Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:03 PM,
#46
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
उनके सामने जो गांद थी वो गथीली नही थी पर उसकी शेप बहुत अच्छी थी. पतली सी कमर और फिर उपर की तरफ पीठ का कुच्छ नंगा हिस्सा. उसके उपर लहराती हुई एक लंबी चोटी. चोटी इतनी लंबी थी क़ी गांद की दरार में घुसी जा रही थी. बाबूजी ने अपना सिर थोड़ा पिछे किया और नीचे देखा तो उनका लंड अब हरकत में आ चुका था. घम्छे में अब एक छ्होटा सा तंबू बन चुका था. पैरों पे काँपते हुए हाथ उनके शरीर में गर्मी पैदा कर रहे थे. सिर को पिछे करने से झुकी हुई मुन्नी के मम्मो की दरार दिखने लगी थी. साँवले से मम्मे सखी की याद दिला रहे थे....मेरी प्यारी बहू सखी...कितने दिन हो गए....हाऐ...सोचते हुए लंड की अंगड़ाई बढ़ने लगी. बाबूजी को कुच्छ सूझा.

''ह्म्‍म्म इधेर उपर देख...मेरी तरफ....जा तुझे मांफ किया....पर जो तूने वादा किया है उसे भूलना नही...और मैं वादा तोड़ने वालों को नही भूलता...'' बाबूजी ने एक उंगली दिखाते हुए आख़िरी बार मुन्नी को चेताया. मुन्नी उनके पैरों को पकड़े हुए उनके चेहरे को देख रही थी. मूह उपर करने से उसकी पतली गर्दन खिंच गई थी और मम्मे थोड़े और क्लियर नज़र आने लगे थे. छाती बाहर को खिंची हुई थी और उसपे उसके आँसुओं की ताज़ा बूँदें गिरी हुई थी.

''बाबूजी कसम खाई है..तोड़ेंगे नही...जान ले लेना चाहे..इससे बाद के और क्या कहें...बाकी जो माँगो दे देंगे...बस कोई गुस्सा ना करना...हमारी ज़िंदगी आपके हाथों में है....''मुन्नी फिर से थोड़ी घबराई और उसके आँसू टपकने लगे.

''चल पगली मैं इतना भी बुरा नही हूँ...फिलहाल तो तू बस एक काम कर ...ये जो चाइ तूने मीठी की है...इसे अपने हाथों से मुझे पिला दे....'' बाबूजी ने उसके कंधे पकड़ के उसे धीरे धीरे उपर उठाया और एक हाथ कंधे पे रखते हुए दूसरे हाथ से उसके आँसू पोन्छे. अब उनके चेहरे पे मुस्कुराहट थी. मुस्कुराहट जीत की...मुस्कुराहट इस एहसास की कि एक और नई कम्मो का जनम हुआ...मुस्कुराहट ये सोच के ...मुन्नी के बदन से आती हुई खुश्बू जो कि जल्दी ही उनके बदन में समा जाने वाली थी...बाबूजी की मुस्कुराहट और उनके आदेश का मुन्नी पे ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा. वो शर्मा गई और सिर झुका के कसमसा उठी. बाबूजी ने मौका देख के उसके कंधे पकड़ के उसे धीरे धीरे अपनी ओर खींच लिया.

''पीला दे ना चाइ....वोई तो पिलाने आई थी...देखूं तेरे होंठो की लगी हुई चाइ तेरे हाथों से कितनी मीठी लगती है....'' बाबूजी ने तकरीबन उसे अपने से चिपका लिया था और उसकी ठोडी को पकड़ के उसके मूह को उपर कर दिया था. शरम के मारे मुन्नी की आँखें आधी बंद थी और चेहरे पे मुस्कान. उसका तीखा नैन नक्श बाबूजी को लुभा रहे थे. बाबूजी और उसके बदन की दूरी सिर्फ़ उसके हाथों में पकड़े हुए सूट की वजह से थी ...वो हाथ जो बाबूजी के लंड के बेहद नज़दीक थे. हाथो का पिच्छला हिस्सा गम्छे को छ्छू रहा था.

''धाातत्ट ..बाबूजी ...आप कैसी बात करते हैं...आप हमारी झूठी चाई पिएँगे...नही नही....ऐसा नही हो सकता ...हम दूसरी लाते है....'' मुन्नी की नज़र और सिर फिर से झुक गए थे. उसने बाबूजी से अलग होते हुए बाहर जाने की कोशिश की ...उसके अलग होते ही सूट पे लगे हुए शीशे में बाबूजी के गम्छे की किनारी अटक गई ...और मुन्नी के हाथ से सूट छितक गया. सूट के वज़न से बाबूजी का गमछा खुल गया और उनका आधा खड़ा हथियार नग्न हो गया. बाबूजी को उसकी चिंता नही थी...सब कुच्छ इतना अचानक और स्पीड से हो रहा था...उन्होने हाथ बढ़ा के मुन्नी की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींचा...मुन्नी के कदम दरवाज़े की ओर बढ़ रहे थे और वो लड़खड़ा गई. बाबूजी का दूसरा हाथ उसकी बगल में पहुँचा और उससे सपोर्ट दी. हाथ के दबाव से मम्मे भी नही बचे....नंगे बाबूजी के बदन से अब मुन्नी का सूट रगड़ खा रहा था और उसकी आँखों में थोरे अश्चर्य और थोड़ी मस्ती के भाव थे.

बाबूजी ने आँखें पढ़ ली ...लोहा गरम था...बस चोट करनी बाकी थी...

''क्यों री...अभी तो इन्ही होंठो से चुस्की लेके तू चाइ यहाँ छोड़ के जा रही थी...अब पिलाने में दिक्कत है....पिला दे ना...क्यों तडपा रही है...वैसे भी तेरे हाथ खाली अच्छे नही लग रहे ...'' बाबूजी ने कसमसाती हुई मादक मुन्नी का हाथ अपने लंड पे रगड़ दिया. हथेली में गरम लंड का एहसास पाते ही मुन्नी पिघल गई...होंठ काँप उठे और गला सूख गया. हाथ को झटकने की कोशिश की पर बाबूजी की पकड़ मज़बूत थी. हथेली लगतार लंड को रगड़ रही थी. मुन्नी ने एक बार हाथ हटाते हुए मुट्ठी भिचने की कोशिश की पर हाथ तो हटा नही ...उसकी जगह भींची हुई मुट्ठी में लंड ज़रूर आ गया...

''हाऐी दैयाअ.....बाबूजी....जाने दो नाअ.....क्या कर रहे हो......मत करो बाबूजी......ग़लत हो जाएगा.....जाने दो ..कम्मो और शारदा क्या सोचेंगी....?? बाबूजी मिन्नत करते हैं...जाअनए....??'' मुन्नी हटने की कोशिश में अपने हाथ को कभी खोल रही थी तो कभी बंद कर रही थी. लंड फूँकार मार रहा था. रोड की तपिश उसके बदन को झुलसा रही थी. होंठ और भी काँपने लगे थे. नंगे बदन रगड़ खाने से सूट में धकि चूचियाँ सख़्त हो गई थी और दूसरे हाथ का दबाव अब दबाव नही रहा था. मम्मो को साइड से नोचा जा रहा था.

''उम्म अच्छा चल चाइ नही पिलाएगी तो ना सह ...कम से कम इन होंठो की मिठास तो चखवा दे....'' बाबूजी ने कलाई को झटका दिया और लंड छुड़ाते हुए बाजू को मुन्नी की पीठ की तरफ मोड दिया. दूसरा हाथ अब मम्मे को छोड़ गर्दन के पिछे चला गया था और सिर को अपनी तरफ खींच लिया. बाबूजी ने अपनी मूच्छों से सजे होंठ मुन्नी के काँपते हुए होंठो पे रख दिए और चूसने लगे. बाबूजी का एक्सपीरियेन्स ज़बरदस्त था और मुन्नी के होंठ उस एक्षपेरेंसे को महसूस कर रहे थे. 5 सेकेंड में ही उसके होंठो पे थूक की लार लगी हुई थी और उसकी सस्ती सी लिपस्टिक बाबूजी के होंठो के आस पास फैली हुई थी. होंठ बंद नही रह पाए और कसमासाते हुए अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश में उसका मूह खुलता चला गया. जीभ से जीभ की बात शुरू हो गई. चूचियाँ अब खुले आम बाबूजी की छाती में धँस रही थी..7 इंच का मूसल चूत के मुहाने पे दस्तक दे रहा था.

''ब्बाआब्ब्ब्बुऊुज्जिि.........उउंम्म.......माअत्त्त्त्त्त कार्रूऊ....उउम्म्म्मह...उम्म्म्ममह......करूऊओ.......मेरे बाबूजी.......और कर .उउउम्म्म्मममह उउम्म्म्मह.....स्लुउउररुउउप्प्प....उउम्म्म्ममह.....ऊहह....'' बाबूजी के हाथ से अपनी कलाई छ्छूटते ही मुन्नी अब उनकी गर्दन पे अपनी बाजुओं का हार डाले उनका पूरा साथ दे रही थी. बाबूजी के दोनो हाथ अब उसके चूचों को पकड़े हुए थे....उसकी चूत का उभार रह रह के उनसे रगड़ खा रहा था...थूक की लार दोनो के होंठो से बह रही थी....

'''ऊऊऊऊओह बबुऊुजिइीइ.....उउम्म्म्म...उम्म्म्ममह...उम्म्म्मम.....चूवस लो मेरे को.......उउम्म्म्ममम......चाइ पिलो.....मेरे होंठो से ....और तरो ताज़ा....हो जाओ.....फिर तगड़े तरीके से .......उउउम्म्म्मह मेरी....उउउम्म्मह ऊओह हाआंन्‍णणन्....'' बाबूजी के होंठो को चूस्ते हुए मम्मे दब्वाते हुए अब मुन्नी पूरी पागल हो गई थी. उसके बदन का कोई भी हिस्सा अब बिना रगडे नही रहा था. बाबूजी ने सूट के उपर से उसकी गांद दबोची हुई थी और उसे अपने लंड की तरफ दबाए हुए थे.

''क्या मेरी मुन्नी क्या कर दूओ....तेरी क्या...तरो ताज़ा होके ...क्या करूँ तेरा....'मूह से बोल ....सुना मुझे....क्या ....'' बाबूजी उसकी गर्दन और कानो को बेतहाशा चूमे जा रहे थे.

''बबुउउउ.....ऊऊहह ये दे दे......दे दे ....चाइ हो चुकी...अब रुक्क मत......दे ना इसससे......यहीं ...अभी के अभी.......डाालल्ल्ल्ल्ल्ल....मरी जा र्है हूओन........ऊओह...उउउम्म्मह ...उउउर्र्घह....यहाँ दे ईसीए...''' मुन्नी ने लंड पकड़ के 4 - 5 बार उसे निचोड़ा....लंड का सूपड़ा और भी फूल गया....और फूले हुए सुपादे को चूत पे घिस दिया.
क्रमशः................................
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