RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
“सच कहूँ तो में तुम्हारे हर एक के पास से दो-दो हज़ार डॉलर्स लेने के लिए आया था…” सुधीर ने कहा.
“दो-दो हज़ार डॉलर्स…? मेरे दोस्त अब यह सब भूल जा…” अशोक ने कहा.
सुधीर उसकी तरफ गुस्से से देखने लगा.
“देख अगर सबकुछ ठीक हुआ होता तो हम तुम्हे कभी ना नही कहते… बल्कि हमारी खुशी से तुम्हे पैसे देते… लेकिन अब परिस्थिति बहुत अलग है… वह लड़की की मौत हो गयी…” अशोक उसे समझा बुझाने के स्वर मे बोला…
“…मतलब आक्सिडेंट्ली…” चंदन ने बीच मे ही जोड़ा..
“तो अब वह सब ठिकाने लगाने के लिए पैसा लगेगा…” अशोक ने कहा.
“सच कहूँ तो… हम ही तुम्हारे पास इस सब का निपटारा करने के लिए पैसे माँग ने वाले थे…” सुनील ने कहा.
फिर सब लोग, सुधीर को छोड़कर, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे… पहले ही उन्हे चढ़ गयी थी और अब वे उसकी मज़ाक उड़ा रहे थे…
सुधीर के जबड़े कस गये… गुस्से से वह उठ खड़ा हुआ और पैर पटकते हुए वहाँ से चलते बना…. दरवाज़े से बाहर निकलने के बाद उसने गुस्से से दरवाज़ा ज़ोर से पटक दिया….
फिर उसके बाद सुधीर ने उन चारो को मारने का प्लान बनाया (जैसे राज ने डिसकवर चॅनेल पर देखा था) वैसी ही योजना सुधीर ने तैय्यार की और सुधीर ये सब प्लान बना रहा था लेकिन उसका दिमाग़ कल घटी बातों मे व्यस्त था… सुधीर अपने दिमाग़ मे चल रहे सोच के चक्कर से बाहर आगया.
अब अगर यह केस ऐसी ही चलती रही तो कभी ना कभी शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन अपने को इसमे घसीट ने वाले है…
फिर हम भी इस केस मे फँस जाय…
नही ऐसा कतई नही होना चाहिए…
मुझे कुछ तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा…
सोचते हुए सुधीर अपने इर्दगिर्द खेल रही उस बिल्ली की तरफ देख रहा था… अचानक एक विचार उसके दिमाग़ मे कौंध गया और उसके चेहरे पर एक ग़ूढ मुस्कुराहट दिखने लगी…
अगर मैने इन चारों को रास्ते से हटाया तो कैसा रहेगा…?
ना रहेगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी…
सुधीर ने इस मसले को पूरी तरह आर या पार करने का मन ही मन ठान लिया था. आख़िर उसे अपनी जान बचाना ज़रूरी था. क्या करना है यह उसने मन ही मन तय किया था… लेकिन पहले एक बार मीनू के भाई को मिलना उसे ज़रूरी लग रहा था. इसलिए वह अंकित के घर के पास जाने लगा…
क्रमशः……………
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