RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--14
गतान्क से आगे………………………
एक आदमी फोन पर बोल रहा था, "हेलो पोलीस स्टेशन...?"
उधर से जवाब आने के लिए वह बीच मे रुक गया.
"साहब... हमारे पड़ोस मे कोई एक आदमी रहता है... मतलब रहता था.. उसे हमने लगभग 7-8 दिन से देखा नही... उसका दरवाज़ा भी अंदर से बंद है.. हमने उसका दरवाज़ा नॉक करके भी देखा... लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही है... उसके घर से लगातार किसी चीज़ के सड़ने की दुर्गंध आ रही है.. मुझे लगता है आप लोगों मे से कोई यहाँ आकर देखे तो अच्छा होगा..."
फिर से वह उधर के जवाब के लिए रुका और "थॅंक यू... " कहकर उसने फोन नीचे रख दिया.
पोलीस की एक टीम इंस्पेक्टर निंस के नेत्रुत्व मे उस आदमी ने फोनेपर दिए पते पर बहुत जल्दी पहुँच गये. वह आदमी उनकी राह ही देख रहा था. वे वहाँ पहुँचते ही वह आदमी उनको एक फ्लॅट के बंद दरवाजे के सामने ले गया. वहाँ पहुँचते ही एक किसी सड़ी हुए चीज़ की दुर्गंध उनके नाक मे घुस गयी. उन्होने तुरंत रुमाल निकालकर अपनी अपनी नाक को ढँक लिया. उन्होने उस दुर्गंध के स्रोत को प्कड़ने की कोशिश की तो वह दुर्गंध उस घर से ही आ रही थी. उन्होने दरवाज़ा धकेल कर देखा. दरवाज़ा शायद अंदर से बंद था. उन्होने दरवाज़े को नॉक कर देखा. अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी. जिस आदमी ने फोन पर पोलीस को इत्तला किया था वह बार बार वही हक़ीकत उन्हे सुना रहा था. आख़िर पोलीस ने दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा तोड़ने के बाद तो वह सड़ी हुई दुर्गंध और ही तीव्रता से आने लगी. मुँह पर और नाक पर कस कर रुमाल लगाकर वे धीरे धीरे अंदर जाने लगे.
पोलीस की टीम जब बेडरूम मे पहुँच गयी तब उन्हे सड़ने की प्रक्रिया शुरू हुए शरद का मृत शरीर ज़मीन पर पड़ा हुआ मिला. नाक को रुमाल से कसकर ढँकते हुए वे उस डेड बॉडी के पास गये. वहाँ ज़मीन पर मरने के पहले उसके खून से कुछ लिखा हुआ दिखाई दे रहा था. उनमे से एक पोलीस ने वह नज़दीक जाकर पढ़ा,
"मीनू... मुझे माफ़ कर देना.. में तुम्हे बचा नही पाया... लेकिन चिंता मत करो... उन बदमाशों का... एक एक करके बदला लिए बिना मुझे शांति नही मिलेगी.."
राज और उसका पार्ट्नर जिस पोलीस अधिकारी ने शरद की मौत का केस हॅंडल किया था उस अधिकारी, इंस्पेक्टर निंस के सामने बैठे थे.
इंस्पेक्टर निंस शरद के बारे मे जानकारी देने लगा, "मदिरा के ज़्यादा सेवन की वजह से उसे ब्रोकईटिज़ होकर वह मर गया..."
"लेकिन आपको उसकी पहचान कैसे मिली...?" राज ने पूछा.
"जिस कमरे मे उसका मृत शरीर मिला उस कमरे कुछ उसके कागजात भी मिले... उससे हमे उसकी पहचान हो गयी... और उसका एक फोटो इंस्पेक्टर धरम ने जैसे सारे पोलीस थानोपर भेजा था वैसा हमारे पास भी भेजा था..."
निंस ने अपने ड्रॉयर से शरद का फोटो निकाल कर राज के सामने रखा.
"इस फोटो की वजह से और इंस्पेक्टर धरम ने भेजी जानकारी के वजह से हमे उसका अड्रेस और घर वाईगेरह मिलने मे मदद हो गयी..." निंस ने कहा.
"आपने उसके घर के लोगो से संपर्क किया था क्या...?" राज ने पूछा...
"हाँ... उनके घर के लोगो को भी यहाँ बुलाया था... उन्होने भी बॉडी अपने कब्ज़े मे लेने से पहले शरद की पहचान कर ली थी और पोस्टमोर्टिम मे भी उसकी पहचान शरद ऐसी ही तय की गयी है..." निंस ने कहा.
"वह कब मरा होगा... मतलब शव मिलने से कितने दिन पहले..." राज ने पूछा.
"पोस्टमोर्टिम के अनुसार मार्च महीने के शुरुआत के दो तीन दिन मे उसकी मौत हुई होगी..." वह अधिकारी बोला...
"अर्ली...मार्च... मतलब पहला खून होने के बहुत पहले..." राज ने सोचकर कहा.
"इसका मतलब हम जैसे समझ रहे थे वैसे वह क़ातिल नही है..."राज ने आगे कहा.
"हाँ वैसा लग तो रहा है..." निंस ने कहा.
काफ़ी समय शांति से गुजर गया.
मतलब मुझे जो शक था वह सच होने जा रहा है...
राज को मीनू का दोस्त शरद का अता पता मिलने की खबर उसके पार्ट्नर से फोनेपर मिलते ही वह बहुत खुश हो गया था...
उसे लगा था चलो एक बार की बला तो टली... जो केस सॉल्व हो गया... और क़ातिल थोड़ी ही देर मे उनके कब्ज़े मे आनेवाला है...
लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो केस ने और एक अलग ही मोड़ लिया था...
शरद के मरने का समय देखा जाय तो उसका इन खुनो से संभंध होने की कोई गुंजाइश नही थी...
"शरद अगर क़ातिल नही है.. तो फिर क़ातिल कौन होगा...?"राज ने जैसे ही खुद से ही सवाल किया.
कमरे की तीनो लोग सिर्फ़ एक दूसरे की तरफ देखने लगे.... क्योंकि उस सवाल का जवाब उन तीनो के पास नही था.
इतने मे निंस ने उसके ड्रॉयर से और एक तस्वीर निकाल कर राज के सामने रख दी.
राज ने वह तस्वीर उठाई और वह उस तस्वीर की तरफ एकटक देखने लगा. उस तस्वीर मे शरद ज़मीन पर पड़ा हुआ दिख रहा था और उसके सामने फर्शपर खून से बड़े अक्षरों मे लिखा हुआ था,
"मीनू मुझे माफ़ करना... में तुम्हे बचा नही सका... लेकिन चिंता मत करो में एक एक को चुनकर मारकर बदला लूँगा..."
राज को एक अंदाज़ा हो गया था कि यह तस्वीर दिखा कर निंस उसे क्या कहना चाहता है...
"में सुन सुनकर थक गया हूँ कि इस क़त्ल मे किसी आदमी का हाथ ना होकर किसी रूहानी ताक़त का हाथ हो सकता है.. यह तस्वीर दिखा कर कहीं तुम्हे भी तो यही कहना नही है...?" राज ने निंस को पूछा.
निंस ने राज और उसके पार्ट्नर के चेहरे की तरफ देखा.
"नही मुझे ऐसा कुछ कहना नही है... सिर्फ़ घट रही घटनाए और शरद का फर्शपर लिखा हुआ मेसेज दोनो कैसे एकदम मिलते जुलते है... इसी ओर मुझे तुम्हारा ध्यान खींचना है..."निंस ने शब्दो को तोल्मोल्कर इस्तेमाल करते हुए कहा.
जैल मे चारो और अंधेरा फैला हुआ था. अंकित एक कोठरी मे गुम्सुम सा किसी सोच मे डूबा हुआ एक कोने मे बैठा हुआ था. अचानक वह उठ खड़ा हुआ और अपने पहने हुए कपड़े पागलों की तरह फाड़ने लगा. कपड़े फाड़ने के बाद उसने कोठरी मे इधर उधर पड़े फटे कपड़ेके टुकड़े जमा किए. उस टुकड़ोंका वह फिर से एक गुड्डा बनाने लगा. गुड्डा तैय्यार होने के बाद उसके चेहरे पर एक रहस्य भरी, डरावनी हँसी फैल गयी.
“मिस्टर. शिकेन्दर… अब तुम्हारी बारी है… समझे..” वह पागलो की तरह उस गुड्डे से बोलने लगा.
वहाँ ड्यूटी पर तैनात पोलीस वाला काफ़ी समय से अंकित की हर्कतो पर बराबर नज़र रखे हुए था. जैसे ही उसने अंकित की बातचीत सुनी वह तेज़ी से उठकर फोन के पास गया – अपने वरिष्ट अधिकारी को इत्तला करने के लिए..
शिकेन्दर अपने घर मे, हॉल मे पीते हुए बैठा था. साथ ही वह चेहरे पर काफ़ी सारी चिंताए लेकर एक के बाद एक लगातार सिगरेट पिए जा रहा था. थोड़ी देर से वह उठ खड़ा हुआ और सोचते हुए कमरे मे धीरे धीरे चहल कदमी करने लगा. उसकी चाल से वह काफ़ी थका हुआ मालूम पड़ रहा था, या फिर मदिरा के चढ़े हुए नशे से वह वैसा लग रहा होगा. थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद वह फिर से कुरसीपर बैठ गया और अपनीही सोच मे डूब गया. अचानक उसे घर मे किसी की उपस्थितिका एहसास हुआ. कोई किचन मे बर्तनोसे छेड़खानी कर रहा हो ऐसा लग रहा था.
किचन मे इस वक्त कौन होगा…?
सब दरवाज़े खिड़कियाँ तो बंद है…
क्या यह भी कोई आभास है…?
|