RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“भैया मेरे प्यार को समझते हैं, वो मुझे कभी किसी बात के लिए मज़बूर नहीं करेंगे”
“देख साधना, मैं तो कल चली जाउन्गि, कल तेरे जीजा जी मुझे लेने आ रहे हैं, कल से मैं तुम्हे मज़बूर नही करूँगी, हाँ पर इतना ज़रूर कहूँगी की जींदगी आगे बढ़ने का नाम है ना की पीछे चलने का, बाकी अब तुम जवान हो गयी हो, अपना भला बुरा समझ सकती हो” ---- सरिता ने कहा
बाते करते करते वो कब मदन की खटिया के पास पहुँच गये उन्हे पता ही नही चला
“अरे भैया आज कैसे उठ गये, बड़ी अजीब बात है ?” ---- साधना ने हैरानी में कहा
“तुमने क्या मदन को कुंभकारण समझ रखा है”
“वो तो ठीक है पर भैया है कहाँ”
“अरे होगा यहीं कहीं”
“क्या हुवा सरिता” ---- गुलाब चाँद ने पूछा
“कुछ नही पिता जी, मदन को ढूंड रहे हैं, आज वो बड़ी जल्दी उठ गया” --- सरिता ने जवाब दिया
“बड़ी अजीब बात है, उशे तो रोज साधना बड़ी मुस्किल से उठाती है, आज अपने आप कैसे उठ गया वो, चलो अछा ही है, जल्दी उतना सेहत के लिए अछा होता है” --- गुलाब चंद ने कहा
“पर पिता जी भैया है कहाँ ?” – साधना ने पूछा
“अरे होगा यहीं कहीं, चलो ढूंड-ते हैं” --- सरिता ने जवाब दिया
तीनो बाप बेटी मदन को ढूंड-ने निकल पड़ते हैं
“दीदी एक बात अजीब नही है ?” – साधना ने पूछा
“क्या हुवा अब ?”
“भैया के बिस्तर को देख कर तो ऐसा लग रहा था कि उस पर कोई सोया ही ना हो”
“अरे मदन ने उठ कर बिस्तर ठीक कर दिया होगा, तू भी बस बेकार की बाते सोचती रहती है” --- सरिता ने जवाब दिया
पर सरिता ये बात नही जानती थी कि साधना बेकार की नही बड़ी काम की बात कर रही थी, जिस पर ध्यान देने की बहुत ज़रूरत थी.
“दीदी ये देखो !!”
“अरे ये तो खून जैसा लग रहा है, इतना लहू यहा किसका बह गया” ---- सरिता ने हैरानी में कहा
“दीदी मुझे तो कुछ अजीब लग रहा है”
“अरे डर मत मदन ने ज़रूर किसी जानवर को लाठी मार कर यहा से भगाया होगा, ये किसी जानवर का खून लगता है”
तभी उन्हे सामने से उनके पिता जी आते हुवे दीखाई देते हैं
“क्या हुवा, दीखाई दिया कहीं मदन ?” गुलाब चंद ने पूछा
“नही पिता जी, हमने यहा चारो तरफ देख लिया है, पर भैया यहा कहीं नही हैं, और ये देखिए, यहा इतना सारा खून बीखरा पड़ा है, मुझे तो डर लग रहा है” ---- साधना ने हड़बड़ा कर कहा
डरने वाली बात ही थी, गुलाब चंद भी पूरा खेत छान आया था, पर मदन का कहीं आता पता नही था, उसे भी इतना खून देख कर घबराहट हो रही थी.
इधर पिछली रात को वर्षा के घर का दृश्या
“हमें दर्द होता है…….आप धीरे से नही कर सकते क्या”
“चुप कर साली दर्द होता है…… अभी नोच कर कच्चा चबा जाउन्गा” --- वीर ने रेणुका के उभारो को बुरी तरह मसल्ते हुवे कहा
“आप हमसे कौन से जनम का बदला ले रहे हैं” --- रेणुका ने पूछा
“लगता है आज फिर तुम्हारा दीमाग चल गया है, कुत्ते की दूम कभी सीधी नही होती”
“हमसे इतनी नफ़रत है तो आप हमें मार क्यों नही देते”
“चुप कर साली, वरना सच में मार देंगे”
ये कह कर वीर ने रेणुका के उभारो पर अपने दाँत गढ़ा दिए
“आहह” --- रेणुका कराह कर रह गयी
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