Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:51 AM,
#37
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब थोड़ी देर बाद मनिका होश में आयी तो उसके होश फ़ाख्ता हो गए, ‘ओह गॉड, ये अभी मैंने क्या किया…?’ वह थोड़ा सा हिली तो उसे अपने पैरों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ. ‘ओफ़्फ़्फ…डिड आइ जस्ट केम?’ (क्या मैं अभी-अभी झड़ गयी हूँ?)

मनिका जल्दी से उठने को हुई लेकिन उसके बदन में जैसे बुखार आ गया था. वह निढ़ाल हो कर फिर से बिस्तर पर गिर पड़ी.

शाम होते-होते मनिका का आवेग थोड़ा कम हुआ, वह बिस्तर से निकली और अपना कमरा ठीक करने लगी, लेकिन उसके दिमाग़ में सिर्फ़ एक ही बात थी — ‘आइ केम थिंकिंग अबाउट पापा…एंड हिज़ डिक.’ जयसिंह के लंड का ख़याल आते ही मनिका नए सिरे से सिहर उठती थी. वह जैसे-तैसे करके नीचे हॉस्टल के डाइनिंग हॉल में जा कर डिनर कर के आइ और वापस आ कर फिर से लेट गयी. कुछ देर लेटे रहने के बाद उसने अपने सिरहाने रखे फ़ोन को टटोला. उसने पाया कि दो नए मेसेज आए हुए थे, एक तो बिलेटेड हैपी बर्थ्डे विश का था और दूसरा उसके बैंक से था. उसके अकाउंट में बीस हज़ार रुपए जमा हुए थे, एक बार फिर उसका बदन तप उठा, उसने तो अपनी माँ से सिर्फ़ पाँच हज़ार के लिए कहा था, ‘तो क्या पापा ने…?’

मनिका को उस रात देर तक नींद नहीं आयी, और सुबह होते-होते वह एक बार फिर अपने पिता के काले-मोटे लंड के ख़यालों में खो गयी थी. अगले कुछ दिन मनिका की हालत बेहद ख़राब रही, अचानक अपने अंदर जगी इस आग को बुझाने का उसका हर प्रयत्न विफल रहा था. हर बार वह अपने आप को कोसते हुए अगली बार ऐसा ना होने देने का प्रण करती और हर बार अपनी इच्छाओं के सामने बेबस हो जाती. इसी तरह एक रात जब उसकी कामिच्छा अपने चरम पर थी तो वह मस्ती में सिसकती-सिसकती बोल पड़ी,

‘उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…’

और जब उसे होश आया तो उसकी ग्लानि की कोई सीमा नहीं थी. ‘ओह गॉड, ये मुझे क्या होता जा रहा है? पापा का डिक…उम्मम्म…क्यूँ मैं उसके बारे में ही सोचती रहती हूँ?’

इधर मनिका का कॉलेज शुरू होने में कुछ ही दिन बचे थे, वह नए समेस्टर की फ़ीस वगरह जमा करवाने के बाद ज़्यादातर वक़्त अपने कमरे में ही बिताने लगी थी. उसने जयसिंह के साथ बितायी आख़िरी रात के बाद ही अपने लैप्टॉप से उनकी सारी फ़ोटोज डिलीट कर दी थी. पर फिर एक दिन उसने ऑनलाइन सर्च किया कि डिलीट हुयी फ़ाइल्ज़ कैसे वापस लाई जा सकती है. थोड़ा ढूँढने पर उसे एक प्रोग्राम मिला जिस से डिलीट कर हुआ डेटा रिकवर किया जा सकता था. धड़कते दिल से उसने वो प्रोग्राम चलाया, लेकिन उसे अपने पिता की फ़ोटोज डिलीट किए काफ़ी अरसा हो गया था, सो प्रोग्राम से सिर्फ़ एक दो फ़ोटो ही रिकवर हो सके. पर मनिका के हाथ तो मानो सोना लगा गया था, जो फ़ोटो उसने रिकवर किए थे, उनमे से एक फ़ोटो तो ऐसे ही था जिसमें जयसिंह की पीठ उसकी तरफ़ थी और वह सेल्फ़ी ले रही थी, लेकिन दूसरे तब का था जब उसने रूम में अपनी नयी-नयी ड्रेसेज़ पहन कर उन्हें दिखाई थी और इस में वह वो बदन से चिपकी काली ड्रेस पहन कर उनकी गोद में बैठी थी. फ़ोटो को देखते ही मनिका, बेड पर उलटी लेट गयी और लैप्टॉप अपने सिरहाने रख उस फ़ोटो को देख-देख मस्ताने लगी. ‘उम्मम्म पापा…उम्मम्म…’ करते हुए उसने लैप्टॉप स्क्रीन पर ही एक दो किस कर दिए थे.

मनिका का कॉलेज शुरू हो गया था. लेकिन पिछले समेस्टर की तरह इस बार न तो मनिका क्लास में फ़र्स्ट-बेंच पर बैठी दिखायी देती थी और ना ही उसकी पढ़ाई की पर्फ़ॉर्मन्स इतनी अच्छी थी. एक दो बार जब किसी प्रोफ़ेसर ने उसे टोका भी, तो उसने अनसुना कर दिया था. कुछ दिन बाद उसने कॉलेज से बंक मारना भी शुरू कर दिया और अपने कमरे में ही ज़्यादातर वक़्त बिताने लगी. यूँ ही करते-करते सितम्बर का महीना आ गया. ९ सितम्बर को जयसिंह का जन्मदिन था.

आठ की रात को मनिका धड़कते दिल के साथ जगी हुई थी. उसके मन में एक उपाहपोह की स्थिति थी, कि क्या वह अपने पिता को बर्थ्डे विश करे या न करे. जब रात के १२ बजने में कुछ ही मिनट रह गए तो मनिका ने कांपते हाथों से अपने फ़ोन में एक मेसिज टाइप किया,

“Happy Birthday Papa”

पर फिर जब उसने कुछ देर सोचा तो उसे लगा कि हो सकता है उसके पापा यह रिप्लाई कर दें,

“Thank You Mani”

यह सोच कर उसका मन थोड़ा खिन्न हो गया था, उसने एक दो बार फिर ट्राई किया और आख़िर एक मेसेज लिखा,

“Happy Birthday My Dear Papa
From: Manika”

उस मेसेज को पढ़-पढ़ कर ही मनिका की अंगड़ाई टूट रही थी. बारह बजने में सिर्फ़ कुछ ही सेकंड बचे थे, मनिका ने डर के मारे एक बार मेसेज एप बंद कर दिया. पर फिर हड़बड़ाते हुए जल्दी से एप वापस खोला और सेव हुए मेसेज के सेंड बटन को दबा दिया. सिर्फ़ इतना सा करने के साथ ही मनिका एक बार फिर तड़पते हुए तकये में मुँह दबा कर आनंदित चीतकारें मारने लगी,

‘पापाऽऽऽऽऽऽ, उम्ममा…हैपी बर्थ्डे फ़्रम योर मनिका…हैपी बर्थ्डे टू योर बिग डिक पापा…उन्ह्ह्ह्ह…’

जयसिंह जगे हुए थे. उनकी बीवी और बच्चे पहले ही उन्हें उठा चुके थे. घर में ख़ुशी का माहौल था. वे भी अपने परिवार को गले लगा कर उन्हें बर्थ्डे विश के लिए धन्यवाद कह रहे थे. पर क्यूँकि रात काफ़ी हो चुकी थी, और जन्मदिन अगले दिन मनाना था, तो कुछ देर बाद वे सब अपने-अपने कमरे में सोने चले गए.

जयसिंह अपने कमरे में आ कर लेट गए. मधु बाथरूम में थी. तभी उनकी नज़र अपने फ़ोन पर गयी, जिसकी नोटिफ़िकेशन लाइट जल रही थी. यह सोच कर कि देखें किस-किस मेसेज किए हैं उन्होंने फ़ोन उठा कर देखा. सिर्फ़ एक ही मेसेज था.

मेसेज पढ़ते ही जयसिंह का बदन शोला हो उठा था. वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे क्या करें, उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आयीं थी. तभी मधु बाथरूम से निकल आयी, जयसिंह ने आनन-फ़ानन में फ़ोन एक तरफ़ रख दिया और लेट गए.

मधु आकर उनके बग़ल में लेट गयी. उनका जन्मदिन था सो मधु ने अपने पति को कुछ सुख देने का सोचा था, लेकिन एक दो बार जब जयसिंह ने मधु के उकसावे का जवाब नहीं दिया तो वह चुपचाप लेट कर सोने लगी. तीन बच्चे हो जाने के बाद अब उनके बीच कभी-कभार ही गहमा-गहमी होती थी, वरना दोनों आपसी समझ से सो जाया करते थे.
कुछ देर बाद जब जयसिंह आश्वस्त हो गए कि उनकी बीवी सो चुकी है तो उन्होंने एक बार फिर अपनी जवान बेटी का रूख किया. उनका लंड अब तन चुका था. मनिका का मेसेज काफ़ी उत्तेजक था, जयसिंह मेसेज देखते ही यह तो नहीं समझ सके थे कि मनिका ने ऐसा मेसेज क्यूँ किया लेकिन उसके पीछे दबी बात उनके समझ ज़रूर आ गयी थी. लेकिन वे इस बार अंधेरे में कोई तीर नहीं चलाना चाहते थे सो उन्होंने मनिका को रिप्लाई किया,

“Thank You Mani Dear”

मनिका फ़ोन के पास पड़ी आहें भर रही थी जब जयसिंह का रिप्लाई आया. उसने झट फ़ोन उठा कर देखा, और उसका सारा नशा उतार गया. उसके पापा ने उसे मणि कह कर बुलाया था. ‘क्या पापा सच में बदल चुके है? और मैं ही ऐसी गंदी बातें सोचने लगी हूँ?’ मनिका अंतर्द्वंद्व से घिर चुकी थी, उसने अपने आप को ऐसा क़दम उठाने के लिए कोसा और शर्म से पानी-पानी हो गयी.

अगला दिन मनिका का पिछले कुछ महीनों का पहला ऐसा दिन था जब उसने एक बार भी अपने पिता के बारे में ग़लत नहीं सोचा था. वह आत्मग्लानि से भरी काफ़ी दिन बाद आज कॉलेज भी आई थी. पूरे दिन पश्चाताप की आग में जलने के बाद वह अपने हॉस्टल रूम में लौट आई. उसका मन भारी था, जिस पाप के लिए उसने अपने पिता को नकारा था, आज वही पाप उसके ख़ुद करने का एहसास उसे दबाता जा रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतने महीनों से इस उन्माद का शिकार हो गयी थी.

अगला दिन मनिका का पिछले कुछ महीनों का पहला ऐसा दिन था जब उसने एक बार भी अपने पिता के बारे में ग़लत नहीं सोचा था. वह आत्मग्लानि से भरी काफ़ी दिन बाद आज कॉलेज भी आई थी. पूरे दिन पश्चाताप की आग में जलने के बाद वह अपने हॉस्टल रूम में लौट आई. उसका मन भारी था, जिस पाप के लिए उसने अपने पिता को नकारा था, आज वही पाप उसके ख़ुद करने का एहसास उसे दबाता जा रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतने महीनों से इस उन्माद का शिकार हो गयी थी.

इधर रात में जयसिंह भी ये सोचकर परेशान था कि "मनिका ने ऐसा मेसेज क्यों किया? हो सकता कि समय के साथ मनिका के मन मे मेरे लिए नफ़रत थोड़ी कम हो गई हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वो बस मेरे जन्मदिन की वजह से बस मुझे विश कर रही हो। पर उसने मेसेज में अपने आपको मनिका क्यों कहा ? उसे अपना नाम लिखने की क्या जरूरत थी? "

इस तरह सोचते सोचते ही जयसिंह की आंखे भारी होने लगी थी। पर कोई फैसला न कर पाने की वजह से आखिरकार हारकर वो चुपचाप सो गए थे। 

जब से मनिका के साथ उनका वो दिल्ली वाला कांड हुआ था, जयसिंह उदास उदास रहने लगा था। वो घर मे किसी से ज्यादा बात भी नही करता ।उसने अपने आपको पूरा व्यापार में झोंक दिया था। उसकी पीड़ा और ग्लानि उसको मन ही मन खाये जा रही थी।

उसे लगभग एक साल हो गया था मनिका से मिले हुए। यहां तक कि उसने उससे बात भी नही की थी। वो मनिका के गुस्से को जानता था। उसको पता था कि शायद मनिका उसे कभी माफ न करे। इस बात का दुख हमेशा उसके मन मे रहता । कभी कभी वो सोचता कि उसे कभी दिल्ली जाना ही नहीं चाहिए था। ना वो दिल्ली जाता और ना उसके मन मे मनिका के लिए कोई बुरा ख्याल आता।


पर होनी को कौन टाल सकता था। जो हुआ सो हुआ। पर अब जयसिंह ने मन ही मन ये निश्चय कर लिया कि वो अपनी गलती का पश्चाताप करेंगे। वो मनिका से जितना दूर हो सकता है, रहेंगे।

और इसीलिए अब वो मनिका से ना कभी बात करने की कोशिश करता और ना ही उसे कभी मेसेज करता।बस जब कभी उसे पैसो की जरूरत होती, तो उसके एकाउंट में डलवा देता।
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