Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:17 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
दोस्तो आगे की कहानी मुन्नी की जवानी

मैं हू मुन्नी 
........ जी हां इस घर की दूसरी नौकरानी और अब से इस कहानी की सूत्रधार..... शायद कुच्छ अजीब सा लग रहा होगा आपको.......पर शायद ये मेरे नसीब का खेल है.......या शायद ये इसलिए हुआ क्योंकि मैं हूँ तो ग़रीब और नौकरानी पर शायद बीए की 1स्ट एअर तक की की गई पढ़ाई मुझे यहाँ लिखने के काबिल बना पाई है. खैर अब मैं मुद्दे पे आती हूँ.

मुझे आज भी वो दिन याद है जब मैं कम्मो के बच्चों को अपने घर लेके गई थी. कम्मो की बातों से सॉफ था कि वो मस्त चुदाई के खेल मे मगन थी. उसकी बातों कोसुन्‍न के मेरा तन बदन जल उठा था. आख़िर 33 साल की उमर मे मैं सिर्फ़ हफ्ते 10 दिन मे 1 बार चुदति थी. चूत की खलिश क्या होती है ये मेरे से बेटर कौन जान सकता था और मेरी कमीनी सहेली ने उस आग को बढ़ावा देने मे कोई कसर नही छोड़ी थी. उसकी कामुक दर्द भरी सिसकारियो से सॉफ पता चल गया था कि राजू भैया ने उस रात जमकर उसका भोग लगाने का प्लान बनाया था. मैने भी मन मे सोच लिया था कि सनडे होने के बावजूद मैं बाबूजी के घर काम के बहाने से जाउन्गि और राजू भैया को कैसे ना कैसे अपने उपर चढ़ाउंगी. ऐसे मे अगर बाबूजी भी मिल गए तो सोने पे सुहागा हो जाएगा. खैर वो रात तो जैसे ख़तम होने का नाम ही नही ले रही थी और चूत में रेंगती हुई चीटियो की वजह से मैं सुबह 4 बजे तक सो नही पाई. 

नींद खुली तो देखा 9 बज गए थे. पति अपना, बच्चों का और कम्मो के बच्चों का नाश्ता बना के उन्हे खिला रहा था. मैने आव ना देखा ताव और जल्दी जल्दी नहा के थोड़ा सा बन सवर के बाबूजी के घर को चलने लगी. पति ने पुछा तो कहा कि आंटी की तबीयत ठीक नही थी सो रात कम्मो वहाँ रुकी थी और अब वो घर जाएगी और मैं रात वहाँ रुकूंगी. 10.30 बजे जब मैने घंटी बजाई तो बड़ी भाभी ने दरवाजा खोला. मुझे अच्छे से याद है कि वो उस समय भी नींद मे थी. भाभी दरवाज़ा खोल के वापिस अपने रूम मे चली गई. मैं किचन मे गई तो खाने पीने का समान बिखरा पड़ा था. किचन समेट रही थी और दिमाग़ चल रहा था. पूरे घर में कहीं से कोई आवाज़ नही आ रही थी. दिमाग़ मे ज़बारर्दस्त उथल पुथल थी पर कहीं से भी कोई आइडिया दिमाग़ मे नही आ रहा था. किचन का काम ख़तम करके 12 बजे निकली तो देखा संजय भैया फ्रिड्ज से पानी निकाल के पी रहे हैं. पानी पी के वो भी अपने कमरे मे चले गए. मैने ड्रॉयिंग रूम और बाकी जगह सॉफ सफाई की. किसी के भी बेडरूम मे जाना संभव नही था. कम्मो का भी कहीं नामो निशान नही था. सब करके किचन मे सुस्ताने के लिए बैठी और ना जाने कब आँख लग गई.

राखी भाभी ने झखझोर के मुझे उठाया तो देखा कि मैं ज़मीन पे पसरी हुई थी और दोपहर के 2 बज रहे थे. भाभी के कहने पे फटाफट मैने खाना बनाना शुरू किया. 4 बजे सबने खाना खाया और फिर से सोने चले गए. मैं हैरान थी कि ऐसा क्या हुआ था जो सब इतनी खुमारी मे लग रहे थे. मुझसे रहा नही गया और मैने कम्मो को फोन किया. उसके बेटे ने बताया कि कम्मो दोपहर 1 बजे घर आई थी और तब से सो रही थी. एक बार को मन मे ख़याल आया कि आंटी की तबीयत वाकई मे खराब थी क्योंकि उनको खाना भी उसके कमरे मे ही दिया था. खैर मैं इंतेज़ार करने लगी. 6 बजे बाबूजी किचन मे आए तो मैं चाइ बना रही थी. कुच्छ बोले नही. पीछे पिछे 3नो भाभियाँ भी आ गई. मिन्नी भाभी ने चाइ ली और पुछा कि मैं गई क्यो नही. मैने जवाब दिया कि कम्मो ने बताया था कि आंटी की तबीयत ठीक नही सो इस वजह से रात रुकने का बोल के आई हूँ. भाभी कुच्छ नही बोली और बाबूजी को चाइ देने चल दी. फिर उनके बीच कुच्छ बात हुई और दोनो हंस दिए.

कहते हैं औरत अपनी पहली चुदाई कभी नही भूलती. पर मैं शायद अलग थी. बाबूजी का लंड मेरे जीवन का दूसरा था और उसे मैं नही भूली थी. और उस शाम भी वही सरीखा लंड मेरे नसीब मे फिर से आया. बाबूजी के कमरे से चाइ का कप लेने गई तो उन्होने मुझे बाहों मे भर लिया. जिस औरत की चुदास बढ़ जाती है उसे नंगी होने मे देर नही लगती. शाम के ढलते सूरज के साथ मेरे कपड़े भी उतर गए. बाबूजी की उंगलिओ का जादू चूत पे था और उनका मूह मेरे निपल पे. बेड का सहारा लिए हुए मैं उनके लंड को अपनी मुट्ठी मे समेटने की कोशिश कर रही थी कि इतने मे दरवाज़ा खुला और राजू भैया मदरजात नंगे कमरे मे दाखिल हुए और मेरे मूह से रास्पान करने लगे. फटी हुई आँखें, गरम चूत और कड़क चून्चो के साथ उनके मूह में सिसकारियाँ भरते हुए मैने उनका 10 इंच भी पकड़ लिया. बाबूजी अब तक बिस्तर के किनारे पे लेट चुके थे और मैं बेसब्री से उनके टोपे पर चूत रस फैला रही थी. उनके लंड पे बैठते हुए राजू भैया का लंड मेरे मूह मे समाने लगा. भैया का एक हाथ मेरे उरोजो पे था और दूसरा मेरे सिर के पिछे. नीचे से बाबूजी के हल्के झटके मेरी चूत को पनिया पनिया के आने वाली चुदाई के लिए तैयार कर रहे थे. मेरा दिमाग़ सुन्न पड़ गया था.ये कैसे हो गया कि बाप बेटा दोनो एक साथ मेरे पे चढ़ गए. पर आश्चर्य की सीमाएँ बहुत लंबी होती हैं.

लंड पेगून गून की आवाज़ें करते हुए और फूली हुई चूत मे लंड पिलवाते हुए किसी ने मेरी छाती को मसलना शुरू किया. फिर अचानक से मेरी पीठ पे नरम नरम पर बहुत ही गरम एहसास होने लगा. वही एहसास जो कम्मो की चुचियों से हुआ था. पर जो हाथ थे वो बहुत नरम थे. कम्मो के हाथों जैसे कठोर नही थे.

''बाबूजी ठीक से चाटो नाआआ..........गान्ड हिलाने के चक्कर मे जीभ हिलना क्यों छोड़ देते हो........उउउहह माआ............भाभी तुम क्यो वहाँ खड़ी हो.... आओ आज तुम्हे नया दूध पिल्वाति हूँ......देखो इसे ये कितनी पतली है ....साअली की एक एक हड्डी दिखती है ...पर चूचे देखो ....पूरे तुम्हारे साइज़ के हैं................हााआअँ....बाबूजी सही जगह पकड़ी है.....थोड़ा और कर दो मैं झर जाउन्गि......भाभी जल्दी आओ..........इसके चुचे चूसो देखो कितने टाइट हैं इसके निपल........उईईईइमाआआ.........'' ये आवाज़ तो सखी भाभी की थी और ये क्या.....राखी भाभी अपने बड़े बड़े मम्मे झुलाती हुई राजू भैया के पिछे खड़े होके उनकी गोतियाँ क्यों सहला रही हैं....

मेरे दिमाग़ की नसे फटने वाली थी. ये सब मेरे साथ या हो रहा था....कोई सपना जैसा था....सखी भाभी बाबूजी से चूत चटवा रही थी. राखी भाभी राजू भैया से जीभ लड़ा रही थी. मेरी चूत मे बाबूजी थे और मूह मे राजू भैया....उफ़फ्फ़ क्या ये पूरा खानदान एक साथ चुदाई करता है......?? अगर हां तो बाकी सब कहाँ थे. दिमाग़ सुन्न था और चूत गीली. ठसा ठस्स गान्ड अपने आप लंड पे थिरक रही थी. रह रह के एक नई उमंग और चुदास सिर से पाँव तक दौड़ रही थी. सखी भाभी के नरम चूचों का एहसास रह रह के असलियत की याद दिला रहे थे. और उसपे गजब तो तब हुआ जब संजय भैया आंटी को गोद मे उठाए कमरे मे लेके आए. आंटी आधी नंगी थी. उपर सिर्फ़ ब्रा थी और उसमे से भी एक चूचा बाहर छल्का हुआ था. संजय भैया भी मदरजात नंगे थे. आंटी को बेड पे लिटाया और राजू भैया को थोड़ा साइड मे करके उन्होने अपना लंड मेरे मूह मे पेला.

''बाबूजी आपका कितनी देर मे होगा..?? आप जल्दी कर लो फिर मुझे मुन्नी की चूत मे लंड पेलना है...सासू मा तो सिर्फ़ चुसाइ लायक रह गई हैं. कहती हैं रात को मिन्नी भाभी और राखी भाभी ने इनके दाने को इतना चाटा और चूसा है कि अब 3 दिन तक सूजा रहेगा और दर्द करेगा. अर्रे वाह बाबूजी....आपकी चाय्स तो वाकई में मान गए....कम्मो का दाना भी बड़ा था और इसका भी.....इसको आगे से चोदने मे मज़ा आएगा.......अर्ररे भाभी आंटी को छोड़ो ज़रा मेरी गोटिओं को गीला कर दो ..... देख मुन्नी कैसे राखी भाभी मेरा ख़याल रखती है...आगेसे तू भी मेरी गोटिओं को ऐसे ही चूसना.'' संजय भैया मेरे मुँह मे धक्कम पेल कर रहे थे और रह रह के मेरी, सखी और राखी भाभी की चूचिओ को अपने बड़े हाथों से तौल रहे थे.

''सुनो जी......आआर्र्घघ मैं बाबूजी पे झरने वाली हूँ....ज़रा सहारा दे दो बहुत ज़बरदस्त काम होने वाला है मेरा........उउउहह मम्मी......हाआंन्‍णणन्....उूुुुउऊहह ऊऊओ माआअ.....बाबूजीइइईईई...दनाआआ....नही ......संजय मैं गई जान............ऊऊऊऊऊओ.......'''''' भाभी ससुर के मूह पे झर रही थी. रखी भाभी संजय भैया के लंड के पिच्छले हिस्से पे जीभ चला रही थी और मैं बाबूजी के अगले धक्के का इंतेज़ार कर रही थी. 5 सेकेंड मे इंतेज़ार ख़तम हुआ और बाबूजी ने मुझे घोड़ी बना दिया. बेड पे मेरे सामने आंटी के मम्मे थे. राखी भाभी उन्हे निचोड़ रही थी. आंटी सिसकियाँ ले रही थी. बगलमे उनकी बेटी स्खलित होके टांगे खोले लेटी हुई गहरी गहरी साँसे ले रही थी. मेरा बदन भी अकड़ने को तैयार था कि अचानक मेरे अंदर बाबूजी का बीज निकलने लगा. गरम गरम लावे के जैसे बाबूजी मेरी गान्ड को पकड़ के हल्के हल्के झटके मार रहे थे.

''अर्रे आप लोग मेरे बगैर ही शुरू हो गए. घर की बड़ी बहू का किसी को भी लिहाज नही है. बाबूजी अभी लंड ना निकालना. वहीं रहने देना ...मैं निकालूंगी अपने होठों से.....ऊहूऊऊ ये कपड़े भी मैने ऐसे ही पहेन लिए. पता होता कि मुन्नी ने बाबूजी के बिस्तर पे बिछना है आज तो दरवाज़ा भी बिना कपड़ो के ही खोलती.......सुजीत भैयाअ....ऊऊ सुजीत भैया......जल्दी आओ........मैं घोड़ी बॅन रही हूँ.....जब तक मैं बाबूजी का चूस लेती हूँ आप अपना खड़ा कर लो.......बाबूजी आपको पता है भैया ने कम्मो की चूत मार के कल से ही अपना लंड नही धोया है. कह रहे थे कि किसी एक भाभी को इसका स्वाद चखवाना है फिर धोउंगा.....'' स्लूऊर्रप स्लूऊर्रप की आवाज़ केसाथ भाभी बाबूजी के टटटे चाट रही थी और फिर प्लॉप की आवाज़ के साथ बाबूजी का मुरझाया लंड जैसे ही मेरी चूत से बाहर निकला कि भाभी ने उसे मूह मे भर लिया. 

''आ गया भाभी....ये लो मेरा लंड भी तैयार है और मैं भी. जल्दी कुत्ति बनो तो मैं डालूं...भाभी इसके बगल में बनना कुत्ति. संजय आराम से बजाना इसकी मुझे भी करना है बाद मे....'' सुजीत भैया मेरे चूतड़ निचोड़ रहे थे और मेरी करीब करीब तैयार चूत संजय भैया का विशाल लंड अंदर ले रही थी.
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