Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:51 AM,
#40
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका के शरीर ने एक जोर की अँगड़ाई ली, उसके बदन में एक आनन्द की एक लहर दौड़ गई और थोड़ी ही देर में उसकी टांगो के बीच एक सैलाब सा आ गया, उसके पैरों की हिम्मत जवाब दे गई और वो वही बाथरूम में ज़मीन पर बैठ गई,
थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और अपने बाथ टब में जाके लेट गई, उसका चेहरे पर अब सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे

उसने जल्दी से बाथ लिया और फिर एक वही ब्रा पैंटी पहनी,उसने एक बहुत ही महीन सिल्की टीशर्ट पहनी ओर उसके नीचे एक कैपरी डाल ली, ध्यान से धन पर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को उसकी टीशर्ट में से महसूस किया जा सकता था, उसने फिर हल्का सा मेकअप किया और फिर नीचे हॉल में आकर कनिका और हितेश से बाते करने में मशगूल हो गई।

उधर जयसिंह सुबह से ही मनिका के आने की खबर से परेशान सा था, उसने मधु को किसी तरह बहाने से स्टेशन जाने से तो मना कर दिया पर अब उसे घर पर तो जाना ही पड़ेगा, और घर जाते ही उसे मनिका से सामना करना पड़ेगा,

" मैं घर जाकर मनिका से कैसे नज़रें मिला पाऊंगा, क्या उसने मुझे माफ़ किया होगा, नहीं नहीं वो बचपन से ही गुस्सा करने वाली लड़की रही है, और मैने जो किया उसके लिए तो वो मुझे कभी माफ कर ही नही सकती, अगर मैं उसके पास गया और उसने मेरे साथ कहीं अजीब व्यवहार किया तो मधु को पक्का शक हो जाएगा, वो जरूर मनिका से इसकी वजह पूछेगी, अगर मनिका ने उसे सब कुछ बता दिया तो, मेरा बसा बसाया घर बर्बाद न हो जाये, कहीं मधु बच्चो को लेकर मुझे छोड़ कर चली गयी तो, नहीं नहीं मैं ऐसा नही होने दूंगा, मैं मनिका के सामने ही नही जाऊंगा,, लेकिन घर भी तो जाना पड़ेगा ,, अब मैं क्या करूँ " - जयसिंह दिन भर इसी उधेड़बुन में लगा रहा, पर लाख कोशिशों के बावजूद भी वो किसी निष्कर्ष पर ना पहुंच सका,

अब शाम के 8:00 बजने को आये थे, जयसिंह के घर जाने का समय भी हो गया था, उधर मनिका पलकें बिछाए अपने पापा का इंतजार कर रही थी और इधर जयसिंह घर जाने या ना जाने की ऊहापोह स्तिथि में फंसा हुआ था।
आखिरकार हारकर जयसिंह अपनी कार में बैठा और घर की तरफ रवाना हो गया, 

घर पर मधु ने खाना तैयार कर लिया था, उसने सोचा कि एक बार जयसिंह को फ़ोन करके पूछ लेती हूँ कि वो कब तक आएंगे, उसने अपना फोन निकाला और जयसिंह का नम्बर डायल करके कॉल लगा दिया, 

इधर जयसिंह ने जब फोन की स्क्रीन पर मधु का नम्बर देखा तो उसका दिल जोरो से धड़कने लगा

" मैं मधु से क्या कहूँ, मुझे घर जाना चाहिए या नहीं, अगर मैं काम का बहाना बना दूँ तो, नहीं नहीं कल ही मधु ने मुझसे काम की वजह से झगड़ा किया था, और आज तो मनिका भी घर आ गई है, ऐसे में अगर मैंने घर जाने से मना किया तो मधु जरूर मुझसे गुस्सा हो जाएगी, पर अगर घर गया तो मनिका का सामना कैसे करूँगा " जयसिंह इसी असमंजस की स्तिथि में फंसा था, पर अब तक उसे कोई हल नही सूझ रहा था। आखिर उसने डरते डरते फ़ोन उठाया


जयसिंह - हेलो,
मधु - क्या हुआ, इतना टाइम क्यों लगाया फ़ोन उठाने में

जयसिंह - वो वो अम्म्म मैं ममम ड्राइव कर रहा था इसलिए जल्दी नही उठा पाया

मधु (खुश होते हुए)- अरे वाह, इसका मतलब आज आप टाइम पर घर आ जाओगे , कितना अच्छा लगेगा आज सब लोग साथ मे खाना खाएंगे

जयसिंह(घबराते हुए) -- अरे नहीं अम्म्म मधु , मैं कार में जरूर हूँ पर मैं घर नही आ रहा, जरासल मुझे एक क्लाइंट से मिलने जाना तो अभी उसी के घर जा रहा हूँ, मुझे घर आते आते देर हो जाएगी, तुम लोग खाना खा लो, मैं घर आकर बाद में खा लूंगा,

मधु (गुस्से में) - काम,काम,काम बस आपको तो काम ही सूझता है, हम लोगो के लिए तो आपके पास वक्त ही नहीं है, घर पे बेटी साल भर बाद आई है और आप है कि मिलने के बजाय बाहर बिज़ी रहते है, 

" अब मधु को कैसे समझाऊं की मनिका की वजह से ही घर नही आ रहा " जयसिंह मन ही मन सोचता है

मधु - अब चुप क्यों हो गए जवाब दो
जयसिंह - plz मधु समझा करो ना, अगर ज़रूरी काम ना होता तो मैं जरूर आ जाता, पर क्या करूँ क्लाइंट से आज मिलना ज़रूरी है

मधु (गुस्से से)- ठीक है फिर, खाना भी बाहर ही खा लेना, यहां तो अगर खाना बचा भी तो मैं डस्टबिन में फेंक दूंगी,

जयसिंह - मधु सुनो तो सही, हेलो, hellllo......

मधु ने गुस्से से फ़ोन बीच मे ही काट दिया, मधु हमेशा उसे खाना फेंकने की धमकी देती थी, पर ये जयसिंह भी जानता था कि वो ऐसा कभी नही करती, क्योंकि गुस्सा शांत होने पर मधु को समझ आ जाता था कि ये सब वो उनके लिए ही कर रहा है, इसलिए जयसिंह थोड़ा निश्चिन्त हो गया और वापस गाड़ी को आफिस की तरफ मोड़ दिया,उसने सोचा था कि सबके सोने के बाद घर चला जायेगा और सुबह मनिका के उठने से पहले ही वापस आफिस आ जायेगा, 

इधर मधु का मूड खराब हो चुका था, पर वो कर भी क्या सकती थी,

"मणि , हितेश, कनिका , आओ सब लोग खाना खाने का टाइम हो गया है " उसने बच्चों को आवाज़ लगाई

तीनो लोग मनिका के रूम में बैठकर बाटे कर रहे थे, मधु की आवाज़ सुनकर तीनों एक स्वर में बोले - "अभी आये मम्मी"


कनिका और हितेश तो तुरंत नीचे भाग गए पर मनिका अब भी अपने रूम में थी,

मनिका को लगा कि शायद पापा आ गए है, तभी मम्मी उन्हें खाना खाने बुला रही है, ये सोचकर ही मनिका के मन मे सिहरन सी उठ गई, 

"आज साल भर बाद मैं पापा से मिलूंगी, हाय कितना मज़ा आएगा उनसे मिलकर, बहुत सताया है मैंने अपने पापा को, पर अब मैं उनकी सारी शिकायत दूर कर दूंगी" मनिका मन ही मन सोचने लगी,

वो जल्दी से उठी और आईने में खुद को निहारने लगी, उसने अपने गुलाबी होंठों पर हल्की सी ग्लास लिपिस्टिक लगाई और बालों को थोड़ा सा संवारा,
और एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर फैल गयी,

अब वो धीरे धीरे कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों पर नीचे की ओर जाने लगी,उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, उसकी नज़रें झुकी हुई थी और उसकी चाल ऐसी लग रही थी मानो कोई नई नवेली दुल्हन अपनी सुहागरात की सेज की तरफ बढ़ रही हो,

पर जैसे ही उसने अपनी नज़र उठाकर हॉल की ओर देखा , उसके सारे अरमान धरे के धरे रह गए, वहां डाइनिंग टेबल पर सिर्फ मनिका ओर हितेश बैठे थे और मधु वहां पर खाने की प्लेट्स लगा रही थी, 


मनिका को जैसे जोर का झटका लगा हो, जयसिंह को वहां ना पाकर तो जैसे उसके पैर वहीं के वहीं जम गए हों, उसने न जाने कैसे कैसे सपने संजोये थे, पर उसके सारे सपने उसे मिट्टी में मिलते नज़र आ रहे थे,

अब वो भारी कदमों से नीचे की ओर बढ़ रही थी, 

उसको नीचे आते देख मधु बोली- आजा मणि जल्दी आ, देख तेरी पसन्द की सारी चीज़ें बना दी है, ज़रा टेस्ट करके तो बता की कैसी बनी है?

अब मनिका उसको क्या जवाब देती, उसकी तो जैसे भूख ही मर गयी थी, वो भारी मन से टेबल पर आकर बैठ गयी।

मधु ने उसके लिए एक प्लेट लगाई और फिर उसमें सारी डिशेज़ सर्व कर दी।

कनिका और हितेश तो खाने का लुत्फ उठा रहे थे, पर मनिका बिल्कुल धीरे धीरे खा रही थी, 

उसको ऐसे कहते देख मधु बोली - क्या हुआ मणि, खाना अच्छा नही बना क्या

मनिका - नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं, खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट बना है

मधु - तो फिर ऐसे धीरे धीरे क्यों कहा ल है, पहले तो कैसे फटाफट खाना खाती थी, और अब देखो कैसे स्लो मोशन में खाना खा रही है

उसकी बात सुनकर कनिका और हितेश भी हसने लगे, 

मनिका - ऐसा तो कुछ नही है मम्मी

मधु - मुझे लगता है कि तेरा ध्यान कहीं और है, कहीं तू अपने पापा के बारे मव तो नहीं सोच रही हो

मधु की बात सुनकर तो मनिका को इस लगा जैसे मधु ने उसकी कोई चोरी पकड़ ली हो, वो घबरा सी गई।

मनिका (घबराते हुए) - नही म्म्म्मम्म मम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं 

मधु - झूट मत बोल, मैं जानती हूँ कि मुझसे ज्यादा तू तेरे पापा को ही प्यार करती है, और वो अब तक तुझसे मिलने घर नही आये, इसलिये तू परेशान है

प्यार की बात सुनकर एक बार तो मनिका घबराई फिर उसे लगा कि मम्मी तो बाप बेटी वाले प्यार की बात कर रही है।

मनिका थोड़े शांत होते हुए बोली - पर मम्मी पापा अभी तक आये क्यों नहीं

मनिका ने ये सवाल पूछ तो लिया था पर शायद वो उसका जवाब पहले से जानती थी, उसे पता था कि उसके पापा शायद उसकी वजह से घर नहीं आ रहे है। अब उसे पक्का भरोसा हो गया था कि " पापा उसके सामने आने से कतरा रहे है, वो बदल चुके है और अपने किये पर सचमुच शर्मिंदा है, पर अब मैं उनके बिना नहीं रह सकती, मैं अपने पापा को वापस पाकर रहूंगी, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े" मनिका ने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया था।

जयसिंह वापस अपने ऑफिस की तरफ चल पड़ा, वो मन ही मन बड़ा खुश था कि अब उसे मनिका का सामना नहीं करना पड़ेगा, ऑफिस पहुंचकर वो वही थोड़ी देर टाइम पास करने लगा,

मनिका खाना खाकर वापस अपने रूम में आ चुकी थी, वो अंदर से बहुत दुखी थी।

" मैंने अपने पापा को बहुत दुःख दिए ,इसीलिए मुझे ये सज़ा मिल रही है, मुझे कुछ भी करके अपने पापा को वापस अपने करीब लाना होगा, पर कैसे, मैं ये कैसे करूंगी, दिल्ली में हम दोनों अकेले थे , पर यहां तो सब लोग हैं " मनिका अंदर ही अंदर बड़ी बैचैन सी होने लगी,

लेकिन कुछ भी हल ना निकलता देख वो थक हारकर लेट गई, सफर की थकान की वजह से वो जल्दी ही नींद के आगोश में चली गई,

रात के लगभग 11:00 बज चुके थे, जयसिंह को लगा की अब तक घर मे सब लोग सो चुके होंगे, उसने अपनी गाड़ी निकली और घर की तरफ चल पड़ा, 

जल्दी ही वो घर पहुंच गया, चूंकि वो अक्सर लेट ही आता था, इसलिए उसके पास घर की डुप्लीकेट चाबी रहती थी, उसने हल्के से दरवाज़ा खोला ताकि उसकी आवाज़ सुनकर कोई जाग न जाये,

उसे बड़े जोरों की भूख लग रही थी, वो सीधा किचन में गया और वहीं सिंक में हाथ धोकर अपने लिए प्लेट में खाना डाल लिया, प्लेट लेकर वो डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ ही रह था कि उसे लगा की इस वक्त हॉल की लाइट जलाना सही नही होगा,
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