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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--2
गतांक से आगे........................
किशोर मदन को पूरी बात सुनाता है, तभी उन्हे फिर से ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है
“देखा मदन ये कोई ओर है हम नही, हम भला क्यों इतनी बुरी तरह चीखेंगे” – किशोर ने मदन से कहा
“पर तुम इतनी रात को यहा क्या कर रहे हो, ये तो अछा है की मैं यहा हूँ, पिता जी होते तो तुरंत तुम्हे घसीट कर रूपा के बापू के पास ले जाते, और रूपा तुम, तुम्हे क्या यही मिला था, एक नंबर का बदमास और लफंगा है ये”
“मैं किशोर से प्यार करती हूँ मदन, हम शादी करने वाले हैं, किशोर जल्दी ही बापू से मिल कर शादी की बात करेगा” – रूपा ने कहा
“पर तुम्हारे बापू को किशोर एक आँख नही भाता वो इस शादी के लिए कभी राज़ी नहीं होंगे” ---- मदन ने कहा
“बस मदन… बहुत हो गया.. तुम अपने काम से काम रखो… ठीक है, हमारे साथ जो होगा देखा जाएगा, चलो रूपा…” --- किशोर ने कहा
“हाँ-हाँ जाओ यहा से, मैने तुम्हे यहा नही बुलाया था, आगे से यहा नज़र भी मत आना वरना..” --- मदन ने कहा
“वरना क्या बे, क्या कर लेगा तू मेरा”
“मदन………………” --- पेड़ के पीछे से वर्षा चील्लाति है
“ये कौन है” --- किशोर ने हैरानी मैं पूछा
मदन तुरंत भाग कर पेड़ के पीछे जाता है. वो देखता है कि वर्षा डरी सहमी खड़ी है और थर थर काँप रही है
“क्या हुवा वर्षा, डरो मत मैं यहीं तो हूँ”
“वो वो अभी अभी सामने के खेत में कोई घुस्सा है”
“क्या कह रही हो, मुझे तो कुछ नही दीखा”
“मेरा यकीन करो मैने अपनी आँखो से देखा है मदन”
तभी किशोर भी पेड़ के पीछे आ जाता है, उसके पीछे-पीछे रूपा भी आ जाती है.
“ओह हो.. भाई जान हमसे तो बड़ी बड़ी बाते कर रहे थे और खुद यहा ठाकुर की चिड़िया को फँसा रखा है, लगता है तुम्हे अपनी जान प्यारी नही है”
“मूह संभाल कर बात करो किशोर हम एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं”
“अछा तुम्हारा प्यार तो है प्यार और मेरा प्यार बेकार” --- किशोर ने हंसते हुवे कहा
“किशोर रहने दो क्यों उनके प्यार का अपमान कर रहे हो” --- रूपा ने किशोर से कहा
“क्या तुम भूल गयी अभी ये हमें क्या कह रहा था ?”
“हम उसके खेत में हैं किशोर, हम भी तो ग़लत हैं” – रूपा ने कहा
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
तभी उन्हे अपने सामने की फसलों में तेज हलचल सुनाई देती है जिसके बाद एक भयानक चीख फ़िज़ा में गूँज़ उठती है
“मदन ये सब क्या है, मुझे घर छ्चोड़ दो, मुझे बहुत डर लग रहा है” – वर्षा ने कहा
“डरने की कोई बात नही है, जब तक मैं जींदा हूँ तुम्हे कुछ नही होगा” --- मदन ने वर्षा को गले लगा कर कहा
“और अगर तुम नही रहे तो हहहे” --- किशोर ने हंसते हुवे कहा
“किशोर पागल हो गये हो क्या” ---- रूपा ने किशोर को डाँट कर कहा
“किशोर रूपा को लेकर यहा से जल्दी निकल जाओ, मुझे लगता है आज यहा कुछ गड़बड़ है, ये सब बाते हम बाद में करेंगे” --- मदन ने कहा
“प..प…पर लगता है…. अब यहा से निकलना मुस्किल है” ---- किशोर ने कांपति आवाज़ में कहा
“क्या बकवास कर रहे हो… हद होती है किसी बात की”
“अपने पीछे देखो मदन मैं बकवास नही कर रहा”
“मदन पीछे मूड कर देखता है, उसे कुछ ऐसा दीखाई देता है जिसे देख कर उसकी रूह काँप उठती है”
“वर्षा पीछे मत देखना”
“क..क..क क्या है मदन”
“हे भगवान ये क्या बला है” --- रूपा किशोर से लिपट कर कहती है
“ये सब सोचने का वक्त नही है रूपा भागो यहा से जितनी तेज हो सके भागो…. मदन सोच क्या रहे हो आओ निकलो यहा से”
ये कह कर किशोर और रूपा वाहा से भाग लेते हैं
“वर्षा मेरा हाथ पाकड़ो और भागो यहा से” ----- मदन ने वर्षा से कहा और उसे खींच कर किशोर और रूपा के पीछे-पीछे भगा ले चला
“ओह.. हो… ये कौन बदतमीज़ है”
“ये मैं हूँ”
“तू… रुक तुझे अभी मज़ा चखाता हूँ….”
“कब से आवाज़ लगा रही हूँ, उठ ही नही रहे थे, इसलिए मैने पानी डाल दिया”
“भागती कहा है, रुक….. इस खेत के कोने-कोने से वाकिफ़ हूँ मैं देखता हूँ कहा छुपोगी जाकर”
“अछा…देखते हैं”
वो जाकर घनी फसलों में चुप जाती है
मदन चुपचाप दबे पाँव पीछे से आकर उसे दबोच लेता है
“अब पता चलेगा तुझे…. आज तुझे तालाब में ना डुबोया तो मेरा नाम भी मदन नही”
“अरे, साधना !! बेटी तुम कहा हो ?”
“मैं यहा हूँ पिता जी, देखो ना भैया मुझे तालाब में डुबोने जा रहे हैं”
“तुम दोनो हर दम बस लड़ाई झगड़ा किया करो, यहा खेत में काम कौन करेगा ?”
“पिता जी आज फिर इसने मेरे उपर पानी डाल दिया, ये कब सुधरेगी” --- मदन ने साधना का कान पकड़ कर उसे फसलों से बाहर लाते हुवे कहा .
“छ्चोड़ दो उसे मदन और चलो आज बहुत काम करना है, धूप तेज हो जाएगी तो काम करना मुस्किल होगा”
“जी पिता जी पर इसे समझाओ वरना मैं इसे जान से मार दूँगा” --- मदन ने थोडा गुस्से में कहा
“मेरे प्यारे भैया ऐसा मत कहो वरना तुम्हे रखी कौन बाँधेगा ?”
“अछा ठीक है, मैं खुद मर जाता हूँ”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“नही भैया ऐसा क्यों कहते हो, मैं आगे से ऐसा नही करूँगी” --- साधना ने मदन के गले लग कर कहा
“अजीब प्यार है तुम दोनो का, सारा दिन लड़ते झगड़ते रहते हो पर एक दूसरे के बिना तुम्हारा मन भी नही लगता”
“पिता जी मैं इसे इतना प्यार करता हूँ तभी तो ये मुझे इतना परेशान करती है”
ये सब बीते कल की घटना है.
साधना कोई गीत गुन-गुनाति हुई हँसती मुस्कुराती हुई अपनी दीदी के साथ आगे बढ़ रही है, और ये सब सोच रही है.
“अरे क्या सोच रही है साधना”
“कुछ नही दीदी बस यू ही कल की बात याद आ गयी थी”
“तूने आज कोई शरारत की ना तो मदन बहुत मारेगा तुझे” --- सरिता ने कहा
साधना ने सरिता की बात सुन कर मूह लटका लिया.
चिड़ियो की आवाज़ चारो तरफ गूँज रही है. सूरज की पहली किरण खेतो पर पड़ रही है, ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति ने चारो तरफ सोना बिखेर दिया हो. साधना और सरिता बाते करते हुवे खेत की तरफ बढ़ रहे हैं. उनके पीछे पीछे उनके पिता जी, गुलाब चंद भी आ रहे हैं
“ये चिड़ियो की आवाज़ सुबह सुबह कितनी प्यारी लगती है हैं ना दीदी”
“हाँ बहुत प्यारी लगती है, रोज यही बात कहती हो तुम, कुछ और नही है क्या कहने को सुबह सुबह”
“पर देखो ना ये चिड़ियो की आवाज़ ही है जिसके कारण हम रोज वक्त से उठ जाते हैं वरना हमें पता ही ना चले वक्त का” --- साधना ने कहा
“भगवान को तुझे चिड़िया ही बना-ना चाहिए था, चिड़ियों को दाना डालती है, पानी देती है, हर रोज उनकी तारीफ़ करती है, पता नही क्या है इन चिड़ियों में, हम से ज़्यादा तू इन चिड़ियों से प्यार करती है” ---- सरिता ने कहा
साधना, सरिता की बात सुन कर बहुत उदास हो जाती है
“अरे क्या हुवा ये चेहरा क्यों लटका लिया, मैने प्रेम को तो कुछ नही कहा ?”
साधना की आँखो में आँसू उतर आते हैं.
“दीदी चिड़ियों को प्यार दे के मैं खुद को प्रेम के नज़दीक महसूस कर पाती हूँ, वरना अब बचा ही क्या है”
“हाँ हाँ जानती हूँ, यहा खेत में भी तुम प्रेम के लिए ही आती हो, आखरी बार यहीं देखा था ना तुमने उसे” --- सरिता ने कहा
“सब कुछ जान कर भी ऐसी बाते करती हो दीदी, मुझे दुख दे कर तुम्हे क्या मिल जाता है”
सरिता साधना को रोक कर गले लगा लेती है और कहती है, “ अरे पगली, मैं क्या तेरी दुश्मन हूँ, जाने वाले लौट कर नही आते, कब तक प्रेम की यादों को अपने सर पर धोती रहोगी, भूल जाओ उसे अब”
“दीदी कुछ भी कहो पर मुझे मेरे प्रेम की यादों से जुदा मत करो, मैं जी नही पाउन्गि, यहा खेतो में भी मैं अक्सर इसलिए आती हूँ क्योंकि आखरी बार प्रेम को यहीं देखा था, लगता है अभी वो कहीं से आएगा और…..”
ये कह कर साधना फूट-फूट कर रोने लगती है
“बस-बस साधना चुप हो जाओ, मेरा मकसद तुम्हे दुख देना नही है पगली, मैं तो बस ये कह रही थी कि जींदगी किसी के लिए नही रुकती. कब तक प्रेम की यादों में डूबी रहोगी, कल को शादी होगी तो भी तो तुम्हे उसे भुलाना ही पड़ेगा” --- सरिता ने साधना को समझाते हुवे कहा
“मैं शादी नही करूँगी दीदी, मैं प्रेम के शिवा किसी से शादी नही कर सकती”
“कहा है प्रेम ?, कब आएगा प्रेम ?, पता नही वो जींदा है भी या नही, क्यों उसके लिए इतनी पागल बन रही हो, अब मैं ये पागल-पन और बर्दास्त नही कर सकती”
“फिर मुझे जहर दे दो दीदी, पर मैं ये पागल-पन नही छ्चोड़ सकती. और हां प्रेम इस दुनिया मैं हो या ना हो पर वो मेरे दिल में हमेशा जींदा रहेगा” --- साधना ने भावुक हो कर कहा
“तू बस मदन की बात सुनती है, हम तो तेरे कोई हैं ही नहीं, अब वो ही तुझे समझाएगा”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“भैया मेरे प्यार को समझते हैं, वो मुझे कभी किसी बात के लिए मज़बूर नहीं करेंगे”
“देख साधना, मैं तो कल चली जाउन्गि, कल तेरे जीजा जी मुझे लेने आ रहे हैं, कल से मैं तुम्हे मज़बूर नही करूँगी, हाँ पर इतना ज़रूर कहूँगी की जींदगी आगे बढ़ने का नाम है ना की पीछे चलने का, बाकी अब तुम जवान हो गयी हो, अपना भला बुरा समझ सकती हो” ---- सरिता ने कहा
बाते करते करते वो कब मदन की खटिया के पास पहुँच गये उन्हे पता ही नही चला
“अरे भैया आज कैसे उठ गये, बड़ी अजीब बात है ?” ---- साधना ने हैरानी में कहा
“तुमने क्या मदन को कुंभकारण समझ रखा है”
“वो तो ठीक है पर भैया है कहाँ”
“अरे होगा यहीं कहीं”
“क्या हुवा सरिता” ---- गुलाब चाँद ने पूछा
“कुछ नही पिता जी, मदन को ढूंड रहे हैं, आज वो बड़ी जल्दी उठ गया” --- सरिता ने जवाब दिया
“बड़ी अजीब बात है, उशे तो रोज साधना बड़ी मुस्किल से उठाती है, आज अपने आप कैसे उठ गया वो, चलो अछा ही है, जल्दी उतना सेहत के लिए अछा होता है” --- गुलाब चंद ने कहा
“पर पिता जी भैया है कहाँ ?” – साधना ने पूछा
“अरे होगा यहीं कहीं, चलो ढूंड-ते हैं” --- सरिता ने जवाब दिया
तीनो बाप बेटी मदन को ढूंड-ने निकल पड़ते हैं
“दीदी एक बात अजीब नही है ?” – साधना ने पूछा
“क्या हुवा अब ?”
“भैया के बिस्तर को देख कर तो ऐसा लग रहा था कि उस पर कोई सोया ही ना हो”
“अरे मदन ने उठ कर बिस्तर ठीक कर दिया होगा, तू भी बस बेकार की बाते सोचती रहती है” --- सरिता ने जवाब दिया
पर सरिता ये बात नही जानती थी कि साधना बेकार की नही बड़ी काम की बात कर रही थी, जिस पर ध्यान देने की बहुत ज़रूरत थी.
“दीदी ये देखो !!”
“अरे ये तो खून जैसा लग रहा है, इतना लहू यहा किसका बह गया” ---- सरिता ने हैरानी में कहा
“दीदी मुझे तो कुछ अजीब लग रहा है”
“अरे डर मत मदन ने ज़रूर किसी जानवर को लाठी मार कर यहा से भगाया होगा, ये किसी जानवर का खून लगता है”
तभी उन्हे सामने से उनके पिता जी आते हुवे दीखाई देते हैं
“क्या हुवा, दीखाई दिया कहीं मदन ?” गुलाब चंद ने पूछा
“नही पिता जी, हमने यहा चारो तरफ देख लिया है, पर भैया यहा कहीं नही हैं, और ये देखिए, यहा इतना सारा खून बीखरा पड़ा है, मुझे तो डर लग रहा है” ---- साधना ने हड़बड़ा कर कहा
डरने वाली बात ही थी, गुलाब चंद भी पूरा खेत छान आया था, पर मदन का कहीं आता पता नही था, उसे भी इतना खून देख कर घबराहट हो रही थी.
इधर पिछली रात को वर्षा के घर का दृश्या
“हमें दर्द होता है…….आप धीरे से नही कर सकते क्या”
“चुप कर साली दर्द होता है…… अभी नोच कर कच्चा चबा जाउन्गा” --- वीर ने रेणुका के उभारो को बुरी तरह मसल्ते हुवे कहा
“आप हमसे कौन से जनम का बदला ले रहे हैं” --- रेणुका ने पूछा
“लगता है आज फिर तुम्हारा दीमाग चल गया है, कुत्ते की दूम कभी सीधी नही होती”
“हमसे इतनी नफ़रत है तो आप हमें मार क्यों नही देते”
“चुप कर साली, वरना सच में मार देंगे”
ये कह कर वीर ने रेणुका के उभारो पर अपने दाँत गढ़ा दिए
“आहह” --- रेणुका कराह कर रह गयी
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“चल उल्टी हो जा… आज तेरे पीचवाड़े की बारी है”
“नही ऐसे ही कर लीजिए ना”
“घूमती है कि नही या फिर मारु एक थप्पड़”
रेणुका सुबक्ते हुवे लेते-लेते घूम जाती है
“साली हमेशा बात-बात पर नखरे करती है, तेरे मा-बाप ने क्या तुझे कुछ तमीज़ नही सीखाई”
“मेरे मा-बाप ने आपका क्या बिगाड़ा है जो बात बात पर उन्हे बीच में ले आते हैं, जो कहना है मुझे कहिए”
“साली फिर ज़ुबान लड़ाती है” --- वीर ने रेणुका के बाल खींचते हुवे कहा
“आहह………. आप क्यों मेरे मा-बाप के पीछे पड़े हैं फिर” --- रेणुका ने कराहते हुवे कहा
“तेरे बाप के कारण, यहा की ज़मींदारी हाथ से चली गयी कुतिया…वरना आज मैं जाने कहा होता”
“इसमें उनकी कोई ग़लती नही थी”
“अभी बता-ता हूँ तुझे, ये जाएगे ना अंदर तो पता चलेगा तुझे”
वीर अपने लिंग पर हल्का सा थूक लगा कर रेणुका के गुदा द्वार में समा जाता है
“आअहह……..नही…. धीरे से कीजिए ना, हमें बहुत दर्द हो रहा है”
“आ गयी अकल ठीकाने, मुझ से ज़बान लड़ाती है… हा…. आगे से मेरे साथ बकवास की ना तो तेरी फाड़ कर रख दूँगा ?”
रेणुका सर को तकिये पर रख कर सूबक-सूबक कर रोने लगती है, पर वीर उसकी परवाह किए बिना उसके साथ सहवास जारी रखता है
ये है वीर प्रताप सिंग, वर्षा का बड़ा भाई और रुद्र प्रताप सिंग का बड़ा बेटा. रेणुका से वीर की शादी कोई एक साल पहले ही हुई है, पर उनकी शादी शुदा जींदगी में इस सब के अलावा और कुछ नही है.
वीर अपनी हवश की प्यास भुजा कर सो चुका है पर रेणुका अभी भी करवट लिए सूबक रही है.
अचानक उसे बाहर से कोई चीन्ख सुनाई देती है, जिशे सुन कर वो घबरा जाती है और वीर से लिपट जाती है
वीर हड़बड़ा कर उठ जाता है
“क्या बात है” --- वियर रेणुका को डाँट कर पूछता है
“आप को कुछ सुन रहा है क्या ?”
“क्या है…….. सो जाओ आराम से”
“अरे आपको कुछ सुनाई नही दे रहा क्या ?”
“रेणुका चुपचाप सोती हो या नही, या फिर दूं एक थप्पड़ गाल पे” --- वीर प्रताप ने रेणुका को डाँट कर कहा
रेणुका बिना कुछ कहे करवट ले कर लेट जाती है और अपनी किस्मत को रोने लगती है. वो सोच रही है कि उसकी जींदगी में शायद पति का प्यार है ही नही
रेणुका को कब नींद आ जाती है उसे पता ही नही चलता
पर वो रोजाना की तरह सुबह जल्दी उठ जाती है.
जैसे ही वो अपने कमरे से बाहर निकलती है उसे जीवन प्रताप सिंग मिल जाता हैं
“चाचा जी सुप्रभात” --- रेणुका पाँव छूते हुवे कहती है
“अरे रेणुका बेटी पाँव मत छुवा करो”
“क्या हुवा चाचा जी”
“कुछ नही-कुछ नही, अछा ये बता वीर ने फिर तो कुछ नही कहा”
“जी….. नही” --- रेणुका ने सोचते हुवे कहा. वो और कहती भी क्या
पीछले दिन जीवन ने वीर को रसोई में रेणुका के मूह पर थप्पड़ मारते हुवे देख लिया था. उस वक्त जीवन ने आकर वीर को समझाया था कि बहू पर इस तरह हाथ उठाना अछा नही होता.
“क्या मंदिर जा रही हो बेटी” --- जीवन प्रताप ने पूछा
“जी चाचा जी, वर्षा के साथ मंदिर जाउन्गि, अभी देखती हूँ कि वो उठी है या नही”
“हाँ-हाँ जाओ बेटा…जाओ ”
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रेणुका सीढ़ियाँ चढ़ कर वर्षा के कमरे के बाहर पहुँच जाती है, और उसे आवाज़ लगाती है --- “वर्षा उठ गयी क्या, चलो मंदिर चलते हैं”
पर अंदर से कोई जवाब नही आता
वो अंदर जा कर देखती है तो पाती है कि वर्षा कमरे में नही है
रेणुका मन ही मन सोचती है “अरे वर्षा क्या आज फिर अकेली मंदिर चली गयी, ये मेरा इंतेज़ार क्यों नही करती. इस घर में चाचा जी ही हैं जो मुझ से ठीक से बात करते हैं, वरना हर कोई अपनी दुनिया में गुम है”
वो इस बात से अंजान है कि आख़िर क्यों जीवन चाचा उसके साथ इतने प्यार से बात करता है.
रेणुका अकेली ही मंदिर जाती है. पर मंदिर पहुँच कर वो देखती है कि वर्षा मंदिर में भी नही है
“अरे ये वर्षा कहा है, मंदिर का रास्ता तो एक ही है, वो मंदिर आई थी तो कहा गयी…. हो सकता है वो घर पर ही हो” ---- रेणुका सोचती है और मंदिर में हाथ जोड़ कर वापस घर की तरफ चल देती है.
रेणुका जब घर पहुँचती है तो पूरे घर में, हर तरफ वर्षा को ढूंडती है, पर वो उसे कहीं नही मिलती
तभी उसे सामने से रुद्र प्रताप सिंग आता हुवा दीखाई देता है
“सुप्रभात पिता जी” ---- रेणुका अपने ससुर के पाँव छू कर कहती है
“जीती रहो बहू, वर्षा कहा है ?”
“पिता जी मैं भी उसे ही ढूंड रही हूँ, पर वो जाने कहा है”
“क्या बकवास कर रही हो ?”
रेणुका काँप उठती है
“जाओ बुला कर लाओ उसे, आज उसे देखने लड़के वाले आ रहे हैं”
“जी पिता जी मैं फिर से देखती हूँ, वो यहीं कहीं होगी”
पर रेणुका को वर्षा घर में कहीं नही मिलती
“भैया… सुप्रभात”
“सुप्रभात जीवन… आओ,…. तुमने वर्षा को देखा है क्या” – रुद्र प्रताप ने पूछा
“नही भैया ? क्यों क्या हुवा ?”
“कुछ नही बहू कह रही थी कि वो कहीं नही दीख रही”
“होगी यहीं कहीं भैया, कहा जाएगी”
तभी रेणुका वाहा आती है और अपने ससुर को कहती है, “पिता जी मैने फिर से देख लिया वर्षा घर में नही है”
“अरे तुम तो मंदिर गयी थी ना उसके साथ” – जीवन ने रेणुका से पूछा
“जी चाचा जी, जाना तो वर्षा के साथ ही था पर मैं जब वर्षा के कमरे में गयी थी तो वो वाहा थी ही नही, इश्लीए मैं अकेली ही मंदिर चली गयी”
“क्या मतलब….. तुम कहना क्या चाहती हो ?” रुद्र प्रताप ने गुस्से में कहा
“कुछ नही पिता जी….. मैं तो बस ये कह रही थी कि वर्षा ना जाने सुबह-सुबह कहा चली गयी” --- रेणुका ने दबी आवाज़ में कहा
“मंदिर के अलावा वो कहा जा सकती है, वो वहीं होगी” --- रुद्र प्रताप ने कहा
“जी… पर मुझे वो मंदिर में भी नही मिली” --- रेणुका ने कहा
“ठीक है-ठीक है जाओ अपना काम करो” --- रुद्र प्रताप ने कहा
“जी पिता जी” --- रेणुका ने कहा और चुपचाप वाहा से चली गयी.
“बहुत ज़ुबान लड़ाती है ये लड़की” --- रुद्र गुस्से में बोला
“अभी नादान है भैया धीरे धीरे समझ जाएगी” --- जीवन ने कहा
इधर खेत में साधना, सरिता और गुलाब चंद ज़मीन पर बीखरे खून को देख कर डरे, सहमे खड़े हैं
अचानक साधना को सामने मक्की के खेतो में कुछ दीखता है
“वो..वो कौन है वाहा” --- साधना हड़बड़ा कर कहती है
“कहा पर साधना” --- सरिता ने पूछा
“अभी-अभी वाहा सामने की फसलों से कोई झाँक रहा था”
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गुलाब चंद फॉरन उस तरफ दौड़ कर जाता है और पूरा खेत फिर से छान मारता है
“वाहा तो कोई भी नही था” --- गुलाब चाँद ने हान्फ्ते हुवे कहा
“तुझे कुछ वेहम हुवा होगा, साधना” – सरिता ने कहा
“नही दीदी मैने बहुत आछे से किसी को झाँकते देखा है, पर ये इतनी जल्दी हुवा कि मैं देख नही पाई कि वो कौन था”
“अरे गुलाब चंद किशोर को कहीं देखा है क्या”
गुलाब चंद ने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि किशोर का बापू सोहन लाल उसे दूर से आवाज़ लगा कर पूछ रहा था
जब सोहन लाल नज़दीक आ गया तो गुलाब चंद ने पूछा
“क्या हुवा सोहन”
“किशोर कल रात से गायब है, हर तरफ ढूंड लिया, पर उसका कोई आता पता नही है, अभी अभी रूपा का भाई घर आया था, रूपा के बारे में पूछ रहा था. पता नही क्या चक्कर है. रूपा भी गायब है और किशोर भी, रूपा का भाई मरने मारने की धमकी दे कर गया है, अब तुम ही बताओ क्या करूँ……. इस नलायक ने तो हमें परेसान कर रखा है”
“चिंता मत करो सोहन, किशोर मिल जाएगा, कहाँ जाएगा, होगा यहीं कहीं” – गुलाब चंद ने कहा
“वो तो ठीक है…. चिंता की बात ये है कि रूपा भी गायब है, अब तुम्हे तो पता ही है, रूपा का भाई ठाकुर का ख़ास आदमी है, रूपा ना मिली तो वो हमें बर्बाद कर देगा”
“डरो मत सोहन, मैं खुद यहा परेसान हूँ, मदन ना जाने कहा चला गया ?”
“क्या मतलब ? क्या मदन भी गायब है, कहीं रूपा उसके साथ तो….”
“ज़ुबान संभाल कर बात करो सोहन, भला मदन का रूपा से क्या लेना देना”
“माफ़ करो भाई, मैं बहुत परेसान हूँ बस यू ही मूह से निकल गया. मैं तो यहा किशोर को ढूँडने आया था. हर तरफ देख लिया, सोचा तुम्हारे खेतो में भी देख लूँ…..अछा मैं चलता हूँ”
साधना और सरिता चुपचाप खड़े-खड़े उन दौनो की बाते सुन रहे थे.
“साधना क्या रूपा अभी भी घर आती जाती थी” – सरिता ने पूछा
“नही दीदी, जब से भैया ने उसे बुरी तरह डांटा था तब से उसने घर आना बंद कर दिया था”
ये कह कर साधना अचानक फसलों की तरफ भागती है
“अरे क्या हुवा, कहा जा रही है ?”
“यहा कोई है दीदी मैने फिर से किसी को देखा है”
“ये कह कर साधना मक्की की फसलों में घुस्स जाती है”
“अरे रूको मैं भी आ रहा हूँ” --- गुलाब चंद ने साधना के पीछे-पीछे भागते हुवे कहा
“पिता जी मैं भी आउ क्या” – सरिता ने पूछा
“नही तुम यहीं रूको हम देखते है क्या बात है”
“हे कौन हो तुम यहा क्या कर रहे हो, सामने क्यों नही आते, ये छुप-छुप कर क्या देखते हो, हिम्मत है तो सामने आओ, मैं तुम्हारा वो हाल करूँगी कि नानी याद आ जाएगी. तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे खेतो में घुसने की” ----- साधना ने खेत के बीच में चील्ला कर कहा
साधना और गुलाब चंद बार-बार हर तरफ देखते है, पर उन्हे फिर से कोई नही मिलता.
साधना हाँफती हुई फसलों से बाहर आती है
“क्या हुवा साधना, कौन था वो”
“पता नही दीदी हमने हर तरफ देख लिया पर दीखा कोई नही”
“ऐसा कैसे हो सकता है, तुझे ज़रूर कुछ वेहम हो रहा है”
“हो सकता है ये वेहम हो…. पर ये दूसरी बार मैने किसी को देखा है, …. मेरी आँखे 2 बार धोका कैसे खा सकती हैं, यहा कुछ तो अजीब हो रहा है आज ?”
ये कह कर साधना रोने लगती है
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“अरे क्या हुवा पगली…. रो क्यों रही है, कुछ नही है अभी मदन आ जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा”
“बिल्कुल इसी तरह एक दिन मैने और भैया ने मिल कर प्रेम को यहा खेतो में ढूनदा था, पता नहीं क्यों बार बार वो दिन याद आ रहा है”
“अरे पागल हो क्या…. चल थोड़ी देर बैठते हैं, मदन ज़रूर कहीं गया होगा, आ जाएगा थोड़ी देर में”
“पर ये कौन है खेत में दीदी जो दीखाई भी देता है…. पर अगले ही पल गायब हो जाता है”
“चल छ्चोड़ ये बाते, चिंता मत कर. पिता जी कहा हैं ?”
“वो अभी भी फसलों में ही हैं”
तभी गुलाब चंद मक्की की फसलों से निकल कर साधना और सरिता के पास आता है और कहता है,
“पता नहीं क्या हो रहा है यहा ?, साधना बेटी क्या तुमने सच में किसी को देखा है या फिर ये नज़रो का धोका है”
“पता नही पिता जी ठीक से मैं भी कुछ नही कह सकती…. पर मुझे एक साया सा फसलों से झाँकता हुवा दीखा था…. हो सकता है ये मेरा वेहम हो… पर पता नही क्यों ऐसा लगता है कि यहा खेत में आज कुछ गड़बड़ है….”
क्रमशः................................
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09-08-2018, 01:37 PM,
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--3
गतांक से आगे........................
मदन, किशोर और रूपा के गायब होने की खबर गाँव में आग की तरह फैल जाती है. पर किसी को ये नही पता कि ठाकुर रुद्र प्रताप की लड़की वर्षा भी गायब है. वर्षा के गायब होने की खबर सिर्फ़ ठाकुर की हवेली तक सीमित है. हवेली में सभी परेशान हैं, और परेशान हो भी क्यों ना ?, वर्षा को देखने लड़के वाले आने वाले हैं और वर्षा का कुछ आता पता नही है.
5थ जन्वरी 1901
10:00 आम
“अरे आप उठ गये” --- रेणुका ने वीर के पाँव छूते हुवे कहा
“हाँ उठ गया क्यों ? और ये रोज-रोज नाटक मत किया कर पाँव छूने का”
“ये नाटक नही है”
“चुप कर मैं तुझ से सुबह-सुबह बहस नही करना चाहता”
“पिता जी वर्षा को लेकर परेशान हैं”
“क्यों क्या हुवा ?”
“वर्षा को देखने लड़के वाले आने वाले हैं पर….”
“पर क्या” – वीर ने गुस्से में पूछा
“पर वो घर में नही है”
“क्या बकवास कर रही हो, होगी यहीं कहीं, चल तू अपना काम कर” --- वीर ने कहा और कह कर अपने पिता जी के कमरे की तरफ चल दिया
ऱुद्र प्रताप अपने कमरे में कुर्सी पर बैठा है, उसके सामने सर झुकाए उसका ख़ास नौकर भीमा खड़ा है. जैसे ही वीर कमरे में घुसता है वो देखता है कि उसके पिता जी भीमा से कुछ बात कर रहे हैं
“भीमा जाओ मंदिर के चारो तरफ देखो, वर्षा वहीं आस पास होगी”
“जी मालिक” --- भीमा ने सर झुका कर कहा
“क्या हुवा पिता जी” --- वीर ने पूछा
“पता नही ये वर्षा सुबह-सुबह कहा चली गयी” --- रुद्र प्रताप ने कहा
“अछा….तो ये रेणुका ठीक ही कह रही थी” --- वीर ने कहा
“क्या ठीक कह रही थी, उसे डाँट कर रखा करो, बहुत ज़ुबान लड़ाती है वो”
“मालिक मैं चलूं ?” --- भीमा ने पूछा
“हाँ-हाँ जाओ, मेरा मूह क्या देख रहे हो, जल्दी वाहा देख कर आओ, और हाँ पुजारी से भी पूछ लेना की उसने वर्षा को देखा है कि नही”
“जी मालिक”
पूरा दिन बीत जाता है. मंदिर के साथ-साथ वर्षा को ढूँडने के लिए ठाकुर के आदमी पूरा गाँव छान मारते हैं, पर उन्हे वर्षा का कुछ पता नही चलता. लड़के वाले आ कर चले जाते हैं. चिन्ताओ के बादल घने होने लगते हैं.
“ऐसा कैसे हो गया, कहा जा सकती है वर्षा बिना बताए ?” ---- वीर ने कहा
रुद्र प्रताप चेहरे पर चिन्ताओ के भाव लिए चुपचाप बैठा है
तभी वाहा रूपा का बड़ा भाई बलवंत आता है, वो सर झुका कर कहता है, “ठाकुर साहिब अगर बुरा ना माने तो एक बात कहूँ”
“हाँ-हाँ कहो क्या बात है ?”
“मुझे पता चला है कि गुलाब चंद का लड़का मदन भी गायब है”
“कहना क्या चाहते हो तुम ?” – रुद्र प्रताप ने गुस्से में कहा
“गुस्ताख़ी माफ़ मालिक….. पर कहीं इस सब में मदन का तो हाथ नहीं”
“क्या मतलब साफ़-साफ कहो क्या कहना है?”
“कल मंदिर के बाहर मेरे चाचा ने मदन को वर्षा मेम-साब से बात करते हुवे देखा था”
“वर्षा उसे जानती है, एक बार वो जब खेत में रास्ता भटक गयी थी तो मदन उसे घर तक छ्चोड़ कर गया था” – रुद्र प्रताप ने कहा
“मालिक एक बात और है जो मैं आपको बताना चाहता हूँ”
“हाँ-हाँ बताओ”
“चाचा ने पेड़ के पीछे से उनकी बाते सुनी थी, उनके अनुशार वो रात में खेत में मिलने की बात कर रहे थे”
“क्या बकवास कर रहे हो तुम, हम तुम्हारी ज़ुबान खींच लेंगे”
“गुस्ताख़ी माफ़ मालिक…..पर जो मुझे पता चला था वो आपको बता दिया, आप चाहे तो मेरी जान ले लीजिए लेकिन इस बात पर गौर ज़रूर करें”
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RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
ऱुद्र प्रताप और वीर दौनो के चेहरे गुस्से से लाल हो जाते हैं. दोनो बलवंत की बात सुन कर तिलमिला उठे हैं.
“पिता जी देख लिया सराफ़ात का नतीज़ा आपने, इन गाँव वालो को हमेसा ज़ूते के नीचे रखने की ज़रूरत है. आप सब कुछ मुझ पर छ्चोड़ दीजिए, मैं अभी उस हराम खोर मदन की बहन को नंगी करके यहा घसीट कर लाता हूँ” – वीर प्रताप ने कहा
“वीर शांत रहो, अगर वाकाई में इसमे उस मदन का हाथ है तो हम किसी को नही बक्सेंगे”
वीर दाँत भीच कर रह जाता है
“अपने चाचा को यहा बुला कर लाओ, हम खुद उस से बात करेंगे” --- रुद्र ने बलवंत से कहा
बलवंत अपने चाचा को बुला कर लाता है.
उसका चाचा डरते -डरते ठाकुर के सामने आता है और सर झुका कर चुपचाप खड़ा हो जाता है
“क्या देखा था तुमने कल मंदिर के बाहर, सब सच-सच बताओ” --- रुद्र ने पूछा
“जी मालिक……. मैने वर्षा मेम-साब को मदन से बाते करते देखा था. मैने पेड़ के पीछे खड़े हो कर उनकी बाते भी सुनी थी. मदन, वर्षा मेम-साब को रात में खेत में आने को कह रहा था. बस इतना ही सुना था मैने मालिक… और मुझे कुछ नही पाता”
“अगर ये झूठ हुवा तो हम तुम्हारा वो हाल करेंगे कि तुम सोच भी नही सकते”
“मालिक…. आपसे झूठ बोल कर हम कहा जाएँगे, हम तो आपके गुलाम हैं”
“ठीक है-ठीक है…दफ़ा हो जाओ यहा से”
“जी मालिक”
ये कह कर बलवंत का चाचा वाहा से चला जाता है.
“पिता जी अब सब कुछ मुझ पर छ्चोड़ दीजिए” ---- वीर ने कहा और कह कर कमरे से बाहर चला गया
ऱुद्र प्रताप उसे जाते हुवे देखता रहा, शायद उसकी भी यही इच्छा थी कि मदन के घर को बर्बाद कर दिया जाए, इश्लीए उसने वीर को जाते हुवे नही टोका
“बलवंत, वीर के साथ जाओ और हाँ अपने कुछ ख़ास आदमी साथ ले लो” --- रुद्र प्रताप ने कहा
“जी मालिक”
“क्या तुम्हारी बहन का कुछ पता चला ?”
“वो तो पक्का कहीं किशोर के साथ ही होगी मालिक, वो मिल गया तो मैं उसे जिंदा नही छोड़ूँगा”
“ठीक है…. अब जाओ और वीर का ध्यान रखना”
“आप चिंता मत करो मालिक”
ये कह कर बलवंत वाहा से चला जाता है.
इधर खेत में साधना और उसके पिता जी गुलाब चंद मूह लटकाए बैठे हैं, सुबह से शाम हो चुकी है पर मदन का कहीं आता पता नही. सरिता अपनी मा के पास घर जा चुकी है. वो दोनो इस बात से अंजान हैं कि एक बहुत बड़ा तूफान उनके घर की तरफ बढ़ रहा है, जो कि अगर ना रुका तो उनका सब कुछ निगल जाएगा.
“पिता जी भैया कहा जा सकते हैं ?”
“क्या पता बेटी, अब तो जब वो लोटेगा तो वही बताएगा कि कहा गया था, चल हम घर चलते हैं. मैं खाना खा कर वापस आ जाउन्गा..लगता है आज रात मुझे ही खेत में रुकना पड़ेगा ?”
“तभी वाहा उनके पड़ोसी का लड़का मुन्ना भाग कर आता है”
“दीदी-दीदी तुम्हारे घर पर ठाकुर के लोग हुन्गामा कर रहे हैं”
“कैसा हुंगमा मुन्ना… ये क्या कह रहे हो ?”
“दीदी… तुम घर मत जाना”
“ये सब क्या कह रहे हो तुम ?” साधना ने पूछा
“बेटी मैं जा कर देखता हूँ, तुम यहीं रूको”
“वो….वो ठाकुर का बड़ा बेटा सरिता दीदी के कपड़े उतार कर उन्हे घसीट कर ले जा रहा है, आप घर मत जाना”
“ये सुन कर गुलाब चंद घर की तरफ भागता है”
“पिता जी मैं भी आ रहीं हूँ”
“नही बेटी तुम्हे मेरी कसम… तुम यहीं रूको, मैं देखता हूँ कि क्या बात है” गुलाब चंद रुक कर कहता है और फिर से अपने घर की तरफ दौड़ पड़ता है
“मुन्ना तुम भी जाओ, अंधेरा होने को है”
“दीदी आप को यहा डर नही लगेगा”
“नही लगेगा.. मुन्ना तुम जाओ”
“अगर डर लगे भी ना दीदी… तो भी घर मत आना”
“ये कह कर मुन्ना रोने लगता है, साधना उसकी उन्कहि बात समझ कर उसे गले लगा लेती है और उसकी आँखो में भी आँसू उतर आते हैं”
“जाओ मुन्ना इस से पहले की अंधेरा हो जाए तुम यहा से निकल जाओ”
मुन्ना के जाने के बाद साधना अकेली खेत में बैठी हुई सोचती है कि ‘हे भगवान !! आज ये हमारे साथ क्या हो रहा है ?, दीदी का ख्याल रखना वरना हम जीजा जी को क्या मूह दीखाएँगे
इधर जब गुलाब चंद घर पहुँचता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. उसकी बीवी घर के दरवाजे पर पड़ी मिलती है. कोई भी उसके पास नही है. ठाकुर के दर के कारण कोई भी उसे देखने तक नही आता
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