RE: Antarvasna kahani चुदाई का वीज़ा
शायद उन के लोग अभी अंदर ही थे. इस लिए उन के इंतिज़ार में वो लोग बाहर बारिश में ही खड़े होने पर मजबूर थे.उन के साथ साथ अब्बा भी बुरी तरह से भीगे हुए थे.
में तो वीसा ना मिलने की वजह से पहले ही परेशान थी.और अब एक नई मुसीबत बारिश की शकल में मेरी मुन्तिजर थी.
अब्बा ने मुझ से कहा कि चलो एर पोर्ट चलते हैं वहीं बैठ कर शाम की फ्लाइट का इंतेज़ार करेंगे.
में बाहर आई तो मूसला धार बारिश की वजह से में भी फॉरन ही खूब भीग गई.
मैने गर्मी की वजह से वाइट कलर के लवन के कपड़े पहने हुए थे.
और “सोने पर सोहगा” कि में आज सुबह जल्दी जल्दी में सफेद कपड़ों के नीचे काले रंग का ब्रेजियर पहन के आई थी.
इस लिए ज्यूँ ही बारिश के पानी ने बारीक कपड़ों में मलबोस मेरे जिस्म को भिगोया. तो ना सिर्फ़ मेरे जिस्म का अंग अंग नीम नुमाया होने लगा. बल्कि सफेद कपड़ों के नीचे मेरे काले रंग के ब्रेजियर में क़ैद मेरे बड़े बड़े मम्मे और भी उभर कर नुमाया होने लगे.
में बारिश में भीगते हुए अपने इर्द गिर्द खड़े मर्दों की गरम निगाहों को अपने उघड़े हुए जिस्म के आर पार होता हुआ महसूस कर रही थी.
अब्बा भी शायद लोगों की मुझ पर पड़ती हुई बे बाक निगाहों को समझ रहे थे.
इसी लिए उन्होने मुझे थोड़ा गुस्से में कहा “नबीला बेटी में इसी लिए तुम को कहता हूँ कह घर से बाहर हमेशा चादर ले कर निकला करो मगर तुम नही मानती”.
अपने सुसर की बात सुन कर मुझे और शर्मिंदगी हुई .मगर अब हो भी क्या सकता था.
इस लिए बे बसी की हालत में अपनी निगाहें ज़मीन पर गाढ़े में चुप चाप खड़ी बारिश में भीगती रही.
एंबसी के सामने दो तीन टेक्शी खड़ी तो थीं. मगर उन सब ने उस वक़्त एरपोर्ट जाने से इनकार कर दिया.
इस की वजह ये थी कि उन को करीब के पेसेन्जर मिल रहे थे. इस लिए शायद वो कम वक़्त में ज़्यादा पैसे बनाने को तरजीब दे रहे थे.
जब अब्बा ने देखा कि इस वक़्त कोई भी टेक्शी वाला हम को एरपोर्ट ले जाने को तैयार नही.
तो उन्हो ने मुझे कहा कि हम करीब के एक होटेल में चले चलते हैं. और फिर शाम को वहाँ से ही एर पोर्ट चले जाएँगे.
में तो पहले ही अपने नीम दिखते जिस्म पर पड़ने वाली लोगो की भूकी नज़रों से तंग थी. इस लिए मैने फॉरन हां कर दी और यूँ हम लोग टेक्शी में बैठ कर एक करीबी होटेल में चले आए.
कमरे में पहुँच कर में भीगी ही हालत में कमरे के सोफा पर बैठ गई. जब कि अब्बा ने एरपोर्ट फ्लाइट की इन्फर्मेशन के लिए फोन मिला लिया.
फोन की लाइन मिलने पर एरपोर्ट इंक्वाइरी से मालूम हुआ कि चान्स पर होने की वजह से शाम की फ्लाइट पर हमारी सीट्स कन्फर्म नही हैं.
इस पर अब्बा ने कहा कि वो बुकिंग ऑफीस जा कर सीट कन्फर्म करवा लेते हैं और वापिसी पर हम दोनो के लिए बाज़ार से एक एक जोड़ा कपड़ों का भी लेते आएँगे.
ये कह कर अब्बा ने रूम सर्विस मेरे लिए कुछ कहने का ऑर्डर दिया और फिर वो पीआईए ऑफीस जाने के लिए कमरे से निकल गये.
अब्बा के जाने के थोड़ी देर बाद होटेल का वेटर मेरे लिए समोसे और चाय वग़ैरह ले आया.
में अभी सोमोसे खाने में मसरूफ़ थी, कि उसी वक़्त जमाल के मोबाइल पर फोन आगया और मेने उन को सारी तफ़सील बता दी कि वीसा रिजेक्ट हो गया है. जमाल ने मुझे तसल्ली दी तो मेरा दिल थोड़ा हलक हो गया.
जमाल से बात ख़तम होने के बाद में सोचने लगी कि में कब तक इन भीगे हुए कपड़ों में ही लिपटी बैठी रहूं गी.
फिर मैने सोचा कि अभी अभी तो अब्बा गये हैं उन को लोटने में अभी देर है तो क्यों ना में अपने कपड़े उतार कर उन को अच्छी तरह से सूखा लूँ.
ताकि अगर अब्बा के लाए हुए कपड़े मुझे पूरे ना आए तो में अपने इन्ही कपड़ों को दुबारा पहन सकूँगी.
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