Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
09-08-2018, 01:52 PM,
#6
RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
मैं आगे बढ़ी और जय के करीब जाकर मैंने जय के गाल पर अपने होंठ रख दिए और उसे एक गहरा चुम्बन किया। मुझे महसूस हुआ की मेरे जय को चुम्बन करने से जय के बदन में भी एक सिहरन सी दौड़ गयी और उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रखा और मुझे अपनी और खिंच कर मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैं पागल सी हो रही थी। यह राज मुझसे क्या करवा रहे थे?
खैर मैंने अपने आपको सम्हाला। तब जय ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा, “डॉली और राज, मैं आप दोनों को अत्यंत ऋणी हूँ। आज आपने मुझे यह एहसास कराया की मुम्बाई में भी मेरी अपनी फॅमिली है।” मेरी और देखते हुए जय ने कहा, “डॉली तुम बड़ी भाग्यशाली हो की राज जैसा पति तुम्हें मिला है।”
तब तक राज और जय पर वाइन चढ़ने का असर साफ़ नजर आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे राज उस शाम की पार्टी को जल्दी में खतम करने के मूड में नहीं थे। 
राज ने जय की और देखा और पूछा की क्या कॉलेज में उनकी कोई गर्ल फ्रेंड भी थी? जय ने कंधे हिला कर कहा, “हाँ! थोड़ा बहूत तो होता ही है।”
तब राज ने पूछा, “जय अभी तो तुम अपनी पत्नी से इतने दूर हो। कभी तुम्हारा मन नहीं करता की कोई स्त्री का साथ मिले?” जब जय मौन रहे तो राज ने कहा, “भाई, मैं तुमसे थोड़ा अलग हूँ। मैं यह मानता हूँ की स्त्री और पुरुष एक दूसरे के साथ होते हैं तो जीवन में एक अद्भुत उत्साह और उमंग होता है और अगर मन मिलता है तो एक दूसरे का साथ निभाने में कोई बुराई नहीं है। मैं मानता हूँ की ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो’ मैं यह बात डॉली को भी कहता हूँ। मैं मौज से जीता हूँ और चाहता हूँ की तुम और डॉली भी मौज से जियो। एक दूसरे के साथ का आनंद लो। छोटी मोटी चिंताओं और मानसिक संकुचितता को दूर रखो।”
राज शायद जय से ज्यादा यह बात मुझे सुना रहे थे ऐसा मुझे लगा। मुझे राज की बातों से ऐसा लगा की वह हम दोनों के बीच की दीवार पूरी तरह से तोड़ना चाहते थे। मैंने जय की और देखा तो पाया की वह फिर से वही लोलुपता भरी निगाहों से मुझे छुप छुप कर देखने लगे थे। अब वही उनका पुराना नटखट अंदाज दिख रहा था। मेरे छोटे टॉप और भड़कीली वेशभूषा के कारण मैं उन्हें कुछ अधिक ही उत्तेजक लग रही थी।
मैं धीरेसे राज के पास गयी और उनके बालों को प्यार से सहलाने लगी तब राज मुझे अपनी बाहों में लेते हुए बोले, “जय, मैं मेरी पत्नी डॉली को बहुत प्यार करता हूँ। मैं उसे थोड़ा सा भी दुखी नहीं देख सकता। पर मुझे आजकल एक बड़ी चिंता रहती है।”
जय ने प्रश्नात्मक दृष्टि से राज की और देखा तो राज ने कहा, “मैं आजकल ज्यादातर पुणे रहता हूँ और काफी काम होने के कारण मुम्बाई ज्यादा आ नहीं पाता। तब डॉली यहां अकेली बहुत परेशान हो जाती है। कई बार उसे डिप्रेशन हो जाता है। वह बुरे सपने देखने लगती है। तुम भी यहां अकेले हो।
डॉली ने मुझे बताया की तुम्हें बाहर खाने में दिक्कत होती है। तो मैं चाहता हूँ की तुम हमारे यहाँ आओ और शाम का खाना रोज हमारे यहां खाओ। मेरे न रहते हुए भी तुम जरूर बिना हिचकिचाहट के आओ। मैं जब रहता हूँ तो हम दोनों गपशप मारेंगे। मुझे बहुत अच्छा लगेगा। देखो मना मत करना। हाँ अगर तुम्हें डॉली का खाना पसंद नहीं है तो और बात है।”
मैंने जय की और देखा। वह बहुत ही लज्जित लग रहे थे। वह थोड़ा हिचकिचाते हुए बोले, “आप जब हो तो अलग बात है, पर आप ना हो तो? मुझे थोड़ा अजीब लगेगा। एकाध दिन खाना एक अलग बात है, पर रोज?”
राज ने जय का हाथ अपने हाथों में थामा और बोले, “देखो, हम तुम्हें अपना समझते हैं। तुम डॉली का दफ्तर में बहुत ध्यान रखते हो। मैं चाहता हूँ की घर में भी तुम डॉली का ध्यान रखो। जहाँ तक रोज खाने की बात है तो चलो तुम एक काम करना, जब मौक़ा मिले तुम सब्जी, राशन बगैर ले आना। अब तो ठीक है?”
जय बेचारा क्या बोलता? उसने मुंडी हिला कर हामी भरदी और उठकर खड़ा हुआ और बोला की वह जाना चाहता है। राज जय को सीढ़ी से उतर कर नीचे तक छोड़ने गए। तब मैंने राज को जय से कहते हुए सुना की, “जय, देखो, हमारे कोई संतान नहीं है। डॉली अकेले में बड़ी परेशान हो जाती है। तुम आ जाओगे तो हमें नयी जिंदगी मिलेगी।” इसी तरह बातें करते हुए दोनों बाहर निकले। राज का आखरी में ऐसी बात कहने का क्या मतलब था वह मैं समझ नहीं पायी।
जय के जाने के बाद राज ने मुझसे कहा, “देखा जानू, आज की शाम कितनी आनंद वाली रही? मुझे सच सच बताना, क्या तुम्हे मज़ा नहीं आया? क्या जय में वह परिवर्तन नहीं आया जो तुम चाहती थी?”

मैंने परे पति राज की और देखा और बिना झिझक बोली, “हाँ राज, मुझे बहोत मजा आया। ख़ास तौर से जय को इतना तनाव मुक्त और स्वच्छंद देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। तुमने वास्तव में ही कुछ जादू कर दिया ऐसा लगता है।”
तब राज ने कहा, “जादू मैंने नहीं, तुमने किया। पहली बात यह की तुमने ऐसे कपडे पहने जिससे जय को ऐसा अंदेशा हुआ की तुम्हें तुम्हारे सेक्सी बदन को दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। अगर वह तुम्हारे खुले हुए बदन को झांकेगा तो तुम बुरा नहीं मानोगी। दूसरी बात। तुमने जय के पास जा कर जो अंगभंगिमा की और उसको अपने कूल्हे दिखाए उससे उसकी प्यासी आँखों को थोड़ा सुकून मिला।
तीसरी बात, जब मैंने तुम्हें जय के पास जाकर जय को गालों पर चुम्बन करने को कहा और तुमने उसे एक गहरा चुम्बन किया तो उसे लगा की अब तुम उससे काफी खुल गयी हो और अब पहले की तरह तुम बुरा नहीं मानोगी। और उसने क्या कहा? उसने कहा की उसको लग रहा था की मुंबई में भी उसकी कोई फॅमिली है। यह एक बहुत बड़ी बात है।”
राज तब थोड़ा रुक गए और उन्होंने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब मैंने कहा, “हाँ, तुम सही कह रहे हो। जय को आज हमारे यहां बहुत अच्छा लगा। 
“राज ने कहा,तुम्हे इतना तनाव मुक्त देख मुझे बहुत अच्छा लगा। एक बात समझो। सब पुरुष एक से नहीं होते। जय दूसरों से अलग है। तुमने जय को चुम्बन किया, जय ने तुम्हें बाहों में जकड़ा, तो कोन सा आस्मां टूट पड़ा? क्या हम सब ने एन्जॉय नहीं किया? मैंने सबसे ज्यादा एन्जॉय किया। याद रखो, ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो” राज की समझ की मैं कायल हो गयी।
राज एकदम उत्तेजित हो गए थे। उनका लण्ड तो फौलाद की तरह अकड़ा हुआ था। तो मैं भी तो काफी गरम हो गयी थी। मेरा ह्रदय धमनी की तरह धड़क रहा था। जय की बाहों में लिपटना और राज के ऐसे उकसाने वाले बयानों से मेरी चूत में से तो पानी का जैसे फव्वारा ही छूट रहा था। राज ने मुझे अपनी बाँहों में लिया और उठाकर मुझे पलंग पर लिटा दिया। उस रात राज ने और मैंने खूब जमके सेक्स किया जैसा पता नहीं हमने इसके पहले कब किया होगा।
ऑफिस में जय अपने फिर वही पुराने अंदाज में आगये थे। सब कर्मचारी जय के परिवर्तन से बड़े खुश थे। मुझे पता था की जय मुझसे करीबियां बनाने के लिए बड़े ही आतुर थे। वहाँ तक तो ठीक था। पर अब मैं डर रही थी की कहीं मैं कोइ ऐसी वैसी परिस्थिति में न फंस जाऊं।
मुझे समझ नहीं आरहा था की कैसे मैं अपनी मर्यादा में भी रह सकूँ और जय को भी बुरा न लगे। इसके लिए मैंने यही सोचा की जय से अपनी दोस्ती तो बढ़ाऊँ पर उससे फिर भी एक अंतर रखूं जिससे उसके मनमें मेरे लिए एक सम्मान हो और वह मेरे बारे में उलटा पुल्टा सोचने से कतराए।
जय के लिए मैं घरसे खाना बना कर लाने लगी। ऑफिस में जय और मैंने साथ में खाना शुरू किया। कई बार ऐसा हुआ की जय ने मुझे दोस्ती जताते हुए छुआ जैसे अकस्मात से ही हुआ हो। कई बार जय मेरे पास से संकड़ी जगह में से मेरे स्तनों को छू कर निकल गए।
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