RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह के लिए यह सब मानो स्लो-मोशन में चल रहा था. मनिका को इस तरह अधनंगी देख उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ उड़नछू हो चुकी थी, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था. मनिका के पहने नाम मात्र के कपड़ों में से झलकते उसके जिस्म ने जयसिंह के दीमाग के फ्यूज उड़ा कर रख दिए थे. अब मनिका ने सकुचा कर अपने सूटकेस की तरफ कदम बढ़ाए, जयसिंह की तन्द्रा भी टूट चुकी थी. असल में यह सब एक पल में ही घट चुका था, जयसिंह को अब मनिका का अधो-भाग नज़र आ रहा था, उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झांकते नितम्बों को देख उनके लंड की नसें फटने को हो आईं थी, 'ये मनिका तो साली मेनका निकली..’उन्होंने मन में सोचा. मगर इस सब के बावजूद भी उनका अपनी सोच पर पूरा काबू था, मनिका के हाव-भाव देखते ही वे समझ गए थे कि चाहे जो भी कारण हो मनिका ने ये कपड़े जान-बूझकर तो नहीं पहने थे, 'जिसका मतलब है कि वह अब कपड़े बदलने की कोशिश करेगी...ओह शिट ये मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता...’ जयसिंह ये सोचते ही उठ खड़े हुए और बाथरूम में घुसते हुए मनिका से बोले,
'मनिका!'
'जी पापा..?' मनिका उनके संबोधन से उचक गई थी और उसने सहमी सी आवाज़ में पूछा.
'तुम जरा टी.वी ऑफ करके बेड में बैठो. मैं टॉयलेट जा कर आता हूँ.' जयसिंह ने कहा.
'जी...' मनिका ने छोटा सा जवाब दिया.
बाथरूम में जयसिंह का दीमाग तेजी से दौड़ रहा था, 'आखिर क्यूँ मनिका ने ऐसे कपड़े पहन लिए थे?' उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था पर उनका एक काम बन गया था, 'थैंक गॉड मैंने मनिका को देख चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिए वरना खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ जाता.' उन्होंने अपने फड़फड़ाते लंड को मसल कर शांत करते हुए सोचा. जयसिंह जानते थे कि लड़की उसे देखने वाले की नज़र से ही उसकी नीयत भांपने में माहिर होती है और उन्होंने बड़ी ही चालाकी से मनिका को यह एहसास नहीं होने दिया था. जयसिंह ने जाने-अनजाने में ही बेहद दिमागी चाल चल डाली थी, उन्होंने मनिका को एक पल देखने के बाद ही ऐसा व्यक्त किया था जैसे सब नार्मल हो, अगर उन्होंने अपने चेहरे पर अपनी असली फीलिंग्स जाहिर कर दी होती तो मनिका जो अभी सिर्फ उनके सामने असहज थी, उनसे सतर्क हो जाती.
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