RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
‘तो कल कैसी गुज़री?’ मैंने अपने होंठ उसके कान के पास रखते हुए पूछा।
‘बहुत बुरी गुज़री। सब कुछ अच्छा लेकिन अजीब सा लग रहा था।
जो कहानी पढ़ी, जो वीडियो देखी… सबने एक अजीब सा नशा पैदा दिया, पूरा जिस्म सनसना रहा था, दिमाग पर अजीब सा नशा सवार था…
बार बार अपने वेजाइना पे हाथ लगने को जी रहा था जो चिंगारियां छोड़ रही थी। वह बस बह रही थी।
पूरे जिस्म में अजीब सी ऐंठन और बेचैनी हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कही किसी मुकाम पे पहुँचना है, जैसे इस सबका कोई अंत होना है…
लेकिन क्या, कुछ समझ में नहीं आ रहा था।’ उसने लहराती कपकपाती आवाज़ में कहा।
‘जो अभी महसूस हो रहा है।’
‘सेम… ऐसा ही, बस अच्छा लग रहा है। दिमाग पर मस्ती, नशा हावी हो रहा है। पूरे जिस्म में एक मादक सी सनसनाहट फैल रही है। दिल कर रहा है बस करते रहो।
ऐसा लगता है जैसे कुछ मेरे जिस्म में कैद है जो निकलना चाहता है। जैसे कोई लावा हो जो बार बार किनारों से टकराता हो और किनारों को तोड़ कर बाहर निकल जाना चाहता हो पर अजीब सी बेबसी महसूस हो रही है कि निकल नहीं पा रहा।’
‘आज रात हम उस लावे को बाहर निकालेंगे।’
‘कल जब सब ख़त्म करके सोने की कोशिश की तो इस बेचैनी ने सोने नहीं दिया। बची खुची रात ऐसे ही थोड़ा सोते जागते गुज़री।’
मैं उसके जिस्म को अपनी गर्म हथेलियों की हरारत बख्शता रहा और इधर उधर की बातें होती रहीं।
काफी देर वहाँ पड़े रहने के बाद वहाँ से हट के थोड़ा वक़्त अंग्रेज़ों पे चली गोलियों के निशानों की गवाही देते खंडहरों में गुज़ारा और फिर भूख लग आई तो वहाँ से निकल के अमीनाबाद जाकर नहरी कुल्चा खाया।
इसके बाद वहाँ से एकदम उलट जनेश्वर मिश्र पार्क चले आये जहाँ अगले दो घंटे रहे।
इस बीच वह अपने बचपन से लेकर जवानी तक की बातें बताती रही।
वहाँ से निकल कर थोड़ी राइडिंग पत्रकारपुरम में की, उसके बाद थोड़ा वक़्त अम्बेडकर पार्क में गुज़ारा और उसी तरफ से पेपर मिल
कॉलोनी की तरफ से होते हुए वापसी की… जहाँ एक जगह मौका देख कर उसने फिर नक़ाब और स्कार्फ़ से खुद को मढ़ लिया।
इस बार उसे फ्लाईओवर के इस सिरे पे उतार कर मैं आगे बढ़ गया।
वह वहाँ से रिक्शा से चली गई और मैं गोल घूम कर थोड़ी देर बाद घर पहुँचा जहाँ अगले 3 घंटे खाने पीने, वाक करने में गुज़ारे।
थोड़ी हाय हेलो उस दूसरी लड़की से की जिसका ज़िक्र मैंने किया था और फिर दस बजे आज के एपिसोड के लिए तैयार हो गया।
आज फिर वो एक सेक्सी से नाइटवीयर में थी। उसके चेहरे पे छाई दृढ़ता को देख कर लगता था कि वह उस अंत को जानने के लिए तैयार थी।
मेरी तो यही शर्त थी कि चाहे गुदगुदी हो या कुछ और… वह मुझे रोकेगी नहीं।
‘बस इतना ध्यान रखना मेरी वर्जिनिटी बनी रहे।’ उसने गुज़ारिश की।
‘वादा करता हूँ कि तुम्हे पछताना नहीं पड़ेगा। अब आगे तुम सब मुझ पे छोड़ दो।’
उसने आँखों से सहमति जताई।
मैं उसे हाथ से पकड़ते हुए बिस्तर पे ले आया और उसके इतने पास आ गया कि मेरी गर्म सांसें उसके चेहरे से टकराने लगीं।
उसकी आँखों में झांकते हुए मैंने उसके होंठों से अपने होंठ टिका दिए और उन्हें चुभलाने लगा… उसने सिर्फ पैंटी और सैंडो बनियान पहन रखा था जिससे उसके बदन की पूरी गर्माहट मैं अपने जिस्म पर महसूस कर सकता था।
मैंने उसकी बनियान को ऊपर सरकाते और अपने हाथ उसकी पैंटी में घुसाते हुए उसके नरम गुदाज चूतड़ों को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।
इस सख्त स्पर्श पर उसके बदन में एक लहर सी दौड़ गई।
उसने भी अपनी बाहें उठा कर मेरे गले में पिरो दीं और एक प्रगाढ़ चुम्बन में सहयोग करने लगी।
यह तो ज़ाहिर था कि थोड़ी ही देर में उसके दिमाग पर नशा हावी होने लगा और बदन से चिंगारियाँ छूटने लगीं।
उसने खुद से मुझसे अलग होते हुए मेरे बदन से मेरी टीशर्ट निकाल फेंकी और मैंने अपनी लोअर खुद अलग करके डाल दी और उतनी ही तेज़ी से उसकी बनियान और पैंटी भी उतार दी।
अब हम मादर ज़ात नंगे थे।
इस नग्नता का एहसास उसके गुलनार होते गालों और झुकी हुई पलकों से ज़ाहिर हो रहा था.. मैं तो खैर बेशर्म था ही।
मैंने उसे फिर से दबोच लिया।
दो नग्न शरीरों का आपसी स्पर्श और घर्षण दिमागी अख्तियार को बेहद कमज़ोर कर देता है- यह मेरे लिए पुराना मगर उसके लिए एकदम नया अनुभव था।
मैं उसके गुलाबी नरम होंठों से जैसे शहद को खींच निकालने की कोशिश करने लगा और इस बीच उसके शरीर पर फिरते मेरे हाथ कभी उसके नितम्बों, कभी मम्मों और कभी योनि के किनारों से घर्षण करने लगे।
मैंने यह भी महसूस किया कि वह भी बेअख्तियार अंदाज़ में मेरे लिंग को अपने हाथों में ले लेकर मसल देती थी, सहला देती थी।
बिस्तर की चादर अस्त-व्यस्त होने लगी।
मैंने उसके होंठों से खुद को हटाते हुए उसके चेहरे, गर्दन और कन्धों पर होंठ रगड़ने शुरू किये और वह खुद ही सुविधाजनक अंदाज़ में चित लेट गई और मैं अपना भार अपने घुटनों पर देते हुए उसके ऊपर आ गया।
मैं अपने होंठ उसके कन्धों से उतारते हुए उसके बाये वक्ष पर ले आया और वहाँ आकर रुक जहाँ एक छोटी सी पिंकिश भूरी चोटी उत्तेजना से तनी हुई थी।
उस पर एक हल्का चुम्बन अंकित करते हुए मैंने अपनी जीभ निकाली और उसे ज़ुबान की नोक से छेड़ने लगा।
वह ‘सी-सी’ करती अकड़ने लगी, उसके बदन की थरथराहट मैं महसूस कर सकता था।
उसने होंठ अंदर करके भींच लिए थे और अपनी एक हथेली से बिस्तर की चादर रगड़ रही थी तो दूसरी मुट्ठी में चादर को दबोच लिया था।
कुछ देर उससे किलोलें करने के बाद मैंने उसे होंठों के बीच दबोच लिया और हल्के हल्के दांतों का स्पर्श भी देते हुए चुभलाने लगा।
मेरा बायां हाथ तो सहारे के लिए गद्दे पे था लेकिन दाएं हाथ से मैं उसकी दूसरी चोटी को चुटकी में लेकर मसलने लगा।
उसकी साँसें भारी हो गईं और मुंह से दबी दबी सिसकारियाँ आज़ाद होने लगीं।
उसने अपने दोनों हाथों से अब मेरा सर थाम लिया था और सहलाने लगी थी।
थोड़ी देर बाद मैंने बाईं साइड की नोक छोड़ी तो दायीं साइड की नोक को मुंह में ले लिया और बाईं ओर की गीली हो चुकी चोटी को अपने बाएं हाथ से मसलने लगा।
बस ऐसा लग रहा था जैसे शहद भरी फूली हुई किशमिश हो जिसे चूसते चूसते चबा डालने की सख्त इच्छा हो रही थी।
जब उन किश्मिशों से जी भर गया तो उन्हें छोड़ कर नीचे सरक चला।
उसने मेरे सर से अपने हाथ हटा लिए और तकिया के कोने पकड़ लिए।
नीचे उसके सपाट गोरे पेट पर गहरा सा नाभि का गढ्ढा कम आकर्षक नहीं था… मैं जीभ की नोक से उसे छेड़ने लगा।
फिर उसके शरीर में ऐसी लहर दौड़ी जैसे उसे गुदगुदी हो रही हो लेकिन उसने मुझे धकेला नहीं।
नाभि को गीला करके मैं वहाँ उतर आया जो मेरी क्या हर मर्द की मंज़िल थी। आज, कल की तरह बाल नहीं थे, बल्कि उन्हें बड़ी नफासत से कुतर दिया गया था और अब उनके बीच की त्वचा भी स्पष्ट हो रही थी।
मैंने एक प्यार और भरोसे से भरा चुम्बन वहाँ अंकित करके खुद को उसके घुटनों से नीचे ले आया। उसके पैरों को घुटनों से मोड़ कर उन्हें अंतिम हद तक फैला दिया जिससे उसकी अनछुई, कुंवारी योनि अपने पूरे आकार में मेरे सामने खुल सके।
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