RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
“होटेल हिल्टन…” शरद ने कहा और टॅक्सी फिर से दौड़ने लगी.
टॅक्सी निकल गयी तो दोनो की जान मे जान आ गयी.. उन्होने राहत की सांस ली.
शिकेन्दर और उसके तीनो दोस्त अब भी पागलो की तरह मीनू और शरद को ढूँढ रहे थे…. आख़िर ढूँढ ढूँढ कर थकने के बाद फिर से जिस चोराहे से उन्होने उन्हे ढूँढ ने की शुरुआत की थी उस चोराहे पर शिकेन्दर और चंदन वापस आ गये… उनके पीछे पीछे बड़ी बड़ी साँसे लेते हुए साँसे फूला हुआ सुनील आ गया.
“मिल गयी…?” चंदन ने पूछा.
सुनील ने सिर्फ़ ना मे सर हिलाया.
“सालों को आसमान खा गया या पाताल निगल गया…?” सिकेन्दर चिढ़कर बोला.
इतने मे उन्हे दूर से अशोक उनकी और आता दिखाई दिया…. उन्होने बड़ी आस की साथ उसकी तरफ देखा. लेकिन उसने दूर से ही अपना अंगूठा नीचे कर वे नही मिलने का इशारा किया.
“सालो क्या बारह बजा हुआ मुँह लेकर आए हो… जाओ उसे ढुंढ़ो… और जब तक वह मिलती नही तब तक वापस मत आओ…”शिकेन्दर गरज उठा.
उतने मे शिकेन्दर के फोन की रिंग बजी.
शिकेन्दर ने फोन उठाया , “हेलो…”
“हे… में सुधीर बोल रहा हूँ…” उधर से मीनू और शरद का क्लास मेट सुधीर बोल रहा था.
“हाँ बोलो सुधीर…” शिकेन्दर बोला.
“एक खुशी की बात है.. मैने तुम्हारे लिए एक ट्रीट अरेंज की है…” उधर से सुधीर बोला.
“देखो सुधीर… अभी हमारा मूड कुछ ठीक नही है… और तुम्हारी ट्रीट अटेंड करना इतना तो है ही नही…” शिकेन्दर ने कहा.
“अरे फिर तो यह ट्रीट तुम्हारा मूड ज़रूर ठीक करेगी… पहले सुन तो लो… एक नया पंछी अपने शहर मे आया हुआ है… फिलहाल मैने उसे खास तुम्हारे लिए एक महफूस जगह भेजा है..” सुधीर का उधर से उत्साह से भरा स्वर आया.
“पंछी…? इस शहर मे नया… एक मिनिट.. एक मिनिट… क्या वह उसके बॉय फ्रेंड के साथ है..?” शिकेन्दर ने पूछा.
“हाँ…” उधर से सुधीर ने कहा.
“उसके गाल पर हस्ने के बाद डिंपल दिखने लगता है…?” शिकेन्दर ने पूछा.
“हाँ…” सुधीर ने कहा.
“उसके दाए हाथ पर शेर का टॅटू भी है… बराबर…” शिकेन्दर का चेहरा खुशी से खिलने लगा.
“हाँ… लेकिन यह सब तुम्हे कैसे पता…?” उधर से सुधीर ने आश्चर्य से पूछा.
“अरे वह तो वही लड़की है… अशोक, चंदन, सुनील और में सुबह से जिसके पीछे थे…. और अभी थोड़ी देर पहले वह हमे झांसा देकर यहाँ से गायब हो गयी है… लेकिन लगता है साली हमारे नसीब मे ही लिखी है…”
“सच…?” उधर से सुधीर भी आस्चर्य से बोला.
“यार… सुधीर… आज तो तुमने मेरा दिल खुश कर दिया है… इसे कहते है सच्चा दोस्त…” शिकेन्दर भी खुशी के मारे उत्तेजित होकर बोल रहा था.
“अरे अभी तो हम उसे पता नही कहाँ कहाँ ढूँढ रहे थे… किधर है वह…? सच कहूँ… हम लोग उसके बदले तुम्हे जो चाहिए दे देंगे…” शिकेन्दर ने खुशी के मारे वादा किया.
“देखो… फिर मुकर ना जाना…” सुधीर ने कहा.
“अरे नही.. इट्स गेंटल्मेन्स प्रॉमिस यार…” सिकेन्दर किसी राजा की तरह खुश होकर बोला.
“दो हज़ार डॉलर्स… हर एक के पास से… मंजूर…?” सुधीर ने भी वक्त के तकाज़े का फ़ायदा लेने की ठान ली.
“मंजूर…”शिकेन्दर ने बेफिक्र लहजे मे कहा.
शिकेन्दर, सुनील, चंदन और अशोक एक पुराने मकान मे, एक टेबल के इर्दगिर्द बैठे हुए थे. उनके हाथ मे आधे पिए हुए व्हिस्की के जाम थे… चारो भी अपने अपने विचारों मे खोए हुए व्हिस्की पी रहे थे… उनमे एक तनावपूर्ण सन्नाटा छाया हुआ था…
“उसे तुमने क्यों मारा…?” अशोक ने सन्नाटा तोड़ते हुए शिकेन्दर से सवाल किया.
वैसे तो तीनो मे से किसी की शिकेन्दर से इस तरह से सवाल पूछने की हिम्मत नही थी… लेकिन नौबत ही वैसी आ गयी थी.. और पीने की वजह से उनमे उतनी हिम्मत आगयि थी…
“आए… बेवकूफ़ की तरह बकबक मत कर.. मैने उसे मारा नही… वह उस हादसे मे मारी गयी…” शिकेन्दर ने बेफिक्र होकर कंधे उचकाते हुए कहा.
“हादसे मे…?”
भले ही सिकेन्दर इस बारे मे बेफिक्र है ऐसा जता रहा था फिर भी वह अंदर से बैचेन था.
अपनी बैचेनी छिपाने के लिए उसने व्हिस्की का एक बड़ा घूँट लिया, “देखो… वह कुछ ज़्यादा ही चिल्ला रही थी इसलिए… मैने उसका मुँह दबाकर बंद किया… और मुझे पता ही नही चला कि उसमे उसकी नाक भी दबकर बंद होगयि करके…”
“फिर अब क्या किया जाय…?” चंदन ने पूछा.
क्रमशः……………
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