RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
राज को लगा था कि वह आनाकानी करेगा... लेकिन उसने कुछ भी आनाकानी ना करते हुए सीधे बात कबुल कर ली...
"कैसे किया आपने उनका कत्ल...?" राज ने अगला सवाल पूछा.
"मेरे पास के काले जादू से मेने उन्हे मार दिया..." उसने कहा.
अंकित पागल की तरफ दिखता तो था ही लेकिन उसके इस जवाब से राज को विश्वास हो चला था.
"आपके इस काले जादू से आप किसी को भी मारकर बता सकते हो...?" राज ने व्यंगात्मक ढंग से पूछा.
"किसी को भी में क्यों मारूँगा...? जिसकी मुझ से दुश्मनी है उसको ही में मारूँगा..."
"अब आगे आप इस काले जादू से किस को मारने वाले हो...?"
"अब अशोक का नंबर है..."
"अब अभी इसी वक्त आप उसे मारकर बता सकते हो...?" राज ने उसका काला जादू और वह दोनो का भी झूठ साबित करने के उद्देश्य से पूछा.
"अब नही... उसका वक्त अब जब आएगा तब उसे ज़रूर मारूँगा.." उसने कहा.
उसका यह जवाब सुनकर राज को अब फिलहाल उसे और सवाल पूछने मे कोई दिलचस्पी नही रही थी. वे दोनो अंकित को हथकड़ी पहनाने के लिए सामने आ गये. इस बार भी उसने कोई प्रतिकार ना करते हुए पूरा सहयोग किया.
राज को लग रहा था कि या तो यह आदमी पागल होगा या अति चालाक...
लेकिन वह जो कहता है वह अगर सच हो तो...?
पल भर के लिए क्यों ना हो राज के दिमाग़ मे यह विचार कौंध गया...
नही.. ऐसे कैसे हो सकता है...?
राज ने अपने दिमाग़ मे आया विचार झटक दिया.
राज के पार्ट्नर पवन ने अंकित को जैल की एक कोठरी मे बंद किया और बाहर से ताला लगाया. राज बाहर ही खड़ा था. जैसे ही राज और उसका पार्ट्नर वहाँ से जाने के लिए मुड़े, अंकित आवेश मे आकर चिल्लाया -
"तुम लोग मूर्ख हो... भले ही तुमने मुझे जैल की इस कोठरी बंद किया फिर भी मेरा जादू यहाँ से भी काम करेगा..."
राज और पवन रुक गये और मुड़कर अंकित की तरफ देखने लगे.
राज को अंकित पर अब दया आ रही थी..
बेचारा...
बहन का इस तरह से अंत होने से इस तरह झुंझलाना जायज़ है...
राज सोचते हुए फिर से अपने साथी के साथ आगे चलने लगा. थोड़ी दूरी तय करने के बाद फिर से मुड़कर उसने अंकित की तरफ देखा. वह अब नीचे झुक कर फर्शपर माथा रगड़ रहा था और साथ मे कुछ मन्त्र बड़बड़ा रहा था.
"इसके उपर ध्यान रखो और इसे किसी भी विज़िटार को मिलने की अनुमति मत दो..." राज ने निर्देश दिया.
"यस सर..." राज का पार्ट्नर आग्याकारी ढंग से बोला.
अशोक का घर और आसपास का इलाक़ा पूरी तरह रात के अंधेरे मे डूब गया था. बाहर आसपास झींगुरा का कीरर्र.... ऐसी आवाज़ और दूर कहीं कुत्तों के रोने जैसे आवाज़ आ रही थी. अचानक घर के पास एक पेड पर आसरे के लिए बैठे पंछी डर के मारे फड़फड़ा कर उड़ने लगे.
दो पोलीस मेंबर्ज़ टीवी के सामने बैठकर अशोक के घर मे चल रही सारी हरकतों का निरीक्षण कर रहे थे. अशोक के घर के बगल मे ही एक गेस्ट रूम मे उन्हे जगह दी गयी थे. उन दो पोलीस मेंबर्ज़ के सामने टीवी पर बैचेनी से करवट बदल ता और सोने की कोशिश कर रहा अशोक दिख रहा था.
"इससे अच्छा किसी सेक्सी दंपति की टीवी पर निगरानी करना मैने कभी भी पसंद किया होगा..." उनमे से एक पोलीसवाले ने मज़ाक मे कहा.
और दूसरे पोलीस वाले को उसके मज़ाक मे बिल्कुल दिलचस्पी नही दिख रही थी.
तभी अचानक एक मॉनीटौर पर कुछ हरकत दिखाई दी. एक काली बिल्ली बेडरूम मे दौड़ते हुए इधर से उधर गयी थी.
"आए देख वहाँ अशोक के बेडरूम मे एक काली बिल्ली है..." एक ने कहा.
"यहाँ क्या हम कुत्ते बिल्लियों के हरकतों पर नज़र रखने के लिए बैठे है...? मेरे बाप को अगर पता होता कि एक दिन में ऐसे मॉनिटूर पर कुत्ते बिल्लियों की हरकतों पर नज़र रखे बैठनेवाला हूँ... तो वह मुझे कभी पोलीस मे नही जाने देता..." एक पोलीस ऑफीसर ने ताना मारते हुए कहा.
अचानक उस बिल्ली ने कोने मे रखे एक चोरस डिब्बेपार छलाँग लगाई... और इधर इन दोनो के सामने रखे हुए सारे मॉनीटौर्स ब्लॅंक हो गये.
"आए क्या हुआ...?" एक ऑफीसर कुर्सी से उठकर खड़ा होते हुए बोला.
उसका दूसरा साथी भी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था.
दोनो का मज़ाक करना कब का ख़त्म हो चुका था. उनके चेहरे पर अब चिंता और हड़बड़ाहट दिख रही थी.
"चल जल्दी... क्या गड़बड़ी हुई यह देख के आते है..." दोनो जल्दी जल्दी कमरे से बाहर निकले...
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