RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह औंधा लेट गया।
उसने तेल लेकर मेरी पूरी पीठ गर्दन पर फैला दिया और पहले अपने नरम नरम हाथों से मेरी पीठ रगड़ती रही फिर मेरी गर्दन चूमते हुए… मेरे पेट के दोनों तरफ फैले अपने घुटनों पर भार रखते हुए, मेरी पीठ पर इस तरह झुक गई कि उसके मम्मे पीठ से रगड़ने लगे।
अब वह अपने तेल से चिकनाए वक्षों को सख्ती से मेरी पूरी पीठ पर रगड़ने लगी।
यह नरम नरम छुअन मेरे लिंग को कड़ा करने लगी।
वह अपने वक्षों को रगड़ती नीचे जाती, ऊपर आती, दाएं जाती, बाएं जाती और ऐसी ही अवस्था में नीचे खिसकते हुए मेरे घुटनों तक पहुँच गई और अपने वक्षों से ही मेरे कूल्हों को रगड़ने मसलने लगी।
फिर दोनों हाथों से मुट्ठियों में मेरे चूतड़ों को मसलती रगड़ती मेरे जुड़े हुए पैरों पर घुटनों के पीछे अपने पेट के निचले सिरे, यानि उस हिस्से को जहाँ उसकी गीली होकर बह रही योनि थी और तेल से नहाया गुदाद्वार था, रगड़ने लगी।
वहाँ से उठती भाप जैसे मैं अपने पैरों पर महसूस कर सकता था।
दोनों कूल्हों को मसलती कहीं वह उन्हें एक दूसरे से मिला देती तो कहीं एकदूसरे के समानांतर फैला देती और यूँ मेरे गुदाद्वार को अपने सामने नुमाया कर लेती।
फिर उसने वहाँ भी तेल टपकाया और मेरे छेद को उंगली से सहलाने लगी।
मेरे दिमाग पर नशा सा छा रहा था।
भले मैं ‘गे’ नहीं था लेकिन यह ऐसी संवेदनशील जगह थी जहाँ इस तरह की छुअन आपको उत्तेजित ही कर देती है, भले करने वाला पुरुष हो या औरत।
और जैसा कि मैं उम्मीद कर रहा था उसने सहलाते सहलाते अपनी उंगली अंदर उतार दी।
मुझे भी वैसा ही मज़ा आया जैसा उसने महसूस किया होगा और मेरी भी ‘आह’ छूट गई जिसे सुन कर वह हंसने लगी- क्या तुम्हें भी मज़ा आता है यहाँ?
उसने शरारत भरे अंदाज़ में पूछा।
‘किसे नहीं आता? मगर मर्द के दिमाग में बचपन से यह बात पारम्परिक मान्यता की तरह ठूंस दी जाती है कि यह गलत है और मर्द होकर मर्द से करना तो बिल्कुल गलत है इसलिए सामान्य मर्द इस हिस्से के मज़े से बेहिस बने रहते हैं, जो इस वर्जना को तोड़ देते हैं वह भले मज़ा हासिल करने में कामयाब रहते हो लेकिन ‘गे’ के रूप में समाज में अपमानित भी होते हैं।’
फिर वह बड़ी लगन और दिलचस्पी से उंगली अंदर बाहर करने में लग गई और मैं आँखें बंद करके उस मज़े पर कन्सन्ट्रेट करने लगा जो मुझे अपने जिस्म के उस हिस्से से मिल रहा था जो मेरे संस्कारों के हिसाब से इस क्रिया के लिये वर्जित था।
फिर उसने उंगली हटा ली और मेरे कूल्हों को छोड़ कर परे हटी और मुझे पलट कर सीधा कर लिया।
अब वह अपनी दोनों टांगें मेरे इधर उधर रखे मेरे पेट पर बैठ गई… उसकी गर्म, रस और भाप छोड़ती योनि और तेल से चिकना हुआ गुदाद्वार मेरे पेट से रगड़ता उसे गीला करने लगा और वह मेरे कन्धों और सीने की मालिश करने लगी।
इस घड़ी उसके चेहरे पर शरारत थी और आँखों में मस्ती…
मसाज करते करते वह पीछे खिसकी और वहाँ पहुँच गई जहाँ लकड़ी की तरह तना मेरा लिंग मौजूद था जो अब उसकी दरार की गर्माहट को अपने ऊपर महसूस कर रहा था।
फिर गौसिया मेरे सीने पे ऐसे झुकी कि उसके दूध मेरे पेट के ऊपरी हिस्से से रगड़ खाने लगे और उसने जीभ निकाल कर मेरे छोटे से निप्पल को चाटा, मेरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।
वह हंस पड़ी।
‘मतलब आदमी को भी वही संवेदनाएं होती हैं।’
‘कुछ हद तक… वैसी सहरंगेज नहीं पर होती हैं।’
फिर वह अपनी ज़ुबान से मेरे दोनों तरफ के निप्पल छेड़ने चुभलाने लगी।
नीचे उसकी गीली दरार मेरे पप्पू को बुरी तरह भड़का रही थी।
फिर उसने खुद से अपने चूतड़ों को इस तरह सेट किया कि मेरे लिंग की नोक उसके पीछे वाले छेद से सट गई और अपना एक हाथ पीछे ले जा कर वह लिंग को पकड़ कर अंदर घुसाने की कोशिश करने लगी।
अगर यह कोशिश शुरू में की होती तो अंदर होने में थोड़ी मुश्किल आती भी लेकिन अब तक तो हम कामोत्तेजना से ऐसे तप चुके थे कि मेरा लिंग लकड़ी बन चुका था और उसका छेद खुद से गीला होकर ढीला हो गया था।
थोड़ी कसाकसी के साथ वह गर्म गड्ढे में उतर गया।
एक आह सी उसके मुंह से ख़ारिज हुई और उसने मेरे निप्पल से मुंह हटा लिया और कुछ ऊपर होकर मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कराने लगी।
‘इस तरह आगे पीछे होना तो ध्यान रखना कहीं आगे ही न घुस जाए।’
‘नहीं घुसने दूँगी और घुस भी गया तो देखा जायेगा।’
हम दोनों के शरीर तेल से चिकने हुए पड़े थे… वह मेरे पेट से सीने तक अपने दूध रगड़ते आगे हुई तो लिंग धीरे धीरे सरकता हुआ बाहर हो गया।
फिर उसी तरह वह वापस नीचे खिसकी और यह चाहा कि लिंग खुद छेद में घुस जाए लेकिन इस तरह योनि में तो घुस सकता है मगर गुदा में नहीं।
उसे फिर हाथ की मदद लेनी पड़ी।
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