Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
09-08-2018, 01:53 PM,
#8
RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
मेरे बॉस तो मेरी रिपोर्ट देखकर ख़ुशी से पागल से हो गए। उनको मुझसे इतनी जल्दी और इतनी बढ़िया रिपोर्ट की उम्मीद नहीं थी। रिपोर्ट को जय ने इतने सुन्दर तरीके से बनाया था की हमारे डायरेक्टर ने मेरे बॉस को पूछा की इतनी बढ़िया रिपोर्ट किसने बनायी थी। हमारे डायरेक्टर ने दो दिन के बाद सारे स्टाफ को बुलाया और सबके सामने मेरे उस काम की भूरी भूरी प्रशंशा की और मुझे खास तोहफा दिया। पुरे कार्यक्रम के दरम्यान मैं जय की और देखती रही। सारा काम तो जय ने किया था। मैं जय को आगे करना चाहती थी। मैं चाहती थी की इनाम जय को मिले। पर जय ने मेरी और देखकर मुझे चुप रहने का इशारा किया और कुछ भी बोलने से मना कर दिया। मुझे बहुत तालियां और मुबारक बाद मिले और मैं मन में ही मनमें दुखी होती रही की जो यश जय को मिलना चाहिए था, वह मुझे मिल रहा था।
प्रोग्राम के बाद जब मैंने जय से पूछा की उसने मुझे कुछ भी बोलने से रोका क्यों? तो जय ने कहा, “अरे बुद्धू लड़की! अगर तू यह बताती की वह काम तूने नहीं किया था तो जानती है क्या होता? तुझे अभी तक काम आया नहीं इस लिए तेरी नौकरी खतरे में पड़ जाती। और अगर उन्हें यह पता लगता की वह रिपोर्ट मैंने बनायीं थी तो बॉस मुझ पर इल्जाम लगाते की मैं तुम पर ज्यादा ध्यान दे रहा हूँ और मेरे काम पर कम। तो मेरी नौकरी को खतरा होता। इसिलए जो हुआ वह ही ठीक था।’

जय की बात भी बड़ी तर्कसंगत थी। वास्तव में यह सही था की जय ने मेरी व्यावसायिक प्रगति को चार चाँद लगा दिए। मुझे समझ नहीं आया की मैं उनका शुक्रिया कैसे करूँ। मुझे यह बहुत ही अजीब सा लगा की मैं जय के एहसान का बदला कैसे चुकाऊं?
मैंने जय से कहा, “जय, मुझे समझ में नहीं आ रहा की मैं आपका यह क़र्ज़ कैसे चुकाऊँगी। ”
आँख मटकते कहा, “चिंता मत करो, मैं सूद के साथ इसको वसूल करलूँगा।” मैं सोच रही थी की अच्छा होता वह मुझसे कुछ मांग लेते। पर कुछ न मांग कर जय ने मुझे एक उलझन में डाल दिया।
मैंने परे पति राज को सारी बातें विस्तार पूर्वक बतायीं। मैंने नहीं छुपाया की कैसे जय मेरे स्तनों से खेलता रहा और मेर कूल्हों की दरार में ऊँगली डालता रहा। मैंने राज से कहा, “वाकई मैंने जय को न डांटने की भूल की है। मुझे अब ऐसा लग रहा है की जैसे मैंने ऐसा न करके पाप किया है। मैं अपने आप को दोषी मान रही हूँ।”

मेर पति ने हाथ का झटका देते हुए कहा, “तुम बकवास कर रही हो। न तो तुमने और न तो जय ने कुछ भी ऐसा किया की जो पश्चाताप या डाँट के काबिल था। तुमने जय को ब्लाउज में हाथ डालने के लिए इसलिए कहा की तुम्हारे ब्रा में चूहा घूस गया था। और जय ने भी इसीलिए तुम्हारे ब्रा के अंदर हाथ डाला।
जब दो जवान स्त्री और पुरुष ऐसी स्थिति में होते हैं तो ऐसा हो जाता है, उसमें न तो तुम्हारा और न तो जय का कोई दोष है। पुरुष और स्त्री के बीच का आकर्षण भगवान् की दी हुई भेंट है। जब तक तुम्हें ऐसा न लगे की किसीने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है या तुम्हें निचा दिखानेकी कोशिश की है तब तक तुम इसको ज्यादा महत्त्व न दो। बल्कि ऐसी हरकतों को एन्जॉय करो। हमेश याद रखो ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो।”
मुझे बहुत अच्छा लगा की राज ने मुझे डांटा नहीं और मेरे या जय के वर्तन को नकारात्मक रूप में नहीं लिया। उन्होंने मेरी दुविधा को समझा और मेरे मनमंथन को ख़तम कर दिया। उनकी समझ बूज़ की मैं कायल हो गयी। बल्कि मुझे ऐसा लगा जैसे वह मुझे प्रोत्साहन दे रहे हों। खैर, मुझे अच्छा लगा की राज मुझे समझ रहे थे। 

उस प्रसंग और राज के साथ बात करने के बाद मेरे और जय के बीच में काफी कुछ बदल चुका था। मैं जब जय के करीब होती थी तो मेरे पुरे बदन में एक नयी ऊर्जा और उत्तेजना का अनुभव होता था। मैं अपने आपको फिरसे नवयुवा महसूस कर ने लगी थी।
मुझे जय के बदन की महक, उसके होठों की चमक, आँखों में छिपी लोलुपता, उन का मेरे स्तनों को दबाना और सहलाना, मेरी साडी पर से मेरी गांड की दरार में उंगली घुसेड़ने की कोशिश करना इत्यादि याद करते ही मैं रोमांचित हो जाती थी और मेरी चूत में से पानी निकलने लगता था। जय जब भी मुझे ललचायी नज़रों से देखते या मेरे वेश की प्रशंशा करते तो मैं शर्म के मारे पानी पानी हो जाती। बल्कि मुझे इंतजार रहता था की जय को मेरी पहनी हुई ड्रेस पसंद आये।
मैं जय की पसंदीदा वेश पहनने के लिए आतुर रहती थी। अगर कभी कोई ख़ास ड्रेस उसे पसंद आता था तो मैं उसे पहन ने में मुझे बड़ी ख़ुशी होती थी। पहले मैं किसी भी तरह के भड़कीले वेश पहनना पसंद नहीं करती थी। पर जय कहता तो मैं पहनकर आती थी।
साथ साथ में मेरे मनमें एक डर भी था। मेरा मन मुझे सावधान कर रहा था की इस रास्ते पर आगे खतरा हो सकता है। पर मैं बदल चुकी थी। मुझे जय का साथ अच्छा लगता था और उसकी छेड़खानी और सेक्सी टिकाएं मुझे नाराज करने के बजाये उकसाती थीं।
——
मेरे लिए वह एक बुरा दिन था। पिछली रात को मैं ठीक से सो नहीं पायी थी। राज उस हफ्ते टूर पर थे। मुझे रात को बुरे सपने आये और अकेले में कुछ भी आवाज होते ही मैं डर जाती थी। सुबह का ट्रैफिक पागल करने वाला था। मेरी तबियत ठीक नहीं थी। ऑफिस पहुँचने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। एक खचाखच भरी हुई बस में कितनी सारी बसें छूटने के बाद घुसने का मौका मिला। इतने सारे लोगों के बीच मेरा तो जैसे कचुम्बर ही निकल गया। जय का मूड भी ठीक नहीं था। उसकी छुट्टी बॉस ने कैंसिल कर दी थी। जय गुस्से में था।
मेरा पूरा दिन काम में बिता। दुपहर को देर से बॉस आये और एक दूसरे ग्राहक के लिए फिर मुझे उसी तरह की रिपोर्ट बनाने के लिए कहा। काम ज्यादा नहीं था पर मुझे जरूर देर तक बैठे रहना पड़ेगा। मैं तुरंत काम में लग गयी। जय ने जब मुझे गंभीरता पूर्वक काम में लगे हुए देखा तो मेरे पास आये। जब उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने सब बातें बतायी। उन्होंने पाया की वह तो उन्हीं का ग्राहक था। उन्होंने कुछ कागज़ अपने हाथ में लिए और मेरे साथ काम में लग गए।
मुझे कड़ा सरदर्द हो रहा था। बाहर विजली के कड़क ने की और बादलों के गरज ने की आवाज आ रही थी। छे बजे ही पूरा ऑफिस खाली हो चुका था। झमाझम बारिश शुरू हो गयी थी। हम जब काम ख़तम कर के बाहर आये तो साढ़े सात बज चुके थे। पिछले तीन घंटों से मुश्लाधार बारिश हो रही थी और लगता था की पूरी रात बारिश नहीं रुकेगी। जैसे तैसे हम पुरे भीगे हुए जय की बाइक के पास पहुंचे। हमारे पास न तो कोई रेनकोट था और न ही कोई छाता।
जय ने बाइक शुरू किया और मैं पीछे बैठ गयी। जय ने अपनी गोद में एक ब्रीफ़केस ले रखी थी। इस कारण मुझे अपने हाथ जय की जांघों के बीच रखने पड़े। मैं थोड़ी आगे झुकी तो मेरी दोनों चूचियां जय की पीठ पर दबी हुई थीं। मुझे अजीब भी लग रहा था और एक तरह का रोमांच भी हो रहा था 

बाइक पर बैठने से तेज हवा मेरे गीले बदन को और ठंडा कर रही थी। मुझे जुखाम हो गया और मैं छींके खा खा कर परेशान हो गयी। दुर्भाग्य वश जय की बाइक एकाध किलो मीटर चलने के बाद खराब हो गयी। हमने बाइक को धक्के मार कर बड़ी मुश्किल से एक पार्किंग लोट में खड़ी की। वहां से नजदीकी बस स्टैंड पर हम पहुंचे और बस या टैक्सी का इंतजार करने लगे। बसें भरी हुई आती थी और बीना रुके निकल जाती थी। मैं रास्ते तक जा करके कोई टैक्सी खाली मिले तो रोकने के प्रयास कर रही थी, पर सारी टैक्सियां भरी हुई आरही थी।
तब अचानक एक भले कार वाले ने मेरी हालत देख कर अपनी गाडी रोकी। गाडी में एक सीट खाली थी। गाड़ी के मालिक (जो खुद गाडी चला रहा था) ने हमसे कहा, “बस एक जगह है। आप दोनों में से कोई एक को ही हम ले सकते हैं। जय और मैं ने एक दूसरे की और देखा। तब मुझे अचानक एक बात सूझी और मैंने गाडी के मालिक से कहा, “सर, क्या आप हम दोनों को ले चलेंगे अगर हम एक ही सीट मैं बैठ जाएँ तो?”
गाडी के मालिक ने मुझे एक अजीब नजर से देखा। तब मैंने उनसे हाथ जोड़कर कहा, “हम पिछले एक घंटे से टैक्सी या बस का इंतजार कर रहे है। पर कोई टैक्सी या बस रुकी नहीं। हम ऐसा करेंगे की मैं राज की गोद में बैठ जाउंगी, इससे हम एक ही सीट रोकेंगे और किसीको कोई दिक्कत नहीं होगी। प्लीज! बारिश बहुत जोरों से हो रही है। यह एक आपात जनक स्थिति है और अगर आप हमें लिफ्ट नहीं देंगे तो पता नहीं हमें यहां कितने घंटों इंतजार करना पड़ेगा।
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