Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:55 PM,
#7
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
वो बड़बड़ा रही थी " भाई फटने दो मेरी चूत..मेरी जान ले लो ..मैं तुम्हारा लौडा अंदर लिए मर जाऊंगी.....ऊवू .....तुम रूको मत ....चोदो ना और चोदो ना ....."

उसका दर्द कुछ और कम हुआ

अब मैने अपना लंड आधा ही बाहर निकाला और फिर से अंदर डाला ... और ऐसे ही अंदर बाहर करता रहा ..उफ्फ मुझे लगा जैसे मेरा लंड किसी ने बड़ी बूरी तरह जकड़ा हुआ है .... इतनी टाइट थी उसकी चूत ..बाहर निकालते वक़्त खून और पानी मिला जुला उसकी चूत से रीस रहा था

कुछ देर बाद दर्द की जगह उसे अब अच्छा लग रहा था ....." हां भाई अब अच्छा लग रहा है..."

अब मैने अपना लंड सुपाडे तक बाहर किया और फिर से पूरा अंदर डाला ..इस बार सिंधु कांप उठी ..उसका चूतड़ भी उछल पड़ा ....अब उसके मज़े का दौर और भी बढ़ता जा रहा था

मेरा लंड भी अपना रास्ता अंदर बना चूका था ,उसकी चूत अंदर बूरी तरह गीली थी

अब पूरी ज़ोर से चुदाई का खेल चालू था .....मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा था मानो मेरा पूरा खून मेरे लंड मे आ रहा हो .

मैने उसकी चूतड़ के नीचे हाथ रखते हुए उसे उपर उठाया और फिर धक्के लगाता रहा ...हर धक्के में वो और उछालती और बड़बड़ाती जाती.." हां भाई ...ऊवू ....बस ऐसे ही करो..अयाया ...उुउऊः ..चोद लो ...चोद अपनी बहेन को ...फाड़ दो उसकी चूत ....आआआः ब्चेयेयेयाययियी ऊऊओह ..ये क्या हो रहा है ,........"

मुझे अपने लंड में उसकी चूत के झटके लगने शुरू हो गये .... उसका बदन अकड़ता हुआ महसूस हुआ ....मेरे लंड पर उसकी फुद्दि की पकड़ टाइट होती महसूस हुई और फिर सिंधु अपनी चूतड़ जोरों से उपर उछाली और ढीली पड़ कर पैर फैला मेरे नीचे पड़ गयी ....मैने उसकी चूत के रस की धार अपने लंड पे महसूस किया और मेरे लंड से भी पिचकारी छूट गयी ..मेरा सारा बदन मुझे खाली होता महसूस हुआ ..तीन चार झटकों के बाद मैं भी पस्त हो कर उसके उपर हांफता हुआ ढेर हो गया .

कुछ देर बाद मैने आँखें खोली ..देखा सिंधु बहुत थकि थकि नज़र आ रही थी ...

मैने उसे फिर से चिपकाया और उसे चूम लिया

"कैसा लगा सिंधु..बहुत दर्द हुआ ..???"

उस ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से थामा और मुझे चूमते हुए कहा

"नहीं भाई ..जितना मैने सोचा था ना ..उसके हिसाब से तो कुछ भी नहीं था ....तुम ने कितने प्यार से किया भाई ..काश हर औरत को तेरे जैसा मर्द मिले पहली बार .....भाई तुम कितने अच्छे हो '...." और उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे .....खुशी और मस्ती से भरे आँसू थे वो ..अनमोल ..बेशक़ीमती ..

मैं उन्हें अपने होंठों से चाट लिया ...

फिर से हम दोनो एक दूसरे की बाहों में चिपके पड़े रहे...

थोड़ी देर बाद मुझे होश आआया ..मैं उठा ... सिंधु अभी भी आँखें बंद किए अपनी जवानी मेरे हवाले कर देने की खुमारी में थी शायद ... टाँग फैली हुई ..चूत के पास जांघों में खून और रस की पपड़ियाँ जमी ... नीचे बीछे तौलिए पर भी खून के धब्बे ...

" सिंधु ..चल उठ ..काफ़ी देर हो गयी है ..तू काम पे नहीं जाएगी...?"

उस ने आँखें खोली ..मुझे देखा और मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपने चेहरे से लगा चूम लिया

" उम्म्म्मम..भाई ...काम की तो आज ऐसी की तैसी...तुम ने तो मेरा काम तमाम कर दिया ....चल ना एक बार और करते हैं..?"

मैं सकते में आ गया ...

" अरे पागल है क्या ..? देख तो ज़रा अपनी फुददी , क्या हाल है....कितना सूज गया है ... अभी एक दो दिन कुछ नहीं ....समझी ...और अगर काम पर नहीं जाना तो बस आराम कर ..मुझे तो जाना ही पड़ेगा .. एक साहेब की गाड़ी अर्जेंट धोनी है .."

"ठीक है बाबा ठीक ..."

और वो बिस्तर से उठने लगी ... चलने को आगे बढ़ी..चाल में थोड़ी लड़खड़ाहट थी ...

" सिंधु ..अभी भी दर्द है क्या ..? " मैने उसे उसकी कमर से थामता हुआ बोला...

उसकी नज़र नीचे बिछे तौलिए पर पड़ी ...उसमें खून के धब्बे देख उसकी आँखें चौड़ी हो गयीं ....

" भाई...कितना खून निकाल दिया तुम ने ..तुम बहुत गंदे हो .... " और शरमाते हुए मुझ से लिपट गयी ...

" वाह रे सिंधु ...जब खून निकला तो बड़े मज़े में थी ..और अब मैं गंदा हो गया ..."

वो मेरे सीने पर हल्के हल्के मुक्के लगाते हुए बोली " हां तुम गंदे हो..गंदे हो .... " और मुझ से फिर से लिपट गयी और फिर कहा " भाई सच कहूँ तो मेरी किस्मत है तुम्ही ने मेरा खून बहाया .किसी और ने नहीं ....हमारा रिश्ता भी तो खून का है ना ... ऐसे में एक दूसरे को खून की कीमत अच्छे से मालूम होती है....इसी वजेह इतना कम खून बहाया तुम ने ....है ना ? और वो भी बिना ज़्यादा तकलीफ़ के .."

मैने भी उसके माथे को चूम लिया ... " हां सिंधु ठीक कहती है तू ..चल अब आराम कर ..मैं हाथ मुँह धो कर जाता हूँ...शाम तक वापस आ जाउन्गा ..."

मैं फ़ौरन उठा , और कोने में पड़ी बाल्टी के पानी से अच्छे से हाथ , पैर और मुँह धो कर कपड़े पहने और सिंधु को गले लगाया , उसे चूमा और बाहर निकल गया..

अपना दिन का खाना बोलो या लंच बोलो या फिर जो भी समझ लो..ज़्यादेतर बाहर ही होता ... जिस बिल्डिंग में कारों की धुलाई करता उसके पास ही एक ठेलेवाला गरमा गरम पाव भाजी देता ...बस वोई अपना लंच होता ... उस दिन भी कार धुलाई के बाद लंच किया ..इधर उधर घूमा ..कुछ दोस्तों के साथ गप्प सदाका और करीब 3 बजे घर वापस आया ...

दरवाज़ा अंदर से बंद था ..शायद तीनों खाना वाना खा कर सो रहे थे ..थोड़ी देर खटखटाने के बाद मा ने दरवाज़ा खोला ...अंदर देखा तो दोनो बहेनें नीचे बिस्तर पर सो रही थीं ...मा भी शायद नींद से जागी थी दरवाज़ा खोलने के लिए....

अंदर आते ही मा ने दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझ से पूछा.." खाना खा लिया जग्गू..?? "

" हां मा खा लिया ....तू ने खाया ..??"

" हां बेटा ....जा तू भी थोड़ा आराम कर ले .थक गया होगा ..मैं भी लेट ती हूँ .. तू खाट पर लेट जा ...आज से तू उसी पर सोना ..." और फिर वो अपनी बेटियों के साथ नीचे लेट गयी ...

मैं मुँह धो कर खाट पर लेट गया ...मेरी खाट से बिल्कुल लगे नीचे मा थी .उसके बगल में बिंदु और फिर सब से किनारे सिंधु...

मैं लेटा लेटा सिंधु के बारे सोच रहा था .. ... पर जैसा भी हाल हो अभी तो गहरी नींद में थी....मतलब कोई तकलीफ़ नहीं ....चेहरे पे सुकून था ...

पर मा लेटी तो थी ..पर करवटें ले रही थी ...कुछ बेचैनी थी उसके चेहरे पर...बाल बीखरे थे ..छाती से आँचल नीचे गीरा था ..उसकी भारी भारी चुचियाँ उसकी टाइट ब्लाउस के अंदर उसकी सांस के साथ उपर नीचे हो रही थी ...मैं एक टक उन्हें देख रहा था ..ब्लाउस कुछ ज़्यादा ही छोटी थी ...आँचल नीचे होने की वाज़ेह से पेट बिल्कुल नंगा था... मा का पेट बिल्कुल सपाट था ..ज़रा भी चर्बी नहीं ..पर भरा भरा था ...अभी वो सीधा लेटी थी .....मैं उसे निहारे जा रहा था ...उसके नंगे पेट , नाभि के छेद और भारी भारी चूचिया ..उफफफफ्फ़ मैं पागल हो गया था ..उसका सीधा असर हुआ मेरे लंड पर ... पॅंट फाड़ बाहर आने को तैय्यार ..काफ़ी उभरा उभरा था ..मेरा एक हाथ मेरे सर के नीचे था और दूसरे हाथ से मैं अपना लंड सहला रहा था ...

तभी मा ने मेरी तरफ करवट ली और उसकी नज़र मेरी हालत पर पड़ी ....

मैं तो उसी की तरफ देख रहा था ....उसकी नज़र मेरी नज़र से मिली..मैं झेन्प्ता हुआ अपनी नज़र नीचे कर ली और अपना हाथ अपने लंड से हटा लिया....हाथ तो हट गया ...पर लंड खड़ा ही था ...पर धीरे धीरे मेरी झेंप के साथ सिकुड़ता गया ....

मा की नज़र उसी तरह मेरी ओर थी ..उसके चेहरे पे कोई भाव नहीं था ..बस एक टक मुझे देखती जा रही थी ..एक टक ..

मैं सकते में था ..पता नहीं क्या हो गया मा को ....

वो चुप चाप बिना कोई आहट किए मेरे बगल खाट पर बैठ गयी ..और मेरे सर पर हाथ सहलाने लगी ....

मैं बहुत घबडाया सा था ... उसके इस तरह से मेरे सर पर हाथ फेरने से मैं और भी भौंचक्का सा हो गया था ....जैसा मैं सोच रहा था के शायद झिड़की सुन ने को मिलेगी..पर यहाँ तो बात ही कुछ और थी ..मेरी समझ से बिल्कुल अलग ...

फिर उस ने कहा

" बेटा घबरा मत ..मैं तेरे को कुछ नहीं बोलती....तू भी अब जवान हो गया है ...और रोज तीन तीन जवान औरतों के साथ सोता है ....मजबूरी है ..पर अभी तक तू ने बाहर कुछ भी नहीं किया ..मैं जानती हूँ ..तेरे उपर मोहल्ले की औरतें जान देती हैं ..ये भी मैं जानती हूँ ...और तेरा मन हम तीनों पर लगा है ..ये भी मैं देख रही हूँ बेटा ....देख ना इतना पैसा भी नहीं के मैं तेरी या तेरी बहनो की शादी कर सकू ..तेरे बाप ने शराब पर सारा पैसा लूटा दिया .... मैं क्या करूँ ..तेरे लौडे और बिंदु और सिंधु की चूतो की प्यास बूझाने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं .....कोई रास्ता नहीं .." और वो अपना मुँह फेरे रोने लगी सिसक सिसक कर रो रही थी....

मा के बिल्कुल बेबाक और बेधड़क लफ़्ज़ों में एक मा की मजबूरी और लाचारी का गुस्सा झलक रहा था ... और अपने बेटे के सामने ऐसी बातें करना बता रहा था कि उसे अपने बेटे पर कितना भरोसा था .....

मैने अपनी मा के भरोसे को सहारा बनाता हुआ अपनी मा के चेहरे को अपनी तरफ किया और कहा

" मा ..रो मत ..मत रो मा .....जिस चीज़ के लिए तू बोल रही है ना तेरे पास रास्ता नहीं ..तो मेरे पर भरोसा रख और ग़लत मत समझ ...उसका रास्ता है मा ...इलाज़ है ...."

क्रमशः…………………………………………..
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