Hindi Sex Kahaniya कामलीला
09-11-2018, 11:48 AM,
#76
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
काम पर जाने के बजाय वह घर ही पड़ी रही। रानो ने उसे दर्द की दवा ला दी थी जिससे उसे थोड़ी राहत हुई थी। 
उस दिन पहली बार उन चारों बहन भाई ने एकसाथ बैठ कर इस समस्या पर बात की और पहली बार बबलू उनकी मनःस्थिति और उनकी विवशता समझने को राज़ी हुआ। 
शीला की शादी के लिये जो पैसा जुटा कर रखा गया था वह बबलू की पढ़ाई पर लग रहा था… आगे का यह तय हुआ कि आकृति की पढ़ाई के लिये भी जो पैसा खर्च होगा वह रानो के लिये सुरक्षित पैसों से होगा।
जो माहौल बन चुका है उसे वे बदल नहीं सकते और ऐसे माहौल में उनका यहाँ रहना ठीक नहीं, बेहतर है कि वे होस्टल में रहें।
दोनों बहने खुद ही आ कर उनसे मिल लिया करेंगी, बाकी फोन पर तो बातें होती रहेंगी।
उनके लिये बेहतर भविष्य की उम्मीद सिर्फ इसी में है कि वे दोनों पढ़ लिख कर कुछ बन सकें।
फिर इसके बाद यही हुआ था। 
उन दोनों भाई बहन को वहाँ से हटा दिया गया था और चंदू ने जैसे मुस्तक़िल ठिकाना उनके यहाँ ही बना लिया था। अब या तो वह अपने ‘काम’ पर होता था या जेल में या उनके यहाँ!
उसने दोनों बहनों को भी पीने की लत लगा दी थी और एक अच्छी बात ये भी की थी कि घर खर्च के लिये पैसे वही देता था जिससे उनकी गुज़र आराम से हो जाती थी।
आकृति फिर कभी उनके बीच झगड़े का मुद्दा न बनी।
‘फिर अब, भविष्य के लिये क्या सोचा है?’ उसका सबकुछ जान लेने के बाद मैंने उससे जानना चाहा था।
‘बड़ा सा पुश्तैनी घर है… कई बिल्डर खरीदने को भी तैयार हैं। दोनों भाई बहन किसी मुकाम पर पहुंच जायें तो मौका देख कर चुपके से बेच कर लखनऊ ही छोड़ दें। किसी और शहर में जा बसें।
नई ज़िन्दगी शुरू करें जहां कोई हमारा अतीत जान्ने वाला न हो। मुझे पता है कि उनके सम्मान के लिये हमे भी गरिमापूर्ण जीवन जीना होगा।
जिसके लिये हमे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पहले की ही तरह बलि देनी होगी और हमने इसके लिये खुद को तैयार भी कर रखा है। शायद इसीलिये हम चंदू के साथ खुश हैं।
क्योंकि हमे पता है कि कैसे भी मिल रहा है पर उसके साथ हमे वह सुख तो मिल रहा है जो आगे शायद हमें कभी न मिले।’
‘और चाचा?’
‘दो साल में अब और कमज़ोर हो गया है। मैंने कभी उसके साथ सहवास नहीं किया, रानो ही करती है जब ज़रूरत महसूस होती है लेकिन उसके लिये भी हमारे पास कुछ अलग नहीं। जहां हम सब होंगे वहीं वह भी होगा। उसका हमारे सिवा है ही कौन।’
‘क्या मैं तुम्हारे किसी काम आ सकता हूँ।’
‘कैसे, तुम चंदू से हमारा पीछा छुड़ा सकते हो? शायद नहीं… और छुड़ा भी दो तो उससे क्या हमारी समस्या ख़त्म हो जायेगी।
हमारे शरीर में पैदा होने वाली वासनात्मक ऊर्जा को कोई जायज़ निकासी मिलेगी क्या?
चंदू गुंडा है, बदमाश है, एक सभ्य समाज के लिये कोढ़ है मगर हमारे लिये तो अपरिहार्य है। तुम्हें पता है हमारे पीछे पूरा मोहल्ला हमें रंडियां ही कहता है।
हमें दुनिया चंदू की रखैल के रूप में ही जानती है। किसी को हमारी मज़बूरी से कोई मतलब नहीं। कोई नहीं देखेगा कि हम क्यों उसके आगे समर्पण कर बैठी।
दुनिया बस यह देखेगी कि हमने वर्जनायें तोड़ी हैं, हमने सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। हमने बड़े बूढ़ों के बनाये नियमों को ठोकर मारी है और एक स्त्री के सम्मान को चोट पहुंचाई है।
फिर किसे मतलब कि हमारे जैसी अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर औरतों के लिये जब समाज ने सिवा सब्र करने के कोई नियम बनाया ही नहीं तो हम और क्या करें?
सम्भोग की इच्छा शरीर में पैदा होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा है जो इंसानों को ही नहीं जानवरों तक को नहीं छोड़ती। कैसे हम उन स्त्री सुलभ मानवीय इच्छाओं का दमन कर लें।
मर्द को भूख सताती है तो कहीं भी चढ़ दौड़ता है। उसका चरित्र वर्जना तोड़ने को लेकर कभी कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता लेकिन पुरुष वर्चस्व वादी समाज में औरत के लिये ही सारे नियम हैं।
लोगों को तकलीफ यह कम होती है कि हमने या हमारे जैसी औरतें मर्यादा वर्जना तोड़ती हैं बल्कि इससे ज्यादा यह होती है कि दूसरों को भोगने को मिल रहा है हमे क्यों नहीं।
आजकल चंदू जेल में है तो लोगों की ज़ुबाने खुलने लगी हैं। जो सामने निगाहें भी नहीं मिलाते थे अब ताने मारने लगे हैं। पड़ोस के शर्मा अंकल, जिन्हें हम हमेशा चाचा जी कहते थे।
कल आये थे हमे आइना दिखाने, हमे बताने कि हमारी वजह से मोहल्ले की बहु बेटियों पर बुरा असर पड़ रहा है और वे बिगड़ी जा रही हैं।
गालियां दीं, हमे वेश्या कहा और ढेरों लोगों को हमारे दरवाज़े पर इकठ्ठा करके हमे मोहल्ले से निकालने पर तुल गये। बड़ी मुश्किल से हमारी जान छूटी।
जानते हो एक रात नशे में यह हमारे दरवाज़े पर आये थे, हम पर अहसान जताने कि हम उनके सपोर्ट की वजह से ही यहां रह पा रहे हैं। इसकी कीमत चाहते थे कि हम उन्हें अपने ऊपर चढ़ाएं।
हमने मना कर दिया था और उन्हें भगा दिया था… यही थी इनकी सामाजिक ठेकेदारी। इसी नाकामी का दाग धोने आये थे हमें रुस्वा करके।
सुबह मैंने चंदू से बात की, उसके पास इतनी पावर है कि जेल से भी बात कर सकता है। फिर उसका मेसेज लेके शर्मा जी के यहां गई।
कि चंदू ने कहलाया है कि उसे आने दो वह शर्मा जी की इच्छा ज़रूर पूरी करेगा और हमे वहाँ से हटा देगा। तो लग गये माफियाँ मांगने।’
‘हम्म…’ मैं थोड़ी सोच में पड़ गया- तो मेरे लिये तुम्हारे पास इसलिये वक़्त निकल पाया कि चंदू जेल में है आजकल!
‘हाँ!’ वह खामोश हो कर मुझे देखने लगी। 
‘और जब बाहर आ जायेगा तब?’
‘तब भी… तुम चाहोगे तो हम दोस्त बने रहेंगे। पता है इस बदनामी के बाद लोग हमसे कन्नी काटने लगे। हमारे पास बात करने वाला भी कोई नहीं, कोई सहेली नहीं, कोई दोस्त नहीं।
रानो जिन चाचा जी के यहाँ पढ़ाती थी, उन्होंने रानो का अपने घर आना बंद करा दिया और लोगों ने अपने बच्चे हमारे घर भेजने गवारा न किये।
उसकी इनकम बंद हो गई तो उसने भी मोहल्ले से दूर एक छोटी सी नौकरी कर ली। पच्चीस सौ पगार मिलती है… पांच सौ किराये में खर्च हो जाते हैं और सिर्फ दो हज़ार बचते हैं।
मैं भी आने जाने के किराये के सिवा बस तीन हज़ार पाती हूँ। सोचो, इस महंगाई के दौर में पांच हज़ार में होता क्या है। अगर चंदू हमारा खर्च न उठाये तो हमे मुसीबत हो जाये।
तुम ऐसे देखोगे तो तुम्हे लगेगा मेरे साथ बुरा हुआ… जैसे मैं किसी ज़ुल्म का शिकार हुई हूँ, जैसे मैं पीड़ित हूँ लेकिन इसी में मेरी मेरी भलाई भी है। इसी में मेरी गति भी है। 
हमें अपनी वासना को तृप्त करने का कोई जायज़ स्रोत नहीं मिलने वाला तो हमारी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके सिवा और कौन सा मार्ग हो सकता है?
चंदू लाख बुरा सही मगर उससे न सिर्फ हमे आर्थिक सुरक्षा हासिल है बल्कि हम इस नैतिकता के ठेकेदार समाज में बिना किसी अहित की आशंका के जी भी तो रहे हैं।
हाँ, मुझे तुममें दिलचस्पी थी, मैं तुमसे बात करना चाहती थी क्योंकि मैं चाहती थी कि कोई मुझे जाने, कोई मुझे समझे।
जैसी हमें ज़माना समझता है हम वैसी नहीं हैं। हम वेश्या नहीं हैं, हम बदचलन नहीं हैं। हमारी भी मजबूरियां हैं।
हम समाज की वह अभिशप्त नारियां हैं जो बड़ी उम्र तक कुवारी बैठी रहती हैं और जिन्हें एक दिन हार कर अपनी शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण करना पड़ता है। 
हम यह रास्ता इसलिये चुनते हैं क्योंकि समाज ने हमारे लिये विकल्प नहीं छोड़े। सब्र करना इसका इलाज नहीं है।
ये ढाई अक्षर किसी नारी को गहरी यौन कुंठा के गर्त में धकेल देते हैं जहाँ पल पल की घुटन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हासिल होता।
पर इसका मतलब यह नहीं कि वर्जनाओं को तोड़ कर अपने हिस्से का प्राकृतिक सुख हासिल कर लेने वाली नारी वेश्या हो जाती है।
हम रंडियां नहीं हैं।’
कहते कहते उसकी आँखें भीग गईं और आवाज़ रूंध गई तो मैं उसे अपने कंधे से लगा कर थपकने लगा। 
फिर थोड़ी देर हमारे बीच ख़ामोशी पसरी रही और थोड़ी देर बाद मैं उसका चेहरा उठा कर उसकी आँखों में झांकता हुआ बोला- नहीं… तुम वेश्या नहीं बल्कि मेरी नज़र में वैसी ही गरिमापूर्ण नारी हो जिसने बगावत की और वह हासिल किया जिसे उसके हिस्से में नहीं लिखा गया था।
समाज का लगभग हर मर्द ऐसा ही करता है। अगर सिर्फ अधिकृत पार्टनर से ही सेक्स जायज़ है तो इस समाज का लगभग हर मर्द भी तुम्हारे साथ अपराधी के रूप में ही खड़ा है।
और अगर इस समाज की ज़ुबाने उन मर्दों को दोषी ठहराने में थरथराती हैं तो उन्हें तुम्हे भी दोषी कहने का अधिकार नही।’
फिर थोड़ी देर हमने और वहाँ गुज़ारी और फिर हम वापसी के लिये वहां से चल पड़े।
जिस घड़ी मैंने उसे उसके मोहल्ले के पास छोड़ा तो रुखसती के वक़्त उसकी आँखों में आभार था… कृतज्ञता थी।
और उसके शब्द थे ‘थैंक्स… आज मैं हल्की हो गई। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुमने मुझे कितना समझा, कितना नहीं। मुझे इस बात की तसल्ली है कि तुमने मेरी हर बात गौर से सुनी, मुझे समझने की कोशिश की। 
मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंतर में समाया, मुझे दिन रात ग्लानि का अहसास कराने वाला कोई बोझ मुझ पर से हट गया और मैं आज़ाद हो गई।
मुझे सुकून है कि दुनिया में कोई तो है जिसने मेरी बेगुनाही को जाना। जो मेरे न रहने पर भी किसी पूछने वाले को बता सकेगा कि मेरी क्या मजबूरियां थीं। थैंक्स।’
और वह चली गई— उसके शब्द मेरे ज़हन में बजते रहे और उस रात बड़ी देर तक मैं सो भी न सका। उसके ग़म से बेचैन होता रहा।
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