RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
इसी तरह जब हफ्ता गुज़र गया और गाड़ी आगे न बढ़ी तो एक दिन मैंने अपनी सीमा लांघने की ठानी।
मैंने अक्सर पाया था कि अपने धुले कपड़े वह लोग ऊपर ही सुखाते थे और अब मैं पहचानने भी लगा था के कौन से कपड़े किसके थे, तो एक दिन मैंने ऊपर फैली निदा की सलवार के नीचे छुपी उसकी पैंटी बरामद की। मैं पहले भी चेक कर चुका था कि दोनों ननद-भाभी अपनी चड्डियाँ अपनी सलवार या कुर्ते के नीचे छिपा कर सुखाती थीं और जल्दी से मुठ्ठ मार कर सारा माल उसमें पोंछा और उसे वापस उसकी जगह टांग दिया।
शाम के अँधेरे में निदा आई और अपने कपड़े लेकर चली गई, लेकिन थोड़ी ही देर में हंगामा मच गया।
वो धमर.. धमर करते गुस्से से आगबबूला होती ऊपर आई और अपनी चड्डी मेरे मुँह पर फेंक मारी।
“यह क्या है?” उसकी आँखें सुर्ख हो रही थीं।
“क्या है?” जानते बूझते मैंने अनजान बनने की कोशिश की।
उसने मेरे हाथ से चड्डी छीनी और उसमें लगे वीर्य के नम दाग दिखाते हुए चिल्लाई, “यह क्या है?”
“मुझे क्या पता क्या है… ! तुम्हारी चीज़ है तुम जानो।”
“तुम्हारा दिमाग ख़राब हुआ है, मैं समझती थी कि कोई शरीफ इंसान हो, इसी लिए भाई ने रखा है लेकिन तुम तो एक नम्बर के कमीने हो.. ये गंदगी करके मेरे कपड़ों में पोंछ दिया, शर्म नहीं आती…!” वह गुस्से में जाने क्या-क्या बोलती रही और मैं सुनता रहा !
फिर वो रोती हुई नीचे चली गई और मैं शर्मिंदा हो कर रह गया। नीचे उसके रोने की आवाज़ें आती रहीं और मैं सुनता रहा। मुझे लग रहा था कि अब ज़रीना आएगी मुझे ज़लील करने लेकिन वो नहीं आई। फिर जब असलम भाई आए तो उनसे दास्तान बताई गई और वो उनके हिसाब से मुझे समझाने ऊपर आए।
“वो यह सब सोच भी नहीं सकती थी इसलिए ऐसे रियेक्ट किया लेकिन यकीन करो कि आज रात में जब वह सोयेगी तो उसका दिमाग इसी में अटका रहेगा और कल तुम्हें वो किसी और नज़र से देखेगी।”
“और भाभी?”
“उसकी फ़िक्र मत करो, वो जैसी भी है मुझसे बाहर नहीं जा सकती।”
इसके बाद बात खत्म और मैं अगले दिन के इंतज़ार में।
अगली सुबह जब वह ऊपर कपड़े फैलाने आई तो मैं जानबूझ कर उसके सामने गया। उस वक़्त मैं सिर्फ चड्डी में था और मेरा उभार साफ़ प्रदर्शित हो रहा था। उसने मुझे देखा, नीचे देखा और बिना कोई रिएक्शन दिए भावहीन चेहरा लिए कपड़े फैला कर नीचे चली गई।
इसके बाद तो मैंने भी ठान लिया कि अब ये रोये या लड़े लेकिन मैं इसके सामने ऐसे ही रहूँगा और अक्सर तब, जब वो कपड़े फैलाने या उतारने आती तो मैं उसके सामने चड्डी में ही रहता और यहाँ तक कि अपना सामान भी टाइट ही रखता कि ऊपर से साफ़ पता चले।
मैंने एक बात तो महसूस की कि अब वो वैसी बेरूख सी नहीं लगती जैसे पहले लगती थी लेकिन अपनी दिलचस्पी किसी तरह ज़ाहिर भी नहीं करती थी।
एक शाम मैंने फिर मुठ्ठ मार कर उसकी चड्डी में पोंछ कर टांग दिया और अपने कमरे की खिड़की से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा।
उसने जब कपड़े समेटे तभी महसूस कर लिया कि मैंने फिर वही हरकत की थी लेकिन इस बार उसने नीम अँधेरे में चड्डी को गौर से देखा, फिर मुड़ कर मेरे कमरे की दिशा में देख कर मेरा अंदाज़ा लगाया और फिर चड्डी को नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी और सूंघते हुए ही नीचे चली गई। मैंने राहत की मील भर लम्बी सांस ली कि मेरा मिशन अब सफल होने वाला था।
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