RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--16
गतान्क से आगे………………………
वे दोनो जब सिकेन्दर के बेडरूम मे पहुँच गये. उन्होने देखा कि विस्फोट की वजह से बेडरूम बेडरूम नही रहा था. वहाँ सिर्फ़ इंट.. पत्थर, सेमेंट का ढेर बना हुआ था और टूटा हुआ समान इधर उधर फैला हुआ था. उस ढेर मे उन्हे सिकेण्दर के शरीर का कुछ हिस्सा दिखाई दिया. दोनो कॉन्स्टेबल तुरंत वहाँ पहुच गये. उन्होने सिकेण्दर की बॉडी से समान हटाकर उसे ढेर से बाहर निकाला. एक ने उसकी नब्ज़ टटोली. लेकिन नब्ज़ बंद थी. उसकी जान शायद जब विस्फोट हुआ तब ही गयी होगी.
अब वो दोनो बेडरूम के घर के बाकी हिस्सों की तरफ रवाना हो गये. जहाँ जहाँ उनके साथी तैनात थे, उनको वे ढूँढ ने लगे. कुछ लोग जख्म से कराह रहे थे, वहाँ वे उनके मदद के लिए दौड़ पड़े.
इतनी गड़बड़ मे एक ने अपने जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया.
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इंस्पेक्टर राज और उसकी टीम की गाड़ियाँ तेज़ी से रास्ते पर दौड़ रही थी… क़ातिल का ठिकाना तो उन्हे पता चल चुका था लेकिन अब जल्द से जल्द वहाँ जाकर वह रफ्फु चक्कर होने से पहले उसे पकड़ना ज़रूरी था. गाड़ियों की गति के साथ राज का दिमाग़ भी दौड़ रहा था. वह मन ही मन सारी संभावनाए टटोलकर देख रहा था और हर स्थिति मे अपनी क्या स्ट्रॅटजी रहेगी यह तय कर रहा था. उतने मे उसके मोबाइल की बेल बजी. उसके विचारों की शृंखला टूट गयी.
उसने मोबाइल के डिसप्ले की तरफ देखा और झट से फोन अटेंड किया, “हाँ बोलो…”
“सर यहाँ एक सीरीयस प्राब्लम हो गया है…” उधर से उस कॉन्स्टेबल की आवाज़ आई.
‘सीरीयस प्राब्लम हो गया’ यह सुना और राज निराश होने लगा… उसके दिमाग़ मे तरह तरह के विचार आने लगे.
“क्या..?... क्या हुआ…?” राज ने उत्तेजित होकर पूछा.
वह अपनी निराशा को अपने उपर हावी होने देना नही चाहता था.
“सर उस बिल्ली का यहाँ किसी बॉम्ब की तरह विस्फोट हुआ है…” कॉन्स्टेबल ने जानकारी दी…
“क्या…? विस्फोट हुआ…?” राज के मुँह से आस्चर्य से निकला..
उसपर एक एक आघात हो रहे थे.
“लेकिन कैसे…?” राज ने आगे पूछा.
“सर उस बिल्ली के गले मे पहने पट्टे मे प्लास्टिक एक्सप्लोसिव लगाया होगा… मुझे लगता है कि सिग्नल ब्लॉक होते ही उसका विस्फोट हो जाय इस तरह उसे प्रोग्राम किया होगा, ताकि क़ातिल का शिकार किसी भी हाल मे उसके शिकंजे से ना छूटे…” कॉन्स्टेबल ने अपनी राय बयान की…
“शिकेन्दर कैसा है…? उसे कुछ हुआ तो नही…?” आख़िर इतना करने के बाद भी हम उसे बचा सके या नही यह जान ने की जल्दी राज को हुई थी.
“नही सर वह उस विस्फोट मे ही मर गया…” उधर से कॉन्स्टेबल ने कहा.
“शिट…?” राज के मुँह से गुस्से से निकल गया, “और अपने लोग…? वे कैसे है..?” राज ने आगे पूछा…
“दो लोग ज़ख्मी हो गये है.,. हम लोग उन्हे हॉस्पिटल मे ले जा रहे है…” कॉन्स्टेबल ने जानकारी दी.
“कोई सीरीयस तौर पर ज़ख्मी तो नही …” राज फिर से तसल्ली करने के लिए पूछा.
“नही सर… जख्म वैसे मामूली ही है…” उधर से आवाज़ आई.
“सुनो, उधर की पूरी ज़िम्मेदारी में तुम्हारे उपर सौंपता हूँ… हम लोग इधर जहाँ से सिग्नल आ रहे थे उसके आस पास ही है.. थोड़ी ही देर मे हम वहाँ पहुँच जाएँगे… उधर का तुम दोनो मिलकर अच्छी तरह से संभाल लो…”
“यस सर…”
“अपने लोगो का ख़याल रखना…” राज ने कहा और उसने फोन काट दिया…
“चलो जल्दी… हमे जल्दी करनी चाहिए… उधर सिकेन्दर को तो हम बचा नही पाए… कम से कम इधर इस क़ातिल को पकड़ने मे कामयाब होना चाहिए…” राज ने ड्राइवर को तेज़ी से चलने का इशारा करते हुए कहा.
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