RE: Sex Kahani सहेली की मम्मी बड़ी निकम्मी
मैंने अपनी पेंटी ऊपर सरकाई, सलवार को ठीक करके बाँधा, रोहित ने भी अपनी पैंट, बेल्ट बांध ली।
लेकिन दरवाज़ा खोलते ही जैसे ही हमारी नजर सामने उठी, हम दोनों के होश उड़ गये, सामने स्टिक लिए, गोल चश्मा लगाए डेलना मैडम खड़ी थी।
मेरी तो हालत बिगड़ गई।
हम दोनों भौंचक्के से डेलना मैडम को देखने लगे।
रोहित तुरन्त डर के मारे मेट्रन के पैरों पर गिर पड़ा- मेम, प्लीज हमें माफ़ कर दो…
रोहित गिड़गिड़ाने लगा।
मेरी तो रुलाई फ़ूट पड़ी, चुदाई के चक्कर में पकड़े गये, नौकरी कैसे जाती है, सामने नजर आ रहा था।
‘ऊपर उठ!’ डेलना मैडम ने रोहित के चूतड़ों पर एक ज़ोर की छड़ी जमाई, वह अपनी गांड सहलाता हुआ खड़ा हो गया।
‘मैडम माफ़ कर दो, इस बच्चे के चक्कर में मैं बहक गई थी।’
‘बहक गई थी? अरे! मैं मूतने आई तो देखा आवाज़े बाहर तक आ रहीं थीं। अब दोनों चुप हो जाओ, आगे से ध्यान रखो, दरवाजे की कुन्डी लगाना मत भूलो! समझे? अब रोहित जरा मेरे साथ आओ, और शाज़िया तुम बाहर ध्यान रखना कि कहीं कोई आ ना जाये…!’
मैं भाग कर डेलना मैडम से लिपट पड़ी और उनके उनके गले लगकर फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी।
‘मुझे माफ़ कर दो मैडम, मैं सच्ची बहक गई थी, अब कभी कॉलेज में नहीं करूँगी।’ और माफ़ी मांगने लगी।
डेलना मैडम पचास वर्ष की होगी, थोड़े से बाल सफ़ेद भी थे…पर उसका मन कठोर नहीं था- पगली! मैं भी तो इन्सान हूँ। मेरे पति बूढ़े हो चुके हैं। तुम्हारी तरह मुझे भी तो लंड चाहिये… जाओ खेलो और जिन्दगी की मस्तियाँ लो…’
और अपनी हैबिट ( मैक्सी या गाउन जैसी पोशाक) उठाकर मेरी जगह झुक कर खड़ी हो गई।
उनकी सफ़ेद चड्डी नीचे सरका कर रोहित उसके पीछे लग चुका था।
मैंने अपना बैग उठाया और वाशरूम के दरवाज़े पर पहरेदार बनकर खड़ी हो गई। अन्दर वासनायुक्त सिसकारियाँ गूंजने लगी थी… शायद डेलना मैडम की चुदाई चालू हो चुकी थी।
मेरी धड़कन अब सामान्य होने लगी थी, मुझे लगा कि बस ऊपर वाले ने हमारी नौकरी बचा ली थी। डेलना मैडम अन्दर चुद रही थी और हम बच गये थे वर्ना यह चुदाई तो हम दोनों को मार जाती।
उस दिन के बाद से मैं और डेलना मैडम काफी घुल मिल गए थे।
एक दिन की बात है, मेरी कॉलेज की प्रिंसपल डेलना मैडम ने मुझे नंगी फिल्म की सी डी दी, वो देसी ब्लू फिल्म की सीडी थी।
मैंने उस दिन पहली बार इंडियन देसी ब्लू-फिल्म देखी थी, उसमें लम्बा मोटा विदेशी लंड एक मासूम सी कम उम्र इंडियन लड़की को स्विमिंग पूल में चोद रहा था।
यह देखकर मुझे अजीब सा लगा, मन बार बार रोहित को याद करने लगा, कॉलेज के टॉयलेट में उसकी ज़बरदस्त चुदाई दिमाग़ में फिर से आने लगी, जंगली तरह से उसने मेरी सलवार खीचकर ज़बरदस्ती झुकाकर गांड मारी थी वह मैं भूल नहीं पा रही थी, दो दिन तक मेरी गांड दुखती रही थी।
मेरी भी प्यास भड़क गई थी और मैं भी अपनी चुत को उस जैसे किसी लंड से चुदवाना चाहती थी। घर में मेरा मन नहीं लग रहा था। मैं ब्लू जीन्स सफ़ेद टी शर्टपहन कर कुछ खरीददारी करने के बहाने से बाहर गई।
मैंने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी ढीली सफ़ेद टी शर्ट से मेरे टिट्स साफ़ चमक रहे थे।
मैंने एक रेस्टोरेंट में बैठकर तुरंत अपने पति के दोस्त राज को कॉल किया- राज कहाँ हो?
‘शाज़िया कैसी है मेरी डार्लिंग? मैं तो यहीं हूँ शहर में!’
‘कुछ करो, बहुत दिन हो गए मिले हुए?’
‘क्या? सीधा सीधा बोल न, क्यों परेशान है?’
‘और कितना सीधा बोलू यार… चुदवाना चाहती हूँ, यह बोलूँ? तूने ऐसा चस्का लगाया है कि दिल करता है कि बस जो भी चोदना चाहे खोलकर हाँ कर दूँ।’
‘हा हा हा… अभी तो मुश्किल है, कुछ दिन रुक जा कुछ जुगाड़ करता हूँ।’
‘चूतिया… चुत में आग अभी लगी है और तू बोलता है कि रुक जा… क्या यहीं चौराहे पर चुदवा लूँ? मादरचोद…’
‘रंडी बिगड़ गई है तू दो-दो लौड़े लेकर। कौन बोलेगा कि तू स्कूल में शरीफ सी टीचर है। रुक जा कल तक किसी होटल की जुगाड़ करता हूँ। नहीं हो पाया तो एक दोस्त का फॉर्म हाउस है वहाँ ले चलूँगा तुझे। लेकिन फॉर्म हाउस का किराया लगेगा तुझसे?’
‘मतलब एक और…?’
‘तो क्या दिक्कत है? ग्रुप सेक्स में तो तू मास्टर हो गई है, जय को भी बुलवा लूँगा।’
‘चल मादरचोद, ठीक हैम चल बाय!’
रेस्टोरेंट में एक कॉफ़ी पीकर मैं एक से डेढ़ घंटा तक यूं ही सड़कों पर यहाँ वहाँ घूमती रही। भीड़ में मौक़ा देखकर कोई मेरी गांड को दबा देता तो कोई मेरे मम्मो को मसलता हुआ निकल जाता था, मैं अन्दर तक सिहर जाती।
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