Hindi Sex Kahaniya कामलीला
09-11-2018, 11:46 AM,
#67
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
भले उसके दिमाग में छोटे बड़े का फर्क निकल गया था पर वर्जना अभी भी कहीं बाकी थी जो उसके होंठों को बंद गठरी में बांधे थी। सोनू अपने गीले होंठों से उन्हें कुचल रहा था, मसल रहा था और अपने होंठों में खींच कर चूसने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन वह सहयोग नही कर पा रही थी।
ऐसा नहीं था कि उसे बुरा लग रहा हो मगर वह उस झिझक से नहीं जीत पा रही थी जो उसके दिल-दिमाग पर अभी तक हावी थी।
फिर वे दो गीले होंठ उसके होंठों को छोड़कर नीचे उतरते गये, पहले उसकी ठुड्डी पर, फिर गर्दन पर और फिर नीचे जहाँ से उसके उभार शुरू होते थे…
वे गीली गीली छुअन देते उनकी चोटियों पर जा थमे थे और चोटियों के गिर्द गोल घेरा बनाते फिर रहे थे।
उसने अपने निप्पलों में कड़ापन आता अनुभव किया था और जैसे वे खुद उन होंठों में जाने को आतुर हो गए थे।
फिर उन होंठों से एक जीभ बरामद हुई जो उसके एरोला पर फिरने लगी।
उसके बदन में दौड़ता नशा और बढ़ गया।
जीभ एरोला से होती उन चुचुकों पर चढ़ आई और उन्हें लपेटती फिरने लगी। 
ऐसा लगा जैसे उसके बदन में उन निप्पलों से लेकर योनि की गहराइयों तक करेंट की धारा प्रवाहित होने लगी हो।
वह ऐंठने लगी, मचलने लगी। 
उसने अपना एक निप्पल सोनू के मुंह में जाते महसूस किया और एकदम से गनगना कर ज़ोर की ‘आह’ कर बैठी, जिस पर बाद में उसे खुद शर्म आई।
‘दीदी के निप्पल कितने मोटे हैं।’ उसने चूषण के बीच में आवाज़ सुनी। 
वह समझ न सकी कि यह तारीफ थी या बुराई। निप्पल का मोटा होना अच्छा था या ख़राब…
लेकिन प्रत्युत्तर में रानो सिर्फ ‘हूँ’ करके रह गई। 
दोनों चूचुकों को चुसाते उसने अनुभव किया था कि उसकी योनि से उस रस का रिसाव होने लगा है जो इस बात का सूचक था कि वह अब समागम को आतुर है। 
लेकिन समागम करने वाला तो बड़े इत्मीनान से उसके वक्ष से खेल रहा था।
फिर उसने सोचा कि अच्छा ही है यह खेल जितना लंबा चले उतना ज्यादा मज़ा। 
आखिर इस सिलसिले का अंत हुआ और वह उसके चूचुकों को छोड़ कर नीचे उतरने लगा और उसके सीने के नीचे हर हिस्से पर अपनी जीभ की छुअन देते, उसके पेट तक पहुंच गया।
उसकी जीभ शीला की नाभि के गड्ढे से किलोलें करने लगी। 
उसमें और सिहरनें दौड़ने लगीं.. और जब योनि के ऊपर मौजूद घने बालों से गुज़र कर नीचे गीली हुई पड़ी योनि तक पहुँचा तो इस सिहरन की इन्तहा हो गई।
वह खुद से महसूस कर सकती थी कि उसके भगोष्ठ गीले हुए पड़े थे और वह उन पर बाहर से ही जीभ चलाता, अपनी लार से और गीला करने लगा।
फिर उसने उंगलियों से योनि के होंठ खोले थे और अंदर के नर्म और गर्म भाग में उंगली फिराने लगा।
उसके पूरे शरीर में ऐसी तेज़ झनझनाहट पैदा हुई कि जिस्म अकड़ गया।
सोनू उंगली ऊपर-नीचे करके, फिर बीच वाली उंगली योनि के सबसे निचले सिरे पर मौजूद छेद में थोड़ी दूर तक उतार ले गया और अपनी जीभ की नोक से उसकी योनि की कलिकाओं को चूसने-खींचने लगा। 
उन पलों में उसे ऐसा लगा जैसे उसका खुद पर अब कोई नियंत्रण न बाकी रह गया हो और उसने रानो को छोड़ दिया और हाथ नीचे करके बिस्तर की चादर ऐसे मुट्ठियों में दबोच ली जैसे अपनी ऊर्जा उसमें जज़्ब कर देना चाहती हो।
कुछ देर उन कलिकाओं को खींचने चूसने के बाद सोनू अपनी जीभ की नोक से उसके भगांकुर को छेड़ने दबाने और खोदने लगा।
उसके शरीर में दौड़ती लहरें और तेज़ हो गईं।
जबकि सोनू की उंगली लगातार अंदर-बाहर हो रही थी। 
‘दीदी की झिल्ली है क्या?’ अचानक उसने मुंह उठा कर पूछा।
‘नहीं, बचपन में साइकलिंग की नज़र हो गई।’ जवाब रानो ने दिया था।
फिर उंगली और गहरे तक धंसती गई और जितनी जा सकती थी पूरी अंदर चली गई।
शीला की तड़प और बढ़ गई… उसके दिमाग में वह सब चल रहा था कि कैसे उसने रानो के साथ पहला सम्भोग किया था। 
वह भी खुद को उसी मनःस्थिति में पा रही थी कि जल्दी से सब हो जाये, सोनू एकदम उसकी योनि में अपना लिंग घुसा दे और उसे इतने धक्के लगाये कि उसकी बरसों की चाह पूरी हो जाये। 
लेकिन सोनू तब नया था, अनाड़ी था जबकि अब वह एक अनुभवी खिलाड़ी था, उसमें अधीरता लेशमात्र भी न रही थी और सब इतने सब्र के साथ कर रहा है जैसे…
जैसे इस सिलसिले का कोई अंत नहीं करना चाहता हो!
जैसे उसे बस तड़पाते रहना चाहता हो। 
‘अब करो भी।’ अचानक उसे रानो की सख्त गुर्राहट सी सुनाई दी।
रानो उसे बेहतर समझ सकती थी कि वह किस हाल से गुज़र रही थी। 
‘दीदी, मेरा भी तो तैयार करो।’ उसे सोनू की बेशर्म बात सुनाई दी।
‘वह दी से नहीं होगा।’ रानो ने टालने वाले अंदाज़ में कहा।
‘तो आप करो न।’ सोनू ने ज़िद की। 
फिर उसने बिस्तर पर खिसकने की सरसराहट महसूस की और यह महसूस किया जैसे सोनू अब उसके सीने की तरफ आ गया हो।
इसके बावजूद वह अब ऊपर की तरफ से उसकी योनि से मुंह भी लगाए था और उंगली से योनिभेदन भी कर रहा था। 
लेकिन अब उसे एक नई किस्म की आवाज़ अपने चेहरे के पास सुनाई देने लगी थी जैसे मुंह से कोई चीज़ चूसी जा रही हो। 
इतनी नादान नहीं थी कि समझ न सकती… जो वह नहीं कर सकती थी वह रानो कर रही थी, वह सोनू का लिंग चूषण कर रही थी।
शुरुआत में उसमे वितृष्णा के भाव पैदा हुए लेकिन जल्दी ही योनि से उठती सिहरनों ने उसकी विचारधारा बदल दी।
एक मर्द अगर किसी स्त्री की योनि को अपनी जीभ से चूस सकता है तो स्त्री के लिये वही चीज़ कैसे वर्जित हो गई। 
हालांकि अभी वह खुद को इसके लिए तैयार नहीं पाती थी लेकिन रानो को लिंगचूषण करते देखना चाहती थी, पर पट्टी हटाने की भी हिम्मत नहीं थी। 
फिर वह आवाज़ें थमी और एक बार फिर सरसराहट हुई और उसने महसूस किया कि सोनू उसकी टांगों के बीच आ बैठा हो।
तो वक़्त आ गया अब उसके पहले सम्भोग का। 
उसने मानसिक रूप से खुद को लिंग के स्वागत और भेदन के लिये कर लिया। 
उसने दरवाज़े पर मेहमान की छुअन महसूस की और वह परदे सरकाता हुआ अंदर झाँका, कुछ सेकेंड उसने नीचे से ऊपर चलते-फिरते जैसे टोह ली हो।
फिर उसने योनि के छेद पर उसके शिश्नमुंड का दबाव महसूस किया और उसने दोनों हाथों से उसकी जांघों के निचले हिस्से को सख्ती से थाम लिया।
वह परिपक्व थी, दर्द को ऐसे क्षणों में तवज्जोह नहीं देना चाहती थी इसलिये दिमाग से हर पल में आनन्द अनुभव करना चाहती थी। 
फिर ऐसा लगा जैसे वह उसके संकुचित से छेद पर गहरा दबाव डाल रहा हो, कसी हुई दीवारें फैल रही हों।
उसने उन दीवारों को ढीला कर दिया और एकदम ऐसा लगा जैसे बंधन टूट गया हो। 
जैसे रबर का छल्ला एकदम खिंच कर फैल गया हो और एक मोटा चिकना ऑब्जेक्ट अंदर प्रवेश कर गया हो।
दर्द की एक तेज़ लहर उसके दिल दिमाग को हिला गई। 
उसके मुख से एक ज़ोर की ‘आह’ ख़ारिज हुई थी और उसने एक हाथ से तकिये और दूसरे हाथ से रानो की बांह दबोच ली थी और उस दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी थी।
पर कुछ भी था, वह उम्र के उस दौर में नहीं थी जहाँ ऐसे वक़्त में लड़की तड़पने मचलने लगती है।
इसका कारण भी था, कि कम उम्र में योनि की मांसपेशियाँ काफी सख्त होती हैं और जब उन पर लिंग के प्रथम प्रवेश का दबाव पड़ता है तो वे खिंचते वक़्त ज्यादा तकलीफ देती हैं।
जबकि उम्र बढ़ने के साथ उन्हीं मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ जाता है और वे ढीली हो जाती हैं। जिस दर्द को झेलने में रानो कुछ वक़्त के लिये मूर्छित हो गई थी, उसने वह दर्द झेल लिया था।
सोनू ने उसके घुटनों से पकड़ नहीं हटाई थी मगर शीला को मचलते या उसे परे धकेलते न पाकर पकड़ ढीली ज़रूर कर दी थी और उसे यह भी समझ में आ गया था कि शीला वैसे नहीं रियेक्ट करेगी जैसे वह अपेक्षा कर रहा था।
उसने लिंग को आधी दूरी पर ही रोक लिया था और योनि की मांसपेशियों को पूरा मौका दे रहा था कि वे उसके साइज़ के हिसाब से एडजस्ट हो सकें।
साथ ही उसने अपने हाथ शीला के घुटनों से हटा कर एक हाथ से उसके वक्ष को मसलने लगा था तो दूसरे हाथ से उसके भगांकुर को रगड़ने लगा था। 
जबकि रानो अपने एक हाथ से शीला के सर को सहलाती उसे हिम्मत बंधाने का अहसास पैदा कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके एक वक्ष को नर्मी से सहला रही थी।
उन दोनों की ही कोशिशों से वह जल्दी ही इस झटके से उबर गई और उसने महसूस किया कि उसकी योनि में उठी दर्द की लहरें अब ठंडी पड़ रही थीं।
उसके चेहरे पर राहत के आसार आते देख सोनू ने लिंग को पीछे खींचा और शिश्नमुंड तक बाहर निकाल कर फिर वापस अंदर ठेल दिया।
सख्त दीवारों की चरमराहट में उसने दर्द की आमेज़िश फिर महसूस की लेकिन इस बार वह बर्दाश्त के लायक था।
उसे पता था कि योनि की बनावट उलटी बोतल जैसी होती है। शुरुआत में बोतल के मुंह की तरह संकरा मार्ग होता है और संवेदना पैदा करने वाली सारी मांसपेशियाँ इसी कुछ इंच के मार्गे में होती हैं।
इसके आगे योनि खुल कर फैल जाती है, अंदर उसकी गहराई शरीरों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है मगर यह तय है कि दर्द का रिश्ता इसी शुरुआती मार्ग से होता है।
लिंग की लंबाई कई तरह के आसनों के लिये मैटर कर सकती है लेकिन सम्भोग के लिये कोई मैटर नहीं करती।
जो लिंग आधा घुसने में जितना दर्द देगा उतना ही पूरे में भी महसूस होगा। 
योनि के लिये लिंग की मोटाई मैटर करती है, जितना ज्यादा मोटा लिंग, शुरुआत में उतना ही ज्यादा दर्द और योनि के ढीली हो जाने पर शायद मज़ा भी कुछ ज्यादा हो जाता हो। 
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