Antarvasna kahani ज़िद (जो चाहा वो पाया)
10-06-2018, 12:59 PM,
#17
RE: Antarvasna kahani ज़िद (जो चाहा वो पाया)
वीना: देखिए तुषार बाबू जी….हम बहुत ग़रीब लोग है…और हम ग़रीब लोगो के पास अपनी इज़्ज़त और मान मर्यादा के अलावा कुछ नही होता….मुझे पता है कि, आप को मेरा इस तरह आप पे चिल्लाना बुरा लगा होगा….पर उस समय जो मुझे सही लगा वही मैने किया….

मे: तो मैने कॉन सा तुम्हारी इज़्ज़त को गली मे उछाल दिया था….मेरा कसूर यही है ना कि मे तुमसे प्यार करता हूँ….

वीना: देखिए तुषार बाबू जी….मे इतनी बड़ी-2 बातें नही समझ सकती…यहाँ बड़े-2 सहरो मे ऐसा होता होगा…पर हम तो छोटे से गाओं के लोग है…और हम उसी पर यकीन करते है….जो हमे बचपन मे सिखाया गया हो….

मे: तभी तुम लोग कभी आगे नही बढ़ पाते….जो तुम लोगो को बचपन मे सिखा दिया जाता है…उसी राह पर अंधी भैंसो की तरह चलना कोई अकल मंदी की बात है ? भले ही इसमे तुम्हारा नुकसान हो….

वीना: आप खाना खा लीजिए….मेरा जो नुकसान होगा…आप को उससे क्या लेना देना… 

मे: अब खाना तो दूर मे तुम्हारे हाथ से पानी भी नही पीना चाहता….

वीना: ह्म्म बस इतना ही प्यार था….इतनी जल्दी हार गया आपका प्यार….

मे: तो आख़िर तुम चाहती क्या हो….

वीना: आप मेरी हालत के बारे मे क्यों नही सोचते…मे नही धोखा दे सकती अपनी परिवार को….मे अपने पति……(वीना बोलते बोलते चुप हो गयी….) 

मे: ठीक है एक शरत पर खाउन्गा….

वीना ने मेरी तरफ देखा….

मे: तुम्हे वो पैसे लेने होंगे…

उसने हां मे सर हिला दिया…मैने पॉकेट से पैसे निकाले तो उसने कुछ पैसे वापिस रख दिए….और बाकी के पैसे लेकर नीचे जाने लगी….”सुनो….” वीना ने पलट कर मेरी तरफ देखा…..आज के बाद तुम यहाँ दीवार पर खाना रख जाया करो…जब मेरे नज़र पड़ेंगे तो उठा कर खा लिया करूँगा…..” 

वीना ने हां मे सर हीलिया और नीचे चली गयी….मेने नाश्ते की प्लेट उठाई और रूम मे आकर नाश्ता करने लगा….नाश्ता करने के बाद मैने उसकी प्लेट को वही दीवार पर रख दिया…और रूम मे वापिस आ गया…तभी विक्रांत की कॉल आई….

विक्रांत: हेलो तुषार जी कैसे हो….?

मे: जी अच्छा हूँ आप कैसे है….

विक्रांत: मे भी ठीक हूँ….अच्छा आपकी मेल मिल गयी थी….

मे: आपने चेक किया…कोई प्राब्लम तो नही उसमे….

विक्रांत: नही-2 दरअसल मैने आपको ये पूछने के लिए फोन किया था कि, अगले 5-6 दिन आपको कोई और काम तो नही है…..

मे: नही कहिए ना….

विक्रांत: वो आक्च्युयली वर्क लोड थोड़ा ज़यादा हो गया…..इसलिए आपको अगले 5-6 दिन मे मुझे 5 बुक्स ट्रांसलेट करके देने है…..आप कर लोगे कि नही…..

मे: कितने पेजस की बुक्स है….

विक्रांत: यही कोई 150 पेज होंगे हर बुक मे…

मे: ओके नो प्राब्लम….

विकांत: ओके तो मे मेल कर रहा हूँ….अगर कोई प्राब्लम हो तो फोन कर देना…

मे: ओके

मैने फोन कट कर दिया…. थोड़ी देर बाद ही मुझे विक्रांत की मेल भी आ गयी…मैने वो बुक्स डाउनलोड की….फिर काम शुरू कर दिया….अगले 5 दिनो तक मे इतना बिज़ी रहा कि, मे रूम से भी कम ही बाहर निकल पाता था…मुझे वीना को देखे हुए भी 5 दिन हो गये थी….हां रात को अहाते मे दो बार कमलेश से मिला था…मुझे विक्रांत का दिया हुआ काम ख़तम करने मे 6 दिन लग गये….6 दिन ही मेने रात के 12 बजे तक उसको मेल भी कर दी थी….

अगली सुबह मे 9 बजे उठा…इन 6 दिनो मे बहुत थक गया था…नींद भी कम ही पूरी हो पाती थी….पर जब मे उठा तो मे बहुत फ्रेश महसूस कर रहा था…मे उठा फ्रेश हुआ….और शवर लिया….दिसंबर 15 का दिन था…यहाँ पंजाब मे ठंड इस समय पूरे यौवन पर होती है….चारो तरफ ढूंड चाहिए हुए थी….गरम पानी से नहाने के बाद जैसे ही मे बाहर आया…तो ठंड के कारण दाँत बज रहे थे…

मे अभी रूम मे जाने ही वाला था कि, वीना ऊपर आ गयी…उसके हाथ मे नाश्ते की थाली थी….वो जैसे ही दीवार के पास आई….मैने उसकी तरफ देखे बिना ही उसके हाथ से नाश्ते की प्लेट ली और रूम की तरफ जाने लगी….वो शायद कुछ कहना चाहती थी…”सुनिए……” उसके शब्द जैसे आगे दब गये थे….मे रूम मे आ गया और नाश्ता करने लगा…नाश्ता करने के बाद मेने प्लेट वही दीवार पर रख दी. और फिर से रूम मे आ गया….सुबह के 11 बज चुके थे…और बाहर धुन्ध अब छांट चुकी थी….और सुनहरी धूप खिली हुई थी… मे रूम से बाहर आया और गली वाली दीवार पर हाथ टिका कर खड़ा हो गया….. 

तभी नीचे वीना के घर का गेट खुला और वीना घर से बाहर आई….वो अंदर की तरफ देख रही थी….जैसे किसी के आने का इंतजार कर रही हो….”अनु जल्दी आ…” तभी उसने ऊपर की तरफ देखा तो हम दोनो के नज़रें आपस मे टकराई…थोड़ी देर बाद उसकी बेटी अनु भी बाहर आ गयी…उसने गेट को लॉक किया…वीना ने फिर से एक बार मेरी तरफ ऊपर देखा और फिर अपनी बेटी की तरफ देखते हुए बोली….”अनु जल्दी कर तुझे छोड़ कर वापिस आकर मुझे बहुत काम करना है….”

नज़ाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि, वीना ये सब मुझे सुनने के लिए कह रही हो… उसने फिर से एक बार ऊपर देखा तो मैने दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया…फिर वो अपनी बेटी को लेकर चली गयी…मे वापिस आकर चेयर पर बैठ गया…आज काम से काफ़ी दिनो बाद फ्री हुआ था….इसलिए धूप मे बैठ कर सुसताना बहुत अच्छा लग रहा था… अभी 15 मिनिट ही बीते होंगे कि, मुझे वीना के घर का गेट खुलने की आवाज़ आई. और फिर बंद होने की…पर मे अपनी जगह बैठा रहा….

नज़ाने क्यों मेरे दिमाग़ मे आ रहा था कि, अब वीना ऊपर आएगी….दरअसल मे भी उसके योवन को देखना चाहता था….पर एक बार उसके द्वारा नकारे जाने से मे उसे खफा था…इसलिए मे उसकी ओर देख कर उसको ये नही दिखाना चाहता था कि, मे अभी भी उसके लिए तड़प रहा हूँ….इसलिए मे उसको इग्नोर कर रहा था….और हुआ भी वैसे ही जैसे मीना सोचा था….

वीना ऊपर आई….उसके हाथ मे एक थाली थी…ऊपर आने के बाद उसने चटाई बिछाई और चटाई पर बैठ कर दाल को सॉफ करने लगी….जो वो थाली मे लेकर आई थी….मे उसकी तरफ तिरछी नज़रों से देख रहा था….तबकि उसको पता ना चले कि, मे उसकी तरफ देख रहा हूँ….मे उसको दिखाना चाहता था कि, अब मुझे उसकी कोई परवाह नही है.. अब मे उसके पाने के लिए पहले की तरह उसका दीवाना नही हूँ…वो बार-2 डाल सॉफ करते हुए मेरी तरफ देख रही थी….

और मे इधर उधर देखते हुए बीच-2 मे उसके तरफ देख लेता…तो हमारी नज़रें आपस मे टकरा जाती और वो नीचे सर झुका कर मुस्कुराने लग जाती...ये खेल करीब 20 मिनिट तक चला…अब दाल सॉफ करने मे घंटा तो लगता नही है…वो खड़ी हुई और एक बार उसने मेरी तरफ देखा और फिर सीडीयों की तरफ जाने लगी…अब उसकी पीठ मेरी तरफ थी…मुझे ऐसा लगा कि, जैसे मे उस मोके को खो रहा हूँ..जो वो बार-2 मुझे दे रही है….

मे उसको सीडीयों की तरफ जाते हुए देख रहा था……आज उसके बाल खुले हुए थे… और हवा के साथ साथ लहरा रहे थे….वो चलती हुई सीडीयों के पास पहुँच गये. काश ये योवन से नहाई हुई अप्सरा मेरे हाथ आ जाती….पर शायद मेरी किस्मत मुझसे रूठी हुई है…..ये सोच कर मैने अपने दिल को तसल्ली दी…..

वो धीरे-2 सीडीयों की तरफ बढ़ रही थी….और सीडीयों के डोर के पास जाकर रुक गयी…और उसने मूड कर मेरी तरफ देखा….और एक हाथ से अपने फेस पर आई हुई लटो को हटाते हुए मुस्कराते हुए मुझे इशारा किया…क्या उसने मुझे इशारा किया है. कहीं मेरा वेहम तो नही…नही-2 उसने इशारा किया है…उसने फिर से इशारा किया. नीचे आने का….मैने गर्दन हिला कर उसे पूछा जैसे मे कन्फर्म कर लेना चाहता था….उसने फिर से होंठो पर मुस्कान लाते हुए इशारा किया….

ये सॉफ-2 संकेत था….वो घर मे अकेली थी..एक दम अकेली….वो जानती थी कि मे जानता हूँ कि वो घर मे अकेली है…..फिर इस तरह मुझे अपने घर मे बुलाने का मतलब…..दोस्तो आप सोचो कि उस समय मे जिस उम्र मे था…और मुझे एक बला की खूबसूरत औरत इशारे से अपने घर के अंदर बुला रही थी…वो औरत जिसके लिए मे पिछले एक महीने से जी जान से उसको पाने की कॉसिश कर रहा था….उस वक़्त मेरी क्या हालत होगी….

मेरे गला सूखने लगा था….लंड मे अजीब से सरसराहट होने लगी थी….उत्सुकता के कारण हाथ पैर कांप रहे थे…वो मूडी और धीरे-2 नीचे उतरने लगी…मुझे ऐसा लग रहा था….जैसे आसपास के घरो के चॉबारो से सब मुझे देख रहे है… सब की नज़र मुझ पर टिकी हुई है…मैने चारो तरफ देखा….और जब तक मन को तसल्ली ना हो गयी कि, मुझे कोई नही देख रहा….तब तक मे अपनी जगह से नही हिला…..

मेने जल्दी से दीवार फांदी और सीडीयों की तरफ तेज कदमो से बढ़ा….ये सब करते हुए मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था…मे सीडीयों से नीचे उतरा तो नीचे एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था….वो मुझे बाहर कही दिखाई नही दे रही थी….मेरे घर की तरह ही उस घर मे भी नीचे दो रूम थे….एक गेट के पास और एक पीछे. पीछे वाले रूम से बाहर निकल कर साइड मे किचन फिर बाथरूम उसके आगे टाय्लेट और उससे आगे सीडीयाँ थी….जो गेट वाले रूम की दीवार के साथ से होकर ऊपर जाती थी…..

पीछे वाले रूम का डोर खुला था….पर अंदर लाइट नही जल रही थी….क्योंकि बाहर का गेट बंद था….और सीडीयों वाला गेट मे बंद करके आया था…इसलिए नीचे रोशनी कम थी….मे रूम की तरफ बढ़ने लगा…मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था.. मेरे कदम थरथरा रहे थे….जब मे रूम मे पहुँचा तो मुझे एक कोने की दीवार के साथ लगी हुई चारपाई पर वो लेटी हुई नज़र आई….उसकी पीठ मेरी तरफ थी… 

जैसे ही मे आगे बढ़ा तो मुझे और सॉफ दिखाई देने लगा…मैने विंडो के आगे लगे हुए पर्दे को हटा दिया….जिससे अब रूम मे इतनी रोशनी हो गयी थी…कि मे अच्छे से देख सकूँ…जैसे ही विंडो से रोशनी रूम मे आई तो उसने एक दम फेस घुमा कर मेरी तरफ देखा….उसकी आँखे वासना के नशे मे लाल हो रखी थी…एक पल देखने के बाद उसने अपना फेस घुमा लिया…अगले ही पल मेरा लंड मेरे शॉर्ट्स मे एक दम से अकड़ गया…..

ये देख कर कि, उसने पहले से ही अपनी साड़ी उतार रखी थी…उसके बदन पर क्रीम कलर का पेटिकॉट और डार्क कलर का ब्लाउस था…कॉन सा कलर था….वो मुझे याद नही. मे धीरे-2 उसकी तरफ बढ़ा…और चारपाई के किनारे पर बैठते हुए उसकी नंगी कमर पर हाथ रखते हुए उसे उसके नाम से पुकारा……”वीना भाभी….” जैसे ही मैने अपना हाथ उसकी नंगी कमर पर रखा तो उसका पूरा बदन एक दम से काँप गया….

उसने चद्दर को अपने दोनो हाथों से कस्के पकड़ लिया….उसकी साँसे तेज होने लगी थी….मैने धीरे-2 अपने हाथ को उसकी कमर से सरकाते हुए, उसके पेट की तरफ लेजाना शुरू कर दिया…मेरे हाथ की हर हरक़त के साथ उसका बदन बुरी तरह काँप जाता… उसकी नाक से निकलने वाली हर साँस मुझे सॉफ सुनाई डी रही थी…..मेरा हाथ अब उसकी नाभि तक पहुँच चुका था….मैने अपने दूसरा हाथ उसके कंधे पर रखा और उसको अपनी तरफ पलटने के लिए हलका सा ज़ोर लगाया तो वो खुद सीधी हो गयी…

उसके आँखे बंद थी….और होंठ काँप रहे थे…अब मेरे सबर का पेमाना छलकने लगा था….उसकी चुचियाँ उसके ब्लाउस मे कसी हुई थी…उसके दोनो कबूतर उस पिंजरे से बाहर आने को फडफडा रहे थे….मैने अपने हाथ को उसके पेट से सरकाते हुए, उसके ब्लाउस मे कसे हुए मम्मों की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया…उसकी कमर और उसका पेट थरथरा कर रह गया…..और जैसे ही मैने उसके राइट मम्मे पर अपने हाथ को रख कर उसको दबाया तो, उसने सिसकते हुए अपना हाथ उठा कर मेरे हाथ के ऊपर रख दिया……
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RE: Antarvasna kahani ज़िद (जो चाहा वो पाया) - by sexstories - 10-06-2018, 12:59 PM

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