Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 08:55 PM,
#4
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--2

गतान्क से आगे..............
बाबूजी ने अपनी उंगलियाँ अब मिन्नी की चूत में रख के अंगूठे से उसकी बुर के दाने का घर्षण शुरू कर दिया था. अंगूठे के दबाव में दाना काफ़ी सख़्त हो गया था. मिन्नी की बुर का दाना काफ़ी मोटा था. राजू और संजय दोनो को उसकी चूत चूसने में बहुत आनंद आता था. वो दोनो बारी बारी से शुरू के दिनो में छुट्टी वाले दिन उसकी चूत चूस्टे रहते थे. मिन्नी सनडे और मंडे को कोई काम नही करती थी. सॅटर्डे रात से उसकी जो चुदाई शुरू होती थी कि पुछो नही. तीनो लड़के और ससुर एक के बाद एक उसको चोद्ते और उससे खेलते. मंडे दोपहर के बाद वो थोड़ा काम करने लायक होती थी.

जब राखी घर में आई तो कुच्छ दिन उसके साथ भी यही हुआ, पर फिर धीरे धीरे सबके रुटीन सेट हो गए. हरिया काका को पहले बिल्कुल चान्स नही मिलता था. पर राखी के आने के बाद उनको भी मौका मिलने लगा. 65 वर्ष की आयु तक भी वो काफ़ी गातीले मर्द थे. लंड मीडियम साइज़ का था पर चुदाई में निपुण थे. उन्होने दोनो बहुओं को अच्छा खाने के साथ साथ मस्त चुदाई की कुच्छ बातें भी सिखाई. उनकी वजह से ही मिन्नी और राखी के संबंध भी बने. किचन में राखी के सामने जब वो मिन्नी की लेते तो राखी साड़ी उठा के अपनी चूत सहलाती . ऐसे ही एक दिन उन्होने मिन्नी से उसकी चूत चटवा दी. वो दिन था और आज दिन तब से दोनो बहुएँ आपस में मज़ा लेने का कोई भी मौका नही छोड़ती. अकेले हों या सबके बीच दिन में एक दूसरे की चूत चाते बगैर उनको नींद नही आती. ज़रूरी नही है कि वो दोनो झड़े पर चुसाइ करना और करवाना अब एक आदत बन गई है.

ये सोचते हुए और ससुर जी के प्यार करने के तरीके से मिन्नी को मज़ा और मस्ती आने लगी थी. उसकी आँखें बंद थी पर तभी उसकी बगल में ससुर जी ने अपनी जीभ से चाता और उसके शरीर में झुरजुरी दौड़ गई. उसे अपनी बगले चटवाने में भी बहुत मज़ा आता था. 2 - 3 बार तो उसने अपनी बगल में लंड भी लिए थे. बाबूजी के ऐसा करते ही उसकी चिहुनक निकल गई. बाबूजी ने मुस्कुराते हुए उसकी आधी खुली नशीली आँखों में झाँका और उसका प्यारा सा चुंबन लिया. अपनी जीभ पे बाबूजी की जीभ का स्प्रश अच्छा लग रहा था. होंठ खोलते हुए मिन्नी ने पूरी जीभ अंदर ले ली और दोनो की जीभें आपस में कुश्ती करने लगी. बाबूजी सर्व गुण संपन्न चोदु थे. औरत को कब किस चीज़ की ज़रूरत है अच्छे से भाँप लेते थे. किस करते करते उन्होने बहू को अपने उपर ले लिया. लंड ने चूत पे दस्तक दी और चूत ने द्वार खोल दिए. लंड महाराज धीरे धीरे गीली चूत के पटल खोलते हुए अंदर घुस गए.

'' बबुउुउुज्ज्जििीइ... उउउंम्म...ऊओह..उउंम्म...'' मिन्नी नीचे से अपनी बुर में घुसे लंड से चीत्कार उठी.

'' बाबूजी सच आपके लंड की सवारी में ही जन्नत है..हाऐईइ ..मज़ा आ गया.. उफ़फ्फ़ बाबूजी आप नही होते तो मेरी मुनिया का क्या होता..पता नही. ये 7 इंच का सख़्त मूसल मेरे लिए दिया गया भगवान का वरदान है.. जैसे कि भगवान ने मेरी मुनिया बनाते हुए कह दिया कि जा बेटी तेरे ससुर इसका भोग करेंगे...ऊओ बाबूजी..आपकी गोतियाँ कितनी सख़्त हुई पड़ी है..क्या इन्हे भी अंदर दोगे...''' मिन्नी हल्के हल्के चूतर उठा के लंड पे पेलते हुए बाबूजी के टट्टों से खेल रही थी.

'' अरी बहू तेरे लिए ही बना है ये..और तेरी मुनिया इसके लए..तू चिंता ना कर मरते दम तक ये तेरी प्यासी बुर को अपना चिपचिपा पानी पिलाएगा. चल आजा अब अपनी ये मोटी मोटी चुचियो को चुस्वा ले अपने ससुर से. मेरे होंठ भी प्यासे हैं. आजा अब दूध पीला दे मुझे.'' अपनी गांद उठा के बाबूजी ने 3 - 4 धक्के लगाए और गांद को गोल गोल घुमाया.

मिन्नी आगे को झुकी और राजपाल के सिर को पिछे से पकड़ लिया. झुक के अपने निपल उसके मूह में दिए. ''' आआआर्र्र्घ्ह्ह आज आप मेरे ससुर कम मेरे बेटे ज़ियादा हो..अपनी मा का दूध पिओ बेटे..ऊओ..हां चूस ले मदर्चोद..इन्हे चूस ले..और अपनी मा की चूत भी चोद ले जी भर के...उउउम्म्म्माआआआ...मैं तो जल्दी ही झाड़ जाउन्गि...फिर तू क्या करेगा..ऊओह हाआन्न्न..हान्णन्न्...बाबूजी..
.मैं झाड़ जाउ आपकी रोड पे...गीला कर दूँ क्या इसे ???? बोलो बाबूजी या मेरी मुनिया का रस पियोगे ...??''' मिन्नी पूरी मस्ती में बोली.

2 दिन की चुदास मिन्नी सिर्फ़ 5 मिनट में ही झरने को तैयार थी. बाबूजी के दिमाग़ में कुच्छ सूझ नही रहा था. कल रात की सखी की लंड चुसाइ के बाद उन्हे भी थोड़ा दर्द था. मिन्नी का तो काम होने वाला था तो क्यों ना मैं अब लंड को थोड़ा आराम दे दूं. सॅटर्डे है तो घर में सब एक साथ होंगे और सॅटर्डे नाइट भी मनाई जाएगी. ये सब सोचते हुए बाबूजी ने मिन्नी की चूचियो पे अपने होठों का प्रेशर बड़ा दिया और नीचे से गांद उठा उठा के उसकी चूत को रौंदने लगे. मिन्नी की बुर का दाना आगे झुके होने की वजह से बाबूजी के लंड के उपर पेट के हिस्से से रगर खा रहा था. मिन्नी इसे सहन नही कर पाई और बहुत ज़ोर के झटके लेते हुए झरने लगी. उसने अपना बदन सीधा कर लिया और हाथ अपने बालों को पिछे से सहलाने लगे. चूत के दाने वाला हिस्सा बाबूजी के पेट पे रगड़ती रही और झरती रही. बाबूजी उसके मम्मे नोचते रहे. झटके लेते हुए उसका बदन बहुत खूबसूरत और मादक दिख रहा था. एक बार तो बाबूजी ने सोचा कि क्यों ना चुदाई पूरी कर ली जाए. पर फिर सोचा कि रात के लए बचा के रखता हूँ वो ज़ियादा अच्छा रहेगा.

1 मिनट अपनी चूत से पिचकारियाँ छोड़ने के बाद मिन्नी निढाल होके बाबूजी की छाती पे गिर गई. बाबूजी ने उसे कस के बाँध लिया और हल्के हल्के चुबन लेते रहे. उसकी पीठ और गांद पे हाथ फेरते रहे. लंड अभी भी पूरा फूला हुआ चूत में था. ऐसे करीब 2 मिनट तक दोनो लेटे रहे. अब बाबूजी का लंड मुरझाने लगा था. शायद वो भी सुस्ती के मूड में थे. उन्होने मिन्नी को अपने से अलग किया और दोनो ससुर और बहू एक दूसरे से चिपक के सो गए. करीब एक घंटे के बाद सखी ने दरवाजे पे दस्तक दी और अंदर आई. बाबूजी का मुरझाया हुआ लंड अभी भी चिपचिपा सा था. सखी ने आगे बढ़ के एक चुम्मा लिया और सूपदे के छेद पे अपनी जीभ चलाई. उसके ऐसा करने से बाबूजी की नींद टूट गई और सखी के बालों को पकड़ के उसे अपनी तरफ खींचा. दोनो ने एक गहरा चुंबन किया और सखी ने अपनी मीडियम साइज़ की सख़्त चूचिओ को थोड़ा अपने ससुर के सीने पे रगड़ा.

'' बाबूजी , भाभी चलिए अब उठिए .शाम होने वाली है और रात की पार्टी की तैयारी भी करनी है. चलिए ना बाबूजी आज की रात तो काफ़ी लंबी रहेगी..जल्दी उठिए तैयार हो जाइए, भाभी राखी भाभी आपका किचन में इंतेज़ार कर रही हैं.'' सखी ने प्यार से भाभी के चूतर सहलाते हुए उसे उठाया. आँखें मलते हुए मिन्नी उठी और अपने कपड़े लेके बाबूजी के बाथरूम में चली गई. बाबूजी वहीं लेटे लेटे अपने लंड से खेलते हुए कुच्छ सोच रहे थे. तभी सखी ने उनको टाँग पे चिकोटी काटी.

'' बाबूजी कहाँ खो गए आप..क्या सोच रहे हैं.. और आप ये अपने पप्पू से खेलना बंद कीजिए ना..नही तो मेरी पप्पी को कुच्छ हो जाएगा और फिर मैं आप पे चढ़ जाउन्गि..'' सखी ने अपनी साड़ी के उपर से अपनी चूत को सहलाते हुए कहा.

''कुच्छ नही बेटा . मैं सोच रहा था कि आज तुझे इस घर में आए हुए 3 महीने हो गए. आज तुझे भी इस घर की हिस्टरी का पता चलना चाहिए. अब तू सब समझ पाएगी. आज रात को मैं तुम लोगों को अपने परिवार की पुरानी हिस्टरी के बारे में कुच्छ बताउन्गा.'' ये कहते हुए बाबूजी उठे और अपना कुर्ता पहेन लिया. सखी ने उनके चेहरे के भाव देखे और समझ लिया कि अभी बाबूजी सीरीयस मूड में हैं. वो कमरे से बाहर चली गई. मिन्नी भी तैयार होके बिना कुच्छ कहे जल्दी जल्दी कमरे से बाहर चली गई. बाबूजी अपने अतीत की याद में खोए हुए खिड़की से बाहर देख रहे थे.

शाम को सब लोग ड्रवोयिंग रूम में इकट्ठे हुए. बाबूजी अपने सोफा पे आधे बैठे हुए थे. सुजीत और संजय बिज़्नेस की डिस्कशन में बिज़ी थे. राजू और सखी न्यूसपेपर पढ़ रहे थे. रखी और मिन्नी किचन समेट के आके बैठ गई. कुच्छ देर सब आराम से यूँ ही बैठे रहे. टीवी चल रहा था. बाबूजी के सिवाए किसी का ध्यान टीवी पे नही था. शाम के 7.30 हुए थे.
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