RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--18
गतान्क से आगे………………………
राज को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है.. जो भी हो रहा था वह उसके समझ और पहुच के बाहर था… आख़िर एक खूबसूरत जवान स्त्री का साया मॉनिटर पर दिखने लगा. वह साया भले ही सुंदर और मोहक था फिर भी राज के बदन मे एक डर की सिहरन दौड़ गयी. वह मोहक साया अब एक भयानक और डरावने साए मे परिवर्तित हुआ. फिर से एक हवा का बड़ा झोंका तेज़ी से अंदर आया. इसबार उस झोंके का ज़ोर और बहाव बहुत तेज था. इतना कि राज उस झोंके की मार सहन नही कर पाया और दो फिट उपर उड़ के नीच गिर गया. वैसे भी उसके हाथ पैर पहले ही कमजोर पड़ चुके थे. उस झोंके की मार का प्रतिकार करने की शक्ति उसमे बाकी नही थी. नीचे पड़े हुए स्थिति मे उसको एहसास हुआ कि धीरे धीरे वह होश खोने लगा है. लेकिन होश पूरी तरह खोने से पहले उसने मॉनिटर पर दिख रही उस स्त्री की आखों मे दो बड़े बड़े आँसू बहकर नीचे आते हुए दिखे.
वेरहाउस मे नीचे मॉनिटर के सामने अचेतन अवस्था मे पड़े राज के सामने से मानो एक एक प्रसंग फ्लॅशबॅक की तरह जाने लगा….
…. मीनू और शरद रास्ते के किनारे पड़े एक ड्रेनेज पाइप मे छिपे हुए थे. इतने मे अचानक उन्हे उनकी तरफ आते हुए किसी के दौड़ने का आवाज़ सुनाई दी. वे अब हिल डुल भी नही सकते थे. उन्होने अगर उन्हे ढूँढ लिया तो वे बुरी तरह उनके कब्ज़े मे फँसने वाले थे. उन्होने बिल्ली की तरह अपनी आखे मूंद ली और जितना हो सकता है उतना उस छोटी से जगह मे सिकुड़ने का प्रयास किया. उसके आलवा वे कर भी क्या सकते थे…?
अचानक उनको एहसास हुआ कि उनका पीछा करने वालो मे से एक दौड़ते हुए उनके पाइप के एकदम पास आकर पहुँचा है. वह नज़दीक आते ही शरद और मीनू एकदम शांत होकर लगभग सांस रोके हुए स्तब्ध होकर वैसे ही बैठे रहे. वह अब पाइप के काफ़ी पास पहुच गया था.
वह उन चारो मे से ही एक, चंदन था. उसने इर्द गिर्द अपनी नज़रे दौड़ाई.
“कहाँ गायब हो गये साले…?” वह खुद पर ही झल्ला उठा.
इतने मे चंदन का ध्यान पाइप की तरफ गया.
ज़रूर साले इस पाइप मे छुपे होंगे…
उसने सोचा.. वह पाइप के और पास गया. वह अब झुक कर पाइप मे देखने ही वाला था कि इतने मे…
“चंदन… जल्दी इधर आओ…” उधर से सिकेन्दर ने उसे आवाज़ दी.
चंदन पाइप मे देखने के लिए झुकते हुए रुक गया, उसने आवाज़ आई उस दिशा मे देखा और पलट कर वह दौड़ते हुए उस दिशा मे निकल गया.
जा रहे कदमो की आवाज़ सुनते ही मीनू और शरद ने राहत की सांस ली.
चंदन के जाते ही शरद ने अपने जेब से मोबाइल निकाला. उसने कोई उन्हे ट्रेस ना करे इसलिए फोन स्विच ऑफ कर के रखा था. उसने वह स्विच ऑन किया और एक नंबर डाइयल किया.
“किस को फोन कर रहे हो…?” मीनू ने दबे स्वर मे पूछा.
“अपना क्लासमेट सुधीर को… वह इसी गाँव का है…”
उतने मे फोन लग गया, “हेलो…”
“अरे क्या शरद कहाँ से बोल रहे हो… सालो तुम लोग कहाँ गायब हो गये हो.. इधर सारे लोग कितने परेशान हो गये है…” उधर से सुधीर ने कहा.
शरद ने उसे संक्षिप्त मे सब बताया और कहा, “अरे हम यहाँ एक जगह फँसे हुए है…”
“फँसे…? कहाँ…?” सुधीर ने पूछा.
“अरे कुछ बदमाश हमारा पीछा कर रहे है… हम लोग अब कहाँ है यह बताना ज़रा मुश्किल है…” शरद बोल रहा था. इतने मे मीनू ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए टवर की तरफ इशारा किया.
“… हाँ यहाँ से एक टवर दिख रहा है जिसपर घड़ी लगी हुई है… उसके आसपास ही कही हम छिपे हुए है…” शरद ने उसे जानकारी दी…
“अच्छा… अच्छा… चिंता मत करो, पहले आपना दिमाग़ शांत करो और अपने आपका संभालो… और इतने बड़े शहर मे वे बदमाश तुम्हारा कुछ बिगाड़ सकते है यह डर दिल से पूरी तरह निकाल दो… हाँ निकाल दिया…?” उधर से सुधीर ने पूछा.
“हाँ ठीक है…” शरद ने कहा.
“ह्म्म्म… गुड. अब कोई टॅक्सी पाकड़ो और उसे हिल्टन होटेल को ले जाने के लिए कहो… वह वही कही नज़दीक उसी एरिया मे है…”
इतने मे उन्हे इतनी देर से कोई वहाँ नही दिखा था, लेकिन भगवान की कृपा से एक टॅक्सी उनकी तरफ आती हुई दिखाई दी…
“टॅक्सी आई है… अच्छा तुम्हे में बाद मे फोन करता हूँ…” शरद ने जल्दी से फोन कट कर दिया.
वे दोनो भी जल्दी जल्दी पाइप के बाहर आगये और शरद ने टॅक्सी को रुकने का इशारा किया. जैसे ही टॅक्सी रुक गयी वैसे दोनो टॅक्सी मे घुस गये.
|