Mastram Story चमकता सितारा
09-06-2018, 04:53 PM,
#1
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चमकता सितारा

दोस्तो इंसान शौहरत के पीछे दिवाना हुआ फिरता है पर उसे नही पता होता कि जिंदगी किस मोड़ पर ले जाती है फिर भी इंसान शौहरत के पीछे भागता रहता है
‘चारों तरफ हज़ारों कैमरों की जगमगाती चमक, जहाँ तक नज़रें जाए बस पागल होती बेकाबू सी भीड़ और उस भीड़ को काबू करने में लगे हुए कितने ही पुलिस वाले.. कानों में गूंजता हुआ बस आपका ही नाम.. हर चौराहे पर आपकी बड़ी-बड़ी तस्वीरें.. हर खबर की सुर्ख़ियों में बस आपका ही ज़िक्र..’ 
‘यूँ तो हर मोड़ पर बहुत सी जिंदगियाँ साँसें लेती दिखाई देंगी.. पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती..
जीते तो सब हैं.. इस दुनिया में,
पर यहाँ हर किसी की..
खुद की पहचान नहीं होती..।’
कुछ ऐसी ही पहचान बनाने की चाहत आज एक छोटे शहर के लड़के को मुंबई ले आई थी.. जेब में गिनती के कुछ रूपए और अपनी किस्मत मुट्ठी में लेकर आज एक 23 साल का लड़का मुंबई पहुँच चुका था.. नाम था उसका ‘विजय’
हाँ दोस्तो, मैं विजय.. आज मेरा दिल बड़े जोर से धड़क रहा था.. घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था।
आँखें रुआंसी हुई जा रही थीं।
अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की आदत थी।
आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं.. क्या करूँगा.. इतने बड़े शहर में..? कैसी होगी मेरी माँ..? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को एफआईआर भी करवा ही दिया होगा।
मैं तीन महीने पहले यूपी के अलीगढ़ शहर में चार कमरों के मकान में रहता था.. मेरा एक खुशहाल मध्यम वर्गीय परिवार था।
मम्मी.. पापा.. मैं और मेरी एक बहन.. कितने खुश थे हम सब..
जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को मज़े से जीना.. वो पापा का मम्मी को चिढ़ाते हुए ‘जुम्मा.. चुम्मा दे दे..’ वाले गाने पर डांस करना.. बहन के ब्वॉय-फ्रेंड को धमकी देना और खुद पड़ोस में आई नई-नई लड़की को देखने के लिए गर्मियों की धूप में उसका इंतज़ार करना। 
कितनी अच्छी बीत रही थी मेरी जिंदगी.. पर कहते हैं न, ‘जिंदगी में अगर खूबसूरत सुबह होती है.. तो वहीं काली अँधेरी रात भी होती है।’
जिसने इस रात में हौसला बनाए रखा उसकी नईया पार और जिसने हौसला खो दिया.. वो इन्हीं अँधेरी राहों में खो सा जाता है। 
आज 17 फ़रवरी की सुबह.. मेरा जन्म दिन था.. मम्मी की आवाज़ से मेरी आँखें खुलीं.. मेरे सामने घर के सभी सदस्य थे।
‘हैप्पी बर्थडे टू यू…’
इस आवाज़ के साथ सबने मेरे गाल खींचने शुरू कर दिए। अपने बर्थडे की यही बात मुझे पसंद नहीं आती थी। आखिर में मम्मी ने नहा कर मंदिर जाने का निर्देश दिया और फिर सब बाहर हॉल में चले गए।
मैंने एक लम्बी सी जम्हाई ली.. और अपने सेल फ़ोन को चैक करने लगा। 
डॉली (मेरी पडोसी और मेरी गर्ल-फ्रेंड) का व्हाट्स ऐप पर मैसेज था- ‘हैप्पी बर्थडे माय लव.. मंदिर जाओ तो मैसेज कर देना… मिस यू सो मच!’
ऐसा नहीं है कि मुझे दूसरों ने शुभ कामनाएँ नहीं भेजी थीं.. पर कसम से इस एक मैसेज ने मेरा दिन बना दिया।
मैंने डॉली को जवाब भेज दिया, ‘अभी एक घंटे में मंदिर के लिए निकलूंगा’ और मैं फ्रेश होने चला गया। 
ये मेरा 23 वाँ जन्म-दिन था.. छह फीट की लम्बाई.. हल्का सांवला पर साफ़ रंग.. हल्की भूरी आँखें और जिम में बनाई हुई बॉडी..। 
जब मैं अपने फेवरेट गहरे काले रंग के कपड़े पहन कर आईने के सामने खड़ा हुआ.. तभी डॉली मेरे कमरे में दाखिल हुई, ‘ ओह जनाब.. कहाँ आग लगाने का इरादा है..?’ 
मैंने डॉली के फ्रॉक सूट में ऊँगली फंसा कर उसे अपनी ओर खींचा और बड़े प्यार से उसके कान में कहा- जान हम अपने अन्दर प्यार का समंदर समेटे हैं.. हमने आग लगाना नहीं.. बुझाना सीखा है।
तभी मम्मी की आवाज़ आई- कौन है बेटा..?
मैंने जवाब दिया- डॉली आई है माँ.. वो बर्तन लौटाने और मुफ्त में मिठाई खाने। 
मेरा इतना कहना ही था कि तभी पास पड़े मेरे बिस्तर के तकियों की बरसात मुझ पर शुरू हो गई।
खैर.. मैं घर में था.. सो बाहर भाग कर बच गया। 
मम्मी- क्या हुआ..? फ्रिज से मिठाई लाओ और खिलाओ डॉली को..
मैंने कहा- अरे माँ अभी पूजा तो कर लूँ, फिर भूखों को खिलाऊँगा.. नहीं तो पुण्य कैसे मिलेगा। 
डॉली की गुस्से वाली आँखों ने मुझे एहसास करा दिया कि बेटा.. अब चुप हो जा.. वर्ना ये जन्मदिन को मरण दिन बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा।
मैं घर से निकला और मंदिर में पूजा करके अपने सारे करीबियों को मिठाइयाँ बांटी और सबसे आखिर में डॉली के घर पहुँचा।
दोपहर के 12 बज रहे थे, हमेशा की तरह डॉली के पापा ऑफिस जा चुके थे और उसकी मम्मी सारे काम निबटा कर सीरियल देख रही थीं। 
घर का दरवाजा डॉली ने ही खोला.. मैं एक शरीफ बच्चे की तरह डॉली पर ध्यान न देते हुए सीधा आंटी की ओर मिठाईयों का डब्बा लेकर चला गया।
मैं- आंटी जी ये मिठाई.. आज मेरा जन्मदिन है।
आंटी- ओह.. वैरी गुड बेटा जी.. हैप्पी बर्थ-डे..
मैं- आंटी आज ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने वाला है मेरा.. सो मैं कंप्यूटर पर देख लेता हूँ। 
आंटी- ठीक है बेटा.. डॉली.. जाओ ज़रा कंप्यूटर ऑन कर देना। 
आंटी फिर से अपने सीरियल देखने लग गईं और मैं और डॉली उसके कमरे की ओर बढ़ चले। 
डॉली ने कंप्यूटर ऑन किया और मुझे कुर्सी पर बैठने को बोली। 
मैंने डॉली के हाथ को पकड़ा और एक झटके से उसे अपनी ओर खींच लिया। डॉली अब मेरी बांहों में थी। 
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