बैठा हुआ था. राज जल्दी जल्दी वहाँ आकर अपनी कुरसीपर बैठ गया.

“हाँ… तो आपके पास इस केस के सन्दर्भ मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है…?” राज ने पूछा.

“हाँ… साहब”

राज ने एकबार उस आदमी को उपर से नीचे तक देखा और फिर वह क्या बोलता है यह सुनने लगा.

“साहब हमारे पड़ोस मे वह लड़की मीनू, जिसका खून होगया ऐसा बोलते है, उसका भाई रहता है…” उस आदमी ने शुरुआत की और वह आगे पूरी कहानी कथन करने लगा….

…. एक चोल्ल मे एक घर था, उस घर को चारो तरफ काँच की खिड़कियाँ ही खिड़कियाँ थी. इतनी कि उस घर मे क्या चल रहा है वह पड़ोसी को भी पता चले. एक खिड़की से हॉल मे मीनू का भाई अंकित बैठा हुआ दिख रहा था. अब वह पहले से कुछ ज़्यादा अजीब और पागल जैसा लग रहा था. दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल बिखरे हुए. मस्तक पर एक बड़ा सा किसी चीज़ का टीका लगा हुआ. वह फाइयर्प्लेस के सामने हाथ मे एक कपड़े का गुड्डा लेकर बैठा हुआ था. शायद वह गुड्डा उसने ही बनाया हुआ होगा. बगल मे रखे प्लेट्स से उसने हाथ से कुछ उठाया और वह कुछ तन्त्र-मन्त्र जैसे शब्द बड़बड़ाने लगा.

“एबेस ती बा रास केतिन स्तत…”

उसने प्लेट से जो उठाया था वह सामने फाइयर्प्लेस के आग मे फेंक दिया. आग भड़क उठी. फिर से वह वैसे ही कुछ विचित्र तन्त्र मन्त्र बोलने लगा.

“कातसी… नतंदी…वानशारपट…रेरवरत स्टता…”

फिर से उसने उस प्लेट से धान जैसा कुछ अपने हाथ मे उठाकर उस आग के स्वाधीन किया. इस बार आग और ज़ोर से भड़क उठी.

उसने अपने हाथ से वह गुड्डा वहीं बगल मे रख दिया, आगे के सामने झुक कर, फर्शपर अपना मस्तक घिसा.

एक आदमी पड़ोस से अंकित के घर मे क्या चल रहा है यह उत्सुकतावश देख रहा था.

मस्तक घिसने के बाद अंकित उठकर खड़ा हुआ और अजीब तरह से ज़ोर से चीखा. जो पड़ोस से झाँक कर देख रहा था वह भी एक पल के लिए डर से और सहम गया. अंकिता ने झुक कर बगल मे रखा हुआ वह गुड्डा उठाया और फिर से एक बार ज़ोर से अजीब तरह से चिल्लाया. सब तरफ एक अजीब, भयानक सन्नाटा छा गया.

“अब तू मरने के लिए तैय्यार हो जा चंदन…” अंकित ने उस गुड्डे से कहा.

“नही… नही… मुझे मरना नही है इतनी जल्दी.. अंकित में तुम्हारे पैर पड़ता हूँ… मुझे माफ़ कर दे… आइ एम सॉरी.. मेने जो किया वह ग़लत किया… मुझे अब उसका एहसास हो गया है.. में तुम्हारे लिए तुम जो कहोगे वह करूँगा… लेकिन मुझे माफ़ कर दो…” अंकित मानो वह गुड्डा बोल रहा है वैसे उस गुड्डे के संवाद बोल रहा था.

“तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो…? तुम मेरी बहन को वापस ला सकते हो..?” अंकित ने अब उसके खुद के संवाद बोले.

“नही… में वह कैसे कर सकता हूँ..? वह अगर मेरे हाथ मे होता तो में ज़रूर करता.. वह एक चीज़ छोड़कर कुछ भी माँगो… में तुम्हारे लिए करूँगा…” अंकित गुड्डे के संवाद बोलने लगा.

“अच्छा…. तो फिर अब मरने के लिए तैय्यार हो जाओ…”अंकित ने उस गुड्डे से कहा.

वह पड़ोस का आदमी अब भी अंकित के खिड़की से छुपकर अंदर झाँक रहा था.

क्रमशः……………………
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