RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
मेरे गोलाकार उन्नत उरोज घने गुलाबी चॉकलेटी रंग के एरोला से घिरे हुए दो फूली हुई निप्पलों के नेतृत्व में मेरे खड़े होने के बाद भी गुरुत्वाकर्षण को न मानते हुए उद्दंड रूप से खड़े हुए थे। मैंने मेरे दोनों पाँव एक दूसरे से क्रॉस करते हुए मेरी सुडौल आकृति को ऐसे प्रस्तुत किया जैसे रैंप के ऊपर मॉडल्स अलग अलग कपड़ों को पहन कर अपना अंग प्रदर्शन करते हैं। फिर मैंने जय से पूछा, “जय मैं कैसी लग रही हूँ?”
अपना बड़ा लण्ड और मोटे टट्टे लटकाते हुए जय धीरेसे खड़े हुए। मेरे बाल, कपोल, आँखें, नाक, होंठ, चिबुक, गर्दन, कंधे, स्तन मंडल को देख कर जय के मुंह से ऑफ़.. उन्ह… निकल गया। अपने हाथ ऊपर कर उन्होंने मेरे स्तनों को दोनों में हाथों पकड़ा और अपनी हथेलियों में ऐसे उठाया जैसे वह उसका वजन कर रहें हों।
“तुम्हारे उरोज मेरी अद्भुत कल्पना से भी कहीं अधिक सुन्दर हैं। तुम प्रेम की देवी हो और एकदम सम्भोग योग्य हो।” मुझे ख़ुशी हुई की देरसे ही सही पर जय में अपन मन की बात कहने की हिम्मत हुई। मैं जय की और देख कर मेरी कामुकता भरी मुस्कान से उन्हें आव्हान किया।
मैं जय के मांसल मांशपेशियों युक्त सशक्त, सुडोल और लचीला बदन को देखते ही रह गयी। उनकी छाती पर थोड़े से बाल थे परन्तु राज की तरह बालों का घना जंगल नहीं था। उनकी शारीरक क्षमता उनकी छाती के फुले हुए स्नायुओँ से पता लगती थी। उनका फुर्तीला लम्बा कद कोई भी औरत के मन को आसानी से आकर्षित करने वाला था। उनके पेट में जरा सी भी चर्बी नहीं थी।
ऐसे नग्न खड़े हुए जय कोई कामदेव से कम नहीं लग रहे थे। उनके लण्ड के तल पर बाल थे और वह उनके पूर्व रस से लिप्त उनके लण्ड की चमड़ी पर चिपके हुए थे। उनके लण्ड पर कई रक्त की नसें उभरी हुई दिखाई पड़ रही थीं। उनके बावजूद उनका लण्ड चमकता हुआ उद्दण्ता पूर्वक सख्ती से खड़ा मेरी और इशारा करता हुआ मेरी चूत को जैसे चुनौती दे रहा था।
मेरे स्तनों को हाथ में पकड़ रखने के बाद जय ने मुझे अपने करीब खींचा। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मुझे अपनी बाहों द्वारा थोड़ा ऊपर उठाते हुए उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों से चिपकाए और इस बार वह मुझे बड़े ही प्यार एवं मृदुता से मेरे होंठों पर अपनी जिह्वा से चूसते हुए चुम्बन करने लगे। अपने हाथ से मेरी पीठ और मेरे चूतड़ के गालों को बड़े प्यार से वह सहलाने और कुरेदने लगे। मैं उनपर ऐसे लिपट गयी जैसे लता एक विशाल पेड़ को लिपट जाती है।
उनकी उँगलियों ने जब मेरी गाड़ की दरार में घुस ने की चेष्टा की तो मेरे मुंह से अनायास ही आह्हः निकल पड़ा। यह मेरी काम वासना की उत्तेजना को दर्शाता था। इंडियन हिन्दी सेक्स स्टोरीस हिंदी चुदाई कहानी
हम इतने करीबी से एक दूसरे के बाहु पाश में जकड़े हुए थे की जब मैंने जय के लम्बे और मोटे लण्ड को अपनी हथली में लेने की कोशिश की तो बड़ी मुश्किल से हमारे दो बदन के बीच में से हाथ डालकर उसे पकड़ पायी। वह मेरी हथेली में कहाँ समाने वाला था? पर फिर भी उसके कुछ हिस्से को मैंने अपनी हथेली में लिया और उसकी पतली चमड़ी को दबाते हुए मैं जय के लण्ड की चमड़ी को बड़े प्यार से धीरे धीरे आगे पीछे करने लगी।
मेरा दूसरा हाथ जय की पिछवाड़े था। जैसे जय मेरी पीठ, कमर और गाड़ को अपने एक हाथ से तलाश रहा था तो मैं भी मेरे एक हाथ से उसकी पीठ, उसकी कमर और उसकी करारी गांड को तलाश रही थी। जैसे वह मेरी गांड के गालों को दबाता था तो मैं भी उसकी गांड के गालों को दबाती थी।
जय ने मेरी और देखा। मैंने शरारत भरी मुस्कान से उनको देखा और उनके लार को मेरे मुंह में चूस लिया। जय ने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाली और उसे आगे पीछे करने लगे जैसे की वह मेरे मुंह को अपनी जीभ से चोद रहे हों। यह उनकी एक बड़ी रोमांचक शैली थी जिसका अनुभव मैंने पहले नहीं किया था। मुझे जय का मेरे मुंह को जिह्वा से चोदना अच्छा लगा।
जय ने फिर मेरे नंगे बदन को बिना कोई ज्यादा ताकत लगाये और ऊपर उठाया और अपना मुंह मेरी चूँचियों पर रख कर एक के बाद एक वह मेरी चूँचियों को चूसने लगे। हवामें उनकी बाहों में झूलते हुए अपनी चूँचियों को चुसवाना मेरे लिए एक उन्मत्त करने वाला अनुभव था। मैंने अपने हाथ जय के गले के इर्दगिर्द कर फिरसे जय को हल्का चुम्बन देते हुए कहा, “तुम एक नंबर के चोदू साबित हुए हो। लगता है जबसे तुमने मुझे पहली बार देखा था तबसे तुम्हारी नियत मुझे चोदने की ही थी। अपने भलेपन से और भोलेपन से तुमने मुझे फाँसने की कोशिश की ताकि एक न एक दिन मैं तुम्हारी जाल में फंस ही जाऊं। एक भोले भाले पंछी को फांसने की क्या चाल चली है? भाई वाह! मान गयी मैं।”
जय मेरी और देख कर मुस्कुराये। उनके स्मित ने सब कुछ साफ़ कर दिया। उन्होंने आसानी से उठाते हुए मुझे पलंग पर लाकर लिटा दिया। उसके बाद मेरे भरे हुए रसीले स्तनों के पास अपना मुंह लगाया और फिरसे दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसने लगे। फिर एक हाथ से उनको दबाने में लग गए। मैंने अपने एक हाथ में उनके बड़े लम्बे लण्ड की परिधि को मेरी दो उँगलियों को गोल चक्कर बनाते हुए उसमें लेनेकी कोशिश की, और उन्हें धीरे धीरे सहलाने लगी। मैंने उनके फुले हुए बड़े टट्टों को सहलाया और बिना जोर दिए उनको प्यार से मसला। राज ने मुझे यह बताया था की मर्दों को अपने अंडकोष स्त्रियों से प्यारसे सेहलवाना उन्हें उत्तेजित कर देता है।
उनके अंडकोष को सहलाने से जय के मुंहसे “आह्हः…” की आवाज निकल पड़ी। मैंने जय की छाती पर उनकी छोटी छोटी निप्पलों को एक के बाद एक चूमा।
मेरी चूँचियों को अपनी चौड़ी हथेलियों में दबाते हुए जय बोले, “ओह! जब से मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तबसे मैं इन्हें इस तरह दबाना और सहलाना चाहता था। सही है की मैं तुम्हें पहले चोद ने की अभिलाषा रखता था। पर ऐसी आशा कौन नहीं रखता था? हमारे ऑफिस में सभी कार्यकर्त्ता अगर मौक़ा मिले तो तुम्हें चोदने की इच्छा अपने जहन में छुपाये होंगे। पर मैं भाग्यशाली रहा की तुम मुझे अपने सहायक के रूप में मिल गयी। मुझे तुम्हारी अकड़ और विरोध ने बहोत आकर्षित किया। उसने मुझे और जोश दिलाया। पर डॉली प्लीज, मेरी बात मानो, मेरा आपको मदद करने के पीछे चोदने की गन्दी मंशा बिलकुल नहीं थी। पर हाँ, तुम्हारे इन रसीले होठों को चूमने की और तुम्हारे रस से भरे इन उरोजों को सहलाने और चूमने की तमन्ना जरूर थी।”
ऐसा कहते हुए जय ने अपने होंठ मेरे होंठ पर रखे और एक बार फिर हम दोनों गाढ़ आलिंगन में लिपटे हुए एक दूसरे को चूमने लगे। मैं जय के होठों के मधुर रस का आस्वादन कर रही थी। मैंने धीरेसे जय के मुंह में अपनी जीभ डाली और उसे अंदर बाहर करने लगी, और जैसे पहले जय मुझे कर रहे थे, मैं उनके मुंह को मेरी जीभ से चोद रही थी। जय के हाथ मेरी चूँचियों को दुलार रहे थे और कभी कभी उन्हें दबाते और मेरी निप्पलों को चूंटी भरते थे।
उनके हाथ मेरी चूँचियों से खिसक कर धीरे धीरे मेरे सपाट पेट की और खिसकने लगे। उनका स्पर्श हल्का और कोमल था। उनका ऐसा प्रेमपूर्ण स्पर्श मुझे उन्मत्त करने के लिए काफी था। उनकी उंगलियां मेरे नाभि पर आकर रुक गयीं। धीरे से उन्होंने अपनी एक उंगली मेरी नाभि में डाली और उसे प्यार से मेरे नाभि की गेहरायीओंमें घुमाने लगे। उन्हें मेरी इस कमजोरी का पता लग गया था की मैं नाभि में उंगली डालने से कामातुर हो कर पागल हो जाती थी। थोड़ी देर बाद उनके हाथ नाभि से मेरे निचले हिस्से की और खिसक ने लगे और मैं काम वासना के मारे तड़पने लगी और मेरे मुंह से कामुक सिसकियाँ निकल ने लगी।
उनकी उंगलियां अब मेरी जाँघों के बीच में थी। जैसे ही उनकी हथेली मेरी चूत के टीले पर पहुंची तो मैं अपनी चरम पर पहुंचले वाली ही थी। मैं इंतजार कर रही थी की कब उनका हाथ मेरी चूत की पंखुड़ियों पर पहुंचे। मैंने अपनी चूत के टीले पर से एक एक बाल साफ़ किये थे। वैसे भी मैं हमेशा अपनी चूत के बाल साफ़ करती रहती थी। राज को यह बात पसंद थी और शायद जय को भी पसंद होगी। मुझे ज्यादा देर इंतजार करना नहीं पड़ा। जय की उंगलियां मेरी चूत की पंखुड़ियों से खेलने में लग गयीं। मेरी चूत से जैसे मेरी कामुक उत्तेजना एक फव्वारे के रूप में निकलने लगी। जय की उंगलियां एकदम भीग गयीं।
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