RE: Chodan Kahani दस लाख का सवाल
“मुझे तो लगता है कि युसूफ न तो अपने कारोबार को ठीक तरह संभल पा रहा है और न अपनी बीवी को,” अब मैंने मुद्दे पर आने का फैसला कर लिया था. “और वो कारोबार में ऐसा मसरूफ भी नहीं है कि अपनी बीवी पर ध्यान न दे पाए.
उसकी जगह मैं होता तो ...” मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
“आपको उनके कारोबार के बारे में क्या मालूम?” वहीदा ने थोड़ी हैरत दिखाते हुए पूछा.
अब मुझे शक हुआ कि युसूफ ने अपनी कारोबारी मुश्किलात और अपने क़र्ज़ के बारे में वहीदा को बताया था या नहीं! मैं तो सोच रहा था कि मुझे उसका खुला निमंत्रण क़र्ज़ के कारण ही मिला था. यह भी मुमकिन था कि वो जानबूझ कर अनजान
बन रही हो. अब मुझे क्या करना चाहिये? मैंने तय किया कि कारण कुछ भी हो, मुझे आज मौका मिला है तो मुझे पीछे नहीं हटना चाहिए. वहीदा ने अपनी बात को आगे बढाया, “और उनकी जगह आप होते तो क्या करते?”
“पहली बात तो यह है कि मैंने अपने कारोबार के लिए जितने कारिंदे रख रखे हैं, उनसे मैं पूरा काम करवाता हूँ. मैं उन्हें जरूरी हिदायतें दे देता हूं और फिर कारोबार संभालने की जिम्मेदारी उनकी होती है. इस तरह से मेरा काफी वक़्त बच जाता
है. वक़्त बचने के कारण ही मैं यहाँ आ पाया हूँ. और हां, अगर युसूफ की जगह मैं होता तो इस बचे हुए वक़्त का इस्तेमाल मैं अपनी बेग़म के हुस्न की इबादत करने में करता.” अपनी बात ख़त्म होते ही मैंने वहीदा को अपनी बांह के घेरे में
लिया और उसे अपनी तरफ खींच लिया.
“एहसान साहब, छोडिये मुझे.” वहीदा ने कहा. उसकी आवाज से अचरज तो झलक रहा था लेकिन गुस्सा या नाराज़गी नहीं. उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की. मुझे लगा कि उसका विरोध सिर्फ दिखाने के लिए है. मैंने उसे
मजबूती से अपने शरीर से सटा लिया. उसके गुदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे रोमांचित कर रहा था. उसके बदन से निकलने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी. वहीदा ने रस्मी तरीके से कहा, “ये क्या कर रहे हैं आप?”
“मैं अपनी बेग़म के हुस्न की इबादत कर रहा हूं,” मैंने चापलूसी से कहा. “तुम मुझ से इबादत करने का हक़ नहीं छीन सकती.”
“लेकिन यह क्या तरीका है इबादत करने का?” वहीदा ने कहा. “और मैं आपकी नहीं, आपके दोस्त की बेग़म हूँ.”
वहीदा के अल्फ़ाज़ जो भी हों, उसकी आवाज में कमजोरी आ गई थी. उसने मेरे से दूर होने की कोई कोशिश नहीं की थी और उसका बदन ढीला पड़ चुका था. मुझे लगा कि उसका विरोध अब नाम मात्र का रह गया है.
“मैं तो तुम्हे दिखा रहा हूं कि मैं तुम्हारा शौहर होता तो क्या करता,” मैंने उसे और पास खींच कर कहा. “इसके लिए मुझे कुछ देर के लिए तुम्हे अपनी बेग़म समझना होगा. और आज मैं अपनी बेग़म की ख़िदमत पैरों से नहीं बल्कि अपने हाथों
से करूंगा.”
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