RE: Antarvasna kahani जुआरी
कुणाल ने दूसरा पत्ता फेंका...
वो ईंट का 9 नंबर था.
अब तो मिसेस आरती चोपड़ा की आँखे चमक उठी....
उसने एक जोरदार ठहाका लगाते हुए अपने तीनो पत्ते नीचे फेंक दिए
उसके पास K का पेयर आया था...और साथ में इक्का था.
कामिनी का दिल रो पड़ा वो देखकर...
ऐसी भरी महफ़िल में एक और हार वो बर्दाश्त नही कर सकती थी...
और वो भी तब जब सभी की नज़रें थी इस गेम पर..
पर जैसे ही आरती ने सारे पैसे अपनी तरफ खिसकाने चाहे,कुणाल के काले हाथों ने उसे रोक दिया.. और अपना तीसरा पत्ता बीच में फेंक दिया.
वो था चिड़ी का 8 नंबर.
यानी उसके पास 7,8,9 का सीक़वेंस आया था..
उसके पत्तो को देखकर आरती के साथ-2 उसकी सहेलियों के चेहरे का भी रंग उड़ गया...
इतने बड़िया पत्तों की उन्हे उम्मीद भी नही थी..
और वहीं दूसरी तरफ कामिनी को अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हुआ..
आज से पहले उसके पास इतने अच्छे पत्ते नही आए थे....
और इस बार ठहाका लगाने की बारी कामिनी की थी...
उसने ज़ोर से हंसते हुए, आरती का मज़ाक सा उड़ाते हुए, सारे पैसे अपनी तरफ कर लिए...
और दोनो को पता था की इस गेम में पैसों से ज़्यादा उनकी इज़्ज़त दाँव पर लगी थी...
जो कामिनी की बच गयी थी और मिसेस चोपड़ा की लुट गयी थी.
वो जब बाहर आए तो जैसे ही गाड़ी का दरवाजा कुणाल ने खोला, कामिनी ने उसे मुस्कुराते हुए बंद किया और घूमकर आगे वाली सीट का दरवाजा खोला और वहाँ बैठ गयी...
कुणाल को विश्वास ही नही हुआ...पहले ही दिन वो उससे इतना इंप्रेस हो गयी थी की पिछली सीट से उठकर अगली पर आ चुकी थी...
इस वक़्त कामिनी गीली सीट वाला वाक़या बिल्कुल भूल चुकी थी....
उसे बस खुशी थी तो वो ये की उसने आज क्लब में एक बड़ी गेम जीती है और वो भी मिसेस चोपड़ा को हराकर...
आज उसकी नाक थोड़ी और उँची हो गयी थी...
इसलिए कुणाल को थेंक्स कहने के लिए वो उसके साथ आगे ही आकर बैठ गयी..
गाड़ी चलते ही वो बोली : "थॅंक्स कुणाल...तुम्हे पता नही है की आज तुमने कितना बड़ा काम किया है....ये लो इसका इनाम...''
इतना कहते हुए उसने अपने पर्स में से, जो इस वक़्त पैसो से बुरी तरह से भरा हुआ था, करीब 20 हज़ार निकाल कर कुणाल को दे दिए... कुणाल ने हंसते हुए उन्हे अपने पास रख लिया..
कामिनी : "पर एक बात का मुझे अभी तक विश्वास नही हो रहा है की इतने अच्छे पत्ते मेरे पास आए है,ये बात तुम्हे कैसे पता थी...वरना उसकी तरफ से आ रही चाल को देखकर मैं तो समझ ही गयी थी की उसके पास पत्ते अच्छे है, हो सकता था की मेरे पत्ते बेकार निकलते...''
कुणाल ने मुस्कुराते हुए कहा : "मेडम जी....आपके पत्ते बेकार ही निकले थे.... ये देखो...ये रहे आपके पत्ते...''
इतना कहते हुए उसने अपनी आस्तीन में से तीन पत्ते निकाल कर कामिनी को पकड़ा दिए...
कामिनी फटी आँखो से उन्हे देखने लगी...वो 4,7 और बादशाह थे और वो भी अलग-2 कलर के...
कामिनी : "पर...ये...कैसे....''
कुणाल : "हा ...हा...मेडम जी...मैने जब ब्लाइंड पे ब्लाइंड चलने के बाद पत्ते उठाए तो उन्हे मैने अपनी कलाई के अंदर छुपाए पत्तो से बदल दिया था... वैसी ही ताश की गड्डी मैने एक वेटर से पहले माँग ली थी...''
उसकी इस कलाकारी की बात सुनकर तो कामिनी उसकी और भी बड़ी वाली फेन हो गयी....
यानी वो खुद खेलती तो वो पक्का ही हार जाती....
उसने प्यार भरी नज़रों से कुणाल को थेंक्स कहा.
आज पहली बार उसे अपनी नौकरानी का पति कुणाल अच्छा लगा था...
वरना आज से पहले वो उसे दूसरी ही नजर से देखती थी..
पर वो बेचारी ये नही जानती थी की ये कुणाल की भी प्लानिंग है...
धीरे-2 वो कामिनी को अपने जाल मे फँसा रहा था....
आज उसके जुए का एक्सपीरियेन्स काफ़ी काम आया था...
और आने वाले टाइम में भी ये जुए का खेल उसके बहुत काम आने वाला था...क्योंकि दिवाली आने वाली थी.
और उसी जुए की हेल्प से वो कामिनी की चूत मारने के सपने देखने लगा.
कार में बैठा कुणाल बार-2 तिरछी नज़रों से कामिनी को देख रहा था.
वेस्टर्न ड्रेस में उसके मोम्मे पूरी तरह से उभरकर दिख रहे थे... कामिनी भी जानती थी की कुणाल की नज़रें उसी की तरफ है, पर आज वो खुश ही इतनी थी की उसे बिल्कुल भी बुरा नही लग रहा था..बल्कि कुणाल ने जो काम किया था, उसके बाद तो उसका इस तरह से देखना उसे अच्छा लग रहा था.
और ये निशानी होती है एक चुद्दक्कड़ औरत की...
अपनी क्लास के मर्दों को छोड़कर जब वो दूसरों की गंदी नज़रों का मज़ा लेने लग जाए तो समझ लेना चाहिए की उसने चुद्दक्कड़ बनने का एक और एग्साम पास कर लिया है.
और अपनी ही खुशी में डूबी कामिनी ने अपने पर्स में से एक छोटी सी वॉटर बॉटल निकाली और पी ली.
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