RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
जय की उँगलियों ने जैसे ही मेरी चूत की पंखुड़ियों का स्पर्श किया की मैं उन्माद के मारे एक जबरदस्त सिरहन का अनुभव करने लगी। ओह! वह क्या अनुभव था! मेरे बदन में जैसे एक बिजली सी दौड़ गयी और मेरा पूरा बदन जैसे उत्तेजना से अकड़ गया। मेरा दिमाग एकदम सुन्न हो गया और मैं एक अद्भुत सैलाब में मौजों के शिखर मर पहुँच गयी। मैंने जोर से एक उन्माद भरी आह्हः ली और उस रात एकदम झड़ गयी। मुझे बहुत कम बार ऐसा जबरदस्त ओर्गास्म आया होगा।
जय ने मेरी चूत में से तेजी से बहते हुए मेरे स्त्री रस को अपनी उँगलियों को गीला करते हुए पाया तो उन्होंने मेरे देखते ही वह उंगली अपने मुंह में डाली और मेरा स्त्री रस वह चाट गए। उनकी शक्ल के भाव से ऐसा लगा जैसे उनको मेरा स्त्री रस काफी पसंद आया। मैं धीरे धीरे सम्हली।
जय मेरी चूत की पंखुड़ियों से खेल रहे थे। कभी वह उनको खोल देते तो कभी उनके ऊपर अपनी उँगलियाँ रगड़ते। कभी वह अपनी एक उंगली अंदर डालते तो कभी दो।
अब मैं अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। मुझसे अब धीरज नहीं रखा जा रहा था। मैंने जय का सर अपने हाथों के बीच पकड़ा और उनको मैंने मेरी जाँघों के बीच की और अग्रसर किया। जय समझ गए की मैं चाहती हूँ की वह मेरी चूत को अपनी जीभ से चाटे ।
जय अपना सर मेरे पाँव की और ले गये और मेरे पाँव को चौड़े फैलाये जिससे की वह अपना सर उनके बीच में डालकर मेरी चूत में से रिस रहे मेरे रस का रसास्वादन कर सके।
साथ साथ में वह अपनी जिव्हा को मेरे प्रेमातुर छिद्र में डालकर मेरी उत्तेजना बढ़ाना भी चाहते थे। जब मैंने अपने पाँव फैलाये तो जय मेरे चूत के प्रेम छिद्र को देखते ही रह गए। जय ने पिछले छह महीनों से किसी स्त्री की चूत के दर्शन नहीं किये थे। उन्होंने झुक कर मेरी चूत के होठों को चुम्बन किया। उनकी जीभ का मेरी चूत से स्पर्श होते ही मेरे बदन मैं एक कम्पन फ़ैलगयी। मैं रोमांच से सिहर उठी। जय उनकी जीभ से मेरी चूत की पंखुड़ियों से खेलते रहे और मेरी चूत के होठों को चौड़ा करके अपनी जीभ की नोक को उसकी गहराइयों तक डालते हुए मेरे वजाइना को चाटते रहे और चूमते रहे।
उनकी इस हरकत मुझे मेरी उत्तेजना की ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए पर्याप्त थी। मैं नए उन्मादके सैलाब के शिखर पर पहुँचने की तैयारी में थी। उन्होंने मेरु उत्तेजना को भॉँप लिया और मेरी चूत के अंदरूनी हिस्सों में जोश खरोश से अपनी जीभ घिस ने लगे। मेरे से रहा नहीं गया और मैंने “जय बस करो, मुझे एकदम उछाल महसूस हो रहा है। मैं ऊपर तक पहुँच गयी हूँ, मेरा छूट रहा है।” ऐसा कह कर करीब पंद्रह मिनट में मैं दूसरी बार झड़ गयी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ की मैं पंद्रह मिनट में दो बार झड़ी, और वह भी बिना चुदाये।
इतने बड़े ऑर्गैज़म के बाद में पलंग पर धड़ाम से गिर पड़ी। परन्तु मेरे अंदर की ऊर्जा थमने का नाम नहीं ले रही थी। कौन कह सकता था की चन्द घंटों पहले मैं बीमार थी या एकदम थक कर निढाल हो चुकी थी। मैं वासना की कामुकता से एकदम गरम हो चुकी थी। मैं अब जय का लण्ड मेरी चूत में लेने के लिए अधीर हो चुकी थी। मैं जय से बेतहाशा चुदवाना चाहती थी। मेरे अंदर की शर्म और स्त्री सुलभ हया ने मेरी जय से चुदवाने की भूख को कहीं कोने में दफ़न कर दिया था। अब वह भूख उजागर हो रही थी। मैंने जय के सर को दोनों हाथों में पकड़ा और उसे मैं बिनती करने लगी, “जय, अब मेरा हाल कामुकता की गर्मी में तिलमिलाती कुतीया की तरह हो रहा है। अब सब कुछ छोड़ कर मुझ पर चढ़ जाओ और मुझे खूब चोदो।”
पर जय कहाँ सुनने वाले थे। उन्होंने अपना मुंह मेरी जाँघों के बीच में से हटाया और अपना हाथ अंदर डाला। फिर उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चूत में डाली। जब उनकी उंगलियां आसानी से मेरी चूत के छिद्र में घुस न सकी तो वह कहने लगे, “डॉली तुम्हारा प्रेम छेद तो एकदम छोटा है। तुम्हारा पति राज इसमें कैसे रोज अपना लण्ड डाल सकता है?”
मुझे अपना छिद्र छोटे होने का गर्व था। क्यूंकि राज मजाक में कहते थे की, “भोसड़ी (चूत) ऐसी होनी चाहिए जो लण्ड को ऐसे ले जैसे लकड़ी में कील, या फिर पेप्सी के सील्ड टम्बलर में स्ट्रॉ। वरना वह भोसड़ा कहलाता है जिसमें लण्ड अंदर ऐसे समाता है जैसे लोटे में दाँतुन।” पर मैं जय से ऐसा कुछ बोल नहीं पायी। मेरी लण्ड सख्ती से पकड़ ने वाली चूत के कारण राज को मुझे चोदने में अनोखा आनंद आता था। वह अक्सर मुझे कहते थे की उन्हें मुझे चोदने में किसी और औरत को चोदने से कहीं ज्यादा मजा आता था। वह मुझे चोदना शुरू करते ही उत्तेजना के कारण झड़ जाते थे।
जैसे जय मेरी चूत में तेजी से उंगली चोदन करने लगे वैसे ही मेरी उत्तेजना सीमा पार कर रही थी। जय मेरी चूत को उँगलियों से चोद कर मुझे पागल कर रहे थे। मैंने जय से कहा, “अब बस भी करो। उत्तेजना से मुझे मार डालोगे क्या? अपनी उंगलियां निकालो और तुम्हारा यह मोटा लंबा लण्ड मेरी चूत में घुसा दो। मुझे चोदो, प्लीज मुझे चोदो।”
पर जय रुकने को तैयार ही नहीं थे। उसने तो उलटा मुझे उंगली से चोदने की प्रकिया और तेज करदी। मेरा सर चक्कर खा रहा था। मैं अपना आपा खो रही थी। मैं जातीय उन्माद के मौजों पर सवार थी। जय का हाथ और उंगलियां तो जैसे एक तेज चलते पंप की तरह मेरी चूत के अंदर बाहर हो रही थी। मैं जोर से उन्माद से चिल्ला उठी और एक गहरी साँस लेते हुए मैं झड़ गयी। मेरे अंदर से एक फौवारा छूटा। मैं कराह ने लगी, “जय मैं मरी जा रही हूँ। मेरा फिर से छूट गया है। अब बस भी करो। अब मैं इसे झेल नहीं सकती। ”
तब जा कर कहीं जय रुके। मैं तब तक वासना से बाँवरी हो चुकी थी। मैं कभी काम वासना के भंवर में इस तरह नहीं डूबी। जय मेरी और देख कर मुस्कुराये और बोले, “क्या हुआ? तुम्हें अच्छा लगा ना?”
मैंने जय का हाथ पकड़ा और खिंच कर उसे मेरे ऊपर सवार होने के लिए बाध्य किया। जयने अपने दोनों पाँव के बीच मेरी जाँघों को रखा और मेरे ऊपर सवार हो गए। उनका मोटा, कड़क और खड़ा लण्ड तब मेरी चूत के ऊपर के मेरे टीले को टोच रहा था। मैंने जय के होठों से मेर होंठ मिलाये और उनसे कहा , “आज मैं तुम्हारी हूँ। मुझे खूब चूमो, मेरी चूँचियों को जोर से दबाओ और उन्हें चुसो, मेरी निप्पलों को चूंटी भरो और इतना काटो की उनमें से खून बहने लगे। मैं चाहती हूँ की आज तुम मुझे ऐसे चोदो जैसे तुमने कभी किसी को चोदा नहीं हो। मैं तुम्हारा यह मोटा और लंबा लण्ड मेरी चूत में डलवाकर सारी रात चुदवाना चाहती हूँ। तुम आज इस तुम्हारे मोटे लण्ड की प्यासी कुतिया को जी भर के चोदो और उसकी प्यास बुझाओ।
मैं स्वयं अपने इस उच्चारण से आश्चर्य चकित हो रही थी। मैंने इस तरह इतनी गन्दी बातें राज से भी नहीं की थी। और मैं थी की उस वक्त एक गैर मर्द से एक कामुकता की भूखी छिनाल की तरह बरत रही थी। फ्री हिंदी सेक्स स्टोरी हिंदी चुदाई कहानी
जय अपने बदन को संतुलित रखते हुए और मुझ पर थोड़ा सा भी वजन न डालते हुए अपने लण्ड को मेरी चूत की पंखुड़ियों के करीब लाये। मेरी दोनों टाँगें उन्होंने उनके कंधें पर रखी। उनका खड़ा लंबा लण्ड मेंरी चूत के द्वार पर खड़ा इंतजार कर रहा था।
उस रात पहली बार मैं सकपकायी। मेरी साँसें यह सोच कर रुक गयी की अब क्या होगा? मैं एक पगली की तरह चाहती थी की जय मुझे खूब चोदे। पर जब वक्त आया तब मैं डर गयी और मेरे मन में उस समय सैंकड़ो विचार बिजली की चमकार की तरह आये और चले गए।
सबसे बड़ी चिंता तो यह थी की जय का इतना मोटा लण्ड मेरी इतनी छोटी और नाजुक चूत में घुसेगा कैसे? हालाँकि राज का लण्ड जय के लण्ड से काफी छोटा था तब भी मैं राज को उसे धीरे धीरे घुसेड़ने के लिए कहती रहती थी। जय का तो काफी मोटा और लंबा था। वह तो मेरी चूत को फाड् ही देगा।
पर मैं जानती थी की तब यह सब सोचने का वक्त गुजर चुका था। अब ना तो जय मुझे छोड़ेगा और न ही मैं जय से चुदवाये बिना रहूंगी। हाँ, मैंने विज्ञान में पढ़ा था की स्त्री की चूत की नाली एकदम लचीली होती है। वह समय के अनुसार छोटी या चौड़ी हो जाती है। तभी तो वह शिशु को जनम दे पाती है।
मैं जानती थी की मेरी चूत चौड़ी तो हो जायेगी पर उससे मुझे काफी दर्द भी होगा और मुझे उसके लिए तैयार रहना पडेगा। मैंने जय के लण्ड को मेरी उंगलितों में पकड़ा और हलके से मेरी चूत की पंखुड़ियों पर रगड़ा। मेरी चूत में से तो रस की नदियाँ बह रही थी। जय का लण्ड भी तो चिकनाहट से पूरा सराबोर था। मैंने हलके से जय से कहा, “थोड़ा धीरेसे सम्हलके डालना। मुझे ज्यादा दर्द न हो। ”
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मैंने एक हाथ से जयके लण्ड को पकड़ा और उसके लण्ड केचौड़े और फुले हुए सिंघोड़ा के फल जैसे ऊपरी हिस्से को मेरी चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा और मेरी कमर को थोड़ा सा ऊपर की और धक्का देकर जय को इशारा किया की बाकी का काम वह खुद करे।
जय मेरे इशारे का इंतजार ही कर रहे थे। उन्होंने अपनी कमर को आगे धक्का देकर उनका कडा लण्ड मेरी चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा। चिकनाहर की वजह से वह आसानी से थोड़ा अंदर चला गया और मुझे कुछ ज्यादा दर्द महसूस नहीं हुआ। मैंने मेरी आँखों की पलकों से जय को हंस कर इशारा किया की सब ठीक था।
जय का पहला धक्का इतना दर्द दायी नहीं था। बल्कि मुझे अनिल के लण्ड का मेरी चूत में प्रवेश एक अजीबोगरीब रोमांच पैदा कर रहा था। उस वक्त मेरे मनमें कई परस्पर विरोधी भाव आवागमन करने लगे। मैंने महसूस किया की मैं एक पतिव्रता स्त्री धर्म का भंग कर चुकी थी। उस रात से मैं एक स्वछन्द , लम्पट और पर पुरुष संभोगिनी स्त्री बन चुकी थी। पर इसमें एक मात्र मैं ही दोषी नहीं थी।
मुझसे कहीं ज्यादा मेरी पति राज इसके लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने बार बार मुझे जय की और आकर्षित होने के लिए प्रोत्साहित किया था। पर मैं तब यह सब सोचने की स्थिति में नहीं थी। उस समय मेरा एक मात्र ध्येय था की मैं वह चरम आनंद का अनुभव करूँ जो एक लम्बे मोटे लण्ड वाले पर पुरुष के साथ उच्छृंखल सम्भोग करने से एक शादी शुदा पत्नी को प्राप्त होता है।
मैं अब रुकने वाली नहीं थी। मैं ने एक और धक्का दिया। जय ने अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा। मुझे मेरी चूत की नाली में असह्य दर्द महसूस हुआ। मैंने अपने होंठ दबाये और आँखें बंद करके उस दर्द को सहने के लिए मानसिक रूप से तैयार होने लगी। जय ने एक धक्का और दिया और उसका लोहे की छड़ जैसा लण्ड मेरी चूत की आधी गहराई तक घुस गया। मैं दर्द के मारे कराहने लगी। पर उस दर्द में भी एक अजीब सा अपूर्व अत्युत्तम आनंद महसूस हुआ।
जैसे जय ने मेरी कराहटें सुनी तो वह थम गया। उसके थम जाने से मुझे कुछ राहत तो जरूर मिली पर मुझे अब रुकना नहीं था। मेरी चूत की नाली तब पूरी तरह से खींची हुई थी। जय का लण्ड मेरी नाली में काफी वजन दार महसूस हो रहा था।
उसके लण्ड का मेरी वजाइनल दीवार से घिसना मुझे आल्हादित कर रहा था। मैंने जय को इशारा किया की वह रुके नहीं। जैसे जैसे जय का मोटा और लंबा कड़ा लण्ड मेरी चूत की गेहराईंयों में घुसता जारहा था, मेरा दर्द और साथ साथ में मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी।
मैंने जय को रोकना ठीक नहीं समझा। बस मैंने इतना कहा, “जय जरा धीरेसे प्लीज?”
जय चेहरे पर मेरे कराहने के कारण थोड़ी चिंता के भाव दिख रहे थे। मैंने उसे कहा, ‘धीरेसे करो, पर चालु रखो। थोड़ा दर्द तो होगा ही।“
मैं जानती थी की जय मुझे देर तक और पूरी ताकत से चोदना चाहते थे। मैं भी तो जय से चुदवाने के लिए बाँवरी हुई पड़ी थी। मैंने जय का हाथ पकड़ा और उसे चालु रहने के लिए प्रोत्साहित किया। जय ने एक धक्का लगाया और मेरी चूत की नाली में फिरसे उसका आधा लंड घुसेड़ दिया। तब पहले जैसा दर्द महसूस नहीं हुआ। जय रुक गया और मेरी और देखने लगा। मैंने मुस्करा कर आँखसे ही इशारा कर उसे चालु रखने को कहा।
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