Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:34 AM,
#2
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह राजस्थान के बाड़मेर शहर के एक धनवान व्यापारी थे. उनका शेयर ट्रेडिंग का बिज़नस था. जयसिंह दिखने में ठीक-ठाक और थोड़े पक्के रंग के थे लेकिन एक अच्छे धनी परिवार से होने की वजह से उनका विवाह मधु से हो गया था जो कि गोरी-चिट्टी और बेहद खूबसूरत थी. जयसिंह का विवाह हुए २३ साल बीत चुके थे और वे तीन बच्चों के पिता बन चुके थे, जिनमें सबसे बड़ी थी मनिका जो २२ साल की थी और अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, उस से छोटा हितेश था जो अभी कक्षा में था और सबसे छोटी थी कनिका जो में पढ़ती थी. जयसिंह की तीनों संतान रंग-रूप में अपनी माँ पर गईं थी. जिनमें से मनिका को तो कभी-कभी लोग उसकी माँ की छोटी बहन समझ लिया करते थे.

मनिका ने अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद एम.बी.ए. करने का मन बना लिया था और उसके लिए एक एंट्रेंस एग्जाम दिया था जिसमे वह अच्छे अंकों से पास हो गई थी. उसे दिल्ली के एक कॉलेज से एडमिशन के लिए कॉल लैटर मिला था जिसमें उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. जयसिंह ने भी उसे वहाँ जाने के लिए हाँ कह दिया था. मनिका पहली बार घर से इतनी दूर रहने जा रही थी सो वह काफी उत्साहित थी. मनिका ने दिल्ली जाने की तैयारियाँ शुरू कर दीं. वह कुछ नए कपड़े, जूते और मेक-अप का सामान खरीद लाई थी. जब उसकी माँ ने उसे ज्यादा खर्चा न करने की हिदायत दी तो जयसिंह ने चुपके से उसे अपना ए.टी.एम. कार्ड थमा दिया था. वैसे भी पहली संतान होने के कारण वह जयसिंह की लाड़ली थी. वे हमेशा उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते रहे थे.

***

आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें दिल्ली जाना था, जयसिंह मनिका के साथ जा रहे थे. उन दोनों का ट्रेन में रिजर्वेशन था.

'मणि?' मधु ने मनिका को उसके घर के नाम से पुकारते हुए आवाज़ लगाई.

'जी मम्मी?' मनिका ने चिल्ला कर सवाल किया. उसका कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था.

'तुम तैयार हुई कि नहीं? ट्रेन का टाइम हो गया है, जल्दी से नीचे आ कर नाश्ता कर लो.' उसकी माँ ने कहा.

'हाँ-हाँ आ रही हूँ मम्मा.'

कुछ देर बाद मनिका नीचे हॉल में आई तो देखा कि उसके पिता और भाई-बहन पहले से डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट कर रहे थे.

'गुड मोर्निंग पापा. मम्मी कहाँ है?' मनिका ने अभिवादन कर सवाल किया.

'वो कपड़े बदल कर अ...आ रही है.' जयसिंह ने मनिका की ओर देख कर जवाब दिया था. लेकिन मनिका के पहने कपड़ों को देख वे हकला गए थे.

बचपन से ही जयसिंह सिंह के कोई रोक-टोक न रखने की वजह से मनिका नए-नए फैशन के कपड़े ले आया करती थी और जयसिंह भी उसकी बचकानी जिद के आगे हार मान जाया करते थे. लेकिन बड़ी होते-होते उसकी माँ मधु ने उसे टोकना शुरू कर दिया था. आज उसने अपनी नई लाई पोशाकों में से एक चुन कर पहनी थी. उसने लेग्गिंग्स के साथ टी-शर्ट पहन रखी थी. लेग्गिंग्स एक प्रकार की पजामी होती है जो बदन से बिलकुल चिपकी रहती है सो लड़कियां उन्हें लम्बे कुर्तों या टॉप्स के साथ पहना करती हैं, लेकिन मनिका ने उनके ऊपर एक छोटी सी टी-शर्ट पहन रखी थी जो मुश्किल से उसकी नाभी तक आ रही थी. लेग्गिंग्स में ढंके मनिका के जवान बदन के उभार पूरी तरह से नज़र आ रहे थे. उसकी टी-शर्ट भी स्लीवेलेस और गहरे गले की थी. जयसिंह अपनी बेटी को इस रूप में देख झेंप गए और नज़रें झुका ली.

'पापा कैसी लगी मेरी नई ड्रेस?' मनिका उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली.

'अ...अ...अच्छी है, बहुत अच्छी है.' जयसिंह ने सकपका कर कहा.

मनिका बैठ कर नाश्ता करने लगी उतने में उसकी माँ भी आ गई लेकिन उसके कुर्सी पर बैठे होने के कारण मधु को उसके पहने कपड़ों का पता न चला.

'जल्दी से खाना खत्म कर लो, जाना भी है, मैं जरा रसोई संभाल लूँ तब तक...' कह मधु रसोई में चली गई. 'हर वक्त ज्ञान देती रहती है तुम्हारी माँ.' जयसिंह ने दबी आवाज़ में कहा.

तीनो बच्चे खिलखिला दिए.

नाश्ता कर चुकने के बाद मनिका उठ कर वाशबेसिन में हाथ धोने चल दी, जयसिंह भी उठ चुके थे और पीछे-पीछे ही थे. आगे चल रही मनिका की ठुमकती चाल पर न चाहते हुए भी उनकी नज़र चली गई. मनिका ने ऊँचे हील वाली सैंडिल पहन रखी थी जिस से उसकी टांगें और ज्यादा तन गईं थी और उसके नितम्ब उभर आए थे. यह देख जयसिंह का चेहरा गरम हो गया था. उधर मनिका वॉशबेसिन के पास पहुँच थोडा आगे झुकी और हाथ धोने लगी, जयसिंह की धोखेबाज़ नज़रें एक बार फिर ऊपर उठ गईं थी. मनिका के हाथ धोने के साथ-साथ उसकी गोरी कमर और नितम्ब हौले-हौले डोल रहे थे. यह देख जयसिंह को उत्तेजना का एहसास होने लगा था पर अगले ही पल वे ग्लानी और शर्म से भर उठे.

'छि...यह मैं क्या करने लगा. हे भगवान् मुझे माफ़ करना.' पछतावे से भरे जयसिंह ने प्रार्थना की.

मनिका हाथ धो कर हट चुकी थी, उसने एक तरफ हो कर जयसिंह को मुस्का कर देखा और बाहर चल दी. जयसिंह भारी मन से हाथ धोने लगे.
जब तक मधु रसोई का काम निपटा कर बाहर आई तब तक उसके पति और बच्चे कार में बैठ चुके थे. जयसिंह आगे ड्राईवर के बगल में बैठे थे और मनिका और उसके भाई-बहन पीछे, मधु भी पीछे वाली सीट पर बैठ गई और कनिका को अपनी गोद में ले लिया. उसे अभी भी अपनी बड़ी बेटी के पहनावे का कोई अंदाजा न था. कुछ ही देर बाद वे स्टेशन पहुँच गए. वे सब कार पार्किंग में पहुँच गाड़ी से बाहर निकलने लगे. जैसे ही मनिका अपनी साइड से उतर कर मधु के सामने आई मधु का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.

'ये क्या वाहियात ड्रेस पहन रखी है मणि?' मधु ने दबी जुबान में आगबबूला होते हुए कहा.

'क्या हुआ मम्मी?' मनिका ने अनजाने में पूछा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी माँ गुस्सा क्यूँ हो रही थी. गलती मनिका की भी नहीं थी, उसे इस बात का एहसास नहीं था कि टी.वी.-फिल्मों में पहने जाने वाले कपड़े आम-तौर पर पहने जाने लायक नहीं होते. उसने तो दिल्ली जाने के लिए नए फैशन के चक्कर में वो ड्रेस पहन ली थी.

'कपड़े पहनने की तमीज नहीं है तुमको? घर की इज्ज़त का कोई ख्याल है तुम्हें?' उसकी माँ का अपने गुस्से पर काबू न रहा और वह थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोल गईं थी 'ये क्या नाचनेवालियों जैसे कपड़े ले कर आई हो तुम इतने पैसे खर्च कर के...!'

मनिका अपनी माँ की रोक-टोक पर अक्सर चुप रह कर उनकी बात सुन लेती थी, लेकिन आज दिल्ली जाने के उत्साह और ऐन जाने के वक्त पर उसकी माँ की डांट से उसे भी गुस्सा आ गया.

'क्या मम्मी हर वक्त आप मुझे डांटते रहते हो. कभी आराम से भी बात कर लिया करो.' मनिका ने तमतमाते हुए जवाब दिया, 'क्या हुआ इस ड्रेस में ऐसा, फैशन का आपको कुछ पता है नहीं...और पापा ने कहा की बहुत अच्छी ड्रेस है...’ जयसिंह उन दोनों की ऊँची आवाजें सुन उनकी तरफ ही आ रहे थे सो मनिका ने उनकी बात भी साथ में जोड़ दी थी.

'हाँ एक तुम तो हो ही नालायक ऊपर से तुम्हारे पापा की शह से और बिगड़ती जा रही हो...' उसकी माँ दहक कर बोली.

'क्या बात हुई? क्यूँ झगड़ रही हो माँ बेटी?' तभी जयसिंह पास आते हुए बोले.

'संभालो अपनी लाड़ली को, रंग-ढंग बिगड़ते ही जा रहे हैं मैडम के.' मधु ने अब अपने पति पर बरसते हुए कहा.

जयसिंह ने बीच-बचाव की कोशिश की, 'अरे क्यूँ बेचारी को डांटती रहती हो तुम? ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा है...’ वे जानते थे कि मधु मनिका के पहने कपड़ों को लेकर उससे बहस कर रही थी पर उन्होंने आदतवश मनिका का ही पक्ष लेते हुए कहा.

'हाँ और सिर चढ़ा लो इसको आप...' मधु का गुस्सा और बढ़ गया था.

लेकिन जयसिंह उन मर्दों में से नहीं थे जो हर काम अपनी बीवी के कहे करते हैं और मधु के इस तरह उनकी बात काटने पर वे चिढ़ गए, 'ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है, जो मैं कह रहा हूँ वो करो.' जयसिंह ने मधु हो आँख दिखाते हुए कहा.
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