RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
दो दिन बाद मुझे अपने कमरे के बंद दरवाज़े के नीचे एक चिट्ठी पड़ी मिली। जिसमे लिखा था, “मैं भी वही चाहती हूँ जो तुम चाहते हो लेकिन मेरी शर्म मुझे ऐसा करने से रोकती है। आज शाम सभी लोग फ़िल्म देखने जाने वाले हैं, मैं कोई बहाना करके घर रुक जाऊँगी, तुम आओगे तो दरवाज़ा खुला मिलेगा, मैं अपने कमरे में रहूँगी लेकिन बिल्कुल अँधेरे में, मेरी हिम्मत नहीं कि मैं रोशनी में ऐसा कर सकूँ। तुम्हें भी याद रखना होगा कि अँधेरे को कायम रहने दोगे।”
उस रोज़ काम पर मेरा मन बिल्कुल न लगा और मैं शाम होते ही घर की तरफ भागा, लेकिन फिर भी पहुँचते-पहुँचते सात बज गए।
दरवाज़ा वाकई खुला मिला जो मैंने अन्दर होते ही बंद कर लिया,घर में सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने निदा के कमरे की तरफ देखा, अँधेरा कायम था। मैं आहिस्ता से उसके कमरे में घुसा, कपड़ों कि सरसराहट बता गई कि वह मेरे इंतज़ार में थी, बाहर की रोशनी में बेड पर एक साया पसरा दिखा।
मैं आहिस्ता से चल कर उसके पास बैठ गया।
“मैं कब से इस पल के इंतज़ार में था।”
“बोलो मत, वक़्त इतना भी नहीं है।” उसने सरसराते हुए कहा।
फिर मैंने देर करने के बजाय उसे दबोच लिया। वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। मैंने अपनी गर्म हथेलियों की छुअन से उसकी चूचियाँ और कमर सब रगड़ डाली। उसने भी बड़ी बेकली से मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन की शुरुआत हो गई।
मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुँह में दे दी जिसे वह बड़ी मस्ती में चूसने लगी। फिर अपनी ज़ुबान उसने मुझे दी तो मैंने भी उसके होंठ और ज़ुबान जी भर के चूस लिए।
मेरा एक हाथ उसकी दाहिनी चूची पर रेंग रहा था और दूसरा उसके बालों को थामे था।
फिर मैंने उसे खुद से अलग किया।
“कपड़े उतारो।”
उसने कोशिश नहीं की, मैंने ही जल्दी-जल्दी उसके सारे कपड़े उतार फेंके, यहाँ तक कि चड्डी भी न रहने दी और फिर खुद के भी सारे कपड़े उतार डाले।
अब बेड पर हम दोनों नंग-धडंग एक-दूसरे से लिपटने लगे, मैं उसे बुरी तरह चूम रहा था चुभला रहा था और वो उसी बेकरारी से मुझे चूम कर जवाब दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की प्यासी हो और आज सारी प्यास बुझा लेना चाहती हो।
उसकी नरम-नरम चूचियाँ.. उसकी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही मुलायम थीं, शायद वैधव्य में अपने हाथों से ही मसलती रहती थी लेकिन निप्पल मज़ेदार थे और किशमिश जैसे मस्त थे जिन्हें चूसने में मज़ा आ गया।
जिस वक़्त मैं एक हाथ से उसके एक चूचे को चूस रहा था और दूसरे को मसल रहा था, वह पैरों से मुझे जकड़ने की कोशिश करती, मेरे बालों को मुट्ठियों में भींचे थी और सिसकारते हुए अपने हाथ से ही अपनी चूची मेरे मुँह में ठूँसने को ऐसे तत्पर थी, जैसे खिला ही देना चाहती हो।
चूचियों को चूसते हुए मैंने अपना घुटना उसकी जांघों के जोड़ पर लगाया तो चिपचिपा हो गया, तब मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को छुआ तो वहाँ से कामरस की धारा बह रही थी।
अब उसकी चूची छोड़ कर मैंने उसे चूमते हुए नीचे सरका और वहीं रुका जहाँ उसके कामरस के ख़रबूज़े जैसी महक मेरे नथुनों से टकराई। मैंने वहीं मुँह घुसा दिया। अब ज़ुबान से जो कामरस चाटना शुरू किया तो उसकी सीत्कारें और तेज़ हो गई और बदन में ऐंठन पड़ने लगी। उसकी कलिकाएँ मध्यम आकर की थीं, जिन्हें मैं ज़ुबान और अपने होंठ से दबा के पकड़ कर खींचने लगा और साथ में उसके क्लिटोरिस हुड को भी छेड़े जा रहा था और वो किसी नागिन की तरह मचलने लगी थी।
फिर मैंने अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके गीले छेद में अन्दर सरका दी, वह एकदम से तड़प उठी और उसके मुँह से एक ज़ोर की ‘आह’ जारी हुई।
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