RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
भले आपके शरीर को चौबीस घंटे आपका दिमाग नियंत्रित करता हो लेकिन ऐसे निजी पलों में दो विपरीतलिंगी शरीरों के आपसी घर्षण के वक़्त आपके यौनांग आपके दिमाग को नियंत्रित करते हैं- यह एक कड़वी हकीकत है और उसकी इस वक़्त यही हालत थी।
मैं उंगली सिर्फ उतनी गहराई तक ले गया था कि उसकी झिल्ली को कोई क्षति न पहुंचे और उसकी सीमा जान कर मैं उतनी गहराई में ही उंगली अंदर बाहर करने लगा।
साथ ही अपने होंठ और जीभ से उसकी कलिकाओं और भगांकुर को चुभला रहा था खींच रहा था।
उसकी साँसों में जैसे गुर्राहटें सी आ गईं थीं… चेहरा एकदम लाल पड़ गया था और नशे से आँखें भी अजीब सी हो गई थीं।
वह मेरे सर के बालों को नोच डालने पर उतारू हो गई थी।
‘प…प्लीज… अब बस करो, क-कुछ निकल जाएगा… प्लीज!’ उसने भारी साँसों के बीच लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा।
मैं एकदम से उछल के बिस्तर से नीचे आ गया और उसे चूतड़ों से पकड़ के एकदम किनारे ले आया और गद्दे की कगार पर उसके चूतड़ टिकाते हुए खुद फर्श पर उकड़ू बैठ गया और उसके पेट को एक हाथ से पकड़ कर फिर वैसे ही मुंह और उंगली को उनकी जगह पहुंचा दिया।
‘जो निकले निकाल दो… रोको मत, वर्ना रात भर फिर सो नहीं पाओगी।’ बीच में मैंने मुंह उठाते हुए कहा और फिर वहीं टिक गया।
उसके बदन की अकड़न बढ़ने लगी।
फिर उसके योनिद्वार से ऊपर छोटे से हुड से ढके मूत्रद्वार से एक तेज़ धार निकल पड़ी। कुछ तो मेरे मुंह में गई और कुछ मेरी गर्दन और सीने से होती नीचे फर्श पर…
उसके मुंह से एक तेज़ आह निकली थी और वह बुरी तरह अकड़ने लगी थी।
साथ ही उसके योनिद्वार से भी रस निकल पड़ा था जिसे मैंने अपनी उंगली पे अनुभव किया। इसके बावजूद भी मैंने खुद को उससे अलग नहीं किया बल्कि जो कर रहा था वैसे ही करता रहा।
यह उसका पहला पानी था जो इस तरह मूत्र के साथ निकल पड़ा था।
मूत्र निकलना कोई बड़ी बात नहीं, ऐसे समय अगर यूरीन ब्लेडर भरा हो तो स्खलन के समय जब योनि की मांसपेशियाँ फैलती सिकुड़ती हैं तो वे मूत्र को भी नियंत्रित नहीं कर पाती।
मैं वैसे ही जीभ से उसे चाटते हुए उंगली से अंदर बाहर करता रहा और वह रुक रुक कर न सिर्फ पेशाब करती रही बल्कि स्खलित भी होती रही।
जो मूत्र मेरे मुख में जा रहा था वह मैं ऐसे ही निकाले दे रहा था कि बिस्तर पे न जाए और जो गर्दन सीने पे जा रहा था वो तो नीचे जा ही रहा था लेकिन जो स्खलन का रस बह रहा था वह ज़रूर चादर को भिगा रहा था।
जी भर के स्खलित होने के बाद वह सनसनाते हुए मस्तिष्क के साथ ऐसे बेजान सी पड़ गई जैसे बेहोश हो गई हो।
मैंने उसे पैरों से थाम कर पूरी तरह बिस्तर पर कर दिया और खुद को वहीं पड़े उसके स्टोल से साफ़ करने लगा।
मेरा मुंह भी थक गया था तो मैं भी उसके बगल में पड़ गया और अपनी साँसें दुरुस्त करने लगा।
करीब पांच मिनट बाद उसने आँखें खोलीं और मुझे बड़े अनुराग से देखने लगी।
‘क्या वाकई हर बार इतना मज़ा आता है।’ उसके स्वर में अविश्वास सा था।
‘इससे ज्यादा- उंगली की जगह अगर पेनिस हो तो इससे लगभग दोगुना!’
उसने एक ‘आह’ सी भरते हुए आँखें बंद कर लीं।
कुछ पल तक कुछ सोचती रही, फिर आँखें खोल कर मुझे देखने लगी- क्या लड़की ऐसे ही डिस्चार्ज होती है… मतलब ऐसे ही स्क्वरटिंग करते हुए?
‘नहीं, ऐसा रेयर ही होता है या जानबूझकर किया जाए। मतलब जब यूरीन ब्लेडर भरा हो और सहवास किया जाए तो स्खलन के वक़्त वेजाइनल मसल्स से कंट्रोल हट जाता है… तब ऐसे होता है। ऐसा आम कंडीशन में होने लगे तो समझो कि हर सेक्स के बाद बिस्तर की हालत खराब हो जाए। यह रस नहीं था तुम्हारा… बल्कि पेशाब था।’
‘जो तुम्हारे मुंह में जा रहा था। तुम्हे गन्दा नहीं लगा?’
‘नहीं। मैंने इन पलों में तुम्हें मन से स्वीकार किया था… तुम्हारी कोई भी चीज़ मेरे लिए अस्वीकार्य या घृणित नहीं है। सिर्फ स्खलन के लिए योनि और लिंग का घर्षण किया जाए वहाँ यह बातें मायने रखती हैं पर ऐसे मामले में नहीं।’
‘तुम क्या कह रहे थे कि ये स्क्वर्टिंग जानबूझकर भी की जाती है?’
मैंने अपने मोबाइल पर एक पोर्न साइट खोली और उसे स्क्वर्टिंग वाली फ़िल्में दिखाने लगा जिनमे लड़कियाँ स्तम्भन या स्खलन के दौरान ज़ोर जोर से पेशाब की धाराएँ छोड़ती हैं।
वह गहरी दिलचस्पी से वह छोटी छोटी फ़िल्में देखने लगी और ऐसे ही एक घंटा गुज़र गया।
इस बीच वह धीरे धीरे फिर गर्म हो गई थी, इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैंने उसकी उंगलियाँ अपने शांत पड़े लिंग पर महसूस की।
उसकी उँगलियों की सहलाहट से उसमें फिर जान पड़ने लगी।
मैंने फोन को किनारे रख दिया और उससे सट कर उसकी आँखों में झाँकने लगा।
‘हम रात भर यह करेंगे।’ कहते हुए उसके स्वर में अनिश्चितता थी।
‘देखते हैं… कब तक तुम बर्दाश्त कर सकती हो खुद को इस हाल में!’ मैंने शरारत से मुस्कराते हुए कहा और उसे चिपटा कर अपने ऊपर खींच लिया।
‘तुम्हारे मुंह से कुछ महक आ रही है।’
‘तुम्हारी ही है।’
‘क्या हर बार ऐसे ही डिस्चार्ज होना पड़ेगा मुझे?’
‘यह तुम्हारे ऊपर डिपेंड है। स्खलन सिर्फ लिंग योनि के घर्षण से संभव नहीं होता बल्कि दिमाग को वहाँ, उस पॉइंट पर पहुंचना पड़ता है। अगर तुम चाहो तो अपने दिमाग को दूसरे तरीके से भी वहाँ ले जा सकती हो… हम एक दूसरे को ज़बरदस्त ढंग से रगड़ेंगे, चूमेंगे, सहलाएंगे और तुम अपने शरीर के हर हिस्से से उस घर्षण की उत्तेजना को फील करते हुए अपने दिमाग को पूरी एकाग्रता से वहाँ ले जाने की कोशिश करोगी जहाँ चरमोत्कर्ष का बिंदु है।
किसी भी पल में खुद को रोकोगी या संभालोगी नहीं बल्कि दिमाग से यह ठान लोगी कि तुम्हे स्खलित होना है।’
‘कोशिश करती हूँ। ज़ाहिर है कि मेरे लिए सब कुछ नया है, अजीब है, तो मुझे नहीं पता कि हो पाएगा या नहीं पर कोशिश करुँगी।’
मैंने उसकी पीठ अपने सीने पेट से सटाते हुए उसके दोनों बूब्स ज़बरदस्त ढंग से मसलने शुरू किये, होंठ फिर उसके होंठों से सटा दिए…
उसने कुछ झिझक तो ज़रूर महसूस की क्योंकि मेरा मुंह उसके कामरस और मूत्र से सना था लेकिन दिमाग पर हावी होते नशे ने वह झिझक कुछ ही पल में मिटा दी और वह खुद से सहयोग करने लगी।
एक हाथ उसके वक्ष पर छोड़ कर दूसरे को मैं नीचे ले गया और उसकी योनि के ऊपरी भाग को सहलाने रगड़ने लगा।
कुछ ही पलों में वह ऐंठने मचलने लगी।
बिस्तर की चादर फिर अस्त व्यस्त होने लगी और हमारे नग्न शरीरों के बीच ऐसी रगड़ घिसाई शुरू हो गई जैसे कोई फ्रेंडली मल्ल युद्ध चल रहा हो।
|