RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
राज वेरहाउस मे अब भी ज़मीन पर पड़ा हुआ था… लेकिन अब वह उस ट्रॅन्सस्टेट से बाहर आ गया था… वह झट से कंप्यूटर के मॉनिटर की तरफ देखा…. अब कंप्यूटर बंद था… उसने वेरहाउस मे इधर उधर देखा… अब बाहर सवेरा हो गया था और अंदर वेरहाउस मे अच्छी ख़ासी रोशनी आ रही थी… कुछ देर पहले ज़ोर ज़ोर से बह रही हवा के झोके भी थम गये थे… वह अब उठ कर खड़ा हो गया और सोचने लगा… इतने मे उसका ख़याल कुछ देर पहले नीचे गिरे हुए फोटो फ्रेम की तरफ गया…. उसने वह फ्रेम उठाई और सीधी कर देखी… वह एक ग्रूप फोटो था… सुधीर और उन चार मीनू के क़ातिलों का…
उसे अब एक एक बात एकदम सॉफ हो चुकी थी… वह जब नीचे पड़ा हुआ था और उसे जो एक एक द्रिश्य दिखाई दिया था, शायद मीनू की अद्रुश्य और अतृप्त रूह को वह उसे बताना था… लेकिन उसे वह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ी थी…? वह उसे ना बताए हुए भी मीनू को जो चाहिए वह अब तक हासिल करते आई थी औरा आगे भी हासिल कर सकती थी…
फिर उसने यह उसे क्यों बताया था…?
ज़रूर कोई वजह होगी…?
इसमे उसका ज़रूर कोई उद्देश्य होगा…
सुधीर के केस की काफ़ी दिनो से कोर्ट मे कार्यवाही चल रही थी.. हर बार राज कोर्ट मे कामकाज के दौरान हाजिर रहता था और वहाँ बैठकर सब कार्यवाही सुनता था… इधर केस का कामकाज चलता था और उसके दिमाग़ मे वह एक ही सवाल घूमते रहता था कि मीनू ने वह सब बताने के लिए उसे ही क्यों चुना होगा…? और मीनू का वह सब बताने का क्या मकसद रहा होगा…?
कि वह सब कुछ उसने कोर्ट मे बयान करना चाहिए ऐसा तो मीनू को अपेक्षित नही होगा…?
लेकिन अगर वह सब उसने कोर्ट मे बताया तो उसपर कौन विश्वास करने वाला था…?
उल्टा एक ज़िम्मेदार इंस्पेक्टर के मुँह से ऐसे अंधश्रद्धा बातें सुनकर लोगो ने उसे ना जाने क्या क्या कहा होता…
सिर्फ़ कहा सुनाया ही नही तो उसका आगे का पूरा कैरयर् सवालो के और शक केग हियर मे आया होता…
वह सोच रहा था लेकिन आज उसे विचारों के जंजाल मे नही फँसना था… आज उसे कोर्ट की कार्यवाही पूरी तरह ध्यान देकर सुन नी थी… क्योंकि आज केस का नतीजा निकलने वाला था.
आख़िर इतनी दिनो से घसीट ते हुए चल रहे केस के सब जब जवाब हो चुके थे… राज की भी ज़बानी हो चुकी थी… उसने जो साबित किया जा सकता था वह सब बताया था.
आख़िर वह वक्त आया था. वह पल आ चुका था जिसकी सारे लोग बड़ी बेचैनी से राह देख रहे थे… केस के नतीजे की… राज अपने कुर्सी पर बैठकर जड्ज क्या फ़ैसला सुनाता है यह सुन ने के लिए जड्ज की तरफ देखने लगा… वैसे उसके चेहरे पर किसी भी भाव का अस्तित्व नही था.. कोर्ट रूम मे उपस्थित बाकी सब लोग सांस रोक कर जड्ज का आखरी फ़ैसला सुन ने के लिए बेताब थे…
जड्ज फ़ैसला सुना ने लगा –
“सारे सबूत, सारे जवाब, और खुद मिस्टर. सुधीर ने दिया स्टेट्मेंट की ओर ध्यान देते हुए कोर्ट इस नतीजे पर पहुँचा है कि मिस्टर. चंदन, मिस्टर. सुनील, मिस्टर. अशोक और मिस्टर. शिकेन्दर इन चारो के भी क़त्ल मे मिस्टर. सुधीर मुजरिम पाया गया है… उसने वह चारो खून जान भूज कर और पूरी योजना और सतर्कता के साथ किए है…”
“… इसलिए कोर्ट मुजरिम सुधीर को मौत की सज़ा सुनाता है…”
जड्ज ने आखरी फ़ैसला सुनाया था… इस फ़ैसले का जिन चार लोगो के क़त्ल हुए थे उनके रिश्तेदारो ने तालिया बजा कर स्वागत किया तो काफ़ी लोगो को यह फ़ैसला पसंद नही आया. मीनू का भाई अंकित तो नाराज़गी जाहिर करते हुए कोर्ट रूम से उठकर चला गया… लेकिन राज के चेहरे पर कोई भाव नही उभरे थे. ना खुशी के ना गम के… लेकिन फ़ैसला सुन ने के बाद राज काफ़ी दिनो से सता रहे सवाल का जवाब मिल गया था.
सुधीर को मौत की सज़ा सुनाई गयी थी… वो डेट भी अब नज़दीक आ गयी थी…
अब थोड़ी ही देर मे सुधीर को मौत की सज़ा दी जानी थी. इंस्पेक्टर राज , सज़ा देनेवाला अधिकारी, एक डॉक्टर और एक दो ऑफिसर्स फाँसी के रूम के सामने खड़े थे. इतने मे दो पोलीस अधिकारी हथकड़ियाँ पहने स्थिति मे सुधीर को वहाँ ले आए. मौत की सज़ा देने की जिस अधिकारी पर ज़िम्मेदारी थी, उसने अपने घड़ी की तरफ देखा और पोलीस अधिकारी को इशारा किया. पोलीस ऑफिसर्स सुधीर को फाँसी की तरफ ले गये…
फिर जल्लाद ने काले कपड़े से उसका चेहरा ढँका और फाँसी को उसके गले मे अटका कर पॅनल खींचने के लिए तैय्यार रहा … मुख्या अधिकारी ने जल्लाद की तरफ देखा और जल्लाद एकदम तैय्यार खड़ा था… फिर से वह अधिकारी अपनी घड़ी की तरफ देखने लगा… शायद उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी…. अचानक उस अधिकारी ने जल्लाद को इशारा किया… जल्लाद ने पल भर की भी देरी ना करते हुए पॅनल खींच दिया… थोड़ी देर मे सुधीर की बॉडी उस फाँसी की रस्सी मे लटकी हुई थी..
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