RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
यह प्रक्रिया मैंने करीब बारह पंद्रह बार दोहराई और उसका दर्द हर बार हल्का पड़ते एकदम गायब हो गया जिसका एक कारण यह भी था कि मैंने लगातार उसके भगांकुर को सहलाते मसलते उसे गर्म करता रहा था और वह खुद भी अपने मम्मों को निप्पलों समेत रगड़ती मसलती, गर्म करती रही थी और साथ ही उसका छेद भी ढीला होकर इतना खुल गया कि अब लिंग को अंदर बाहर होने में कोई बाधा नहीं महसूस हो रही थी।
उसमें कसाव अब भी था मगर वैसा नहीं कि लिंग अंदर बाहर न हो सके।
‘अब ठीक है… हम कर सकते हैं। सुनो… तुम ऐसा करना जब मैं अंदर घुसाऊँ तो छेद को बाहर की तरफ फेंकते हुए उसे बाहर निकालने की कोशिश करो जैसे लैट्रीन करते वक़्त करते हो और जब मैं उसे बाहर की तरफ खींचूं तो तुम छेद को सिकोड़ कर उसे रोकने की कोशिश करो।’
इसके लिए ज़रूरी था कि मैं यह अंदर बाहर करने की प्रक्रिया को धीरे धीरे करूँ।
मैंने ऐसा ही किया और उसने ऐन मेरे निर्देशानुसार वैसा ही किया जिससे उसे अजीब सा मज़ा आया।
‘हम्म… अच्छा लग रहा है।’ उसने अपना हाथ अपनी योनि पर लगाते हुए कहा और खुद से वह करने लगी जो मैं कर रहा था जिससे मेरे हाथ फ्री हो गए और मैं उसके मुड़े हुए पैरों के घुटनों को पकड़ कर बाआहिस्तगी से चोदन करने लगा।
थोड़ी देर उसी अवस्था में सम्भोग करने के बाद मैंने लिंग बाहर निकाल लिया और उसे फिर पहले जैसी पोजीशन में आने को कहा।
वो फिर डॉगी स्टाइल में झुक कर बैठ गई और मैंने उसकी कमर को दबाते हुए इसे इस तरह बिस्तर से सटा दिया कि सिर्फ नितम्ब ही उठे हुए रह गए।
अब फिर गीला और ढीला पड़ चुका गेहुंए रंग का छेद मेरे सामने था।
उसके नितम्बों पर प्यार भरी सहलाहट देते हुए मैंने फिर लिंग अंदर घुसा दिया।
एक पल के लिए लगा कि उसे तकलीफ हुई हो लेकिन फिर वह सम्भल गई और खुद से आगे पीछे होने लगी।
जब मैं अंदर की तरफ घुसाता तो वह अपने चूतर पीछे की तरफ धकेलती और जब बाहर निकालता तो वह अपने चूतड़ों को आगे खींचती।
इस तरह वह घर्षण को और ज्यादा अच्छे से महसूस कर सकती थी… इस स्थिति में वह अपना एक हाथ नीचे लाकर अपनी योनि को भी रगड़ने लगी थी।
थोड़ी देर के धक्कों में ही न सिर्फ वह बल्कि मैं भी उत्तेजना के चरम पर पहुँचने लगे।
‘जोर जोर से करो।’ उसने ‘आह’ सी भरते हुए कहा।
मुझे भी यही अनुभूति हो रही थी। मैंने धक्कों की स्पीड तेज़ कर दी।
कमरे में मेरे पेट और उसके कूल्हों के टकराने से होती ‘थप-थप’ की आवाज़ें फैलने लगीं।
साथ ही उसकी मस्ती और उत्तेजना में डूबी कराहें कमरे के माहौल में और आग भरने लगीं।
मेरी साँसें भी भारी हो गई थीं और दिमाग स्खलन के उस चरम बिंदु पर पहुँचने लगा था।
फिर वह जोर की ‘आअह्ह’ करते हुए अकड़ गई।
योनि को रगड़ने वाला हाथ हटा कर उसने बिस्तर की चादर को दबोच लिया और जैसे अपनी सारी उत्तेजना उस चादर और गद्दे में जज़्ब करने लगी, जबकि मैं भी उसके जिस्म के साथ ही पीछे के छेद में आये कसाव को अपने लिंग पर महसूस करते हुए बह चला था और मेरी भी आहें छूट गईं।
मैंने अकड़ते हुए तीन चार झटके लगाए और उसके पैरों को एड़ियों से पकड़ कर ऐसे खींचा कि पैर बेड से नीचे रहे और बाकी जिस्म बेड पर फैल गया और साथ ही उसकी पीठ और चूतड़ों की तरफ से उससे सटा मैं भी उसी के ऊपर फैल गया और उसे पूरी ताक़त के साथ अपने नीचे दबाते हुए, हल्की गुर्राहटों के साथ स्खलित होने लगा।
जब ट्यूब खाली हो गई तो कुछ देर दिमाग में होती झनझनाहट से जूझने के बाद मैं उसके ऊपर से हट कर उसके पहलू में फैल गया और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा।
मज़ा आ गया।’ थोड़ी देर बाद उसने करवट ली और मेरी आँखों में देखते हुए बोली- अब मैं इमैजिन कर सकती हूँ कि जब आगे से इस तरह सोहबत करते होंगे तो कितना मज़ा आता होगा।’
‘अभी तुम्हारे मज़े ने दर्द से लड़ कर जीत पाई है। जब दर्द की गुंजाईश नहीं बचेगी और तब करेंगे तो इससे ज्यादा मज़ा आएगा।’
‘तुम्हारा पेस्ट अंदर ही है।’
‘हाँ- धीरे धीरे निकल जायेगा या ऐसा करो बाथरूम जाकर बैठो और थोड़ा जोर लगाओ, सब निकल जायेगा।’
‘अंदर भी रह जाये तो कोई प्रॉब्लम है क्या?’
‘नहीं। क्या प्रॉब्लम होगी… मुझे एच आई वी थोड़े है और वैसे भी रेक्टम ऐसी जगह है जहाँ बैक्टीरिया की भरमार होती है। वहाँ स्पर्म भला क्या नुक्सान पहुंचा पाएंगे।’
‘फिर रहने दो, फाइनली जब तुम जाओगे तो साफ़ कर लूंगी। अभी जहाँ जो भी बहता चूता है उसे बहने चूने दो। चादर चेंज करनी ही है। चलो एनल सेक्स वाली मूवी दिखाओ, कौन कौन से आसन इस्तेमाल होते हैं।’
फिर हम कायदे से लेट कर एनल सेक्स वाली मूवी देखने लगे।
करीब घंटे भर बाद फिर गर्म हुए… पर इस बार हमने खेलने के अंदाज़ में कई आसनों से गुदामैथुन का मज़ा लिया। उसका छेद इतने बार में इतना ढीला हो गया था कि अब आराम से हम हर पोजीशन में सहवास कर सकते थे।
फिर काफी खेल चुके तो मैंने फिर उसकी चटाई शुरू की और उसे उत्तेजना के शिखर तक पहुँचा कर वापस लिंग अंदर घुसाया और जोर जोर से धक्के लगाने शुरू किये।
इतनी देर खेलने का असर पड़ा और दोनों जल्दी ही डिस्चार्ज हो गए।
फिर लेट कर फ़िल्में देखीं, कुछ कहानियाँ पढ़ीं और फिर एक एक पैग लेके वापस जुटे।
हालाँकि अब मैं स्खलित नहीं होना चाहता था क्योंकि यह एक दिन का नहीं था, अभी लगातार चार रातें झेलना था। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने उसे ही चरमोत्कर्ष तक पहुँचा दिया और खुद को बचाए रखा।
बुध की रात का काम तमाम हुआ और मैं थका हारा वापस पहुँच कर सो गया।
अगला दिन
अगले दिन वह सुबह कुछ जल्दी ही यूनिवर्सिटी चली गई, जहाँ से मैंने उसे बारह बजे पिक किया।
वहाँ से निकल कर इंजीनियरिंग कॉलेज के पास पहुँचे जहाँ हमने थोड़ा खाया पिया फिर रिंग रोड पे चलते, खुर्रम नगर चौराहे से मुड़ कर कुकरैल पिकनिक स्पॉट आ गए।
अब उसका रोज़ का मामूल था कि वह घर से वैसे ही बंद गोभी की तरह ढकी मुंदी निकलती, कहीं मौका देख कर अपने लबादे को पर्स में ठूंस लेती, नीचे जीन्स टॉप टाइप का पहनावा होता और वापसी में वह फिर से नक़ाब स्कार्फ मढ़ लेती और जैसी घर से निकलती थी वैसे ही घर पहुँचती।
यह इलाका भी प्रेमी जोड़ों के लिए काफी मुफीद था और यहाँ हर तरह के करम हो जाते थे।
बहरहाल, हमें तो वैसे भी अपने कर्मों के लिए सुविधा उपलब्ध थी इसलिए हमने इधर उधर लेटे बैठे वक़्त गुज़ारा और इधर उधर की बातें करते न सिर्फ चूमाचाटी की, बल्कि मौका देख कर उसने लिंग चूषण भी किया, जबकि मैंने उसके मम्मों का मर्दन चूषण किया और उसके दोनों छेदों में उंगली भी खूब की, जिससे उसका वहाँ भी पानी छूट गया था।
उसे पीछे के छेद में दर्द था और हल्की सूजन भी महसूस हो रही थी इसलिए उसके दर्द और सूजन की दवा हमने इंजीनियरिंग कॉलेज के पास से ही ले ली थी जिसकी वजह से अब उसे दर्द से तो राहत थी।
आज उसे पांच बजे ही रिहा कर दिया, वह घर निकल गई और मैं अपने कुछ दोस्तों साथियों के पास, जहाँ मुझे इतना वक़्त लग गया कि मैं गौसिया के पास दस के बजाय साढ़े दस बजे पहुंचा।
‘कहाँ अटक गए थे?’ उसने थोड़ी नाराज़गी भरे स्वर में कहा।
‘थोड़ा मसाज आयल का जुगाड़ कर रहा था।’
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